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Friday, June 11, 2021

Jharkhand Me Van Aur Jantu Sanrakshan Kary (झारखंड में वन और जन्तु संरक्षण कार्य)

Jharkhand Me Jantu Sanrakshan Kary

झारखंड में संचालित वन एवं वन्य जीवों के संरक्षण कार्यक्रम 

कार्यक्रम का नाम                        प्रमुख विशेषताएँ 

1- पलामू व्याघ्र परियोजना :- यह केंद्र प्रायोजित योजना है इसमें पहले शत-प्रतिशत व्यय  केंद्र सरकार द्वारा किया जाता था परंतु वर्तमान समय में इसमें केंद्र और राज्य की हिस्सेदारी 60:40 के अनुपात में है

झारखंड में वन और जन्तु संरक्षण कार्य

2- ग्रीन इंडिया मिशन  :-  यह केंद्र प्रायोजित योजना है इसमें केंद्र राज्य की हिस्सेदारी 60:40 के अनुपात में है यह भारत सरकार के नेशनल एक्शन प्लान ऑन क्लाइमेट चेंज के मिशन में से एक है। 

 3- वन-प्राणी पर्यावास की समेकित विकास योजना :- यह केंद्र प्रायोजित योजना है इसमें केंद्र एवं राज्य की हिस्सेदारी 60:40 के अनुपात में है इस योजना में राज्य में स्थित एक राष्ट्रीय उद्यान तथा 11 वन्य जीव अभ्यारण्यों  के विकास एवं उनके रखरखाव का कार्य किया जा रहा है 

4- इंटेसिफिकेशन ऑफ फॉरेस्ट मैनेजमेंट योजना :-यह केंद्र प्रायोजित योजना है इसमें केंद्र और राज्य की हिस्सेदारी 60:40 के अनुपात में है इस योजना में वनों में अग्नि सुरक्षा, सीमांकन, सर्वे  और वन सीमा स्तंभ का निर्माण किया जा रहा है

5- राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम :- यह केंद्र प्रायोजित योजना है इसमें केंद्र एवं राज्य की हिस्सेदारी 60:40 के अनुपात में है 

6- हाथी परियोजना :-- यह केंद्र प्रायोजित योजना है इसमें केंद्र और राज्य की हिस्सेदारी 60:40 के अनुपात में हैइस योजना के अंतर्गत सिंहभूम गज आरक्ष तथा राज्य के अन्य क्षेत्रों में हाथियों के पर्यावास का विकास और हाथी कॉरिडोर विकसित करने का कार्य किया जा रहा है 

7- नेशनल प्लान फॉर कंजवर्शन ऑफ एक्वाटिक इको सिस्टम :- यह केंद्र प्रायोजित योजना है इसमें केंद्र और राज्य की हिस्सेदारी 60:40 के अनुपात में है इस योजना के अंतर्गत साहिबगंज स्थित उधवा जल पक्षी अभयारण्य तथा राज्य के अन्य वेटलैंड के संरक्षण एवं विकास संबंधी कार्य किए जा रहे हैं 

8- वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग :- इसके नियंत्रण में राज्य में अवस्थित एक राष्ट्रीय उद्यान, 1 गज परियोजना तथा 11 वन्यजीव अभयारण्य हैं इन वन्यजीव क्षेत्रों के अंतर्गत अक्सर वन्यजीवों के अवैध शिकार तथा उनके अंगों का अवैध व्यापार होता रहता है, अतः विभाग इन पर प्रभावी रूप से नियंत्रण स्थापित करने हेतु वन्य प्राणी अपराध नियंत्रण प्रकोष्ठ गठित करने का प्रस्ताव है 

9- मुख्यमंत्री जन विकास योजना :- किसानों को निजी भूमि पर वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से इस योजना को वर्ष 2015 में शुरू किया गया इसका विधिवत कार्यान्वयन वित्तीय वर्ष 2016-2017 में शुरू हुआइसके तहत वनरोपन हेतु लोगों को 75% लागत राशि सरकार द्वारा प्रदान की जाती है 

10- झारखंड टूरिज्म नीति-2015 :- इस योजना के तहत प्रथम चरण में राज्य के 8 क्षेत्रों को इको-टूरिज्म के रूप में विकसित किया जा रहा है

इक-टूरिज़म सेंटर       जिला

पारसनाथ               गिरिडीह

कैन्हरी हिल            हजारीबाग

फॉसिल पार्क           साहिबगंज 

त्रिकूट पर्वत             देवघर 

पलामू व्याघ्र परियोजना  लातेहार

तिलैया डैम              कोडरमा 

नेतरहाट                  लातेहार 

दलमा अभयारण्य   जमशेदपुर

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Nagvanshi Shasan Vyavastha (नागवंशी शासन व्यवस्था)

Nagvanshi Shasan Vyavastha

नागवंश के संस्थापक राजा फणिमुकुट राय थे  इन्होंने 64 AD में नागवंश की स्थापना की 

➧ दरअसल मुंडा वंश का संस्थापक राजा सुतिया मुंडा के अंतिम उत्तराधिकारी राजा मदरा मुंडा हुए 

➧ मद्रा मुंडा ने सभी पड़हा पंचायतों के मानकियों से सलाहोपरांत अपने दत्तक पुत्र फनी मुकुट राय को 64 AD में सत्ता सौंपी दी

➧ यह एक जनजातीय समाज द्वारा गैर जनजातीय समाज को सत्ता सौंपने की घटना है 

नागवंशी शासन व्यवस्था

➧ चुँकि नागवंश की स्थापना मुंडा राज्य के उत्तराधिकारी राज्य के रूप में हुआ। ऐसे में नागवंशी राजा मुण्डाओं को अपना बड़ा भाई मानते थे और मुण्डाओं की परंपरागत शासन व्यवस्था मुंडा-मानकी को आदर करते थे साथ ही अपने प्रशासनिक कार्यो के संचालन में उनका सहयोग प्राप्त करते थे 

➧ नागवंशी काल में मुंडा-मानकी व्यवस्था भुईंहरी व्यवस्था के नाम से जानी जाने लगी 

➧ इस काल में पड़हा को पट्टी कहा जाने लगा, जो कि एक प्रशासनिक इकाई थी तथा मानकी को भी भुईहर कहा जाने लगा, जो कि एक प्रशासनिक पद था परंतु ग्रामीण पंचायती व्यवस्था पूर्व की भांति ही यथावत बनी रही  

➧ साथ ही फणिमुकुट राय ने विशेषकर बनारस के लोगों को छोटानागपुर आने का निमंत्रण दिया, जिसमें कुंवर लाल, ठाकुर, दीवान, कोतवाल, पांडेय मुख्य थे इन लोगो को प्रशासन में महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया गया

➧ मुगल काल में नागवंशी राजाओं की स्थिति बदली विशेषकर नागवंशी राजा दुर्जनशाल को जब जहांगीर ने 12 साल का बंदी बनाया फिर रिहाई के बाद उन्हें ₹6000 वार्षिक लगान देने को मजबूर किया तो इस क्षेत्र में प्रशासनिक स्वरूप बदल गया आरंभ में नागवंशी राजाओं ने नियमित कर वसूली का जिम्मा मुंडा-मानकी को ही सौंपा, परंतु बाद में यह जिम्मेदारी जागीरदारों को दे दी गई, जिसे जागीरदारी प्रथा का नाम दिया गया

➧ 1765 में मुगल बादशाह शाह आलम से अंग्रेजों को बंगाल, बिहार, उड़ीसा का दीवानी अधिकार प्राप्त हुआ, जिस पर आगे चलकर लार्ड कॉर्नवालिस ने 1793 में स्थायी  बंदोबस्त लागू किया इस प्रक्रिया में जमींदार को भू-स्वामी माना गया, अब लगान वसूली का कार्य जमींदारों को दिया जाने लगा इसी समय पड़हा  प्रणाली, परगना में बदल गयी 

➧ जमीनदरों ने  इस क्षेत्र का जमकर शोषण किया तथा बड़े पैमाने पर जमीन से जुड़े अधिकारों में हेर-फेर किया बंगाल-बिहार से आने वाले लोग बड़े पैमाने पर भू-स्वामी बन गए और जंगलों पर भी अधिकार कर लिया 

➧ इस सबके बीच नागवंशी शासन व्यवस्था कमजोर हुई, मुंडा-मानकी का महत्व धार्मिक क्रिया-कलापों तक सिमट कर रह गया 

➧ परंतु नागवंश का इतिहास चलता रहा अंत में 1963 में बिहार जमीदारी उन्मूलन कानून लागू होने के बाद नागवंश का अंत हो गया इसके अंतिम राजा चिंतामणि शरण नाथ शाहदेव तथा अंतिम राजधानी रातू गढ़ रही

➧ डॉ.बी.पी.केशरी की पुस्तक 'छोटानागपुर का इतिहास: कुछ सन्दर्भ तथा कुछ सूत्र' में नागवंशी शासन व्यवस्था के अंतर्गत काम करने वाले अधिकारियों का वर्णन मिलता है

1- ग्रामीण स्तर पर 

➧ ग्राम स्तर पर कई अधिकारी अपने-अपने क्षेत्र और इलाकों में अलग-अलग जिम्मेदारियों का निर्वाह करते थे

➧ ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करने वाले 22 अधिकारियों का वर्णन प्राप्त होता है 

(i) महतो 
(ii) भंडारी
(iii) पांडे 
(iv) पोद्दार 
(v) अमीन 
(vi) साहनी
(vii) बड़ाईक
(viii) विरीतिया 
(ix) घटवार
(x) इलाकावार 
(xi) दिग्वार
(xiiकोटवार 
(xiii) गोड़ाइत 
(xiv) जमादार 
(xv) ओहवार
(xvi) तोपची
(xvii) बारकंदाज 
(xviii) बख्शी 
(xix) चोबदार
(xx) बराहिल 
(xxi) चौधरी 
(xxii) गौंझू   

इनमें दो मुख्य थे:- 

(a) महतो :- गांव का महत्वपूर्ण व्यक्ति महतो या महत्तम कहलाता था

(b) भंडारी :- राजा के गांवों में खेती बारी करने तथा अन्न का भंडारण करने हेतु इनकी इसकी नियुक्ति की जाती थी 
(c) भण्डारिक :- यह भंडार गृह का प्रहरी होता था

2- पट्टी स्तर पर 

➧ इस काल में पड़हा को पट्टी कहा जाने लगा तथा इस स्तर पर काम करने वाला अधिकारी मानकी

➧ अब भुईंहरी कहलाने लगा, जबकि पड़हा को पट्टी के नाम से जाना गया
 
➧ यहां के मुख्य अधिकारी निम्न थे 

(a) भुईंहर  :- यह मानकी  पद का ही बदला हुआ रूप था परन्तु इस काल में भुईहर के न्यायिक और राजनीतिक अधिकार तो लंबे काल तक बनी रहे जबकि उनके अधिकार में कटौती की गई  

(b) जागीरदार :- मुगलकाल में लगान वसूली करने वाले करने हेतु इनकी नियुक्ति की गई 

(c) पाहन :- पड़हा में किसी भी प्रकार के आयोजन की व्यवस्था करना जैसे :- बलि, भोज, प्रसाद आदि का कार्य करता था 

3- राज्य स्तर पर  

➧ नागवंशी  राजा को महाराज कहकर संबोधित किया जाता था तथा वह प्रशासन का सर्वोच्च बिंदु था
➧ महाराजा के सहयोगी अधिकारी दीवान, पांडेय, कुँअर, लाल, ठाकुर आदि नाम से जाना जाने जाते थे, इन्हें राजा  भी कहा जाता था और सामान्य: राज्य  परिवार से जुड़े सदस्य ही इन पदों पर बिठाये जाते थे
उदाहरण स्वरूप जरियागढ़ राजा ठाकुर महेंद्र नाथ शाहदेव थे बड़कागढ़ के राजा ठाकुरमर विश्वनाथ शाहदेव आदि

➧ राजा के प्रमुख सहयोगी अधिकारी निम्न थे 
(a) दीवान :- यह शासन में वित्तीय मामलों का प्रमुख था 
(b) पांडेय  :- पंच में या पड़हा राजा की अनुमति से लिए गए निर्णय को मौखिक रूप से सभी को अवगत कराता था 


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Baiga Tribes Governance System: Jharkhand History- JPSC

Baiga Tribes Governance System

The 'Baiga= sorcerer=medicine man' are ethnic groups found in Central India, particularly in Chattisgarh, Madhya Pradesh, Jharkhand, and Uttar Pradesh.

Baiga tribe is a majority tribe in Jharkhand, which belongs to the proto-austroloid species. They mainly reside in the district of Palamu, Garhwa, Ranchi, Latehar, Hazaribagh.

Baiga Tribes Governance System: Jharkhand History- JPSC

Societal Culture:

  • Language: Most Baigas speak Hindi, Gondi, Marathi, or local languages depending on the region where they live.

  • Tatoo: Tattooing is an integral part of their lifestyle. Women are famous for sporting tattoos of various kinds on almost all parts of their bodies. The women who work as tattooing artists belong to the Ojha, Badni, and Dewar tribes are called "godharins". They are extremely knowledgeable about the different types of tattoos preferred by various tribes.

  • Cuisine: Baiga cuisine primarily consists of coarse grains, such as Kodo millet and kutki, and involves very little flour. Another staple food is pej, a drink that can be made from ground corn (macca) or from the water left from boiling rice. They supplement these diets with food from the forest, including fruits, vegetables. They also hunt fish and small mammals.


Societal governance:

In Baiga, social organization is found at the gotra or village level. Their traditional ethnic panchayat is at the village level. 

  • Head: The head of the village organization is called "Muqaddam". This position is heredity. 
  • Priest: The village also has a religious head or priest, but sometimes or somewhere the authority of the priest is combined with the head. Often the same person holds both positions.
  • Assistant: The assistant of the chief is "Sayana" and "Sikhen". Both of these positions are elected by the villagers. 
  • Messenger: There is also a messenger, is called "Charidars".

The village Panchyat deals with;

  • Village conflicts, inheritance property disputes, sexual offenses, marriage or divorce decisions, witch exorcism 'bisaeen', or theft cases. 
  • Marriage, festivals or extramarital sex, and marriage-related problems outside the caste are also resolved.

Everyone respects the decision of the panchayat and the violator is socially boycotted with the help of the preferred members of the village. In case of an outbreak of epidemic in the village due to the disease or sickness of the farmer, the role of the panchayat becomes clear. Panchayat supports and helps in the worship of village deities and other social works.

With the establishment of a government panchayat in the village, the traditional panchayat's dignity, popularity, and authority have declined.

Belief and Cultivation:

The Baiga tribes practice shifting cultivation in the forest areas. They say they never plowed the Earth because it would be akin to scratching their mother's breast, and they could never ask their mother to produce food from the same patch of earth time and time again- she would have become weakened. For this reason, Baiga used to live a semi-nomadic life and practiced 'Bewar'or 'dahiya' cultivation. These techniques are known as "Swidden agriculture" (Shifting cultivation), rather than being a cause of deforestation, have been shown to effective conservation devices, employed for centuries by tribal peoples.

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Jharkhand Itihas Se Jude Aitihasik Srot (झारखंड इतिहास से जुड़े ऐतिहासिक स्रोत)

Jharkhand Itihas Se Jude Aitihasik Srot

➧ किसी भी क्षेत्र के इतिहास एवं संस्कृति जानने का मुख्य साधन ऐतिहासिक स्रोत होते हैं 

➧ ऐतिहासिक स्रोतों को दो भागों में वर्गीकृत करते हैं

(I) पुरातात्विक स्रोत  :- इसके के अंतर्गत उपकरण, हथियार,  अभिलेख, शिलालेख, चित्रकला, सिक्के, स्थापत्य और मूर्तियों जैसे साधन आते हैं 

झारखंड इतिहास से जुड़े ऐतिहासिक स्रोत

(II) साहित्यिक स्रोत :- इसके अंतर्गत समकालीन धार्मिक एवं धर्मेत्तर में साहित्यों के विवरण शामिल किये  जाते हैं  


जिनका वर्णन निम्नवत है :-

पुरातात्विक सामग्री

(i) सिंहभूम  :  यहां से 1 लाख ईसा पूर्व के पाषाण उपकरण एवं औजार प्राप्त हुए हैं 

(ii) झरिया  :  यहां से पुरापाषाण कालीन पत्थर की कुल्हाड़ी एवं भाला जैसे औजार मिले हैं 

(iii) बोकारो  :  यहां से पुरापाषाण कालीन हस्त कुठार मिला है

(iv) हजारीबाग  :  यहां से पूरापाषाण कालीन हस्त कुठार एवं खुरचनी अवशेष मिले हैं 

(v) चक्रधरपुर :  यहां से नवपाषाण कालीन चाकूनुमा धारदार पत्थर मिला है 

(vi) बारूडीह  :  यहां से पॉलिशदार प्रस्तर की कुल्हाड़ी, कुदाल, छेनी जैसे औजार मिले हैं 

(vii) बसिया  :   गुमला के इस स्थान से तांबे की कुल्हाड़ी मिली है

(viii) बूढ़ाडीह :  तमाड़ के निकट इस स्थान से सुंदर कुलहाड़ा प्राप्त हुआ है

अभिलेख एवं शिलालेख 

(i)  अशोक का 13वाँ  शिलालेख : इस शिलालेख में झारखंड को आटविक क्षेत्र कहकर वर्णित किया गया है

(ii)  समुद्रगुप्त का प्रयाग प्रशस्ति  :- इस अभिलेख में झारखंड का उल्लेख मुरुण्ड देश के रूप में किया गया है

(iii)  महेंद्रपाल का इटखोरी शिलालेख :- हजारीबाग में स्थित यह अभिलेख पाल वंश के प्रभाव को दर्शाता है

(iv)  ताम्रपत्र अभिलेख :- यह 13वीं  सदी का है तथा इसका संबंध उड़ीसा के शासकों से है इसी शिलालेख में पहली बार छोटानागपुर क्षेत्र के लिए झारखंड शब्द प्रयोग में लाया गया  

(v) कवि गंगाधर का प्रस्तर अभिलेख :- यह धनबाद के गोविंदपुर में स्थित है तथा इस अभिलेख में धनबाद के मान राजवंश की चर्चा मिलती है  

(vi) गहड़वाल शासकों का शिलालेख :- यह पलामू क्षेत्र से प्राप्त हुआ है तथा मान राजा से संबंधित है

(vii) हापामुनी मंदिर के अभिलेख :- गुमला के घाघरा में स्थित इस मंदिर के कुछ हिस्सों पर भी ऐतिहासिक वर्णन मिलता है 

(viii) बोड़ेया मंदिर अभिलेख :- रांची के बोड़ेया गांव में 1727 ईस्वी में निर्मित इस मंदिर के दीवारों पर भी ऐतिहासिक वर्णन प्राप्त होते हैं  

चित्रकला 

(i) हजारीबाग के इस्को गांव से प्रागैतिहासिक काल की कई चित्रें  प्राप्त होती है, जैसे:- आदिमानव का चित्र, भूल भुलैया जैसी आकृति आदि

(ii) गढ़वा जिले के भवनाथपुर से भी प्रागैतिहासिक आखेट के चित्र मिले हैं, जिसकी तुलना सिंधु सभ्यता के पेंटिंग से की जा रही है

स्थापत्य एवं मूर्तियां 

(i) पारसनाथ पहाड़ी :- गिरिडीह जिले में स्थित इस पहाड़ी पर कई जैन तीर्थकर की मूर्तियां और मंदिर निर्मित है

(ii) बाबूसराय :- सिंहभूम स्थित इस स्थान से सातवीं-आठवीं शताब्दी के कई हिंदू देवी, देवताओं और जैन तीर्थकरों की मूर्तियां प्राप्त होती हैं

(iii) दुमदूमा :- हजारीबाग के इस स्थान से पालकालीन मूर्तियां मिले हैं

(iv) खुखरागढ़ :- रांची के बेड़ो प्रखंड में स्थित इस स्थान से 14वीं शताब्दी के मिट्टी के बर्तन एवं ईटों  द्वारा निर्मित मंदिर के अवशेष मिले हैं

(v) प्रतापपुर :- चतरा जिले में स्थित इस स्थान से मुगलकालीन कुंपा किला के अवशेष मिले हैं 

(v) कोलुआ पहाड़ :- हंटरगंज स्थित इस स्थान से एक मध्यकालीन दुर्ग का अवशेष मिलता है जिसमें हिंदू, जैन और बौद्ध धर्म की मूर्तियां भी प्राप्त हुई है  

सिक्के

(i) रांची  : यहां से कुषाणकालीन सिक्के मिले हैं 

(ii) सिंहभूम : यहां से रोमन सम्राट के सिक्के मिले हैं 

(iii) चाईबासा : यहां से इंडो सिथियन राजाओं के सिक्के मिले हैं 

साहित्य स्रोत 

(i) प्राचीन कालीन : -प्राचीन काल में ऋग्वेद, अर्थवेद, ऐतरेय ब्राह्मण, वायु पुराण, विष्णु पुराण, भागवत पुराण, महाभारत, टॉलमी, फाह्यान, व्हेनसांग, राजपूत कालीन संस्कृति साहित्य में झारखंड की सभ्यता संस्कृति का वर्णन प्राप्त होता है 

(ii) मध्यकालीन  :- इस काल में कबीर और मलिक मोहम्मद जायसी के रचनाओं में झारखंड का वर्णन है इसके अलावे अफ्रीफ की शम्म-ए-सिराज, सलीमुल्ला की तारीख-ए-फिरोजशाही, गुलाम हुसैन की तारीख-ए-बांग्ला, जहांगीर की आत्मकथा सियार-उल-मुतखरीन, शाहबाज खाँ की तुजुक-ए-जहाँगीरी, अब्दुल की मथिरउल-उमरा एवं मिर्जा नाथ बहारिस्तान-ए-गैबो आदि रचनाएं झारखण्ड की समाजिक-सांस्कृतिक इतिहास का वर्णन प्रस्तुत करते हैं 

(iii) आधुनिक काल  :- इस काल में डब्ल्यू डब्ल्यू हंटर, डाल्टन, जैसे अधिकारियों के लेख मिश्नरी संस्थाओं के अभिलेखागार, विलियम इरविन व जॉन बैपटिस्ट विदेशी यात्रियों के विवरण इतिहास जानने के मुख्य स्रोत हैं 

महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल 

स्थान         जिला         अवशेष

इस्को          हजारीबाग    विशाल पर्वत पर आदि मानव द्वारा निर्मित चित्र, शैल चित्र दीर्घा, भूल-भुलैया आकृति 

भवनाथपुर   गढ़वा        प्रागैतिहासिक आखेट का चित्र (शिकार का चित्र), जिसमें हिरण, भैंसा, आदि पशु है, प्राकृतिक गुफा आदि 

पलामू         पलामू      पाषाण काल के तीनों चरणों के पाषाण उपकरण मिलते हैं 

बारूडीह      सिंहभूम    हस्त-निर्मित मृदभांड, कुल्हाड़ी, पत्थर का रिंग  

बानाघाट    सिंहभूम    नवपाषाण कालीन पत्थर, मृदभांड 

नामकुम     रांची        तांबे एवं लोहे के औजार तथा बाण के फलक

लोहरदगा  लोहरदगा   कांसे का प्याला 

मुरद          रांची         तांबे की सिकड़ी, कांसे की अंगूठी

लूपगढ़ी      -              प्राचीन कब्र के अवशेष 

बारहगंडा  हज़ारीबाग  तांबे की खान

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Asur Tribes Governance System: Jharkhand History- JPSC/ JSSC

Asur Tribes Governance System

Asur is one of the minority primitive tribes of Jharkhand. The Asur is among the nine Particularly Vulnerable Tribal Groups (PVTG) found in Jharkhand. As per the census, the Asur tribe has a population of around 23,000 in the Latehar and Gumla districts.

Asur Tribes Governance System: Jharkhand History- JPSC/ JSSC

In the community, 50% of the population could barely speak in Asur language. They are not fluent in the language. The Asur language figures in the list of UNESCO Interactive Atlas of the World's Languages in Danger. Only 7,000 to 8,000 Asur tribals are left in the community who are well conversant in the language. With help from tribal rights activists, Asur Tribal Wisdom Center, and the organization involving Asur tribals, was established at Jobipat village near Netarhat to protect the language and culture of Asur tribals.

Of the 32 tribes recorded in the State, only four to five tribes, including Santhali, Ho, and Kurukh, recorded their language scripts.


About Asur Tribes:

Asur tribes are worshipers of their ancestor named Mahisasura, who was born from the womb of a buffalo, and according to the Hindu mythological, he was killed by Goddess Durga. They stay in the forest and also they worship the plants and animals. They are very fond of music and their own culture.  


Governance:

Asur village itself is a political entity. Asur society is governed by traditional practice. There are Asur Panchayat in the village, whose officials are Mahto, Baiga, Pujar, Godait, etc. In Panchayat, senior citizens of at least five villages live as Panch. All adult males participate in the panchayat. 

Functions of Panchayat:

  • It resolves all kinds of disputes related to the village.
  • Social exclusion is punished only under special circumstances.

After the establishment of modern government panchayats, the active role of traditional panchayats is weakening. Yet, these panchayats appear to be performing most of the functions.

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Thursday, June 10, 2021

Jharkhand Jalvayu Ke Prakar (झारखंड जलवायु के प्रकार)

Jharkhand Jalvayu Ke Prakar

1- उत्तरी व उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्र (महाद्वीपीय प्रकार)

➧ इस जलवायु क्षेत्र का विस्तार पलामू, गढ़वा, चतरा एवं हजारीबाग तथा गिरिडीह जिले के मध्यवर्ती भाग एवं संथाल परगना क्षेत्र के पश्चिमी भाग (देवघर, उतरी दुमका, गोड्डा) में है

झारखंड जलवायु के प्रकार एवं क्षेत्र

➧ 
इस जलवायु क्षेत्र की विशिष्टता है- इसका अतिरेक स्वभाव का होना अर्थात जाड़े के मौसम में अत्यधिक जाड़ा एवं गर्मी के मौसम में अत्यधिक गर्मी पड़ना
 

2- मध्यवर्ती क्षेत्र (उपमहाद्वीपीय प्रकार)

➧ इस जलवायु क्षेत्र का विस्तार पूर्वी लातेहार, दक्षिणी हजारीबाग, बोकारो, धनबाद, जामताड़ा एवं दक्षिणी पश्चिमी दुमका में है
➧ यह क्षेत्र लगभग महाद्वीपीय प्रकार का ही है किंतु तापमान में अपेक्षाकृत कमी एवं वर्षा में अपेक्षाकृत अधिकता के कारण इसे उपमहाद्वीपीय प्रकार का दर्जा दिया गया है
➧ यहां औसत वार्षिक वर्षा 127 सेंटीमीटर से 165 सेंटीमीटर के बीच होती है 

3- पूर्वी संथाल परगना क्षेत्र (डेल्टा प्रकार) 

➧ इस जलवायु क्षेत्र का विस्तार साहिबगंज और पाकुड़ जिला में है, जो राजमहल पहाड़ी के पूर्वी ढाल का क्षेत्र है। इस जलवायु क्षेत्र की समानता बंगाल की जलवायु से की जा सकती है
➧ इस क्षेत्र में कुल औसत वार्षिक वर्षा 152 पॉइंट 5 सेंटीमीटर होती है। साथ ही नार्वेस्टर प्रभाव के कारण ग्रीष्म ऋतु में 13 पॉइंट 5 प्रतिशत वर्षा भी दर्ज की जाती है 

4- पूर्वी सिंहभूम  क्षेत्र (सागर प्रकार)

➧ इस जलवायु क्षेत्र का विस्तार पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला-खरसावां जिला एवं पश्चिमी सिंहभूम जिला के पूर्वी क्षेत्रों में है 
➧ यह जलवायु क्षेत्र नार्वेस्टर के प्रभाव के कारण कई मौसमी घटनाएं घटित होती हैं
➧ मानसून पूर्व इस क्षेत्र  में नार्वेस्टर प्रभाव के कारण तड़ित झांझ एवं ओलावृष्टि की स्थिति बनती है औसतन प्रति वर्ष 71 तड़ित झांझ एवं 10 ओलावृष्टि इस क्षेत्र में गिरते हैं
➧ इस क्षेत्र में कुल औसत वार्षिक वर्षा 140 सेंटीमीटर से 152 सेंटीमीटर  के बीच होती है

5- पूर्वी सिंहभूम का पश्चिमी क्षेत्र  (आद्र वर्षा प्रकार)

➧ इसका विस्तार सिमडेगा एवं पश्चिमी सिंहभूम के मध्य एवं पश्चिमी भाग में है यहां मानसून के दोनों शाखाओं के द्वारा वर्षा होती है
➧ इस क्षेत्र में कुल औसत वर्षा 152 पॉइंट 5 सेंटीमीटर से अधिक होती है

6- रांची हजारीबाग पठार क्षेत्र (तीव्र एवं सुखद प्रकार) 

➧ इस जलवायु क्षेत्र का विस्तार रांची-हजारीबाग पठारी क्षेत्र में है
 इस जलवायु क्षेत्र की जलवायु तीव्र एवं सुखद प्रकार की है
➧ इस प्रकार की जलवायु के निर्माण में इस भू-भाग की ऊंचाई की महत्वपूर्ण भूमिका है ऊंचाई के कारण ही चारों और की उपेक्षा यहां तापमान कम रहता है 
 रांची में औसतन वार्षिक वर्षा 151 पॉइंट 5 सेंटीमीटर एवं हजारीबाग में औसतन वार्षिक वर्षा 148 पॉइंट 5 सेंटीमीटर होती है


7- पाट क्षेत्र  शीत वर्षा प्रकार

 इस जलवायु क्षेत्र का विस्तार लोहरदगा एवं गुमला के अधिकतर क्षेत्र में है 
➧ इस क्षेत्र की जलवायु रांची पठार की तरह ही है, लेकिन यह रांची पठार की तुलना में अधिक ठंडी है 
 शीत ऋतु में तापमान हिमांक (फ्रीजिंग प्वाइंट)  से नीचे चला जाता है
➧ यह जलवायु क्षेत्र झारखंड का सबसे अधिक वर्षा वाला क्षेत्र है
➧ यह वर्षा मानसून के अतिरिक्त शीत ऋतु में भी होती है 
➧ इस जलवायु क्षेत्र के 1000 मीटर से अधिक ऊंचे भू-भाग में 203 सेंटीमीटर तक वर्षा होती है

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Wednesday, June 9, 2021

State Human Rights Commission - Indian Polity (JPSC/ JSSC/ UPSC)

State Human Rights Commission

The protection of the Human Rights Act, 1993 provides for the creation of not only the National Human Rights Commission but also a State Human Rights Commission at the state level.

Accordingly, 25 states have been constituted the State Human Rights Commissions through Official Gazzette Notifications. 

State Human Rights Commission - Indian Polity (JPSC/ JSSC/ UPSC)

A State Human Rights Commission can inquire into violation of human rights only in respect of subjects mentioned in the State List (List=II) and the Concurrent List (List-III) of the 7th schedule of the Constitution. 

However, if any such case is already being inquired into by the National Human Rights Commission or any other Statutory Commission, then the State Human Rights Commission does not inquire into that case.


Composition of the Commission:

The State Human Rights Commission is a multi-member body consisting of 

  • a chairperson- should be a retired Chief Justice of a High Court;
  • two members- members should be a serving or retired Judge of a High Court or a District Judge in the State with a minimum of 7 years of experience as District Judge and a person having knowledge or practical experience concerning human rights.

Appointment:

  • The Chairperson and members are appointed by the Governor on the recommendations of a committee of the Chief Minister as its head, the Speaker of the Legislative Assembly, the State Home Minister, and the leader of the opposition in the Legislative Assembly.

  • In the case of a State having a Legislative Council, the chairman of the Council and the leader of the opposition in the Council would also be the members of the committee.

  • Further, a sitting Judge of a High Court or a sitting District Judge can be appointed only after consultation with the Chief Justice of the High Court of the concerned State.

Tenure:

  • The chairperson and members hold office for a term of 5 years or until they attain the age of 70 years, whichever is earlier. 

  • After their tenure, they are not eligible for further employment under a State government or the Central government.

Removal:

Although the Chairperson and members of a State Human Rights Commission are appointed by the governor, they can be removed only by the President (and not by the governor).

The President can remove them on the same grounds and in the same manner as he can remove the chairperson or a member under the National Human Rights Commission. He can remove the chairperson or member under the following circumstances;

  • If he is adjudged an insolvent; or
  • If he engages, during his term of office, in any paid employment outside the duties of his offices; or
  • If he is unfit to continue in the office because of the infirmity of mind or body; or
  • If he is of unsound mind and stands so declared by a competent court; or
  • If he is convicted and sentenced to imprisonment for an office; or
  • On the ground of proved misbehavior or incapacity.

However, in these cases, the President has to refer the matter to the Supreme Court for an inquiry. If the Supreme Court, after the inquiry, upholds the cause of removal and advises so, then the President can remove the chairperson or a member.


Salary/ Allowances:

The salaries/ allowances and other conditions of service of the chairman or a member are determined by the State government. But, they can be varied to his disadvantage after his appointment.

All the above provisions are aimed at securing autonomy, independence, and impartiality in the functioning of the Commission.


Functions of Commission:

  • To inquire into a violation of human rights or negligence in the prevention of such violations by a public servant, either suo motu or on a petition presented to it or on an order of a court.

  • To intervene in any proceeding involving allegations of violation of human rights pending before a court.

  • To visit Jails and detention places to study the living conditions of inmates and make recommendations thereon.

  • To review the constitutional and other legal safeguards for the protection of human rights and recommend measures for their effective implementation.

  • To review the factors including acts of terrorism that inhibit the enjoyment of human rights and recommend remedial measures.

  • To undertake and promote research in the field of human rights.

  • To spread human rights literacy among the people and promote awareness of the safeguards available for the protection of these rights.

  • To encourage the efforts of non-governmental organizations (NGOs) working in the field of human rights.

  • To undertake such other functions as it may consider necessary for the promotion of human rights. 

 Working of the Commission:

The Commission is vested with the power to regulate its own procedure. It has all the powers of a civil court and its proceedings have a judicial character. It may call for information or report from the State government or any other authority subordinate thereof.

The Commission is not empowered to inquire into any matter after the expiry of one year from the date which the act constituting a violation of human rights is alleged to have been committed.

The Commission may take any of the following steps during or upon the completion of an inquiry:

  • It may recommend to the State government or authority to make payment of compensation or damages to the victim.

  • It may recommend to the State government or authority the initiation of proceedings for prosecution or any other action against the guilty public servant.

  • It may recommend to the State government or authority for the grant of immediate interim relief to the victim.

From the above, it is clear that the functions of the Commission are mainly recommendations in nature. It has no power to punish the violators of human rights, nor to award any relief including monetary relief to the victim. 

Its recommendations are not binding on the State government or authority. But, it should be informed about the action taken on its recommendations within one month.

The Commission submits its annual or special reports to the State government. These reports are laid before the State Legislature, along with a memorandum of action taken on recommendations of the Commission and the reasons for non-acceptance of any such recommendations.


Human Rights Courts: 
The protection of the Human Rights Act (1993) also provides for the establishment of the Human Rights Court in every district for the speedy trial of violation of human rights. These Courts can be set up by the State government only with the occurrence of the Chief Justice of the High Court of that State.

For every Human Rights Court, the State government specifies a public prosecutor or appoints an advocate (who has practiced for 7 years) as a special public prosecutor.

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