झारखंड के प्रमुख वाद्य यंत्र
(Jharkhand Ke Pramukh Vadya Yantra)
1) तंतु वाद्य
2) सुषिर वाद्य
3) ताल वाद्य
1) तंतु वाद्य :-
यह वैसे वाद्य होते हैं, जिनके तारों में कंपन के माध्यम से संगीतमय ध्वनि उत्पन्न की जाती है। जैसे :- एकतारा, भुआंग,केंद्ररी आदि।
➤एकतारा :- इसमें एक तार होने के कारण इसे एकतारा कहा जाता है।
➤इस वाद्य का निचला हिस्सा खोखली लौकी या लकड़ी का बना होता है।
➤यह देश भर के अपनी धुन में मस्त साधुओं और फकीरों की पहचान का वाद्य यंत्र है।
➤झारखंड में भी अक्सर फकीर/साधुओ के पास देखा जा सकता है।
➤केन्द्री :- यह संथालों का प्रिय वाद्य है।
➤इसे झारखंडी वायलिन भी कहा जाता है।
➤इसका निचला हिस्सा कछुए की खाल या नारियल के खाल का बना होता है।
➤इसमें 3 तार होते हैं जिनसे मधुर ध्वनि निकलती है।
➤भुआंग:- यह संथालों का प्रिय वाद्य है।
➤दशहरा के समय दासोई नाच में संथाल भुआंग बजाते हुए नृत्य करते हैं।
➤इसमें तार को ऊपर खींच कर छोड़ने से धनुष टंकार जैसी आवाज निकलती है।
➤टूइला :- इसकी वादन शैली कठिन होने के कारण झारखंड में यह कम लोकप्रिय है।
2) सुषिर वाद्य :-
ये वैसे वाद्य होते हैं जिसमें पतली नलिका में फूंक मारकर संगीत में ध्वनि उत्पन्न की जाती है। जैसे :- बांसुरी,सनाई(शहनाई), मदनभेरी, शंख, सिंगा आदि।
➤बांसुरी :- यह झारखंड का सबसे अधिक लोकप्रिय सुषिर वाद्य है। डोंगी बांस से सबसे अच्छी बांसुरी बनाई जाती है।
➤सानाई :- झारखंड के लोक संगीत में सानाई (शहनाई) बांसुरी की तरह लोकप्रिय है।
यह यहां का मंगल वाद्य भी है ,जिससे पूजा, विवाह आदि के साथ-साथ छउ,पाइका आदि नृत्यों में भी बजाया जाता है।
➤सिंगा :- प्राय: बैल या भैंस के सींग से बनाए जाने के कारण सिंगा कहा जाता है।
➤छऊ नृत्य में और शिकार के वक्त पशुओं को खदेड़ने के लिए बजाया जाता है।
➤मदनभेरी :- इस सुषिर वाद्य में लकड़ी की एक सीधा मिली होती है, जिसके आगे पीतल का मुह रहता है।
➤इसे ढोल, बांसुरी,सानाई के साथ सहायक के रूप में बजाया जाता है।
3) ताल वाद्य :-
वैसे वाद्य जिन्हे पीटकर या ठोककर ध्वनि उत्पन्न की जाती है।
I)अवनद्ध वाद्य:-
➤ये लकड़ी के ढांचे पर चमड़ा मढ़कर बनाए जाने वाले वाद्य हैं। इसे मुख्य ताल वाद्य भी कहा जाता है।
जैसे :- मांदर, ढोल, नगाड़ा, धमसा,ढाक ,करहा,डमरू,ढप,जुड़ी नगाड़ा,खंजरी आदि।
➤मांदर :- यह झारखंड का प्राचीन एवं अत्यंत लोकप्रिय वाद्य है।
➤ इस वाद्य यंत्र को यहां लगभग सभी समुदाय के लोग बजाते हैं।
➤यह पार्शवमुखी वाद्य है इसमें लाल मिट्टी का गोलाकार ढांचा होता है, जो अंदर से बिल्कुल खोखला होता है।
➤इसके दोनों तरफ के खुले सिरे बकरे की खाल से मड़े होते हैं।
➤रस्सी के सहारे कंधे से लटकार इसे बजाया जाता है।
➤मांदर की आवाज गूंज तार होती है।
➤ढोल :- लोकप्रियता की दृष्टि से इनका स्थान मांदर के बाद आता है।
➤इससे पूजा के साथ-साथ शादी, छांउ, नृत्य , घोड़नाच आदि में भी बजाया जाता है।
➤इसका मुख्य ढांचा आम, कटहल, या गमहार की लकड़ी का बना होता है।
➤इसके दोनों खुले मुंह को बकरे की खाल से मढ़कर बद्दी से कस दिया जाता है।
➤इसे हाथ या लकड़ी से बचाया जाता है।
➤धामसा :- इसका उपयोग, मांदर, ढोल आदि मुख्य वाद्यों के सहायक वाद्य के रूप में किया जाता है।
➤इसकी आकृति कढ़ाही जैसे होती है।
➤छउ नृत्य में धामसा की आवाज से युद्ध और सैनिक प्रयाण जैसे दृश्यों को साकार किया जाता है।
➤नगाड़ा :- इसे छोटे और बड़े दोनों प्रकार का बनाया जाता है।
➤बड़े नगाड़े का उपयोग सामूहिक उत्सवों और सामूहिक नृत्य के लिए किया जाता है।
➤ढाक :- इसका मुख्य ढाँचा गम्हार की लकड़ी का बना होता है।
➤इसके दोनों खुले मुँह को बकरे की खाल से मढ़कर बद्धी से कस दिया जाता है।
➤इसे कंधे से लटकाकर दो पतली लकड़ी के जरिए बजाया जाता है।
➤यह आकर में मांदर एवं ढोल से बड़ा होता है।
II)धन वाद्य:-
➤यह प्रया: कांसा के बने होते हैं, इन्हें सहायक ताल वाद्य भी कहा जाता है।जैसे :-करताल,झांझ ,झाल, घंटा, काठी खाला आदि।
➤करताल :- इसमें दो चपटे गोलाकार प्याले होते हैं, जिनके बीच का हिस्सा ऊपर की ओर उभरा होता है।
➤उभरे हिस्से के बीच में एक छेद होता है, जिसमें रस्सी पिरो दी जाती है।
➤रस्सीयों को हाथों की अंगुलियों में फंसाकर प्यालो को ताली बजाने की तरह एक दूसरे पर चोट की जाती है।
➤ऐसा करने से मधुर ध्वनि निकलती है।
➤झांझ :-यह करताल से बड़े आकार का होता है, बड़ा होने के कारण इसकी आवाज करताल से ज्यादा गुंजायमान होती है।
➤काठी :- यह भी एक धन वाद्य है ,इसमें कुडची की लकड़ी के दो टुकड़े होते हैं, जिन्हें आपस में टकराने पर मधुर ध्वनि उत्पन्न होती है।
➤थाला :- यह कासे से निर्मित थाली की तरह होता है ,थाला का गोलाकार किनारा दो-3 इंच का उठा होता है
➤बीच में छेद होता है, जिससे रस्सी पिरोक झुलाया जाता है।
➤बाएं हाथ से रस्सी थामकर दाएं हाथ से इसे भुट्टे /मक्का की खलरी से बजाया जाता है।