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Tuesday, June 15, 2021

Jharkhand Ke Audyogik Pradesh (झारखंड के औद्योगिक प्रदेश)

Jharkhand Ke Audyogik Pradesh

➧ किसी भी क्षेत्र में औद्योगिक प्रदेशों का विभाजन औद्योगिक इकाइयों की सघनता, उनके आपसी संबंध, नगरीय जनसंख्या, यातायात सुविधाओं आदि के आधार पर किया जाता है

➧ झारखंड में इस आधार पर औद्योगिक प्रदेशों का विभाजन करना जटिल कार्य है

झारखंड के औद्योगिक प्रदेश

लेकिन फिर भी झारखंड को 7 औद्योगिक प्रदेशों में विभाजित किया जाता है:-

(I) अभ्रक औद्योगिक प्रदेश 

➧ इसका विस्तार गिरिडीह, कोडरमा, धनवार, डोमचाच, क्षेत्र में है। यह क्षेत्र रूबी अभ्रक के लिए विश्व प्रसिद्ध है 

➧ यहाँ अभ्रक परिष्करण के लिए डोमचाच, झुमरी तिलैया, चकरई  एवं गिरिडीह में उद्योग लगे हुए हैं 

➧ इस क्षेत्र में सड़क एवं रेल मार्ग भी मौजूद है 

➧ इस क्षेत्र में 500 छोटे-छोटे अभ्रक उद्योग थे, जिसमें 400 से अधिक बंद हो चुके हैं


(II) दामोदर घाटी औद्योगिक प्रदेश

➧ यह झारखंड की नही, संपूर्ण भारत का विकसित औद्योगिक प्रदेशों में से एक है

➧ इस क्षेत्र में कोयले का विशाल भंडार है

➧ कोयला खनन उद्योग के अलावे, लोहा उद्योग, खाद उद्योग एवं कांच उद्योग, रिफेक्टरी उद्योग, बारूद उद्योग भी सक्रिय हैं

यह मुख्यत: धनबाद और बोकारो जिला का क्षेत्र है

➧ इस क्षेत्र में नगरीय जनसँख्या भी अधिक है और यातायात के साधन भी विकसित है
 

(III) बॉक्साइट खनन औद्योगिक प्रदेश

➧ इसका विस्तार मुख्यत: पाट क्षेत्र में है

 गुमला जिला का उत्तरी भाग, लातेहार जिला का दक्षिणी भाग एवं लोहरदगा जिले के उत्तर-पश्चिमी भाग में बॉक्साइट का विशाल भंडार है इस क्षेत्र में चाईना क्ले एवं लिग्नाइट खनिज भी प्राप्त होते हैं

 यह नगरीकरण एवं सड़कों का अभाव पाया जाता है 

➧ इस क्षेत्र में बॉक्साइट की उपलब्धता के बावजूद एलमुनियम प्रोसेडिंग प्लांट नहीं है यही कारण है कि यहां के बॉक्साइट से मुरी प्लांट में एलमुनियम का उत्पादन होता है 


(IV) रांची औद्योगिक प्रदेश

➧ इसे ऊपरी स्वर्णरेखा औद्योगिक प्रदेश भी कहते हैं इसका विस्तार रांची-रामगढ़ एवं खूंटी जिले में है 

 इस क्षेत्र में पतरातु, रामगढ़, ओरमांझी, हटिया, रांची, नामकुम, टाटीसिल्वे, मुरी  में औद्योगिक इकाईयों स्थापित है 

 इस क्षेत्र के प्रमुख इकाइयां एवं उत्पादन निम्न है 

(i) रामगढ़               :   कोक कोयला और कांच 

(ii) ओरमांझी           :   सूत उद्योग

(iii) रातू                   :   श्रीराम बॉल बेयरिंग 

(iv) सामलौंग           :   हाइटेंशन इंसुलेटर 

(v) टाटीसिल्वे          :   उषा मार्टिन

(vi) नामकुम            :   लाह उद्योग

(vii)  रांची                :   ऑटोमोबाइल, बाल्टी निर्माण, कृषि उपकरण

(viii)  हटिया            :   एच.ई.सी.

(ix) तुपुदाना             :   ग्रेनाइट खनन 

(x) खूंटी                    :   ब्लैक ग्रेनाइट उद्योग 


(V) जमशेदपुर औद्योगिक प्रदेश

➧ इसका विस्तार चांडिल से घाटशिला तक है इस वृहद औद्योगिक प्रदेश में भारत का सबसे प्रसिद्ध लौह-इस्पात  कारखाना जमशेदपुर में स्थापित है

➧ इससे स्वर्णरेखा प्रौद्योगिकी प्रदेश तथा इंजीनियरिंग प्रौद्योगिकी प्रदेश भी कहा जाता है

➧ इस क्षेत्र में प्रमुख औद्योगिक केंद्र जमशेदपुर, चांडिल, कांड्रा, जुगसलाई, पोटका, पटमदा, नीमडीह आदि है

➧ झारखंड के किसी भी औद्योगिक प्रदेश की तुलना में सबसे अधिक संपन्न, सघन और वृहद् औद्योगिक प्रदेश है

➧ इस क्षेत्र में  स्टील निर्माण, वायर प्रोजेक्ट, टीन प्लेट, केबल, टूयूब, कृषि उपकरण, ग्लास उत्पादन की इकाइयां अधिक है


(VI) घाटशिला-बारहागोड़ा औद्योगिक प्रदेश

 इससे पूर्व सिंहभूम औद्योगिक प्रदेश  भी कहा जाता है, जो ज्यादा तर्कसंगत प्रतीत नहीं होता

➧ इस क्षेत्र में मुख्य रूप से तांबा और यूरेनियम के खाने हैं

 तांबा का उत्पादन भोगनी, मुसाबनी, सुरादा, केन्दाडीह, पथरगोड़ा से होता है, जबकि यूरेनियम का उत्पादन घाटशिला से किया जाता है 

➧ इस क्षेत्र में अधिकांश खनन कार्य बंद हो रहे हैं यहां परिवहन संचार एवं विद्युत प्रणाली का भी अभाव है 


(VII) पश्चिमी सिंहभूम प्रौद्योगिकी प्रदेश

➧ इसका विस्तार पोरहाट से सारंडा के जंगलों के बीच है

➧ यहां के मुख्य औद्योगिक केंद्र चाईबासा, झींगपानी, नावाडीह, जामदा, मोहनपुर, कराईकेला है 

➧ यह कलकत्ता - मुंबई रेलमार्ग पर स्थित क्षेत्र है इन क्षेत्रों  में निम्न उद्योग स्थापित है 

(i) नोवामुंडी           :  एशिया की सबसे बड़ी लौह-अयस्क की खान है  

(ii) कराईकेला        :  क्रोनियम उत्पादन 

(iii) जामदा बूढ़ाबुरु : लौह-अयस्क उत्पादन 

(iv) मोहनपुर          :   मैगनीज उत्पादन 

(v) चाईबासा           :   बीड़ी उद्योग

(vi) झींगापानी        :   सीमेंट उद्योग

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Monday, June 14, 2021

Jharkhand Ke Pramukh Udyog (झारखंड के प्रमुख उद्योग)

Jharkhand Ke Pramukh Udyog

➧ झारखंड प्राकृतिक संसाधनों से संपन्न राज्य है भारत के कुल खनिज भंडार का 40% झारखंड राज्य में पाया जाता है 

➧ खनिजों की उपलब्धता के कारण राज्य में औद्योगिक विकास की अपार संभावनाएं मौजूद हैं उद्योगों के विकास से आर्थिक संवृद्धि सुनिश्चित होने के साथ-साथ रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे 

झारखंड के प्रमुख उद्योग

राज्य के प्रमुख उद्योगों का वर्गीकरण

 वन संसाधन आधारित उद्योग  :- झारखंड में लाह, गोंद, साल के बीच, महुआ के फूल एवं बीज, तेंदूपत्ता आदि लघु वनोत्पाद हैं

➧ इसके अतिरिक्त राज्य में कागज, अखबारी कागज, लुगदी आदि उद्योगों की भी अपार संभावनाएं हैं

➧ खाद्य प्रसंस्करण उद्योग :- झारखंड भारत में सबसे अधिक सब्जी उत्पादक राज्यों में से एक है झारखंड में सब्जियों में टमाटर, आलू, भिंडी, गोबी, शकरकंद तथा फलों में अमरूद, आम आदि का उत्पादन होता है

➧ पापड़, चटनी, तंबाकू आदि प्रसंस्करणयुक्त उत्पादों के लिए भी यह राज्य उपयुक्त है

➧ कृषि सहायक उद्योग :- इसके अंतर्गत अचार, चटनी, फलों का मुरब्बा, पिसा अनाज आदि उत्पाद पर आधारित उद्योग आते हैं 

➧ सूती वस्त्र उद्योग :- झारखंड में विशेष जाति समुदाय द्वारा हथकरघे से कपड़े बुनने का कार्य किया जाता हैरांची जिले में ओरमांझी गांव में सूत का कारखाना तथा इरबा रांची का 'छोटानागपुर रीजनल हैंडलूम वीवर्स सोसाइटी' इसके लिए प्रसिद्ध है

रेशमी वस्त्र उद्योग :- देश भर में सबसे अधिक तसर उत्पादन झारखंड में होता है। इसका सबसे अधिक उत्पादन पलामू, रांची, हजारीबाग आदि जिलों में होता है राज्य में नगड़ी रांची में तसर अनुसंधान केंद्र एवं गोड्डा  में तसर कोआपरेटिव सोसाइटी कार्यरत है

➧ झारखंड की तसर रेशम गुणवत्ता को ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन भी दिया गया है 

वस्त्र  उद्योग :- वस्त्र  उद्योग के अंतर्गत कपड़ों की सिलाई, क्रय-विक्रय, कपड़ा बुनना, रंगना, धागा कातना आदि उद्योग आते हैं

लकड़ी उद्योग  :- इस उद्योग के अंतर्गत लकड़ी की कटाई (चिराई), फर्नीचर बनाना, लकड़ी का क्रय-विक्रय करना और लकड़ी के खिलौने बनाना आदि आता है

➧ अन्य उद्योग :- राज्य में अन्य उद्योगों में धातु उद्योग, चर्म उद्योग, साबुन बनाना, चूड़ियां बनाना, अगरबत्ती, मोमबत्ती बनाना, शहद इकट्ठा करना आदि शामिल है 

झारखंड के प्रमुख वृहद उद्योग (Large Industries)

➧ झारखंड की अर्थव्यवस्था में वृहद उद्योगों का महत्वपूर्ण योगदान है 

➧ प्रमुख वृहत उद्योगों का वर्णन निम्नलिखित है:- 

1- लौह-इस्पात उद्योग 

टाटा लौह एवं इस्पात कंपनी (टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी-टिस्को)

➧ टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी यानी टिस्को की स्थापना झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के साकची नामक स्थान दोराब जी टाटा ने की थी  

➧ दरअसल टिस्को की स्थापना का प्रारंभिक विचार जमशेदजी नौसेरवान जी टाटा का था, परंतु 1904 में इनका निधन हो गया  परंतु जमशेदजी टाटा को ही टिस्को कंपनी का वास्तविक संस्थापक माना जाता है

➧ जमशेदजी टाटा के नाम पर साकची का नाम बाद में बदलकर जमशेदपुर कर दिया गया। यह संयंत्र की स्थापना स्वर्णरेखा और खरकई नदी के संगम पर की गई

➧ टिस्को कंपनी की स्थापना 1907 में की गई  परन्तु यहाँ लौह उत्पादन का कार्य 1911 में शुरू हुआ

टिस्को कंपनी को 

(i) कच्चे लोहे की प्राप्ति  - नोवामुंडी, गुआ, होक्लातबुरु से होती है 

(ii) कोयले की आपूर्ति  - झरिया खदान तथा रानीगंज (बंगाल) खदान से होती है

(iii) मैग्नीज एवं क्रोमाइट - चाईबासा खान से होती है

(iv) चूना पत्थर एवं डोलोमाइट - सुंदरनगर (उड़ीसा) से होती है

(v) जल - स्थानीय नदियों से होता है 

➧ रेलवे के द्वारा माल की ढुलाई बंदरगाह तक होने की सुविधा है 
 सन 1948 में टाटा मोटर्स के द्वारा यहां 'टाटा इंजीनियरिंग एंड लोकोमोटिव कंपनी' (टेल्को) की स्थापना की गई
➧ यहां ट्रक, रेलवे वैगन, बॉयलर तथा अन्य गाड़ियों की चेचिस बनाई जाती है
➧ 2005 में टिस्को कंपनी का नाम बदलकर टाटा स्टील कर दिया गया 
➧ इस औद्यौगिक नगर को 'टाटानगर' भी कहा जाता है 
➧ झारखंड की औद्यौगिक राजधानी मानी जाती है  

2- बोकारो लौह स्टील प्लांट (Bokaro Steel Plant)

➧ सन 1964 में भारतीय इस्पात प्राधिकरण एवं सोवियत संघ (वर्तमान रूस) के सहयोग से भारत सरकार ने बोकारो लौह इस्पात कंपनी की स्थापना की
➧ यहां उत्पादन कार्य 1972 में शुरू हो गया । यह झारखंड का दूसरा महत्वपूर्ण लौह इस्पात उद्योग केन्द्र है
➧ यह कारखाना बोकारो जिले के माराफारी नामक स्थान पर गर्गा डैम और तेनुघाट (दामोदर घाटी) के निकट स्थापित किया गया है
➧ यह भारत का पहला स्वदेशी स्टील संयंत्र है तथा देश का चौथा सबसे बड़ा लौह इस्पात संयंत्र है
➧ यह कारखाना सैल (स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया-सेल) के अधीन कार्यरत है
➧ इस प्लांट से माल ढुलाई के लिए दिल्ली-कोलकाता मार्ग सबसे उपयुक्त है। यह मार्ग उत्पाद को बंदरगाह तक पहुंचाने में मदद करता है
➧ इस प्लांट को सस्ती बिजली और जल की आपूर्ति दामोदर बिजली परियोजना से की जाती है

 इस संयंत्र को

(i) लौह अयस्क  - क्योंझर खान से प्राप्त होती है
(ii)  कोयला -       झरिया खान से प्राप्त होती है
(ii) चूना पत्थर -  पलामू एवं मध्य प्रदेश से प्राप्त होता है 
➧ यहां हॉट रोल्ड कॉयल, रोल्ड प्लेट, रोल्ड शीट, कोल्ड रॉल्ड कॉयल आदि उपकरण तैयार किए जाते हैं 

3- रसायनिक उर्वरक उद्योग (Chemical Industry) 

➧ वर्ष 1951 में भारत सरकार ने भारत उर्वरक उद्योग निगम के अंतर्गत सिंदरी (धनबाद) में एक उर्वरक कारखाने की स्थापना की  
➧ दामोदर घाटी परियोजना से बिजली एवं जल की आपूर्ति तथा बोकारो स्टील प्लांट से कच्चे माल की आपूर्ति की जाती है
➧ यह कारखाना नाइट्रेड, अमोनियम सल्फेट और यूरिया का बड़े पैमाने पर उत्पादन करता है

4- तांबा उद्योग (Copper Industry)

➧ देश का पहला तांबा उत्पादक कारखाना भारत सरकार ने वर्ष 1924 में 'इंडियन कॉपर कारपोरेशन' के माध्यम से झारखंड के घाटशिला में स्थापित किया था 
➧ घाटशिला के बेदिया एवं मुसाबनी की खानों से कच्चा चूर्ण निकाला जाता है, जिसका चूर्ण बनाकर रोपवे के माध्यम से मउभंडारा कारखाने तक लाया जाता है
 वहां उस चूर्ण को भट्टी में डालकर तांबे से गंधक को अलग किया जाता है
➧ इंडियन कॉपर कारपोरेशन ने 1930 में घाटशिला के पास तांबा शोधन केंद्र स्थापित किया है

➧ झारखंड में इसके अलावा दो अन्य स्थानों से भी तांबा उद्योग का संचालन होता है
(i) हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड के द्वारा जादूगोड़ा से 
(ii) इंडियन केबल कंपनी लिमिटेड के द्वारा जमशेदपुर से 

5- एल्युमिनियम उद्योग (Aluminum Industry)

➧ राज्य में एलुमिनियम उद्योग के लिए बॉक्साइट की अनेक खाने हैं यहां भारत में कुल एलुमिनियम अयस्क (एलुमिना) उत्पादन का 16% भाग उत्पादित होता है
➧ राज्य में बॉक्साइट का विशाल भंडार है, जिसमें सबसे अधिक भंडार लोहरदगा में है
 सन 1938 ईस्वी में रांची के निकट मुरी में इंडियन एलुमिनियम कंपनी की स्थापना की गई
➧ बिरला समूह द्वारा इस कंपनी को खरीदने जाने के पश्चात का वर्तमान नाम 'हिंडालको' (Hindustan Aluminium And Corporation- Hindalco Ltd) है 
 यह भारत का दूसरा सबसे बड़ा एलुमिनियम संयंत्र है
 हिंडालको संयंत्र को ऑक्साइड के रूप में कच्चे माल की आपूर्ति लोहरदगा एवं पलामू से होती है 
 राज्य में निर्मित होने वाले एलुमिना को केरल के अलमपुरम एवं अलवाय, कोलकाता के बेलूर तथा मुंबई के लेई  करखानों में भेजा जाता है
 एलुमिनियम का उपयोग बर्तन, बिजली के तार, मोटर, रेल और वायुयान बनाने में किया जाता है 

6- सीमेंट उद्योग (Cement Industry)

➧ झारखंड में सीमेंट के कारखाने सिंदरी (धनबाद), कुमारडूबी (धनबाद),  जलपा (पलामू), चाईबासा (पश्चिमी सिंहभूम), झींकपानी (पश्चिमी सिंहभूम), खेलारी (रांची), बोकारो आदि  स्थान पर स्थित है
 राज्य में पर्याप्त चूना पत्थर एवं कोयले के भंडार होने के कारण सीमेंट उद्योग के लिए अनुकूल स्थिति बनती है
➧ झारखंड में प्रथम सीमेंट उद्योग की स्थापना 1921 में जपला (पलामू) में की गई थी
➧ झींकपानी, जमशेदपुर, बोकारो एवं सिंदरी में सीमेंट का उत्पादन स्लैग (Slag) एवं स्लेज (Sludge) से होता हैयह सीमेंट कारखानों का उत्पादन है
➧ जमशेदपुर का लाफार्ज सीमेंट कारखाना में लौह-इस्पात उद्योग के अवशिष्ट का प्रयोग होता है
➧ सीमेंट एक वजन ह्रास वाला उद्योग है तथा इसका सबसे अधिक प्रयोग भवन निर्माण, सड़क निर्माण जैसे कार्यों में किया जाता है

7- कांच उद्योग (Glass Industry)

➧ राज्य में कांच का कारखाना रामगढ़ जिले में भुरकुंडा नामक स्थान पर 'इंडो आसई ग्लास' नाम से स्थापित किया गया है
➧ कांच उद्योग में कई सारे खनिजों को कच्चे माल के रूप में उपयोग किया जाता है, जैसे :- सीसा, सिलीका, चूना-पत्थर, सुरमा, शीरा, पोटेशियम कार्बोनेट, सुहागा, सल्फेट आदि 
➧ इस सभी पदार्थों की आपूर्ति राजमहल की पहाड़ी मंगल घाट और पत्थर घाट से होती है

8- अभ्रक उद्योग

➧ झारखंड अभ्रक उत्पादन में कभी देश का प्रथम राज्य हुआ करता था, तथा यहां अभ्रक की सबसे उन्नत किस्म की रूबी अभ्रक पाया जाता था 
➧ परंतु वर्तमान समय में अभ्रक उत्पादन झारखंड में लगभग बंद है तथा अभ्रक उत्पादन में भारत का प्रथम राज्य आंध्रप्रदेश बन गया है 
➧ झारखंड में अभ्रक का सबसे प्रसिद्ध खान कोडरमा खान है अभ्रक उत्पादन कोडरमा के अलावा गिरिडीह और हजारीबाग जिले में किया जाता है 

9- कोयला उद्योग

➧ राज्य में कोयले का अनुमानित भंडार 82,439 मिलियन टन है, जो भारत में सबसे अधिक है यह भारत के कुल कोयला भंडार का लगभग 26 पॉइंट 16% है कोयला उत्पादन में राज्य का तीसरा स्थान है
➧ झारखंड में झरिया, बोकारो, रांची, उत्तरी कर्णपुरा, धनबाद की खानों में कोयला उत्पादन का कार्य किया जाता है 
➧ झारखंड में कोयला निकालने वाली प्रथम कंपनी बंगाल कोल थी  
वर्त्तमान में कोल इंडिया की दो बड़ी इकाइयां झारखंड में कार्यरत है :-
(i) सेंट्रल कोल फील्ड ,रांची
(ii) भारत कोकिंग कोल लिमिटेड, धनबाद
➧ केंद्रीय खनन अनुसंधान केंद्र धनबाद में स्थित है इसकी स्थापना 1926 में लॉर्ड इरविन के समय की गई थीयह भारत का सबसे प्राचीन खनन शोध केंद्र है तथा वर्तमान में आई.आई.टी. का दर्जा प्राप्त है

10- इंजीनियरिंग उद्योग 

➧ झारखंड में मुख्य रूप से रांची और जमशेदपुर में इंजीनियरिंग उद्योग कार्यरत है 

हेवी इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन-एच.ई.सी. (Heavy Engineering Corporation)

➧ हेवी इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन की स्थापना वर्ष 1958 (31 दिसंबर) में भारत सरकार ने रूस और चेकोस्लोवाकिया की सहायता से रांची, (झारखंड) में की थी

➧ भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपने रांची यात्रा के दौरान 15 नवम्बर, 1963 को एच.ई.सी. को आधुनिक उद्योगों का मंदिर कहा था 

➧ यह एशिया का सबसे बड़ा हैवी इंजीनियरिंग करखाना था

➧ इस संयंत्र में 1964 ई.में उत्पादन शुरू हुआ 

➧ एच.ई.सी. स्टील, खनन, रेलवे, बिजली, रक्षा, अंतरिक्ष अनुसंधान, परमाणु और रणनीति क्षेत्रों के लिए भारत में पूंजी उपकरणों के प्रमुख आपूर्तिकर्ताओं में से एक हैं

➧ एच.ई.सी. की कुल 3 शाखाएँ हैं

➧ जो रांची के समीप हटिया नामक स्थान पर कार्यरत हैं

(i) भारी मशीन निर्माण संयंत्र (Heavy Machine Building Plan-HMBP) :- यह रूस के सहयोग से स्थापित की गई है

➧ यह संयंत्र किसी भी उद्योग की संरचना डिजाइन करने का छमता रखता है 

➧ यह इस प्लांट में लौह-इस्पात संबंधी भारी उपकरण जैसे एस्केवेटर, क्रेन, ऑयल, ड्रिलिंग, उपकरण आदि  बनाते हैं साथ ही सीमेंट, खाद्य तेल, खनन, ड्रिलिंग मशीन आदि का भी कार्य होता है

(ii) फाउंड्री फ़ार्ज़ संयंत्र (Foundry Forge Plant-FFT) - इस सयंत्र की स्थापना की चेकोस्लोवाकिया की सहायता से की गई है यह एक ढलाई भट्टी है 

➧ यहां भारी मशीनों एवं उपकरणों के निर्माण के लिए बड़े-बड़े उच्चता तापीय बॉयलोरो में गलाकर आवश्यक आकृतियों में ढाला जा रहा है। यह अन्य दो शाखाओं की मांग को पूरा करने का काम करता है

(iii) हैवी मशीन टूल प्लांट (Heavy Machine Tools Plants-HMTP) - इसकी स्थापना रूस की सहायता से की गई है यहां विभिन्न प्रकार के मशीन के पुर्जे बनाए जाते थे बोकारो लौह-इस्पात कंपनी के लिए आवश्यक मशीन और उपकरण की आपूर्ति यहीं से की जाती है

11- यूरेनियम उद्योग 

➧ झारखंड में यूरेनियम प्रोसेसिंग प्लांट पूर्वी सिंहभूम जिले में घाटशिला के निकट बादूंहुडांग गांव में लगाया जाना है
➧ इसका इसका औपचारिक नाम तुरामडीह यूरेनियम प्रोजेक्ट होगा
➧ राज्य सरकार ने इस कारखाने के निर्माण की मंजूरी दे दी है परंतु यह कारखाना अभी आरंभ नहीं हुआ है 
➧ एक अनुमान के तहत झारखंड में 40 लाख  टन यूरेनियम का भंडार है

12- विस्फोटक उद्योग 

➧ झारखंड में विस्फोटक उद्योग की स्थापना आई.सी.आई द्वारा गोमिया (बोकारो) में किया गया

13- कोयला धोवन उद्योग(Coal Washeries Industry)

➧ कोयला धोवन गृहों के द्वारा कोयले से शेल,फायरक्ले आदि अशुद्धियों को दूर किया जाता है 
➧ झारखंड में जामादोबा, बोकारो, लोदला, करगाली, दुगदा, पाथरडीह, कर्णपुरा आदि प्रमुख कोयला धोवन केंद्र हैं
➧ करगाली कोल वाशरी (बोकारो) एशिया की सबसे बड़ी कॉल वाशरी है 

14- रिफैक्ट्री उद्योग (Refractory Industry) 

➧ इस उद्योग के अंतर्गत उच्च ताप सहन करने वाले धमन भट्टियों का निर्माण किया जाता है जिसका प्रयोग लौह-इस्पात उद्योग सहित विभिन्न उद्योगों में किया जाता है
➧ झारखंड में चिरकुंडा, कुमारधुबी, धनबाद, रांची रोड, मुग्मा आदि में इस प्रकार के उद्योगों का विकास हुआ है
➧ दामोदर घाटी क्षेत्र में पायी जाने वाली मिट्टी इस उद्योग की स्थापना हेतु अत्यंत महत्वपूर्ण है

15- उर्वरक उद्योग (Fertilizer Industry)

➧ भारत का प्रथम उर्वरक कारखाना 1951 ईस्वी में सिंदरी (धनबाद) में फर्टिलाइज़र कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया दवारा स्थापित किया गया है
➧ यह पूर्वी भारत का सबसे बड़ा उर्वरक कारखाना है  
➧ यहाँ से अमोनियम सल्फेट, नाइट्रेट एवं यूरिया का उत्पादन किया जाता है 

अन्य करखाने

 भारत सरकार ने झारखंड में केंद्रीय प्रबंधन के अंतर्गत कुछ बड़े कारखाने खाले हैं

(i) सी.सी.एल. (रांची)

(ii) बोकारो इस्पात लिमिटेड (बोकारो)

(iii) ई.सी.एल. (संथाल परगना)

(iv) बी.सी.सी.एल. (धनबाद)

(v) हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड (पूर्वी सिंहभूम)

(vi) एच.ई.सी. (रांची)

➧ राज्य में बिरला समूह के दो कारखाने स्थित है

(i) 'हिंडालको' (मुरी) - एलुमिनियम उत्पादन हेतु 
(ii) बिहार कास्टिक सोडा एवं केमिकल्स फैक्ट्री रेहला (पलामू) है
➧ झारखंड राज्य के 12 जिलों में जिला उद्योग केंद्र (District Industry Center) कार्यरत हैं 
 झारखंड में वृहद उद्योग की संख्या 167 है, जो राज्य के 15 जिला में स्थापित है  
 पूर्वी सिंहभूम जिले में सबसे अधिक 85 उद्योगों की स्थापना हुई है  

झारखंड में वन आधारित उद्योग 

(1) लाह उद्योग

➧ लाह उत्पादन की दृष्टि से भारत में झारखंड का स्थान प्रथम है यहां भारत के कुल उत्पादन का 60% उत्पादन होता है
➧ लाह  के कीड़ों को पालने का कार्य कुसुम, पलास, बेर के पौधों पर किया जाता है 
➧ झारखंड अपने कुल लाह उत्पादन का 90% निर्यात करता है 
 लातेहार टोरी लाह निर्यात की दृष्टि से विश्व में प्रथम स्थान रखता है
 सबसे अधिक लाह का उत्पादन खूंटी जिले में किया जाता है
 भारतीय लाह अनुसंधान संस्थान रांची जिले के नामकुम में 1925 में स्थापित किया गया था

(2) रेशम उद्योग 

➧ भारत में 70% तसर रेशम का उत्पादन अकेले झारखंड करता है
➧ राज्य में 40% रेशम उत्पादन सिंहभूम क्षेत्र में तथा 26% रेशम उत्पादन संथाल परगना क्षेत्र में होता है
➧ तसर अनुसंधान केंद्र राँची के नगड़ी में स्थापित किया गया है 

(3) तंबाकू उद्योग

➧ झारखंड में तंबाकू उद्योग का मुख्य उत्पाद बीड़ी उद्योग में है 
➧ बीड़ी का निर्माण एवं केन्दु पत्ता एवं तंबाकू से किया जाता है 
➧ राज्य में बीड़ी निर्माण का कार्य सरायकेला, जमशेदपुर, चक्रधरपुर, संथाल परगना क्षेत्र में किया जाता है 

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Sunday, June 13, 2021

Chik Baraik Tribes Governance System: Jharkhand History- JPSC/ JSSC

Chik Baraik Tribes Governance System

The Chik Baraiks (Badaiks) is the weaver tribe of the Jharkhand. They mainly weave cloth. The tribe is also called the father of handmade clothes.

Native: Ranchi, Khunti, Gumla, Simdega, and Lohardaga districts.

The Chik Baraik tribes are included in Scheduled Tribe (ST) in Jharkhand, Bihar, and West Bengal. They are also known as Chikwa in Chattisgarh, Badaik in Odisha, and included as Scheduled Caste (SC).

Chik Baraik Tribes Governance System: Jharkhand History- JPSC/ JSSC

Culture:

The traditional occupation of Chik Baraik is making clothes such as dhoti, saree, gamcha, etc. 

Language: they speak Nagpuri an Indo-Aryan language.

They have several clans among the tribe which is taken from various animals, objects, and places including Boda (Russell's viper), Chand (Moon), Baunkra (Heron), Jamakiar, Kothi, Kouwa (Crow), Kanjyasuri (Kanji Pani), Loha (Iron), Malua, Naurangi, Rajhans (Hamsa), Singhi (Asian stinging catfish), etc.

Their deities are Devi Mai, Surjahi (Sun), and Bar Pahari. They also worship moon, earth, and other deities. Snake is also worshiped as the ancestor of the caste.

Festivals: the traditional festivals are Asari, Nawakhani, Karam, Jitia, Sohrai, Fagun, etc. Their folk dance is Jhumair, Domkach, Fagua, etc.

Governance System:

Chik Baraik does not have its own ethnic governance system. Each of their villages has 15 families there residing. They live in mixed villages. Therefore, their problems are solved by the mixed gram panchayat. Many villages join together to form their in-house council, which is called Raja, Diwan, Panare, etc. are there to help him. All these positions are heredity. All disputes are settled by this council. According to their customs, they have rules and regulations, which are decided by keeping them in mind. Illegal sex, consensual or non-tribal sex is considered a serious offense. They have to face caste-boycott or harsh punishment for such crimes. 

Present Scenario:

At present, the All India Chik-Baraik Welfare Committee has been formed, which is making a significant contribution to the development of Chik Baraik.

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Saturday, June 12, 2021

Chero Tribes Governance System: Jharkhand History- JPSC/ JSSC

Chero Tribes Governance System

The Chero is an ancient tribe in Jharkhand, but they are also found in Bihar, Madhya Pradesh, and Uttar Pradesh. They belong to the proto-austroloid family. In Jharkhand, the tribe is primarily concentrated in Palamu, Latehar, and Garhwa district.

Chero Tribes Governance System: Jharkhand History- JPSC/ JSSC

History:

The Chero community claims to be the descendants of the Rajput (Kshatriyas), who were a powerful race of Indian warriors whose kingdom existed between the 18th and 19th centuries. The Chero were once the lords of all the provinces surrounding the sacred Ganges River. While other members of the tribe claim to be Nagavanshi

Society:

The community has a traditional caste council that maintains strong social control over the community. They are Hindu but also worship several tribal deities, such as Sairi-Ma, Ganwar Bhabhani, Dulha Deo.

The Chero of Jharkhand has two sub-divisions:

  • Barahazari 
  • Terahazari

These two groups are endogamous and do not inter-marry. They practice clan exogamy and their main clans are the Mawar, Kuanr, Mahato, Rajkumar, Manjhia, Wamwat, Hantiyas. These clans are of unequal status and the Chero practice clan hypergamy. Caste boycott is also done for violating rules. They speak Hindi, Bhojpuri, and Nagpuri.

The Chero of Jharkhand are mainly farmers, with many were substantial landowners. Oxen buffaloes and cows are yoked to plow and carts to help them work in the fields. Goats, fish, and fowl are important components of their diet and are also used as sacrifices in religious ceremonies. 

Governance:

The Chero caste has its own Panchayat, which works at the village level, region, and Mandal level.

The head of the Panchyat is called "Mukhiya", and at the district level is called as "Chairman".

Function:

  • Village disputes are settled in the panchayat.
  • The guilty are to be punished or fined. The decisions of the panchayat are final.

Like many people in India, the Chero belongs to a particular social class or caste. They are officially classified as landowners and farmers. In general, they are a proud race and have never forgotten that their bloodline is one of royalty.

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Friday, June 11, 2021

Jharkhand Me Van Aur Jantu Sanrakshan Kary (झारखंड में वन और जन्तु संरक्षण कार्य)

Jharkhand Me Jantu Sanrakshan Kary

झारखंड में संचालित वन एवं वन्य जीवों के संरक्षण कार्यक्रम 

कार्यक्रम का नाम                        प्रमुख विशेषताएँ 

1- पलामू व्याघ्र परियोजना :- यह केंद्र प्रायोजित योजना है इसमें पहले शत-प्रतिशत व्यय  केंद्र सरकार द्वारा किया जाता था परंतु वर्तमान समय में इसमें केंद्र और राज्य की हिस्सेदारी 60:40 के अनुपात में है

झारखंड में वन और जन्तु संरक्षण कार्य

2- ग्रीन इंडिया मिशन  :-  यह केंद्र प्रायोजित योजना है इसमें केंद्र राज्य की हिस्सेदारी 60:40 के अनुपात में है यह भारत सरकार के नेशनल एक्शन प्लान ऑन क्लाइमेट चेंज के मिशन में से एक है। 

 3- वन-प्राणी पर्यावास की समेकित विकास योजना :- यह केंद्र प्रायोजित योजना है इसमें केंद्र एवं राज्य की हिस्सेदारी 60:40 के अनुपात में है इस योजना में राज्य में स्थित एक राष्ट्रीय उद्यान तथा 11 वन्य जीव अभ्यारण्यों  के विकास एवं उनके रखरखाव का कार्य किया जा रहा है 

4- इंटेसिफिकेशन ऑफ फॉरेस्ट मैनेजमेंट योजना :-यह केंद्र प्रायोजित योजना है इसमें केंद्र और राज्य की हिस्सेदारी 60:40 के अनुपात में है इस योजना में वनों में अग्नि सुरक्षा, सीमांकन, सर्वे  और वन सीमा स्तंभ का निर्माण किया जा रहा है

5- राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम :- यह केंद्र प्रायोजित योजना है इसमें केंद्र एवं राज्य की हिस्सेदारी 60:40 के अनुपात में है 

6- हाथी परियोजना :-- यह केंद्र प्रायोजित योजना है इसमें केंद्र और राज्य की हिस्सेदारी 60:40 के अनुपात में हैइस योजना के अंतर्गत सिंहभूम गज आरक्ष तथा राज्य के अन्य क्षेत्रों में हाथियों के पर्यावास का विकास और हाथी कॉरिडोर विकसित करने का कार्य किया जा रहा है 

7- नेशनल प्लान फॉर कंजवर्शन ऑफ एक्वाटिक इको सिस्टम :- यह केंद्र प्रायोजित योजना है इसमें केंद्र और राज्य की हिस्सेदारी 60:40 के अनुपात में है इस योजना के अंतर्गत साहिबगंज स्थित उधवा जल पक्षी अभयारण्य तथा राज्य के अन्य वेटलैंड के संरक्षण एवं विकास संबंधी कार्य किए जा रहे हैं 

8- वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग :- इसके नियंत्रण में राज्य में अवस्थित एक राष्ट्रीय उद्यान, 1 गज परियोजना तथा 11 वन्यजीव अभयारण्य हैं इन वन्यजीव क्षेत्रों के अंतर्गत अक्सर वन्यजीवों के अवैध शिकार तथा उनके अंगों का अवैध व्यापार होता रहता है, अतः विभाग इन पर प्रभावी रूप से नियंत्रण स्थापित करने हेतु वन्य प्राणी अपराध नियंत्रण प्रकोष्ठ गठित करने का प्रस्ताव है 

9- मुख्यमंत्री जन विकास योजना :- किसानों को निजी भूमि पर वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से इस योजना को वर्ष 2015 में शुरू किया गया इसका विधिवत कार्यान्वयन वित्तीय वर्ष 2016-2017 में शुरू हुआइसके तहत वनरोपन हेतु लोगों को 75% लागत राशि सरकार द्वारा प्रदान की जाती है 

10- झारखंड टूरिज्म नीति-2015 :- इस योजना के तहत प्रथम चरण में राज्य के 8 क्षेत्रों को इको-टूरिज्म के रूप में विकसित किया जा रहा है

इक-टूरिज़म सेंटर       जिला

पारसनाथ               गिरिडीह

कैन्हरी हिल            हजारीबाग

फॉसिल पार्क           साहिबगंज 

त्रिकूट पर्वत             देवघर 

पलामू व्याघ्र परियोजना  लातेहार

तिलैया डैम              कोडरमा 

नेतरहाट                  लातेहार 

दलमा अभयारण्य   जमशेदपुर

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Nagvanshi Shasan Vyavastha (नागवंशी शासन व्यवस्था)

Nagvanshi Shasan Vyavastha

नागवंश के संस्थापक राजा फणिमुकुट राय थे  इन्होंने 64 AD में नागवंश की स्थापना की 

➧ दरअसल मुंडा वंश का संस्थापक राजा सुतिया मुंडा के अंतिम उत्तराधिकारी राजा मदरा मुंडा हुए 

➧ मद्रा मुंडा ने सभी पड़हा पंचायतों के मानकियों से सलाहोपरांत अपने दत्तक पुत्र फनी मुकुट राय को 64 AD में सत्ता सौंपी दी

➧ यह एक जनजातीय समाज द्वारा गैर जनजातीय समाज को सत्ता सौंपने की घटना है 

नागवंशी शासन व्यवस्था

➧ चुँकि नागवंश की स्थापना मुंडा राज्य के उत्तराधिकारी राज्य के रूप में हुआ। ऐसे में नागवंशी राजा मुण्डाओं को अपना बड़ा भाई मानते थे और मुण्डाओं की परंपरागत शासन व्यवस्था मुंडा-मानकी को आदर करते थे साथ ही अपने प्रशासनिक कार्यो के संचालन में उनका सहयोग प्राप्त करते थे 

➧ नागवंशी काल में मुंडा-मानकी व्यवस्था भुईंहरी व्यवस्था के नाम से जानी जाने लगी 

➧ इस काल में पड़हा को पट्टी कहा जाने लगा, जो कि एक प्रशासनिक इकाई थी तथा मानकी को भी भुईहर कहा जाने लगा, जो कि एक प्रशासनिक पद था परंतु ग्रामीण पंचायती व्यवस्था पूर्व की भांति ही यथावत बनी रही  

➧ साथ ही फणिमुकुट राय ने विशेषकर बनारस के लोगों को छोटानागपुर आने का निमंत्रण दिया, जिसमें कुंवर लाल, ठाकुर, दीवान, कोतवाल, पांडेय मुख्य थे इन लोगो को प्रशासन में महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया गया

➧ मुगल काल में नागवंशी राजाओं की स्थिति बदली विशेषकर नागवंशी राजा दुर्जनशाल को जब जहांगीर ने 12 साल का बंदी बनाया फिर रिहाई के बाद उन्हें ₹6000 वार्षिक लगान देने को मजबूर किया तो इस क्षेत्र में प्रशासनिक स्वरूप बदल गया आरंभ में नागवंशी राजाओं ने नियमित कर वसूली का जिम्मा मुंडा-मानकी को ही सौंपा, परंतु बाद में यह जिम्मेदारी जागीरदारों को दे दी गई, जिसे जागीरदारी प्रथा का नाम दिया गया

➧ 1765 में मुगल बादशाह शाह आलम से अंग्रेजों को बंगाल, बिहार, उड़ीसा का दीवानी अधिकार प्राप्त हुआ, जिस पर आगे चलकर लार्ड कॉर्नवालिस ने 1793 में स्थायी  बंदोबस्त लागू किया इस प्रक्रिया में जमींदार को भू-स्वामी माना गया, अब लगान वसूली का कार्य जमींदारों को दिया जाने लगा इसी समय पड़हा  प्रणाली, परगना में बदल गयी 

➧ जमीनदरों ने  इस क्षेत्र का जमकर शोषण किया तथा बड़े पैमाने पर जमीन से जुड़े अधिकारों में हेर-फेर किया बंगाल-बिहार से आने वाले लोग बड़े पैमाने पर भू-स्वामी बन गए और जंगलों पर भी अधिकार कर लिया 

➧ इस सबके बीच नागवंशी शासन व्यवस्था कमजोर हुई, मुंडा-मानकी का महत्व धार्मिक क्रिया-कलापों तक सिमट कर रह गया 

➧ परंतु नागवंश का इतिहास चलता रहा अंत में 1963 में बिहार जमीदारी उन्मूलन कानून लागू होने के बाद नागवंश का अंत हो गया इसके अंतिम राजा चिंतामणि शरण नाथ शाहदेव तथा अंतिम राजधानी रातू गढ़ रही

➧ डॉ.बी.पी.केशरी की पुस्तक 'छोटानागपुर का इतिहास: कुछ सन्दर्भ तथा कुछ सूत्र' में नागवंशी शासन व्यवस्था के अंतर्गत काम करने वाले अधिकारियों का वर्णन मिलता है

1- ग्रामीण स्तर पर 

➧ ग्राम स्तर पर कई अधिकारी अपने-अपने क्षेत्र और इलाकों में अलग-अलग जिम्मेदारियों का निर्वाह करते थे

➧ ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करने वाले 22 अधिकारियों का वर्णन प्राप्त होता है 

(i) महतो 
(ii) भंडारी
(iii) पांडे 
(iv) पोद्दार 
(v) अमीन 
(vi) साहनी
(vii) बड़ाईक
(viii) विरीतिया 
(ix) घटवार
(x) इलाकावार 
(xi) दिग्वार
(xiiकोटवार 
(xiii) गोड़ाइत 
(xiv) जमादार 
(xv) ओहवार
(xvi) तोपची
(xvii) बारकंदाज 
(xviii) बख्शी 
(xix) चोबदार
(xx) बराहिल 
(xxi) चौधरी 
(xxii) गौंझू   

इनमें दो मुख्य थे:- 

(a) महतो :- गांव का महत्वपूर्ण व्यक्ति महतो या महत्तम कहलाता था

(b) भंडारी :- राजा के गांवों में खेती बारी करने तथा अन्न का भंडारण करने हेतु इनकी इसकी नियुक्ति की जाती थी 
(c) भण्डारिक :- यह भंडार गृह का प्रहरी होता था

2- पट्टी स्तर पर 

➧ इस काल में पड़हा को पट्टी कहा जाने लगा तथा इस स्तर पर काम करने वाला अधिकारी मानकी

➧ अब भुईंहरी कहलाने लगा, जबकि पड़हा को पट्टी के नाम से जाना गया
 
➧ यहां के मुख्य अधिकारी निम्न थे 

(a) भुईंहर  :- यह मानकी  पद का ही बदला हुआ रूप था परन्तु इस काल में भुईहर के न्यायिक और राजनीतिक अधिकार तो लंबे काल तक बनी रहे जबकि उनके अधिकार में कटौती की गई  

(b) जागीरदार :- मुगलकाल में लगान वसूली करने वाले करने हेतु इनकी नियुक्ति की गई 

(c) पाहन :- पड़हा में किसी भी प्रकार के आयोजन की व्यवस्था करना जैसे :- बलि, भोज, प्रसाद आदि का कार्य करता था 

3- राज्य स्तर पर  

➧ नागवंशी  राजा को महाराज कहकर संबोधित किया जाता था तथा वह प्रशासन का सर्वोच्च बिंदु था
➧ महाराजा के सहयोगी अधिकारी दीवान, पांडेय, कुँअर, लाल, ठाकुर आदि नाम से जाना जाने जाते थे, इन्हें राजा  भी कहा जाता था और सामान्य: राज्य  परिवार से जुड़े सदस्य ही इन पदों पर बिठाये जाते थे
उदाहरण स्वरूप जरियागढ़ राजा ठाकुर महेंद्र नाथ शाहदेव थे बड़कागढ़ के राजा ठाकुरमर विश्वनाथ शाहदेव आदि

➧ राजा के प्रमुख सहयोगी अधिकारी निम्न थे 
(a) दीवान :- यह शासन में वित्तीय मामलों का प्रमुख था 
(b) पांडेय  :- पंच में या पड़हा राजा की अनुमति से लिए गए निर्णय को मौखिक रूप से सभी को अवगत कराता था 


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Baiga Tribes Governance System: Jharkhand History- JPSC

Baiga Tribes Governance System

The 'Baiga= sorcerer=medicine man' are ethnic groups found in Central India, particularly in Chattisgarh, Madhya Pradesh, Jharkhand, and Uttar Pradesh.

Baiga tribe is a majority tribe in Jharkhand, which belongs to the proto-austroloid species. They mainly reside in the district of Palamu, Garhwa, Ranchi, Latehar, Hazaribagh.

Baiga Tribes Governance System: Jharkhand History- JPSC

Societal Culture:

  • Language: Most Baigas speak Hindi, Gondi, Marathi, or local languages depending on the region where they live.

  • Tatoo: Tattooing is an integral part of their lifestyle. Women are famous for sporting tattoos of various kinds on almost all parts of their bodies. The women who work as tattooing artists belong to the Ojha, Badni, and Dewar tribes are called "godharins". They are extremely knowledgeable about the different types of tattoos preferred by various tribes.

  • Cuisine: Baiga cuisine primarily consists of coarse grains, such as Kodo millet and kutki, and involves very little flour. Another staple food is pej, a drink that can be made from ground corn (macca) or from the water left from boiling rice. They supplement these diets with food from the forest, including fruits, vegetables. They also hunt fish and small mammals.


Societal governance:

In Baiga, social organization is found at the gotra or village level. Their traditional ethnic panchayat is at the village level. 

  • Head: The head of the village organization is called "Muqaddam". This position is heredity. 
  • Priest: The village also has a religious head or priest, but sometimes or somewhere the authority of the priest is combined with the head. Often the same person holds both positions.
  • Assistant: The assistant of the chief is "Sayana" and "Sikhen". Both of these positions are elected by the villagers. 
  • Messenger: There is also a messenger, is called "Charidars".

The village Panchyat deals with;

  • Village conflicts, inheritance property disputes, sexual offenses, marriage or divorce decisions, witch exorcism 'bisaeen', or theft cases. 
  • Marriage, festivals or extramarital sex, and marriage-related problems outside the caste are also resolved.

Everyone respects the decision of the panchayat and the violator is socially boycotted with the help of the preferred members of the village. In case of an outbreak of epidemic in the village due to the disease or sickness of the farmer, the role of the panchayat becomes clear. Panchayat supports and helps in the worship of village deities and other social works.

With the establishment of a government panchayat in the village, the traditional panchayat's dignity, popularity, and authority have declined.

Belief and Cultivation:

The Baiga tribes practice shifting cultivation in the forest areas. They say they never plowed the Earth because it would be akin to scratching their mother's breast, and they could never ask their mother to produce food from the same patch of earth time and time again- she would have become weakened. For this reason, Baiga used to live a semi-nomadic life and practiced 'Bewar'or 'dahiya' cultivation. These techniques are known as "Swidden agriculture" (Shifting cultivation), rather than being a cause of deforestation, have been shown to effective conservation devices, employed for centuries by tribal peoples.

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