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Thursday, November 18, 2021

Jharkhand Me Pradushan Niyantran Ke Sarkari Prayas (झारखंड में प्रदूषण नियंत्रण के सरकारी प्रयास)

झारखंड में प्रदूषण नियंत्रण के सरकारी प्रयास

➧ पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण निवारण शोध संस्थान 

(i)  खनन पर्यावरण केंद्र  - धनबाद

(ii) वन उत्पादकता केंद्र - राँची

(iii) भारतीय लाह अनुसंधान केंद्र - राँची

(iv) झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड स्थापित (2001) - राँची

झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड 

➧ झारखंड राज्य में प्रदूषण नियंत्रण हेतु 2001 ईस्वी  में झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की स्थापना की गई है संसाधनों के सतत उद्योग उपयोग के लिए झारखंड राज्य प्रदूषण बोर्ड द्वारा (JSPCB) द्वारा 2012-17 के लिए दृष्टि पत्र प्रस्तुत किया गया है 

➧ यह बोर्ड संसाधनों के सतत उपयोग पर बल देता है साथ ही जल के उपयोग को कम करने, वर्षा, जल, कृषि, लकड़ी एवं कोयला का औद्योगिक' क्षेत्र में कम उपयोग करने एवं स्वच्छ ऊर्जा उपयोग पर अधिक बल देता है 

झारखंड में प्रदूषण नियंत्रण के सरकारी प्रयास

 झारखंड ऊर्जा नीति 2012 :- ग्रीन हाउस गैस को कम करने के लिए यह नीति बनाई गई। इसमें गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोतों के विकास पर विशेष बल दिया गया है इस नीति में 10 वर्षों में कुल ऊर्जा उत्पादन का 50% ,गैर परंपरागत स्रोत से उत्पादन करना है JREDA (Jharkhand Renewable Energy Development Authority)  का गठन 2001 में किया गया किया गया है 

➧ झारखंड राज्य एक्शन प्लान (JSPCB) - 2014 

 राज्य सरकार द्वारा प्रदूषण से निपटने और पर्यावरण संरक्षण जैसे विषयों के समाधान हेतु बनाया गया

 झारखंड में सबसे अधिक प्रदूषित क्षेत्रों पर विशेष ध्यान देना

➧ जनसंख्या परिवर्तन से प्रभावित अति संवेदनशील क्षेत्रों की मानचित्र तैयार करना

➧ कोयला एवं खनन आधारित उद्योगों से उत्पन प्रदूषण को नियंत्रित करने के उपाय करना

 झारखंड राज्य जल नीति-2011

➧ जल संसाधन के उचित प्रबंधन के लिए यह नीति बनायी गयी। 

 जल संसाधन, विशेषकर नदी जल संरक्षण के लिए भारत सरकार के पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा 20 फरवरी, 2009 को राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण का गठन किया गया है 

➧ इस प्राधिकरण के अंतर्गत गंगा नदी से संबंधित राज्यों को नदी संरक्षण संबंधी कार्यों को करने के लिए निर्देश दिया गया है इस प्राधिकरण के आलोक में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा-3 के तहत झारखंड राज्य गंगा नदी संरक्षण प्राधिकरण का गठन 30 सितंबर 2009 को भविष्य को किया गया था

 प्राधिकरण का पदेन अध्यक्ष मुख्यमंत्री होता है और इनका मुख्यालय रांची में स्थित है

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Tuesday, November 16, 2021

Jharkhand me dhwani Pradushan Ke Karan Aur Prabhav (झारखंड में ध्वनि प्रदूषण के कारण एवं प्रभाव)

झारखंड में ध्वनि प्रदूषण के कारण और प्रभाव

➧ अनियंत्रित, अत्यधिक तीव्र एवं असहनीय ध्वनि को ध्वनि प्रदूषण कहते हैं ध्वनि प्रदूषण की तीव्रता को डेसिबल इकाई में मापा जाता है

(i) कृषि योग्य भूमि की कमी

(ii) भोज्य पदार्थों के स्रोतों को दूषित करने के कारण स्वास्थ्य के लिए हानिकारक

(iii) भू-संख्लन से होने वाली हानियां 

(iv) जल तथा वायु प्रदूषण में वृद्धि

ध्वनि प्रदूषण का प्रभाव

(1) ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव से श्रवण शक्ति का कमजोर होना, सिरदर्द, चिड़चिड़ापन, उच्चरक्तचाप अथवा स्नायविक, मनोवैज्ञानिक दोष उत्पन्न होने लगते हैं लंबे समय तक ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव से स्वभाविक परेशानियां बढ़ जाती हैं 

(2) ध्वनि प्रदूषण से ह्रदय गति बढ़ जाती है, जिससे रक्तचाप, सिर दर्द एवं अनिद्रा जैसे अनेक रोग उत्पन्न होते हैं  

(3) नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य पर ध्वनि प्रदूषण का बुरा प्रभाव पड़ता है तथा इससे कई प्रकार की शारीरिक विपरीत विकृतियां उत्पन्न हो जाती हैं गैस्ट्रिक, अल्सर और दमा जैसे शारीरिक रोगों तथा थकान एवं चिड़चिड़ापन जैसे मनोविकारों का कारण भी ध्वनि प्रदूषण ही है 

झारखंड में ध्वनि प्रदूषण के कारण एवं प्रभाव

➧ झारखंड में ध्वनि प्रदूषण

➧ झारखंड ध्वनि प्रदूषण के मामले में अन्य राज्यों की अपेक्षा कम प्रभावित है उच्च ध्वनि प्रदूषण राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों में दिल्ली, (लाजपत नगर), महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश राज्य आदि शामिल है। ध्वनि प्रदूषण अनियंत्रित वाहनों, त्योहारों व उत्सव, राजनैतिक दलों के चुनाव प्रचार व रैली में लाउडस्पीकर का इस्तेमाल, औद्योगिक क्षेत्रों में उच्च ध्वनि क्षमता के पावर सायरन , हॉर्न तथा मशीनों के द्वारा होने वाले शोर के द्वारा होता है झारखंड के शहरी क्षेत्रों (खासकर औद्योगिक नगर) में इन सभी ध्वनि प्रदूषण का प्रभाव स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है

 हाल ही में सर्वे के अनुसार राजधानी रांची में सबसे ज्यादा प्रदूषण के प्रभाव देखे गए, जिसमें अशोक नगर (रांची) प्रमुख क्षेत्र रहा 

➧ प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने जांच के लिए शहर को 4 जोन में बांटा था :-

क्षेत्र                                जोन                                डेसिबल 

झारखंडहाई  कोर्ट               साइलेंट जोन                         45 -  50 डेसिबल 

अल्बर्ट एक्का चौक            कमर्शियल जोन                      55 - 65

कचहरी चौक                     कमर्शियल जोन                      55 - 65 

अशोक नगर                     रिहायशी जोन                         45 - 55 

➧ धनबाद में सबसे ज्यादा ध्वनि प्रदूषण रिकॉर्ड किए गए। यहां प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने तीन जगहों पर दीपावाली के दिन ध्वनि प्रदूषण की जांच की, जिसमें हीरापुर इलाके में सबसे ज्यादा 107 पॉइंट 5 डेसीबल ध्वनि प्रदूषण का स्तर रहा वही बैंक मोड़ में 107 पॉइंट 2  डेसीबल और बरटांड़ में 106 पॉइंट 7 डेसीबल प्रदूषण दर्ज किया गया 

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Monday, November 15, 2021

Jharkhand me Bhumi Pradushan Ke Karan Aur Prabhav (झारखंड में भूमि प्रदूषण के कारण और प्रभाव)

झारखंड  में भूमि प्रदूषण के कारण और प्रभाव

➧ भूमि प्रदूषण से अभिप्राय जमीन पर जहरीले, अवांछित एवं अनुपयोगी पदार्थों की भूमि में विसर्जित करने से है, क्योंकि इससे भूमि का निम्नीकरण होता है तथा मिट्टी की गुणवत्ता प्रभावित होती है लोगों की भूमि के प्रति बढ़ती लापरवाही के कारण भूमि प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है। 

 भूमि प्रदूषण के कारण

(i) कृषि में उर्वरकों, रसायनों तथा कीटनाशकों का अधिक प्रयोग । 

(ii) औद्योगिक इकाइयों, खानों तथा खदानों द्वारा निकले ठोस कचरे का विसर्जन। 

(iii) भवनों, सड़कों आदि के निर्माण में ठोस कचरे का विसर्जन

(iv) कागज तथा चीनी मिलों से निकलने वाले पदार्थों का निपटान, जो मिट्टी द्वारा अवशोषित नहीं हो पाते। 

(v) प्लास्टिक की थैलियों का अधिक उपयोग, जो जमीन में दबकर नहीं गलती। 

 (vi) घरों, होटलों और औद्योगिक इकाइयों द्वारा निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों का निपटान, जिसमेँ  प्लास्टिक, कपड़े, लकड़ी, धातु, काँच, सेरामिक, सीमेंट आदि सम्मिलित है। 

➧ भूमि प्रदूषण के प्रभाव

(i) कृषि योग्य भूमि की कमी

(ii) भोज्य पदार्थों के स्रोतों को दूषित करने के कारण स्वास्थ्य के लिए हानिकारक

(iii) भू-संख्लन से होने वाली हानियां 

(iv) जल प्रदूषण तथा वायु प्रदूषण में वृद्धि

झारखंड  में भूमि प्रदूषण के कारण और प्रभाव

➧ झारखंड में भूमि प्रदूषण के प्रभाव

➧ झारखंड प्रदेश में लगभग 10 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि का अम्लीय भूमि (पी.एच. 5.5 से कम) के अंतर्गत आती हैं ।  

➧ यदि विभिन्न कृषि जलवायु क्षेत्र में पड़ने वाले जिलों में अम्लीय भूमि की स्थिति को देखें तो उत्तरी-पूर्वी जोन (जोन-IV) के अंतर्गत जामताड़ा, धनबाद, बोकारो, गिरिडीह, हजारीबाग और रांची के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 50% से अधिक भूमि अम्लीय समस्या से ग्रसित है । 

 इसी तरह पश्चिमी पठारी जोन (जोन -V) में सिमडेगा, गुमला और लोहरदगा में 69 से 72% तक अम्लीय भूमि की समस्या है, जबकि पलामू, गढ़वा और लातेहार में अम्लीय भूमि का क्षेत्रफल 16% से कम है, दक्षिणी-पूर्वी जोन (जोन -VI) में अम्लीय भूमि की समस्या सबसे ज्यादा है 

➧ इस क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले तीनों जिलों-सरायकेला, पूर्वी और पश्चिमी सिंहभूम में अम्लीय भूमि का क्षेत्रफल  70% के करीब है इस प्रकार हम कह सकते हैं कि झारखंड प्रदेश में मृदा अम्लीयता प्रमुख समस्याएं है 

➧ अम्लीय भूमि की समस्या का प्रभाव 

➧ गेहूं , मक्का, दलहन एवं तिलहन फसलों की उपज संतोषप्रद नहीं हो पाती है

 मृदा अम्लीयता के कारण एलयूमिनियम, मैगनीज और लोहा अधिक घुलनशील हो जाते हैं और पौधों को अधिक मात्रा में उपलब्ध होने के कारण उत्पादन पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है

➧ अम्लीय भूमि में मुख्यत: फास्फेट, सल्फर, कैल्शियम एवं बोरॉन की कमी होती है

 अम्लीय भूमि में नाइट्रोजन का स्थिरीकरण और कार्बनिक पदार्थों का विघटन नहीं होता है इसके अलावा सूक्ष्म जीवों की संख्या एवं कार्यकुशलता में कमी आ जाती है

 झारखंड में पोषक तत्वों का वितरण और विवरण

➧ झारखंड में मुख्य पोषक तत्वों में फास्फोरस एवं सल्फर की कमी पाई जाती है कुल भौगोलिक क्षेत्र के लगभग 66 % भाग में फास्फोरस एवं 38% भाग में सल्फर की कमी पाई गई है

 पोटेशियम की स्थिति कुल भौगोलिक क्षेत्र के 51 प्रतिशत भाग में निम्न से मध्य है

➧ नाइट्रोजन की स्तिथि 70% भाग में निम्न से मध्यम पाई जाती है, जबकि कार्बन 47% भाग में मध्यम स्थिति में पाई जाती है

 फास्फोरस की कमी होने के नुकसान 

(i) फास्फोरस की कमी दलहनी और तिलहनी फसलों की उपज को प्रभावित करती है

(ii) फसल विलंब से पकते हैं और बीजों या फलों के विकास में कमी आती है

 उपाय

(i) जहां फास्फोरस की कमी हो, मिट्टी जांच प्रतिवेदन के आधार पर सिंगल सुपर फास्फेट (SPP) या डी. ए. पी. का प्रयोग करना चाहिए

(ii) लाल एवं लैटीरिटिक मिट्टीयों  में जिसका पी.एच.(PH) मान 5.5 से कम हो, रॉक फास्फेट का उपयोग काफी लाभदायक होता है 

➧ सल्फर की कमी से होने वाले नुकसान 

(i) कीट-व्याधि का प्रभाव बढ़ता है, जिससे फसलों की उत्पादकता घटती है इतना ही नहीं फसल पूरी तरह से बर्बाद हो जाते है

 उपाय

(i) जिन जिलों में सल्फर की कमी ज्यादा पाई गई है, वहां एल. एस. पी. का प्रयोग कर इसकी कमी को पूरा किया जा सकता है

(ii) इसके अलावा फास्फोरस, जिप्सम का प्रयोग भी सल्फर की कमी को दूर करने में लाभदायक है क्योंकि दलहनी एवं तिलहनी फसलों में सल्फर युक्त खाद का प्रयोग लाभदायी होता है 

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Jharkhand me Jal Pradushan Ke Karan Aur Prabhav (झारखंड में जल प्रदूषण के कारण और प्रभाव)

झारखंड में जल प्रदूषण के कारण और प्रभाव

➧ जल में घुलनशील अथवा अघुलनशील पदार्थों की मात्रा में वृद्धि के कारण जब जल की गुणवत्ता जैसे रंग, स्वाद आदि में परिवर्तन आता है, तो पृथ्वी पर पानी का प्रदूषित होना जल प्रदूषण कहलाता है

 जल प्रदूषण में जीवाणु, रसायन और कण  जैसे प्रदूषकों द्वारा जल का संदूषण किया जाता है, जो पानी की शुद्धता को कम करता है

झारखंड में जल प्रदूषण के कारण और प्रभाव

➧ जल प्रदूषण के कारण 

(i) मानव मल का नदियों, नहरों आदि में विसर्जन

(ii) सफाई तथा सीवर (मल-जल निकास पाइप) का उचित प्रबंधन का न होना

(iii) विभिन्न औद्योगिक इकाइयों द्वारा अपने कचरे तथा गंदे पानी का नदियों तथा नहरों में विसर्जन करना 

(iv) कृषि कार्यों में उपयोग होने वाले जहरीले रसायनों और खादों का पानी में घुलना

(v) नदियों में कूड़े-कचरे, मानव-शवों और पारंपरिक प्रथाओं का पालन करते हुए उपयोग में आने वाले प्रत्येक घरेलु सामग्री का समीप के जल स्रोत में विसर्जन

(vi) गंदे नालों, सीवरों के पानी का नदियों में छोड़ा जाना

(v) कच्चा पेट्रोल, कुओं से निकालते समय समुद्र में मिल जाता है, जिससे जल प्रदूषित होता है 

(vi) कुछ कीटनाशक पदार्थ जैसे डीडीटी, बीएचसी आदि के छिड़काव से जल प्रदूषित हो जाता है तथा समुद्री जानवरों एवं मछलियों आदि को हानि पहुंचाता है  अंततः खाद्य श्रृंखला को प्रभावित करते हैं 

 जल प्रदूषण के प्रभाव

(i) इससे मनुष्य,पशु तथा पक्षियों के स्वास्थ्य को खतरा उत्पन्न होता है इससे टाइफाइड, पीलिया, हैजा, गैस्ट्रिक आदि बीमारियां पैदा होती हैं। 

(ii) इससे विभिन्न जीव तथा वनस्पति प्रजातियों को नुकसान पहुंचाता है

(iii) इससे पीने के पानी की कमी बढ़ती है, क्योंकि नदियों, नहरों यहां तक की जमीन के भीतर का पानी भी प्रदूषित हो जाता है

(iv) सूक्ष्म-जीव जल में घुले हुए ऑक्सीजन के एक बड़े भाग को अपने उपयोग के लिए अवशोषित कर लेते हैं जब जल में जैविक द्रव बहुत अधिक होते हैं तब जल में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है, जिसके कारण जल में रहने वाले जीव-जंतुओ की मृत्यु हो जाती है

(v) प्रदूषित जल से खेतों में सिंचाई करने पर प्रदूषक तत्व पौधे में प्रवेश कर जाते हैं इन पौधों  अथवा इन के फलों को खाने से अनेक भयंकर बीमारियां उत्पन्न हो जाती हैं

(vi) मनुष्य द्वारा पृथ्वी का कूड़ा-कचरा समुद्र में डाला जा रहा है नदियाँ  भी अपना प्रदूषित जल समुद्र में मिलाकर उसे लगातार प्रदूषित कर रही है वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है, कि यदि भू-मध्य सागर में कूड़ा-कचरा समुद्र में डालना बंद न किया गया तो डॉल्फिन और टूना जैसे सुंदर मछलियों का यह सागर भी कब्रगाह बन जाएगा 

(vii) औद्योयोगिक प्रक्रियाओं से उत्पन्न रासायनिक पदार्थ प्रायः क्लोरीन, अमोनिया, हाइड्रोजन सल्फाइड, जस्ता निकिल एवं पारा आदि विषैले पदार्थों से युक्त होते हैं 

(viii) यदि जल पीने के माध्यम से अथवा इस जल में पलने वाली मछलियों को खाने के माध्यम से शरीर में पहुंच जाए तो गंभीर बीमारियों का कारण बन जाता है, जिसमें अंधापन, शरीर के अंगो का लकवा मार जाना और श्वसन क्रिया आदि का विकार शामिल है जब यह जल, कपड़ा धोने अथवा नहाने के लिए नियमित प्रयोग में लाया जाता है, तो त्वचा रोग उत्पन्न हो जाता है  

 झारखंड में जल प्रदूषण का प्रभाव 

➧ राज्य में जल प्रदूषण का खतरा दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है, क्योंकि औद्योगिक उत्पादन की उच्च क्षमता प्राप्त करना और जनसंख्या का संकेंद्रण विशिष्ट संसाधन प्राप्त क्षेत्रों में होना निरंतर बढ़ जा रहा है 

 झारखंड को मुख्यतः सतही जल प्रदूषण एवं भौम जल प्रदूषण दोनों ही रूप में जल प्रदूषण का सामना करना पड़ रहा है। चूकिं भौम  जल स्तर में प्रदूषण का मुख्य कारण खनन का अवैज्ञानिक तरीका है, इसका विशेष उदाहरण धनबाद का झरिया क्षेत्र  एवं स्वयं धनबाद शहर आदि हैं। 

➧ वहीं औद्योगिक निस्तारण ने दामोदर को राज्य की सबसे अधिक प्रदूषित नदी होने का दर्जा प्रदान किया है

➧ स्वर्णरेखा नदी भी जल प्रदूषण के चपेट में है, जबकि राज्य में कई नदियों को शहरी विकास ने अपने में समा लिया, जिससे पारितंत्र को नुकसान पहुंचा है। उदाहरण के लिए राँची का हरमू नदी, जो कभी मध्यम आकार की नदी थी, परंतु वर्तमान में यह शहरी बड़ी नालों में बदल चुकी है। 

➧ राज्य में पाट क्षेत्र  एवं रांची हजारीबाग पठार के किनारों के सहारे कई जल प्रपातों का निर्माण होता है, जो पर्यटन का मुख्य केंद्र है, परंतु पर्यटकों के द्वारा इन जलप्रपातों के आस-पास सिंगल यूज प्लास्टिक का प्रयोग करना, इन जल प्रपातों की आयु पर प्रश्न खड़ा कर सकता है अतः इस पर अवसंरचनात्मक रूप से कार्य करने की जरूरत है। 

➧ राज्य की नदियों में प्रदूषण की स्थिति

झारखण्ड में दामोदर नदी का प्रदुषण

 ➧ इस नदी के किनारे लगभग सभी प्रकार के प्रदूषण पैदा करने वाले उद्योग अवस्थित है। लगभग 130Mn लीटर औद्योगिक अपशिष्ट और 65 मिलियन लीटर अनुपचारित घरेलु मल-जल प्रतिदिन दामोदर नदी को प्रदूषित कर रही है। 

➧ दामोदर और उसकी सहायक नदियों में वर्तमान में बड़े पैमाने पर कचरों का जमाव किया जा रहा है, जो वर्षा के दिनों में फैलकर नदियों में आ जाता है। 

➧ फल स्वरुप नदियों का जल एवं भौम जल स्तर दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है जिस कारण निकटवर्ती गांवों व कस्बों पर जल संकट की समस्या सामने आ रही है। क्योंकि नलकूप एवं कुआँ के जल प्रदूषित होकर सूख जाते हैं। 

➧ दामोदर घाटी के कोयला में थोड़ी मात्रा में सल्फर एवं पायराइट की भी विद्यमान है। 

➧ दामोदर में लोहे की मात्रा में 1 से 6mg/1 है। यद्यपि यह बहुत अधिक नहीं है, किंतु परितंत्र  के लिए इनकी यह मात्रा पर मात्रा भी खतरनाक साबित होती है, क्योंकि जलीय जीव इससे समाप्त होते हैं एवं स्व नियमन की घटना में परिवर्तन आता है।  

➧ दामोदर नदी में मैग्नीज, क्रोमियम, शीशा, पारा, फ्लूराइट कैडमियम और तांबा आदि की मात्रा भी पाई जाती है, जो मुख्यतः इनकी सहायक नदियों की अवसादो के द्वारा लाई जाती है। 

➧ इन छोटे कणों के द्वारा मनुष्यों में कई बीमारियों को जन्म दिया जाता है, जिसमें कमजोरी, एनोरेक्सिया, दिल्पेप्सिया, मुंह में धातु का स्वाद, सर दर्द , हाई ब्लड प्रेशर और एनेमिया आदि मुख्य हैं। 

➧ दामोदर की अवसादो में कैल्शियम और मैग्नीशियम की कमी तथा पोटेशियम का संकेंद्रण है इन अवसादों में आर्सेनिक, पारा, शीशा, क्रोमियम, तांबा, जिंक, मैगनीज़, लोहा और टिटैनियम जैसे धातु भी मिलते हैं।  

झारखंड के दामोदर नदी के आस-पास रहने वाले लोग दामोदर का प्रदूषण से काफी प्रभावित है, दामोदर एवं इसकी सहायक नदियों के जल में प्रदूषण की मात्रा उच्च होने के कारण पेयजल के रूप में इन नदियों का प्रयोग लगभग समाप्त हो गया है।  

➧ स्वर्णरेखा नदी का प्रदूषण 

➧ स्वर्णरेखा नदी रांची नगर से 16 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में नगड़ी गांव (रानी चुवा)  नामक स्थान से निकलती है

➧ यह लगभग 28,928 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में अपना बेसिन बनाती है इस नदी के किनारे भारत की सबसे बड़ी औद्योगिक कंपनी टाटा इस्पात निगम लिमिटेड (टिस्को) बसा हुआ है 

➧ सर्वेक्षण में पाया गया कि नगड़ी से लेकर गालूडीह तक है यह नदी पांच स्थानों पर काफी प्रदूषित हो गई है, इसका कारण यह है:- 

क्षेत्र                                           प्रदूषण

(i) नगरी से हरीमा डैम                    दर्जनों चावल मिल

(ii) हरीमा डैम से गेतलसूद डैम       फैक्ट्री, रांची नगर की नालियाँ 

(iii) गेतलसूद डैम से चांडिल डैम     मुरी एल्युमीनियम कारखाना

(iv) चांडिल डैम से गालूडीह बराज   शहरी कचरा, उद्योग 

(v) गालूडीह बराज से आगे तक       शहरी कचरा, उद्योग

➧ स्वर्णरेखा नदी रांची से जमशेदपुर तक पहुंचते-पहुंचते लगभग सूख जाती है जमशेदपुर शहर में मानगो पुल से नदी जल के गुजरने के दौरान बदबू साफ महसूस किया जाता है, क्योंकि यहां जल के सड़ने की क्रिया प्रारंभ हो चुकी है 

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Wednesday, October 27, 2021

Jharkhand me Pradusan Ke Karan Ewam Parinam (झारखंड में प्रदूषण के कारण एवं परिणाम)

झारखंड में प्रदूषण के कारण एवं परिणाम

➧ ऐसे हानिकारक पदार्थ है जो वायु, भूमि और पानी में पाए जाते हैं, जिनके कारण जीवित प्राणियों और पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, प्रदूषण कहलाता है

➧ प्रदूषण हानिकारक गैसों, द्रवों तथा अन्य खतरनाक पदार्थों के द्वारा उत्पन्न होता है, जो प्राकृतिक वातावरण में भी पाया जा सकता है। 

➧ प्रदूषण के कारण कुछ ऐसे विषाक्त पदार्थ भी उत्पन्न होते हैं, जिनके कारण मिट्टी और हवा अशुद्ध, प्रदूषक, दूषित या खतरनाक पदार्थ के रूप में तब्दील हो जाते हैं, जो पर्यावरण को अनुपयुक्त या असुरक्षित कर देते हैं

➧ प्रदुषण के प्रकार 

(I) वायु प्रदूषण

(II) जल प्रदूषण 

(III) भूमि प्रदूषण 

(IV) ध्वनि प्रदूषण

झारखंड में प्रदूषण के कारण एवं परिणाम

➧ झारखंड में वायु प्रदूषण के कारण एवं प्रभाव

➧ यह हानिकारक धुआँ एवं रसायनों जैसे विभिन्न प्रदूषकों के साथ मिलकर प्राकृतिक हवा का संदूषण है इस प्रकार का संदूषण पदार्थों के जलने से या वाहनों द्वारा उत्सर्जित गैसों या उद्योगों के उप-उत्पाद के रूप में निकलने वाले हानिकारक धुआँ के कारण हो सकते हैं

 विशेषज्ञों के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग को वायु प्रदूषण के सबसे बड़े दुष्प्रभावों में से एक माना जाता है

 वायु प्रदूषण के कारण 

(I) वाहनों से निकलने वाला धुआं

(II) औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला धुआं तथा रसायन 

(III) आण्विक संयंत्रों से निकलने वाली गैसें तथा धूल-कण 

(IV) जंगलों में पेड़ पौधे के जलने से, कोयले के जलने से तथा तेल शोधन कारखानों आदि से निकलने वाला धुआं

(V) ज्वालामुखी विस्फोट से उत्पन्न गैस जैसे-जलवाष्प, So2

➧ वायु प्रदूषण के प्रभाव 

➧ वायु प्रदूषण हमारे वातावरण तथा हमारे ऊपर अनेक प्रभाव डालते हैं। उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं :-

(i) हवा में अवांछित गैसों की उपस्थिति से मनुष्य, पशुओं तथा पक्षियों को गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ता है 

➧ इसमें दमा, सर्दी-खांसी, अंधापन, श्रव का कमजोर होना, त्वचा रोग जैसी बीमारियां पैदा होती हैं  

➧ लंबे समय के बाद जननिक विकृतियाँ उत्पन्न हो जाती है तथा अपनी चरम सीमा पर यह घातक भी हो सकती है  

(ii) वायु प्रदूषण से सर्दियों में कोहरा छाया रहता है, इससे प्राकृतिक दृश्यता में कमी आती है तथा आंखों में जलन होती है। 

(iii) ओजोन परत, हमारी पृथ्वी के चारों ओर एक सुरक्षात्मक गैस की परत है, जो हमें सूर्य से आने वाले हानिकारक अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाती है। वह प्रदूषण के कारण जीन अपरिवर्तन, अनुवांशिकीय तथा त्वचा कैंसर के खतरे बढ़ जाते हैं। 

(iv) वायु प्रदूषण के कारण पृथ्वी का तापमान बढ़ता है, क्योंकि सूर्य से आने वाले गर्मी के कारण पर्यावरण में कार्बन डाइऑक्साइड, मिथेन तथा नाइट्रस ऑक्साइड का प्रभाव कम नहीं होता है , जो कि हानिकारक है। 

➧ झारखंड में वायु प्रदूषण के प्रभाव 

➧ झारखंड में खनिजों के उत्खनन का अवैज्ञानिक स्वरूप, बढ़ता शहरीकरण एवं निजी परिवहन का प्रयोग आदि विषय वस्तु प्रदूषण के मुख्य कारण है। 

 हाल ही में ग्रीनपीस रिपोर्ट के सर्वे में देश में सबसे अधिक वायु प्रदूषक शहर के रूप में झरिया को शीर्ष स्थान प्राप्त हुआ है, जो झारखंड में प्रदूषण के बढ़ते मात्रा को लेकर सजग होने का संकेत देता है।  

➧ बड़े शहरों में धनबाद ,रांची, बोकारो और रामगढ़ जैसे शहर वायु प्रदूषण के उच्च प्रभाव से ग्रसित है। शिकागो विश्वविद्यालय, अमेरिका की शोध संस्थान 'एपिक' द्वारा तैयार वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक के नए विश्लेषण के अनुसार वायु प्रदूषण की गंभीर स्थिति के कारण झारखंड के नागरिकों की जीवन प्रत्याशा में औसत 4.4 वर्ष कम हो रही है

 देशों में मेट्रो शहरों की तरह झारखंड की वायु भी जहरीली होती जा रही है एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स के अनुसार रांची, गोड्डा और कोडरमा के लोग अपनी औसत जीवन के लगभग 5 वर्ष अधिक जी सकते है, अगर वायु की गुणवत्ता विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O) डब्ल्यू.एच.ओ. के दिशा निर्देशों के अनुरूप हो 

➧ राजधानी रांची समेत झारखंड के अन्य जिले और शहर के लोगों का जीवन काल भी घट रहा है  वे बीमार जीवन जी रहे हैं  गोड्डा के लोगों का जीवनकाल 5 वर्ष तक घट गया है  

➧ इसी तरह कोडरमा, साहेबगंज, बोकारो, पलामू और धनबाद भी इसी सूची में पीछे नहीं है। यहां के लोगों के जीवन काल क्रमश:  4 पॉइंट 9 वर्ष, 4.8 वर्ष, 4.8 वर्ष, 4.7 वर्ष और 4.7 वर्ष तक घट गया है। यहां के लोगों का जीवनकाल इतना ही बढ़ जाता, अगर लोग स्वच्छ और सुरक्षित हवा से सांस लेते।

 उनकी जीवन प्रत्याशा की उम्र बढ़ सकती है, अगर वहां के वायुमंडल में मौजूद सूक्ष्म तत्वों  एवं धूलकणों की सघनता 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तक सीमित हो, एक्यूएलआई के आंकड़े के अनुसार राजधानी रांची के लोग 4.1 ज्यादा जी सकते हैं अगर विश्व स्वास्थ संगठन के मानकों को हासिल कर लिया जाए

 झारखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (जेएसपीसीबी) ने दिवाली की रात बिरसा चौक पर वायु प्रदूषण की जांच कराई

 दीपावली के दिन वायु में pm10 (सूक्ष्म धूलकण) की औसत मात्रा मानक से 175 पॉइंट 96 प्रतिशत अधिक पहुंच गयी 

 इस स्तर पर सांस, फेफड़े, एलर्जी रोगियों की परेशानी बढ़ने लगती है । दूसरी ओर पीएम 2.5 (अति सूक्ष्म धूलकण)  भी निर्धारित सीमा से 95.08% अधिक तक रिकॉर्ड किया गया

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Saturday, September 11, 2021

Hot Spring of Jharkhand- JPSC/ JSSC/ PSC

Hot Spring of Jharkhand

Many hot water bodies are found in Jharkhand. Where there is an intersection of the groundwater level and the surface, the water of the earth starts coming out, which is called 'hot springs'.

  • Charakkhudra: 10 km from Tundi on Dhanbad-Giridih Road
  • Tetulia: Dhanbad
  • Kava: Hazaribagh 
  • Tatapani: Latehar
  • Dauri: Chatra
  • Jahripani: Dumka
Hot Spring of Jharkhand
  • Tapatpani: On the banks of More river near Kumrabad in Dumka
  • Nunbil: Near Kenalguta Dumka
  • Baramasia: Pakur
  • Ranibahal: On the banks of More river in Ranibahal on Dumka-Suri road
  • Jhumka: On the banks of More river near Ranibahal
  • Shivpur Sota: Pakur
  • Ladla Udah: Pakur.

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British Law in India before 1857 - JPSC/ JSSC/ PSC

British Law in India before 1857

After the victory in the Battle of Plassey (1757), the Company made the imperialist expansion and consolidation of the Company in India by two-pronged methods;

  • Policy of amalgamation through diplomatic and administrative machinery.

Under the first policy, the company defeated big Indian powers like Bengal, Mysore, Maratha, and Sikh one by one and subjugated their empire. But to subjugate other princely states and princely states, he adopted three major diplomatic and administrative policies-

British Law in India before 1857

  • Warren Hasting's Ring Fence Policy
  • Wellesley Subsidiary Treaty
  • Dalhousie's Lapse Principle.

Policy of Ring Fence: The purpose of this policy was to protect the company's borders by creating a buffer zone. In these policies, the states included within the 'ring fence' were assured of military assistance against external aggregation, at their own expense.

Subsidiary Alliance: It was a type of friendship treaty Lord Wellesley used during 1798-1805 to establish relations with the native states. According to the rulers of this treaty, the company will decide the foreign relations of the Indian kings. The big states would keep the British army in their state at their own expense. Those states would have to have an English resident in their court. The company will protect the state from external enemies but will not interfere in the internal affairs of the state.

With this treaty, the independence of Indian states ended, the economic burden increased and they became dependent on the mercy of the British. But, the British benefited immensely from this.

Principle of Lapse: It is also called the 'Policy of Peaceful Merger'. It was used by Lord Dalhousie, who was the Governor-General of India from 1848-1856 AD. Dalhousie believed that the problems of the subjects increased due to the old system of administration by false princely states and artificial intermediary powers. Therefore, to remove the problems of the public, these princely and intermediary powers should be under the company. Based on this arbitrary logic, he annexed the following states in their Company;

This policy of Dalhousie caused intense discontent among the Indian princely states, which became a major cause of the Revolt of 1857.

In this way, the Company, due to its power, diplomacy, and efficiency of administrative machinery, subjugated most of the Indian territory and established the supremacy of the Company.

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