Monday, February 15, 2021
Jharkhand Janjatiya Vidroh Se Sambandhit Vyakti (झारखंड जनजातीय विद्रोह से संबंद्ध व्यक्ति)
Tuesday, February 2, 2021
Jharkhand Ke Raj Kile Aur Raj Prasad (झारखंड के राज किले /राज प्रसाद)
झारखंड के राज किले /राज प्रसाद
(Jharkhand Ke Raj Kile Aur Raj Prasad)
➤विश्रामपुर किला (पलामू)
➤यह किला चेरो राजवंश के संबंधी विश्रामपुर के तड़वन राजा द्वारा बनवाया गया था।
➤किले के निकट एक मंदिर भी है। मंदिर और किले के निर्माण में लगभग 9 वर्षों का समय लगा।
➤रोहिलो का किला (पलामू)
➤यह किला जलपा के पास अलीनगर में अवस्थित है।
➤इस किले का निर्माण रोहिला सरदार मुजफ्फर खा ने करवाया था।
➤यह त्रिभुजाकार है।
➤चैनपुर का किला (पलामू)
➤यह किला दीवान पूरणमल के वंशधरों द्वारा बनवाया गया था।
➤मेदनीनगर में कोयल नदी के तट पर उन लोगों द्वारा एक अन्य स्मारक भी बनवाया गया जिसका नाम चैनपुर बंगला है।
➤कुंदा का किला (चतरा)
➤यह किला चेरों का था, जो चतरा जिले के कुंदा नामक स्थान पर अवस्थित है। अब यह खंडहर हो चुका है।
➤इस किले की मीनारें मुगल शैली में निर्मित हैं।
➤किले के प्रांगण में एक कुआं है, जहां सुरंग नुमा रास्ता था।
➤तिलमी का किला (खूंटी)
➤यह किला खूंटी जिले के कर्रा प्रखंड के तिलमी गांव में अवस्थित है।
➤इस किले का निर्माण 1737 ईस्वी में अकबर ठाकुर द्वारा करवाया गया पालकोट था।
➤पालकोट का राजभवन (गुमला)
➤नागवंशी शासक यदुनाथ शाह ने पालकोट को अपनी राजधानी बनाई थी । यहीं पर उसने इस राज भवन का निर्माण कराया था।
➤यहां उन्होंने अनेक राज भवन एवं मंदिर बनवाए।
➤यहां गुमला जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर की दूरी पर NH-23 (गुमला-सिमडेगा) मार्ग पर है।
➤नागफेनी का राजमहल (गुमला)
➤गुमला के सिसई प्रखंड में नागफेनी नामक गांव में राजप्रसाद की अनेक टूटी हुई दीवारें मिली है।
➤पुरातात्विक दृष्टि से इनकी तिथि 1704 ईस्वी आंकी गई है।
➤इन दीवारों पर एक आलेख भी है पत्थर पर एक राजा और उनकी सात रानियों तथा एक कुत्ते का चित्र है।
➤इसे नागों का शहर भी कहा जाता है।
➤रामगढ़ का किला (रामगढ़)
➤इस किले का निर्माण सबल राय ने करवाया था।
➤इस किले पर मुगल शैली की स्पष्ट झलक दिखाई देती है।
➤बादाम का किला (हजारीबाग)
➤इसका निर्माण रामगढ़ का राजा हेमंत सिंह ने करवाया था।
➤1642 ईस्वी में राजा द्वारा यहां एक शिव मंदिर भी बनवाया गया था।
➤इसके अवशेष यहां आज भी विद्यमान हैं।
➤केसानगढ़ का किला (पश्चिमी सिंहभूम)
➤यह किला चाईबासा से दक्षिण-पूर्व केसानगढ़ में अवस्थित था।
➤वर्तमान में यहां किले का एक टीला है।
➤जगन्नाथ का किला (पश्चिमी सिंहभूम)
➤यह किला पश्चिमी सिंहभूम में स्थित जगन्नाथपुर में है।
➤इस किले का निर्माण पर पोड़ाहाट वंश के राजा जगन्नाथ सिंह ने करवाया था।
➤जैतगढ़ का किला (पश्चिमी सिंहभूम)
➤इस किले का निर्माण वैतरणी नदी के तट पर जैतगढ़ में पोड़ाहाट राजा अर्जुन सिंह ने करवाया था।
➤पदमा का किला (हजारीबाग)
➤पदमा महाराजा का किला हजारीबाग जिले की पदमा नामक स्थान पर NH-33 के किनारे अवस्थित है।
➤अब इस किले को सरकार ने पुलिस प्रशिक्षण केंद्र बना दिया है।
➤दोईसागड़ (गुमला)
➤दोईसागड़ (नवरत्नगढ़) गुमला जिले के नगर ग्राम के निकट स्थित है।
➤आज से लगभग पौने 400 वर्ष पूर्व यहां नागवंशी राजाओं की राजधानी थी।
➤इतिहासकारों के अनुसार दोईसागड़ में एक पांच मंजिला महल था।
➤प्रत्येक मंजिला पर नौ-नौ कमरे थे। राँची गज़ेटियर भी इसकी पुष्टि करता है, लेकिन दंतकथा है कि यह नौ तल्ला था जिसमें से 9 तल्ले जमीन में धंस गए हैं।
➤खजाना घर इस महल का विशेष आकर्षण है।
➤दांतेदार परकोटों से घिरा यह महल कंगूरा शैली में है।
➤चक्रधरपुर की राजबाड़ी (पश्चिमी सिंहभूम)
➤इसका निर्माण अर्जुन सिंह के पुत्र नरपति सिंह ने 1910-20 की ईस्वी में करवाया था।
➤यहां का राजमहल ईटों का बना है। राजा की पुत्री शंशाक मंजरी ने इसे बेच दिया।
➤रातू महाराजा का किला (रांची)
➤नागवंशी राजाओं का यह किला रातू में अवस्थित है। इसकी विशालता दर्शनीय है।
➤झरियागढ़ महल (धनबाद)
➤झरिया के राजाओं की प्रारंभिक राजधानी झरियागढ़ में थी, यहां इस महल का निर्माण हुआ। बाद में इसकी राजधानी कतरासगढ़ स्थानांतरित हो गई थी। यहां पर भी अनेक महलों के अवशेष हैं।
Thursday, January 21, 2021
Prachin kal me Jharkhand (प्राचीन काल में झारखंड)
Prachin Kal Me Jharkhand
1) मौर्य काल
➤मगध से दक्षिण भारत की ओर जाने वाला व्यापारिक मार्ग झारखंड से होकर जाता था।
अत: मौर्यकालीन झारखंड का अपना राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक महत्व था।
कौटिल्य का अर्थशास्त्र
➤कौटिल्य के अर्थशास्त्र में इस क्षेत्र को कुकुट/कुकुटदेश नाम से इंगित किया गया है।
➤कौटिल्य के अनुसार कुकुटदेश में गणतंत्रात्मक शासन प्रणाली स्थापित थी।
➤कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य ने आटविक नामक एक पदाधिकारी की नियुक्ति की थी।
➤जिसका उद्देश्य जनजातियों का नियंत्रण, मगध साम्राज्य हेतु इनका उपयोग तथा शत्रुओ से इनके गठबंधन को रोकना था।
➤इंद्रनावक नदियों की चर्चा करते हुए कौटिल्य ने लिखा है कि इंद्रनावक की नदियों से हीरे प्राप्त किये जाते थे।
➤इन्द्रनवाक संभवत: ईब और शंख नदियों का इलाका था।
अशोक
➤अशोक के 13वें शिलालेख में समीपवर्ती राज्यों की सूची मिलती है, जिसमें से एक आटविक/आटव/आटवी प्रदेश (बुंदेलखंड से उड़ीसा के समुद्र तट तक विस्तृत) भी था और झारखंड क्षेत्र इस प्रदेश में शामिल था।
➤अशोक का झारखंड की जनजातियों पर अप्रत्यक्ष नियंत्रण था।
➤अशोक के पृथक कलिंग शिलालेख-II में वर्णित है कि - 'इस क्षेत्र को अविजित जनजातियों को मेरे धम्म का आचरण करना चाहिए, ताकि वे लोक परलोक प्राप्त कर सके।
➤अशोक ने झारखंड में बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु रक्षित नामक अधिकारी को भेजा था।
2) मौर्योत्तर काल
➤मौर्योत्तर काल में विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत में अपने-अपने राज्य स्थापित किए।
➤इसके अलावा भारत का विदेशों से व्यापारिक संबंध भी स्थापित हुआ जिसके प्रभाव झारखंड में भी दिखाई देते हैं।
➤सिंहभूम
➤सिंहभूम से रोमन साम्राज्य के सिक्के प्राप्त हुए हैं ,जिससे झारखंड के वैदेशिक संबंधों की पुष्टि होती है।
➤चाईबासा
➤चाईबासा से इंडो-सीथियन सिक्के प्राप्त हुए हैं।
➤रांची से कुषाणकालीन सिक्के प्राप्त हुए हैं जिससे यह ज्ञात होता है कि यह क्षेत्र कनिष्ठ के प्रभाव में था।
3) गुप्त काल
➤गुप्त काल में अभूतपूर्व सांस्कृतिक विकास हुआ अतः इस काल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग कहा जाता है।
➤हजारीबाग के मदुही पहाड़ से गुप्तकालीन पत्थरों को काटकर निर्मित मंदिर प्राप्त हुए हैं।
➤झारखंड में मुंडा, पाहन, महतो तथा भंडारी प्रथा गुप्तकाल की देन माना जाता है।
➤समुद्रगुप्त
➤गुप्त वंश का सर्वाधिक महत्वपूर्ण शासक समुद्रगुप्त था। इसे भारत का नेपोलियन भी कहा जाता है।
➤इसके विजयों का वर्णन प्रयाग प्रशस्ति (इलाहाबाद प्रशस्ति) में मिलता है। प्रयाग प्रशस्ति के लेखक हरीसेंण है। इन विजयों में से एक आटविक विजय भी था।
➤झारखंड प्रदेश इसी आटविक प्रदेश का हिस्सा था। इससे स्पष्ट पता होता है कि समुद्रगुप्त के शासनकाल में झारखंड क्षेत्र उसके अधीन था।
➤समुद्रगुप्त ने पुन्डवर्धन को अपने राज्य में मिला लिया, जिसमें झारखंड का विस्तृत क्षेत्र शामिल था।
➤समुद्रगुप्त के शासनकाल में छोटानागपुर को मुरुण्ड देश कहा गया है।
➤समुद्रगुप्त के प्रवेश के पश्चात झारखंड क्षेत्र में बौद्ध धर्म का पतन प्रारंभ हो गया।
➤चंद्रगुप्त द्वितीय 'विक्रमादित्य'
➤चंद्रगुप्त द्वितीय का प्रभाव झारखंड में भी था।
➤इसके काल में चीनी यात्री फाह्यान 405 ईस्वी में भारत आया था। जिसने झारखंड क्षेत्र को कुक्कुटलाड कहा है।
➤मुदही पहाड़ हजारीबाग जिले में है जो पत्थरों को काटकर बनाए गए चार मंदिर। सतगांवा कोडरमा मंदिरों के अवशेष (उत्तर गुप्त काल से संबंधित) हैं। पिठोरिया रांची पहाड़ी पर स्थित कुआं तीनों गुप्तकालीन पुरातात्विक अवशेष हैं।
4) गुप्तोत्तर काल
➤शशांक
➤गौड़ (पश्चिम बंगाल) का शासक शशांक इस काल में एक प्रतापी शासक था।
➤शशांक के साम्राज्य का विस्तार संपूर्ण झारखंड, उड़ीसा तथा बंगाल तक था।
➤शशांक अपने विस्तृत साम्राज्य को सुचारू रूप से चलाने के लिए दो राजधानी स्थापित की:-
➤प्राचीन काल में शासकों में यह प्रथम शासक था जिसकी राजधानी झारखंड क्षेत्र में थी।
➤शशांक शैव धर्म का अनुयाई था तथा इसने झारखंड में अनेक शिव मंदिरों का निर्माण कराया।
➤शशांक के काल का प्रसिद्ध मंदिर वेणुसागर है जो कि एक शिव मंदिर है। यह मंदिर सिंहभूम और मयूरभंज की सीमा क्षेत्र पर अवस्थित कोचिंग में स्थित है।
➤शशांक ने बौद्ध धर्म के प्रति असहिषुणता की नीति अपनाई,जिसका उल्लेख हेन्सांग ने किया है।
➤शशांक ने झारखंड के सभी बौद्ध केंद्रों को नष्ट कर दिया। इस तरह झारखंड में बौद्ध- जैन धर्म के स्थान पर हिंदू धर्म की महत्ता स्थापित हो गई।
➤हर्ष वर्धन
➤वर्धन वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक हर्षवर्धन था।
➤इसके साम्राज्य में काजांगल (राजमहल) का कुछ भाग शामिल था।
➤काजांगल (राजमहल) में ही हर्षवर्धन हेनसांग से मिला। हेनसांग ने अपने यात्रा वृतांत में राजमहल की चर्चा की है।
➤अन्य तथ्य
➤हर्यक वंश का शासक बिंबिसार झारखंड क्षेत्र में बौद्ध धर्म का प्रचार करना चाहता था।
➤नंद वंश के समय झारखंड मगध साम्राज्य का हिस्सा था।
➤नंद वंश की सेना में झारखंड से हाथी की आपूर्ति की जाती थी। इस सेना में जनजातीय लोग भी शामिल थे।
➤झारखंड में दामोदर नदी के उद्गम स्थल तक मगध की सीमा का विस्तार माना जाता है।
➤झारखंड में 'पलामू' में चंद्रगुप्त प्रथम द्वारा निर्मित मंदिर के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
➤कन्नौज के राजा यशोवर्मन के विजय अभियान के दौरान मगध के राजा जीवगुप्त द्वितीय ने झारखण्ड में शरण ली थी।
➤13वीं सदी में उड़ीसा के राजा जयसिंह ने स्वयं को झारखंड का शासक घोषित कर दिया था।
Friday, January 15, 2021
Chotanagpur Kashtkari Adhiniyam 1908 Part-1(छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908)
Chotanagpur Kashtkari Adhiniyam 1908 Part-1
➤इस अधिनियम में कुल 19 अध्याय और 271 धाराएं हैं।
➤अध्यायों का संक्षिप्त विवरण :-
💥अध्याय-1 में (धारा -1 से धारा-3 तक)
➤धारा -1 संक्षिप्त नाम तथा प्रसार:-इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम 'छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम', 1908 है।➤इसका प्रसार उत्तरी छोटानागपुर और दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल में होगा ।
➤भूस्वामी :- वह व्यक्ति जिसने किसी काश्तकार को अपनी जमीन दिया हो।
➤काश्तकार:- वह व्यक्ति जो किसी अन्य व्यक्ति के अधीन भूमि धारण करता हो तथा उसका लगान चुकाने का दायी हो।
➤काश्तकार के अंतर्गत भूधारक, रैयत तथा खुंटकट्टीदार तीनों को शामिल किया गया है।
➤लगान :- रैयत द्वारा धारित भूमि के उपयोग या अधिभोग के बदले अपने स्वामी को दिया जाने वाला धन या वस्तु।
➤जंगल संपत्ति :- के अंतर्गत खड़ी फसल भी आती है।
➤मुंडारी-खुंटकट्टीदारी कश्तकारी से अभिप्रेत है, मुंडारी-खुंटकट्टीदार का हित।
➤भूघृति (TENURES):-भूधारक का हित। इसके अंतर्गत मुंडारी-खुंटकट्टीदारी कश्तकारी नहीं आती है।
➤स्थायी भूघृति :- वंशगत भूघृति।
➤पुनग्रार्हय भूघृति :- वैसे भूघृति जो परिवार के नर वारिस नहीं होने पर, रैयत के निधन के बाद पुनः भूस्वामी को वापस हो जाए।
➤ग्राम मुखिया :- किसी ग्राम या ग्राम समूह का मुखिया। चाहे इसे मानकी, प्रधान, माँझी या अन्य किसी भी नाम से जाना जाता हो।
➤स्थायी बंदोबस्त (परमानेंट सेटेलमेंट):- 1793 इसमें बंगाल, बिहार और उड़ीसा के संबंध में किया गया स्थायी बंदोबस्त।
➤डिक्री (DECREE) :- सिविल न्यायालय का आदेश।
💥अध्याय-2 में कश्तकारों के वर्ग (धारा- 4 से धारा- 8 तक)
➤खुंटकट्टी अधिकार प्राप्त रैयत OCCUPANCY RAIYAT)
➤धारा - 5 भूधारक :- ऐसे व्यक्ति से है जो अपनी या दूसरे की जमीन खेती कार्य के लिए धारण किए हुए हैं एवं उसका लगान चुकाता हो।
➤धारा -6 रैयत :- रैयत के अंतर्गत वैसे व्यक्ति शामिल है, जिन्हें खेती करने के लिए भूमि धारण करने का अधिकार प्राप्त हो।
➤धारा -7 खुंटकट्टी अधिकारयुक्त रैयत :- वैसे रैयत जो वैसे भूमि पर अधिभोग का अधिकार रखते हों, जिसे उसके मूल प्रवर्तकों या उसकी नर परंपरा के वंशजों द्वारा जंगल में कृषि योग्य भूमि बनाई गई है, उसे खुंटकट्टी अधिकारयुक्त रैयत कहा जाता है।
➤धारा -8 मुंडारी-खुंटकट्टीदार :-वह मुंडारी जो जंगल भूमि के भागो को जोत में लाने के लिए भूमि का धारण करने का अधिकार अर्जित किया हो, उसे मुंडारी-खुंटकट्टीदार कहा जाता है।
Thursday, January 14, 2021
Pragaitihasik Kal Me Jharkhand (प्रागैतिहासिक काल में झारखंड)
प्रागैतिहासिक काल में झारखंड
(Pragaitihasik Kal Me Jharkhand)
प्रागैतिहासिक इतिहासिक
➤प्रागैतिहासिक काल को तीन भागों में विभाजित किया जाता है।
1) पुरापाषाण काल
2) मध्य पाषाण काल
3) नवपाषाण काल
1) पुरापाषाण काल:-
2) मध्य पाषाण काल:-
➤नवपाषाण काल का कालक्रम 10,000 ईसवी पूर्व से 1,000 ईसवी पूर्व तक माना जाता है।
➤ इस काल में कृषि की शुरुआत हो चुकी थी।
➤इस काल में आग के उपयोग करना प्रारंभ कर चुके थे।
➤झारखंड में इस काल में अवशेष रांची, लोहरदगा, पश्चिमी सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम, आदि क्षेत्रों से प्राप्त हुए हैं।
➤छोटानागपुर प्रदेश में इस साल के 12 हस्त कुठार पाए गए हैं।
➤नवपाषाण काल को तीन भागों में विभाजित किया गया है
1) ताम्र पाषाण काल
2) कांस्य युग
3) लौह युग
1) ताम्र पाषाण काल:-
➤इसका कालक्रम 4,000 ईस्वी पूर्व से 1000 ईसवी पूर्व तक माना जाता है।
➤यह काल हड़प्पा पूर्व काल, हड़प्पा काल तथा हड़प्पा पश्चात काल तीनों से संबंधित है।
➤पत्थर के साथ-साथ तांबे का उपयोग होने के कारण इस काल को ताम्र पाषाण काल कहा जाता है।
➤मानव द्वारा प्रयोग की गई प्रथम धातु तांबा ही थी।
➤झारखंड में इस काल का केंद्र बिंदु सिंहभूम था।
➤इस काल में असुर,बिरजिया तथा बिरहोर जनजातियां तांबा गलाने तथा उससे संबंधित उपकरण बनाने की कला से परिचित थे।
➤झारखंड के कई स्थानों से तांबा की कुल्हाड़ी तथा हजारीबाग के बाहरगंडा से तांबे की 49 खानों के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
2) कांस्य युग:-
➤इस युग में तांबे में टिन मिलाकर कांसा निर्मित किया जाता था तथा उससे बने उपकरणों का प्रयोग किया जाता था।
➤छोटानागपुर क्षेत्र के असुर (झारखंड की प्राचीनतम जनजाति) तथा बिरजिया जनजाति को कांस्य युगीन औजारों का प्रारंभकर्ता माना जाता है।
3) लौह युग:-
➤इस युग में लोहा से बने उपकरणों का प्रयोग किया जाता था।
➤झारखंड के असुर तथा बिरजिया जनजाति को लौह युग से निर्मित औजारों का प्रारम्भकर्ता माना जाता है।
➤असुर तथा बिरजिया जनजातियों के जनजातियों ने उत्कृस्ट लौह तकनीकी का विकास किया।
➤इस युग में झारखंड का संपर्क सुदूर विदेशी राज्यों से भी था।
➤झारखंड में निर्मित लोहे को इस युग में मेसोपोटामिया तक भेजा जाता था,जहां दश्मिक में इस लोहे से तलवार का निर्माण किया जाता था।
Wednesday, January 6, 2021
Jharkhand Ke Pramukh Lok Nritya (झारखंड के प्रमुख लोक नृत्य)
Jharkhand Ke Pramukh Lok Nritya
➤छऊ नृत्य
➤इस नृत्य की दो श्रेणियां हैं
➤पाइका नृत्य
➤यह एक ओजपूर्ण नृत्य है, जिसमें नर्तक सैनिक वेश में नृत्य करते हैं।
➤इसमें नर्तक रंग-बिरंगे झिलमिलाती कलगी लगी या मोर पंख लगी पगड़ी बांधते हैं।
➤यह एक प्रकार का युद्ध से संबंधित नृत्य है और
➤मुंडा जनजातियों का एक प्रमुख नृत्य है।
➤नटुआ नृत्य
➤करिया झूमर नृत्य
➤करम नृत्य
➤जतरा नृत्य
➤नचनी नृत्य
➤अंगनाई नृत्य
➤मुण्डारी नृत्य
➤कठोरवा नृत्य
➤मागे नृत्य
➤बा नृत्य
➤हेरो नृत्य
➤जोमनमा नृत्य
➤दसाई नृत्य
➤सोहराई नृत्य
➤गेना और जपिद नृत्य
➤जदुर नृत्य
➤टुसु नृत्य
➤रास नृत्य
➤जरगा नृत्य
➤ओर जरगा नृत्य
➤फगुवा नृत्य
➤घोड़ा नृत्य
➤जापी नृत्य
➤राचा नृत्य
➤धुड़िया नृत्य
Saturday, January 2, 2021
Jharkhand Ke Pramukh Mandir (झारखंड के प्रमुख मंदिर)
Jharkhand Ke Pramukh Mandir
झारखंड के प्रमुख मंदिर
➤छिन्नमस्तिका मंदिर (रजरप्पा)
➤यह मंदिर रामगढ़ जिला में अवस्थित है।
➤यह दामोदर नदी और भेड़ा (भैरवी) नदी के संगम पर स्थित है।
➤इसकी प्रसिद्ध शक्तिपीठ के रूप में है तंत्रिकों के लिए तंत्र-साधना हेतु इसे उपयुक्त स्थल माना जाता है।
➤यहां शारदायी दुर्गा उत्सव में मां की महानवमी पूजा सबसे पहले संथाल आदिवासियों के द्वारा प्रारंभ की जाती है और इन्हीं के द्वारा प्रथम बकरे की बलि दी जाती है।
➤इस मंदिर में देवी काली की धड़ से अलग सर वाली मूर्ति स्थापित है जिस कारण इसे छिन्नमस्तिका कहा जाता है।
➤यह मूर्ति शक्ति के तीन रूपों-सौम्या, उग्र और काम में से उग्र रूप को प्रतिनिधित्व करती है।
➤देवी की छिन्न मस्तक मानव मस्तिक की चंचलता का प्रतीक है।
➤देवी के दाएं और बाएं डाकिनी और शाकिनी विराजमान है।
➤देवी के पैरों के नीचे रती-कामदेव को दर्शाया गया है जो कामनाओं के दमन का प्रतीक है।
➤छिन्नमस्तिका मंदिर को वन दुर्गा मंदिर भी कहा जाता है क्योंकि 1947 ईस्वी तक यह मंदिर घने वनों के बीच स्थित है।
➤देवड़ी मंदिर (राँची)
➤यह मंदिर तमाड़ से 3 किलोमीटर दूर देवड़ी नामक ग्राम में स्थित है।
➤यहां 16 भुजा देवी की मूर्ति है।
➤देवी की मूर्ति के ऊपर शिव की मूर्ति है तथा अगल-बगल में सरस्वती, लक्ष्मी, कार्तिक और गणेश की मूर्तियां हैं।
➤परंपरा के अनुसार इस मंदिर में सप्ताह में 6 दिन पाहन और एक दिन ब्राह्मण पुजारी पूजा करते हैं।
➤जगन्नाथ मंदिर (राँची)
➤इस मंदिर की स्थापना 1691 नागवंशी राजा ठाकुर ऐनी शाह के द्वारा की गई थी।
➤यह पुरी के जगन्नाथ मंदिर की तर्ज पर यहां भी 100 फीट ऊंची मंदिर का निर्माण किया गया है।
➤रथ यात्रा के समय यहां विशाल मेला लगता है।
यह मंदिर रांची के क्षेत्र में जगह-जगह नाथ स्थित है।
➤कौलेश्वरी मंदिर (चतरा)
➤मां कौलेश्वरी देवी का मंदिर चतरा में स्थित है।
➤मां कौलेश्वरी देवी का मंदिर 1575 फुट की ऊंचाई वाले कलुआ पहाड़ पर स्थित है।
➤कोल्हुआ पहाड़ तीन धर्मों हिंदू, बौद्ध और जैनों का संगम स्थल है।
➤यहां ।जैनों के प्रथम तीर्थंकर ऋषभ देव,पार्शवनाथ आदि की प्रतिमाएं स्थापित है।
➤कई मंदिरों के समूह को कालेश्वरी का मंदिर कहा जाता है।
➤यहां पशु बलि दी जाती है और मेले का आयोजन होता है।
➤मां भद्रकाली मंदिर (इटखोरी चतरा)
➤यह मन्दिर चतरा जिला में चौपारण से 16 किलोमीटर की दूरी पर इटखोरी प्रखंड के भदौली गांव में स्थित है।
➤इस मंदिर में भद्रकाली की मूर्ति प्रतिष्ठित है।
➤यह मूर्ति शक्ति के रूप तीन रूपों -सौम्य, उग्र व काम में से सौम्य रूप का प्रतिनिधित्व करती है।
➤यह एक ही शिलाखंड से तराशी गई मूर्ति है, जो साढ़े चार फीट ऊंची, ढाई फीट चौड़ी और 30 मन भारी है।
➤संभवत यह मंदिर पालकाल में (पांचवी-छटवीं शताब्दी) स्थापित की गई थी।
➤यह सहत्रीलिंगी शिवलिंग भी है, जिसमें एक 1008 छोटे-छोटे शिवलिंग उकेरे गए हैं।
➤मंदिर परिसर में ही कोठेश्वरनाथ स्तूप है, जिसके चारों ओर भगवान बुद्ध की मूर्तियां अंकित है।
➤इसके ऊपर 4 इंच लंबा, चौड़ा और गहरा गड्ढा है, जिसमें हमेशा 3 इंच पानी बना रहता है।
➤कुंदा का किला (चतरा)
➤यह किला चेरों का था, जो चतरा जिले के कुंदा नामक स्थान पर स्थित है,अब यह खंडहर हो चुका है।
➤इस कीले की मीनारें मुगल शैली से निर्मित है।
➤किले के प्रांगण में एक कुआं है, जहां सुरंगनुमा रास्ता था।
➤बैद्यनाथ मंदिर(देवघर)
➤इस मंदिर का निर्माण गिद्दौर राजवंश के दसवें राजा पूरणमल द्वारा कराया गया था।
➤शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक मनोकामना लिंग बैद्यनाथ धाम देवघर में स्थापित है।
➤इस मंदिर के प्रांगण में कुल 22 मंदिर हैं।
➤ये हैं - वैद्यनाथ, पार्वती, लक्ष्मीनारायण, तारा, काली, गणेश, सूर्य, सरस्वती, रामचंद्र, देवी अन्नपूर्णा, आनंद भैरव, नीलकंठ, गंगा, नरदेश्वर, राम-लक्ष्मण-सीता, जगत जननी, काल भैरव, ब्रह्म, संध्या गौरी, हनुमान, मनसा शंकर, बगुला माता काली के मंदिर।
➤यह भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
➤अकबर के सेनापति मानसिंह द्वारा यहां पर निर्मित एक मानसरोवर तालाब है।
➤मंदिर के गर्भगृह के शिखर पर अष्टदल कमल के बीच में चंद्रकांत मणि है।
➤यहां भगवान शिव के शिखर पर पंचशूल स्थापित है।
➤युगल मंदिर(देवघर)
➤यह मंदिर भी देवघर में है।
➤इसे नौलखा मंदिर के नाम से जाना जाता है इसका निर्माण में ₹900000 खर्च हुए थे।
➤तपोवन मंदिर (देवघर)
➤यहां भगवान शिव का एक मंदिर है।
➤यहाँ गुफाएँ हैं ,जिसमें ब्रह्मचारी लोग निवास करते हैं।
➤कहा जाता है कि कभी माता सीता ने यहां तपस्या की थी।
➤बासुकीनाथ धाम (दुमका)
➤बासुकीनाथ धाम दुमका से 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
➤बैद्यनाथ धाम आने वाले प्राय: प्रत्येक तीर्थयात्री यहां आए बगैर दिन और अपनी यात्रा पूरी नहीं मानता।
➤बासुकीनाथ की कथा समुद्र मंथन से जुड़ी हुई है ,समुन्द्र मंथन में मंदराचल पर्वत को मथानी और बासुकीनाथ को रस्सी बनाया गया था।
➤बासुकिनाथ मंदिर को 150 वर्ष बताया जाता है, जिसका निर्माण बासकी तांती ने कराया था, जो हरिजन जाति का था।
➤शिवरात्रि के दिन यहाँ विशाल मेला लगता है।
➤महामाया मंदिर (गुमला)
➤रांची-लोहरदगा-गुमला मार्ग में लोहरदगा से 14 किलोमीटर दूर गम्हरिया नामक स्थान में 1 किलोमीटर पश्चिम में हापामुनी नामक गांव में महामाया का मंदिर स्थित है।
➤इस मंदिर का निर्माण नागवंशी राजा गजघंट ने 908 ईस्वी में करवाया था।
➤इस मंदिर में काली मां की मूर्ति स्थापित है।
➤यह एक तांत्रिक पीठ है।
➤इस मंदिर का प्रथम पुरोहित द्विज हरिनाथ थे।
➤टांगीनाथ मंदिर (गुमला)
➤यह मंदिर में मझगांव की पहाड़ी पर स्थित है।
➤टांगी पहाड़ पर शिवलिंग के अलावा दुर्गा,भगवती, लक्ष्मी ,गणेश, अर्धनारीश्वर, विष्णु, सूर्यदेव, हनुमान आदि की मूर्तियां हैं।
➤ये मूर्तियां प्राचीन शिल्पकला के सुंदर नमूने हैं।
➤मुख्य मंदिर का नाम टांगीनाथ अथवा शिव मंदिर है।
➤मंदिर के अंदर एक विशाल शिवलिंग के अलावा आठ अन्य शिवलिंग भी है।
➤हल्दीघाटी मंदिर (गुमला)
➤यह मंदिर गुमला जिले के कोराम्बे नामक स्थान में स्थित है।
➤यहां का पहला शासक कोल तेली राजा था।बाद में यहाँ रक्सेल आये।
➤यह स्थान नागवंशी राजा तथा रक्सेल के लिए हल्दी घाटी के समान माना जाता है।
➤कोरमबे में वासुदेव राय का मंदिर है।
➤वासुदेव राय की काले पत्थरों से निर्मित आकर्षक मूर्ति प्राचीन परंपरा का प्रतीक है।
➤मां योगिनी का मंदिर(गोड्डा)
➤यह मंदिर बराकोपा पहाड़ी पर स्थित है।
➤मान्यता है अनुसार मां-सीता का दाहिना जांघ यहां गिरा था।
➤यहां मां की प्रतिमा के रूप में जाँघ की आकृति का शैल अंश है।
➤भक्तजन यहां लाल वस्त्र चढ़ाते हैं।
➤इस मंदिर के समस्त निर्माण खर्चों का वहन श्रीमती चारुशिला देवी ने किया था।
➤श्री बंशीधर मंदिर (गढ़वा) :-
➤यह मंदिर नगर उंटारी में राजा के गढ़ के पीछे स्थित है।
➤इस मंदिर की स्थापना 1885 में की गई थी।
➤यहां राधा कृष्ण की प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं।
➤सूर्य मंदिर (बंडू)
➤रांची-टाटा मार्ग पर बुंडू के नजदीक इस मंदिर की स्थापना की गई है।
➤यह मंदिर सूर्य के रथ की आकृति में बनाया गया है।
➤इसका निर्माण संस्कृति-विहार, रांची नामक एक संस्था ने किया है।
➤मंदिर की खूबसूरती के संबंध में स्थानीय साहित्यकारों ने इसे 'पत्थर पर लिखी कविता' कहा है।
➤बेनीसागर का शिव मंदिर (पश्चिमी सिंहभूम)
➤इस मंदिर का निर्माण काल 602 से 625 के बीच बताया जाता है।
➤संभवत:गौड़ शासक शशांक द्वारा इस मंदिर का निर्माण हुआ था।
➤यहां से छठी शताब्दी की 33 छोटी-बड़ी मूर्तियां मिली हैं, जिसमें हनुमान, गणेश और दुर्गा की प्रतिमाएं प्रमुख है।
➤शिवलिंग के साथ शिलालेख भी यहां से प्राप्त हुए हैं।
➤उग्रतारा मंदिर नगर
➤यह मंदिर लातेहार जिला के चंदवा प्रखंड मुख्यालय से लगभग 9 किलोमीटर दूर पर नगर गांव (मंदाकिनी पहाड़) में अवस्थित है।
➤इस मंदिर की प्रसिद्ध एक सिद्ध तंत्रपीठ के रूप में दूर-दूर तक व्याप्त है।
➤मंदिर में लगभग 2 किलोमीटर दूर पश्चिम की ओर पहाड़ी पर एक मजार है।
➤यह मजार मदारशाह के मजार के नाम से प्रसिद्ध है।
➤काली कुल की देवी उग्रतारा और श्री कुल की देवी लक्ष्मी का एक ही स्थान पर स्थापित होना इस मंदिर की मुख्य विशेषता है।