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Sunday, May 23, 2021

Khond Janjati Ka Samanya Parichay (खोंड जनजाति का सामान्य परिचय)

Khond Janjati Ka Samanya Parichay

➧ खोंड झारखंड की एक अल्पसंख्यक जनजाति है 

➧ इस जनजाति का संबंध द्रविड़ समूह से है

➧ यह जनजाति एक लघु जनजाति है। 

➧ 2011 की जनगणना के के अनुसार इनकी संख्या 221 (0.003%) है 

खोंड जनजाति का सामान्य परिचय

➧ यह झारखंड के संथाल परगना क्षेत्र में प्रमुखता से पाए जाते हैं। इसके अलावा उत्तरी तथा दक्षिणी छोटानागपुर, पलामू तथा कोल्हान प्रमंडल में भी इनका निवास है 

➧ इस जनजाति की भाषा कोंधी है  

➧ समाज एवं संस्कृति 

➧ इस जनजाति में वरमाला की प्रथा प्रचलित है 

 इनके ग्राम संगठन का मुखिया गौटिया कहलाता है 

➧ इनके प्रमुख पर्व-त्योहार सरहुल, सोहराई, करमा,  दशहरा, दीपावली, रामनवमी, नबानन्द आदि है  

➧ नबानन्द त्यौहार में नए चावल को पकाया जाता है 

➧ इस जनजाति की 3 प्रजातियां है:-

 (i) कुहिया : पहाड़ी भागों में निवास करती है 

(ii) डोंगरिया : पहाड़ों के निचली तल्लों में रहकर बगवानी करती है

(iii) देशिया : समतल भूमि में रहकर कृषि कार्य करती है 

 आर्थिक व्यवस्था

➧ इनका प्रमुख पेशा कृषि कार्य तथा मजदूरी करना है  

➧ इस जनजाति में झूम खेती को पोड़चा कहा जाता है  

➧ धार्मिक व्यवस्था

➧ इनके प्रमुख देवता सूर्य हैं जिन्हें बेंलापुन कहा जाता है 

➧ इस जनजाति में नरबलि की प्रथा प्रचलित है, जिसे मरियाह के नाम से जाना जाता है  

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Bathudi Janjati Ka Samanya Parichay (बथुड़ी जनजाति का सामान्य परिचय)

Bathudi Janjati Ka Samanya Parichay

➧ बथुड़ी झारखंड की एक अल्पसंख्यक जनजाति है जो स्वयं को जनजाति/आदिवासी नहीं मानती है 

➧ ये स्वयं को बाहुतुली या बाहुबली कहते हैं जिसका अर्थ है बाहुओं से तोलने वाला अर्थात क्षेत्रीय 

➧ इस जनजाति को भुईया का पूर्वज माना जाता है

बथुड़ी जनजाति का सामान्य परिचय

 यह जनजाति झारखंड के सिंहभूम का धालभूम की पहाड़ी क्षेत्र में निवास करती है 

➧ इस जनजाति का संबंध द्रविड़ समूह से है 

➧ समाज एवं संस्कृति 

➧ इस जनजाति की नातेदारी व्यवस्था हिंदू समाज के समान ही है

 ➧ इस जनजाति में पितृसत्तात्मक सामाजिक व्यवस्था पर प्रचलित है

  इस जनजाति में 5 गोत्र पाए जाते हैं

 इस जनजाति में विवाह का सर्वाधिक प्रचलित रूप 'आयोजित विवाह' है 

➧ इनके गांव का प्रमुख प्रधान कहलाता है

➧ बूथड़ी जनजाति के लोग नृत्य संगीत के अत्यंत शौकीन होते हैं 

➧ इस जनजाति में कहंगु, वंशी, झाल और मांदर नामक वाद्य यंत्र अत्यंत प्रचलित है 

 इस जनजाति के लोग मुख्यत: आषाढ़ी पूजा, शीतल पूजा, वंदना पूजा, धुलिया पूजा, सरोल पूजा, रस पूर्णिमा, मकर संक्रांति आदि पर्व मानते हैं 

➧ इनमे बहुगोत्रीय प्रणाली है, जिसमें सालुका, 'कोक, नाग, पानीपट,  हुटुक' मुख्य हैं  

➧ इनके सर्वोच्च देवता ग्राम देवता है

➧ ये मृत शरीर को सासन/मोराकुल में जलाया जाता है  

आर्थिक व्यवस्था

➧ इनका प्रमुख पेशा कृषि कार्य, वनोत्पादों का संग्रह और मजदूरी कार्य है  

 धार्मिक व्यवस्था

➧ इनके प्रमुख देवता ग्राम देवता है 

इनके ग्राम का पुजारी दिहुरी कहलाता है 

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Saturday, May 22, 2021

Santhalo Ka Udbhav Aur Vikas (संतालों का उद्भव और विकास)

Santhalo Ka Udbhav Aur Vikas

➧ संतालों  के उद्भव और विकास के संबंध में अनेक गीत एवं कहानियां मिलती हैं 

➧ संतालों  का जन्म हिहिड़ी-पिपीड़ी देश में हुआ है 

➧ हिहिड़ी-पिपीड़ी एक देश है जहां मनुष्य के प्रथम पूर्वज पिलचु पहड़ाम और पिलचू बूढ़ी रहे थे

संतालों का उद्भव और विकास

➧ दोनों की उत्पत्ति हंस और हंसिनी (हांस-हांसली) के अण्डे  हुई थी और उन्हीं दोनों ने मानव वंश की नींव डाली 

 पिलचु दंपति के 7 पुत्र एवं पुत्र 7 पुत्रियां  जन्म ली थी। 

 7 (सात) पुत्र  का नाम "सेंदरा, सांदोम, चारे, माने, आचारे, डेला और लेटा" थे। 

➧ 7 (सात) पुत्री का नाम  "छीता, कापरा, हिसी, डुमनी, दानगी, पुङ्गी और नायन" थी 

➧ जब ये लोग जवान हुए तो इन्होने अनजाने में विवाह सम्बन्ध स्थापित किये थे। कालांतर में जब मनुष्यो के जीवन में पाप समावेश होने लगा तो मरांग बुरु (ठाकुर) जी को अत्यंत क्लेश एवं दुख दर्द अनुभव हुआ, तब ठाकुर ने 7 दिन 7 रात अग्नि की वर्षा की थी 

➧ अग्नि वर्षा में 1 जोड़ी (जुड़ी पुरुष-स्त्री)  "हाराता पहाड़" की गुफा में छुपी हुई थी . 

➧ उन्हीं के वंशज "होड़" अर्थात मनुष्य कहलाया

 जब इनकी वंशज अधिक बढ़ गए तब इन्होंने हाराता से सासाड. बेडा (लोहित सागर) गए थे

➧ सासाड. बेड़ा में ये लोग 12 (बारह) गोत्र में विभाजित हुए थे

 हांसदा:, मारडी, सोरेन, हेम्ब्रम, टुडू , किस्कू, बास्के , बेसरा , चौड़े, पांवरिया, गोंडवार, मुर्मू। 

➧ सासाड. बेड़ा से जारपी दिसोम, आयरे दिसोम, क़ांयडे दिसोम, और चाम्पा दिसोम गाये थे 

➧ जब ये चाम्पा दिसोम में गये तो उन्होनें गोत्रों के अनुसार सामाजिक कार्य विभाजित किये थे।  

(i) किस्कू -रापाज 

(ii) मुर्मू -ठाकुर 

(iii) हेम्ब्रम -कुंवर 

(iv) सोरेन -सिपाही 

(v) मारडी- किंसाड़ 

(vi) हांसदा -पुरुधूल  

(vii) टुडू -मादाड़िया 

(viii) बेसरा -गायनाहिया 

(ix) बास्के -बेपारिया

(x) पावरिया -ओझा  

(xi) चौड़े -सुसारिया 

(xii) गोंडवार-सुसरिया। 

➧ चाम्पागाड़ में ये लोग बहुत दिनो तक रहे थे

➧ यहां इन्होंने विभिन्न दिशाओं में काफी प्रगति किए थे। यहां रहते-रहते इन्होंने अपनी-अपनी राज्य की स्थापना की थी 

➧ 12 गोत्रों के अनुसार अलग-अलग किले बनाए थे  

(i) हांसदा के लिए कुटामपुरीगाड़

(ii) मुर्मू के लिए चाम्पागाड़ 

(iii) किस्कू के लिए कोंयडागाड़ 

(iv) सोरेन के लिए चाईगाड़ 

(v) हेम्ब्रम के लिए खैरीगाड़  

(vi) मारडी के लिए बदोलीगाड़

(vii) टुडू के लिए लुईबाड़ीलुकुयबाड़ीगाड़ 

(viii) बेसरा के लिए बिनसारियागाड़

(ix) बास्के के लिए हारवा लोयोड. 

(x) पावरिया के लिए बामागड़ 

(xi) चौड़े के लिए कोडेगाड़ 

(xii) बेदिया के लिए होलोडगाड़ 

 इसके बाद इन्होंने तोड़े पुखरी, एयायनाई (सात नदी), गाड़ नाई , सिर दिसोम, सिकार दिसोम होते हुए "सान्त" अर्थात सिलदा परगना प्रदेश में आये थे सान्त प्रदेश में इन्हें संताल कहलाया 

 विकास के क्रम में संतालों के साथ अनेक घटना घटी है उन घटनाओं को ताजा रखने के लिए 'पर्व त्योहारों' में,  भित्ति चित्रों में, कृषि कार्य से संबंधित औजारों आदि में विभिन्न प्रकार के चित्रों अंकित करते हैं

➧ संतालों का उद्भव और विकास से संबंधित लोकगीत, लोककथा, लोककहानी, लोकगाथा , लोकसंगीत, मुहावरे, लोकोक्तियां, लोरी, पहेलियां आदि पाए जाते हैं 

➧ यह सब मौखिक रूप से युगों से संताली लोक जीवन में चले आ रहे हैं 

➧ जिससे संतालों का उद्भव और विकास का पता चलता है सहायक पुस्तकें :-

1. टुडू मांझी रामदास 'रेस्का'- खेरवाड़ बांसों धोरोम पुथी,1882  

2. टुडू डॉ. कृष्ण चंद्र - सानताड़ी होड़ साँवहेंत कथा, 2008  

3. स्क्रेफसरुड एल. ओ. - मारे हापड़ामको रेया: काथा, 1887

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Banjara Janjati Ka Samanya Parichay (बंजारा जनजाति का सामान्य परिचय)

Banjara Janjati Ka Samanya Parichay 

➧ बंजारा झारखंड के घुमक्कड़ किस्म की अल्पसंख्यक जनजाति है जो छोटे-छोटे गिरोहों में घूमती रहती है इनका कोई गांव नहीं होता है 

➧ इसकी आबादी अब मात्र -487 है, जो राज्य की जनजातीय आबादी का 0.01% है 

बंजारा जनजाति का सामान्य परिचय

➧ 1956 ईस्वी में इन्हें जनजाति का दर्जा प्रदान किया गया था 

➧ इस जनजाति का सबसे अधिक सकेंद्रण संथाल परगना क्षेत्र में है 

➧ यह जनजाति अपनी भाषा को लंबाडी कहते हैं 

➧ समाज एवं संस्कृति 

➧ इस जनजाति का समाज पितृसत्तात्मक होता है

 इनका परिवार नाभिकीय होता है जिसमें माता-पिता और अविवाहित बच्चे शामिल होते हैं 

➧ यह जनजाति चौहान, पावर, राठौर तथा उर्वा नामक चार वर्गों में विभाजित है

 इस जनजाति में राय की उपाधि काफी प्रचलित है

 इस जनजाति में विधवा विवाह को नियोग कहा जाता है 

 इस जनजाति में वधू मूल्य को हारजी कहा जाता है

 इस जनजाति में विवाह पूर्व सगाई की रस्म प्रचलित है 

➧ इस जनजाति के लोग मुख्य रूप से होली, दशहरा, दीपावली, जन्माष्टमी, नाग पंचमी, रामनवमी आदि पर्व मनाते हैं 

➧ इस जनजाति में 'आल्हा -उदल' की लोककथा काफी प्रचलित है तथा ये तथा यह 'आल्हा -उदल' को वीर पुरुष मानते हैं 

➧ इस जनजाति के गीतों में पृथ्वीराज चौहान का उल्लेख मिलता है 

➧ इस जनजाति का लोक नृत्य 'दंड-खेलना' अत्यंत प्रचलित है 

➧ आर्थिक व्यवस्था 

➧ पेशेगत दृष्टि से इन्हें तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है, जिसमें गुलगुलिया (भिक्षुक वर्ग ) एवं कंजर (अपराधिक वर्ग) प्रमुख हैं 

➧ यह जनजाति जड़ी-बूटी के अच्छे जानकार होते हैं 

➧ इस जनजाति के लोग संगीत प्रेमी होते हैं तथा संगीत से जुड़ा हुआ पेशा भी अपनाते हैं 

➧ धार्मिक व्यवस्था 

➧ इनकी प्रमुख देवी बंजारी देवी है

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Kishan Janjati Ka Samanya Parichay (किसान जनजाति का सामान्य परिचय)

Kishan Janjati Ka Samanya Parichay

➧ किसान जनजाति सदनों की एक जनजाति है जिन्हें नगेश्वर/नगेशिया भी कहा जाता है 

➧ यह जनजाति स्वयं को नागवंश का वंशज मानती है 

किसान जनजाति का सामान्य परिचय

 
➧ डाल्टन ने इन्हें पांडवों का वंशज बताया है 

➧ इस जनजाति का संबंध द्रविड़ समूह से है

 इस जनजाति की भाषा मुंडारी (ऑस्ट्रो-एशियाटिक) है 

➧ इनका संकेंद्रण मुख्यत: पलामू, लातेहार, गढ़वा, लोहरदगा, गुमला और सिमडेगा जिले में है में है

➧ समाज एवं संस्कृति

➧ विवाह की दृष्टि से इस जनजाति को 2 वर्ग हैं:- सिंदुरिया तथा तेलिया 

➧ सिंदुरिया लोगों का विवाह सिंदूरदान से होता है जबकि तेलिया लोगों के विवाह में तेल का प्रयोग करते हैं 

➧ इस जनजाति में परीक्षा विवाह का प्रचलन है

➧ इस जनजाति में वधू मूल्य को 'डाली' कहा जाता है

 इनका प्रमुख त्योहार सोहराई, सरहुल, कर्मा, नवाखानी, जितिया, फगुन, दीपावली आदि है 

➧ आर्थिक व्यवस्था 

➧ इस जनजाति के लोगों का प्रमुख पेशा कृषि कार्य तथा लकड़ी काटना है

➧ धार्मिक व्यवस्था 

➧ इनके सर्व प्रमुख देवता सिंगबोंगा है

 इनका धार्मिक प्रधान वेगा कहलाता है

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Karmali Janjati Ka Samanya Parichay (करमाली जनजाति का सामान्य परिचय)

Karmali Janjati Ka Samanya Parichay 

➧ यह जनजाति झारखंड के सदन समुदाय की जनजाति है। 

➧ इस जनजाति का संबंध प्रोटो-ऑस्ट्रोलॉयड समूह से है। 

 इस जनजाति की मातृभाषा खोरठा है तथा बोलचाल हेतु करमाली भाषा (आस्ट्रो-एशियाटिक भाषा परिवार से संबंधित) का प्रयोग किया जाता है

करमाली जनजाति का सामान्य परिचय

➧ झारखंड में इनका मुख्यतः हजारीबाग, चतरा, कोडरमा, गिरिडीह, रांची, सिंहभूम और संथाल परगना में पाया जाता है

 समाज एवं संस्कृति 

 इस जनजाति के नातेदारी व्यवस्था हिंदू समाज के समान है

➧ यह जनजाति सात गोत्रों (कछुवार, कैथवार, संठवार, खालखोलहार , करहर , तिर्की और सोना) में विभाजित है

➧ इस जनजाति में आयोजित विवाह, विनिमय विवाह, राजी-खुशी विवाह, ढुकु विवाह आदि अत्यंत प्रचलित है

➧ इस जनजाति में वधू मूल्य को 'पोन' या 'हड़ुआ' कहा जाता है 

➧ इनके पंचायत के प्रमुख को मालिक कहा जाता है

 इस जनजाति में टुसु पर्व (अन्य नाम-मीठा परब या बड़का परब) प्रमुखता से मनाया जाता है इसके अतिरिक्त ये सरहुल, करमा, सोहराई, नवाखानी आदि पर्व मनाते हैं

➧ आर्थिक व्यवस्था

➧ ये एक दस्तकार या शिल्पकार जनजाति हैं तथा इनका परंपरागत पेशा लोहा गलाना और औजार बनाना है

 ➧अस्त्र -शस्त्र  के निर्माण में यह जनजाति अत्यंत दक्ष होती है 

धार्मिक व्यवस्था

➧ इनके प्रमुख देवता सिंगबोंगा है 

➧ इनके पुजारी को पाहन या नाया कहा जाता है 

➧ इस जनजाति में ओझा भी पाया जाता है जिसके पवित्र स्थान को देउकरी कहा जाता है

➧ इस जनजाति के लोग दामोदर नदी को अत्यंत पवित्र मानते हैं

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Friday, May 21, 2021

Lohra Janjati Ka Samanya Parichay (लोहरा जनजाति का सामान्य परिचय)

Lohra Janjati Ka Samanya Parichay

➧ इस जनजाति के प्रजाति प्रोटो-ऑस्ट्रोलॉयड है 

➧ ये असुर के वंशज माने जाते हैं

 झारखंड में इस जनजाति का निवास रांची, गुमला, सिमडेगा, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम, सरायकेला- खरसावां,, पलामू , और संथाल परगना क्षेत्र में है 

➧ इनकी भाषा सदानी है 

लोहरा जनजाति का सामान्य परिचय

➧ समाज और संस्कृति

➧ इस जनजाति के सात गोत्र (सोन , साठ ,  तुतली , तिर्की , धान , मगहिया, एवं कछुआ) है 

➧ इनकी सामाजिक व्यवस्था पितृसत्तात्मक तथा पितृवंशीय है 

➧ इनका  प्रमुख पेशा लौह उपकरण बनाना है  

इनके प्रमुख त्योहार विश्वकर्मा पूजा, सोहराय, फगुआ आदि हैं

➧ आर्थिक व्यवस्था 

➧ इनका प्रमुख पैशा लौह उपकरण बनाना है। यह मुख्यत: कृषि संबंधी उपकरण बनाते हैं

➧ धार्मिक व्यवस्था 

➧ इनके प्रमुख देवता सिंगबोंगा तथा धरती माय हैं 

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