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Friday, May 21, 2021

Ho Janjati Ka Samanya Parichay (हो जनजाति का सामान्य परिचय)

Ho Janjati Ka Samanya Parichay

➧ जनसंख्या की दृष्टि से हो जनजाति झारखंड की चौथी सबसे बड़ी जनजाति है, जो प्रोटो-आस्ट्रोलॉयड श्रेणी से संबंधित है 

➧ इनकी भाषा 'हो' है जिसकी लिपि वारंग क्षिति है

➧ इनका निवास स्थान मुख्यत: पूर्वी एवं पश्चिमी सिंहभूम तथा सरायकेला-खरसावां है 

हो जनजाति का सामान्य परिचय

➧ राजनीतिक दृष्टिकोण से

(i) हो जनजाति मुंडा ओं से प्रभावित है प्रशासनिक व्यवस्था के तहत ग्राम प्रधान को मुंडा एवं मुंडा के सहायक को डाकुआ कहते हैं 

(ii) फिर 7-12 गांवों का एक समूह बनता है, जिसे पीर या परहा कहते हैं, जिसका प्रमुख मानकी होता है, अर्थात यह मुंडा-मानकी शासन व्यवस्था का ही रूप है

 सामाजिक दृष्टिकोण से

(i) हो जनजाति 80 से अधिक गोत्र में विभाजित है, जिसमें बोदरा, बारला, बालमुचु , हेम्ब्रम,अंगारिया मुख्य है

(ii) आरंभ में यह जनजाति मातृसतात्मक था, परंतु धीरे-धीरे इसका रूपांतरण पितृसतात्मक में हुआ है 

(iii) संगोत्रीय विवाह निषेध है, परंतु बहुविवाह का प्रचलन है। ममेरे  भाई तथा बहन की शादी को प्राथमिकता दी जाती है

(iv) हो जनजाति में पांच प्रकार के विवाह का प्रचलन है, जिसमें सबसे अधिक प्रचलित विवाह आंदि विवाह है, जिसमें वर विवाह का प्रस्ताव लेकर वधू के घर जाता है 

अन्य विवाह निम्न है

दिकू आंदि        :  गैर जनजातिय परंपरा के साथ विवाह

अंडी/ओपोर्तिपि : कन्या का हरण कर विवाह 

राजी-खुशी विवाह : प्रेम विवाह

आंदेर विवाह         : वधू द्वारा वर के यहां बलपूर्वक रहना, जब तक शादी ना हो जाए

(iv) इनका युवागृह  गीतिओड़ा कहलाता है, जहां अस्त्र-शस्त्र वाद्य यंत्र भी रखा जाता है 

आर्थिक दृष्टिकोण से

हो जनजाति का प्रमुख पैसा कृषि है

इली इनका प्रमुख पेय पदार्थ है, जिससे देवी-देवताओं पर भी चढ़ाया जाता है

ये अपनी भूमियों को तीन श्रेणी में बाँटते हैं

बेड़ो   :  अधिक उपजाऊ भूमि 

वादी  :  धान खेती के लिए उपयुक्त 

गोडा  :  मोटे अनाज के लिए उपयुक्त 

➧ धार्मिक दृष्टिकोण से

(i) हो जनजाति के सर्वप्रमुख देवता सिंगबोंगा है, परंतु साथ ही कई अन्य देवताओं का भी प्रचलन है जैसे:-

पाहुई बोंगा  :  ग्राम देवता

ओरी बोड़ोम :  पृथ्वी देवता 

मरांग बुरु    :  पहाड़ देवता

देशाउली बोंगा  :  वर्षा देवता 

(ii) हो जनजाति के लोग 'सूर्य, चंद्रमा, नदी, दुर्गा, काली, हनुमान' के भी उपासक होते हैं भूत-प्रेत, जादू-टोना में विश्वास करते हैं

(iii) देउरी नामक पुरोहित इनका धार्मिक अनुष्ठान संपन्न कराता है

सांस्कृतिक दृष्टिकोण से 

(i) इनके गांवों के बीच एक अखाड़ा होता है जिसे स्टे:तुरतुड कहते हैं। यहां नाच, गान, मनोरंजन, प्रशिक्षण की व्यवस्था होती है

(ii) इनके घर के एक कोने में आंदि स्थल होता है, जो पूर्वजों का पवित्र स्थान माना जाता है

(iii) इस जनजाति के लोगों को सामान्यत: मूंछ-दाढ़ी नहीं होती है

(iv) इस जनजाति का सबसे प्रमुख त्यौहार माघे हैं इसके अलावे 'बाहा, हेरो, बताउली, दमुराई, जोमनाया, कोलोभ प्रमुख पर्व है

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Thursday, May 20, 2021

Munda Janjati Ka Samanya Parichay (मुंडा जनजाति का सामान्य परिचय)

Munda Janjati Ka Samanya Parichay

➧ यह झारखंड की तीसरी सबसे बड़ी जनजाति है तथा कुल जनजातीय आबादी में इसका प्रतिशत 14 पॉइंट 56 है 

➧ मुंडा का मूल निवास स्थान तिब्बत बताया जाता है तथा इनका फैलाव संपूर्ण झारखंड में है

➧ मुंडा एक ऐसी जनजाति है, जो केवल झारखंड में ही निवास करती है 

➧ झारखंड में इसका मुख्य संकेन्द्रण रांची, गुमला, सिमडेगा, पश्चिमी सिंहभूम एवं सरायकेला-खरसावां में है 

➧ मुंडा जनजाति प्रोटो-आस्ट्रोलॉयड प्रजाति से संबंधित है, जिसे कोलेरियन समूह में रखा जाता है

➧ मुंडा जनजाति को कोल भी कहा जाता है ये अपनी जाति को होड़ो तथा स्वयं को होड़ोको कहते हैं

➧ इनकी भाषा मुंडारी है

मुंडा जनजाति का सामान्य परिचय

➧ राजनीतिक दृष्टिकोण से

(i) मुंडा का प्रशासनिक व्यवस्था मुंडा-मानकी व्यवस्था कहलाती है, जिसमें ग्राम प्रमुख को मुंडा, ग्राम पंचायत प्रमुख को हेतु मुंडा एवं कई गांवों को मिलाकर बनाई गयी पड़हा पंचायत के प्रमुख को मानकी कहते हैं। मुंडा एवं मानकी का पद वंशानुगत होता है

(ii) मुण्डाओं ने ही सबसे पहले राज्य गठन की प्रक्रिया आरंभ की थी तथा इनका प्रथम प्रशासनिक केंद्र सुतयाम्बे में स्थापित हुआ था

➧ सामाजिक दृष्टिकोण से

(i) मुंडा जनजाति 13 उपशाखा में बँटी है, जिसमें रिजले के अनुसार 340 गोत्र हैं

(ii) यह जनजाति माहली मुंडा एवं कपाट मुंडा नामक शाखा में विभक्त है 

(iii) एकल परिवार की अवधारणा है, जो पितृसतात्मक एवं पितृवंशीय होता है 

(iv) इस जनजाति में गोत्र को किली कहते हैं 

(v) समगोत्रीय विवाह वर्जित है 

(vi) पुरुषों द्वारा धारण किए गए वस्त्र को करेया तथा महिला वस्त्र को कोरेया कहते हैं

(vii) मुंडाओ के युवागृह को गितीओंड़ा कहते हैं जबकि वंशकुल -खूँट कहलाता है

(viii) मुंडा जनजाति के विवाह को अरंडी कहते हैं तथा सर्वाधिक प्रचलित विवाह आयोजित विवाह है। विवाह के अन्य रूप निम्न है:- 

1- राजी-खुशी विवाह 
2- हरण विवाह 
3- सेवा विवाह 
4- हठ विवाह 

(vii) सगाई विधवा विवाह को कहते हैं, जबकि तलाक को सकामचारी कहा जाता है

(viii) यदि स्त्री तलाक देती है तो उसे वधू मूल्य लौटाना होता है, जिसे गोनोंग टका कहते हैं

(ix) मुंडा समाज में कर्णछेदन संस्कार को तुकुईलूतूर कहते हैं मुंडा जनजाति के प्रसिद्ध लोक कथा सोसो बोंगा है

➧ धार्मिक दृष्टिकोण से 

(i) मुंडा जाति के सर्वोच्च देवता सिंगबोंगा है इनके अलावा निम्न देवताओं की महत्ता है:-

हातुबोंगा       :  ग्राम देवता 

ओड़ा बोंगा    : कुल देवता

इकिर बोंगा   : पहाड़  देवता 

देशाउली       : गांव की सर्वोच्च देवी

(ii) मुंडा जनजाति में 

पूजा स्थल को           : सरना 

धार्मिक स्थल को       : पाहन 

पाहन के सहयोगी को : पनभरा 

ग्रामीण पुजारी को      : डेहरी कहते हैं 

(iii) तंत्र-मंत्र विद्या का प्रमुख तथा झाड़-फूंक करने वाले को देवड़ा कहा जाता है 

(iv) इस जनजाति में शव के साथ दफनाने की प्रथा ज्यादा प्रचलित है, हालांकि दाह-संस्कार भी किया जाता है दफन स्थल को सासन कहते हैं, जबकि सासन में निर्मित पूर्वज का शिलाखंड सासनदीरीया हड़गड़ी कहलाता है

➧ आर्थिक दृष्टिकोण से

(i) मुंडा की आर्थिक व्यवस्था कृषि एवं पशुपालन निर्भर है

(ii) आर्थिक उपयोगिता के आधार पर भूमि को तीन श्रेणियों में बांटते हैं

पंकु        :   सबसे उपजाऊ भूमि 

नागरा     :  औसत उपजाऊ भूमि

खिरसी    :  बालूयुक्त भूमि  

(iii) मुण्डाओं द्वारा निर्मिट भूमि को खुंटकट्टी भूमि कहा जाता है ,जिसमें खूंट का आशय परिवार होता है 

➧ सांस्कृतिक दृष्टिकोण से

(i) मुंडा जनजाति के सभी अनुष्ठानों में हड़िया  एवं रान का प्रयोग करते हैं 

(ii) पशु पूजा के लिए सोहराय पर्व मनाया जाता है 

(iii) मुंडा जनजाति का सबसे प्रमुख त्योहार सरहुल, करमा एवं सोहराय हैं  सरहुल को बा परब के नाम से भी जाना जाता है

(iv) यह जनजाति के द्वारा मनाया जाने वाला बतौली पर्व को छोटा सरहुल तथा रोआपुना को धानबुनी पर्व भी कहा जाता है

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Santhal Janjati Ka Samanya Parichay (संथाल जनजाति का सामान्य परिचय)

Santhal Janjati Ka Samanya Parichay

➧ यह झारखंड में सर्वाधिक जनसंख्या वाली जनजाति है तथा भारत की तीसरी सबसे बड़ी जनजाति है (स्मरण रहे कि आबादी की दृष्टि से प्रथम स्थान गौड़ और दूसरा स्थान भील जनजाति का भारत में है)

➧ राज्य की कुल जनजाति आबादी में संथाल आबादी का हिस्सा 35% है 

➧ संथाल जनजाति का निवास क्षेत्र संथाल परगना कहलाता है 

 प्रजातीय और भाषायी  दृष्टि से संथाल जनजाति ऑस्ट्रो एशियाटिक समूह से साम्यता रखती है

संथाल जनजाति का सामान्य परिचय

➧ इस जनजाति की प्रजाति प्रोटो-आस्ट्रोलॉयड है

➧ इसमें बी ब्लड ग्रुप की बहुलता है

➧ झारखंड में संथालों  का विस्तार संथाल परगना के अलावे हजारीबाग, बोकारो , चतरा , रांची, गिरिडीह, सिंह भूम, धनबाद, लातेहार और पलामू क्षेत्र  में भी यह जनजाति पाई जाती है 

➧ राजमहल पहाड़ी क्षेत्र में इनके निवास स्थान को दामिन-ए-कोह कहा जाता है 

➧ लुगू बुरु को संथालों का संस्थापक पिता माना जाता है

➧ राजनीतिक दृष्टिकोण से

(i) संथाल की राजनीतिक माँझी-परगनैत व्यवस्था कहलाती है। ग्राम पंचायत का मुखिया मांझी कहलाता है

(ii) जबकि 15-20 गांवों को मिलाकर एक परगना बनता है जिसका प्रधान परगनैत कहलाता है यह गांवों  के बीच विवाद का निपटारा करता है परगनैत  का प्रमुख दिशुम कहा जाता है

➧ सामाजिक दृष्टिकोण से 

(i) यह जनजाति 12 गोत्र में विभाजित है, जिसमें सोरेन , हांसदा, मुर्मू , हेम्ब्रम, किस्कू , मरांडी, बास्के, टुडू, पवरिया, बेसरा, चौड़े और बेदिया हैं। 

➧ संथाल समाज चार हड़ (वर्ग) में विभाजित है जैसे :-

1. किस्कू हड़ (राजा)
2. मुर्मू हड़ (पुजारी)
3. सोरेन हड़ (सिपाही)
4. मरांडी हड़ (किसान) 

(ii) संथाल  जनजाति में विवाह एक प्रमुख संस्कार है जिसके तहत:-

(a) अंतर्विवाह होता है
(b) समगोत्र विवाह वर्जित है
(c) बाल विवाह नहीं होता है
(d) विधवा विवाह प्रचलित है
(e) तलाक प्रथा मौजूद है 

विवाह के 8 प्रकार हैं 

(i) किरिंग बापला : यह सर्वाधिक प्रचलित विवाह है, जो अगुआ के माध्यम से माता-पिता कराते हैं 
(ii) सदाई बापला :  क्रय विवाह 
(iii) गोलाइटी बापला  : विनिमय विवाह 
(iv) सांगा बापला  : विधवा विवाह 
(v) जवाई विवाह  :  सेवा विवाह 
(vi) निर्बोलोक विवाह  : हठ विवाह 
(vii) इतुत बापला :प्रेम विवाह
(viii) टुनकी दीपिल बापला  : कन्या को वर के घर लाकर सिंदूर दान करके विवाह     

(iii) संथालों में विवाह के समय वर पक्ष द्वारा वधू पक्ष को वधू मूल्य दिया जाता है, जिसे पोन कहते हैं  

(iv) संथाल समाज में सबसे कठोर दंड बिटलाहा अर्थात व सामाजिक बहिष्कार है, यह सजा निषेध यौन संबंध स्थापित करने पर दिया जाता है 

(v) संथालों के युवागृह पद्दति को घोटूल कहते हैं घोटूल का संचालक जोगमाँझी होता है 

➧ आर्थिक दृष्टिकोण से 

(i) संथाल मूलतः कृषक है, परंतु बुनाई कार्य में भी इन्हें दक्ष हासिल है

(ii) इनका प्रमुख पेय पदार्थ चावल से निर्मित हड़िया है

➧ सांस्कृतिक दृष्टिकोण से 

(i) संथालों का सबसे प्रमुख त्यौहार सोहराई है, साथ ही करमा, सोहराई, एरोक, हरियाड़, बाहा/बा, वंदना भी इनके प्रमुख त्यौहार है सोहराय पर्व फसल कटाई के अवसर पर एवं एरोक बीज बुआई के अवसर पर मनाया जाता है

(ii) संथालों का सबसे मशहूर चित्रकला जादूपाटिया है 

(iii) संथालों की भाषा संथाली है, उनकी भाषा लिपि ओलचिकी में लिखी जाती है, जिसका आविष्कार 1941 ईस्वी में रघुनाथ मुर्मू ने किया था 

(iv) 92वाँ संविधान संशोधन 2003 के तहत संविधान के आठवीं अनुसूची में संथाली भाषा को शामिल किया गया है और यह झारखंड में शामिल होने वाली एकमात्र जनजातीय भाषा है

➧ धार्मिक दृष्टिकोण के

(i) संथालों के मुख्य देवता सिंगबोंगा /ठाकुर है , जिन्हें सृष्टि का रचयिता माना जाता है दूसरा स्थल मरांग बुरु को प्राप्त है, जबकि ओडांग बोंगा गृह देवता के रूप में स्थापित है 

(ii) इनके धार्मिक पुजारी को नायके कहा जाता है

(iii) इनमें शव को दफनाने और जलाने दोनों प्रथा प्रचलित है

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Wednesday, May 19, 2021

Oraon Janjati Ka Samanya Parichay (उरांव जनजाति का सामान्य परिचय)

Oraon Janjati Ka Samanya Parichay

➧ यह झारखंड की दूसरी तथा भारत की चौथी सबसे बड़ी जनजाति है  झारखंड के जनजातीय आबादी में इसका प्रतिशत 18 प्वाइंट्स 14% है 

➧ इसका निवास स्थान छोटा नागपुर पठार है, जहां 90% आबादी निवास करती हैं

उरांव जनजाति का सामान्य परिचय

➧ इस जनजाति का मूल निवास स्थान महाराष्ट्र का कोंकण क्षेत्र है तथा यह बख्तियार रुद्दीन खिलजी के आक्रमण के साथ झारखंड में प्रवेश किया 

➧ इस जनजाति की भाषा कुड़ुख है, जिसका शाब्दिक अर्थ 'मनुष्य' होता है

➧ प्रजातिय दृष्टिकोण से यह जनजातीय द्रविड़ है, जिसमें बी. रक्त समूह की प्रधानता है 

➧ 1915 में शरदचंद्र राय 'द उरांव ऑफ छोटा नागपुर' नामक पुस्तक लिखी, जो इस जनजाति से जुड़ा प्रमुख पुस्तक है 

➧ राजनीतिक दृष्टि से 

➧ उरांव जनजाति की प्रशासनिक व्यवस्था पड़हा पंचायत कहलाती है।  जिसमे :-

(i) ग्राम प्रमुख   :  महतो 

(ii) महतो के सहयोगी को  :  मांझी और 

(iii) सर्वोच्च राजा को  :  पड़हा दीवान कहते हैं

➧ सामाजिक दृष्टिकोण से 

(i) उरांव जनजाति के में 14 गोत्र हैं, जिन्हें किली  कहा जाता है 

(ii) गोदना प्रथा का विशिष्ट महत्व है 

(iii) बंदर का मांस खाना वर्जित है 

(iv)  एकल परिवार की मजबूत अवधारणा है जो पितृवंशीय है

(v) पर्व त्योहार के अवसर पर पुरुष केरेया एवं महिला खनारिया वस्त्र पहनते हैं 

(vi) संगोत्र विवाह वर्जित है  

(vii) सर्वाधिक प्रचलित विवाह आयोजित विवाह है, जिसमें वर पक्ष को वधू मूल्य देना पड़ता है  

 युवागृह धुमकुड़िया का स्वरूप

(i) धुमकुड़िया में सरहुल के अवसर पर 3 वर्ष में एक बार 10 से 11 वर्ष की आयु के बच्चों को प्रवेश मिलता है, जिसका उद्देश्य युवा-युवतियों को जनजातीय परंपरा का प्रशिक्षण देना है  

(ii) युवकों को रहने के लिए बना युवागृह जोग ऐड़पा एवं युवतियों के लिए बना युवागृह पेल ऐड़पा कहलाता है 

(iii) जोग ऐड़पा का मुख्य धांगर होता है, जबकि पेल ऐड़पा का मुखिया बड़की धांगरिन कहलाती है 

➧ आर्थिक दृष्टिकोण से 

(i) यह जनजाति कृषि कार्य पर निर्भर करती है तथा इसका भोजन चावल, जंगली पक्षी एवं फल है  

(ii) झारखंड में सर्वाधिक विकास उरांव जनजाति का ही हुआ है 

➧ धार्मिक दृष्टिकोण से

(i) उराँवो के प्रमुख देवता निम्न है:- 

1. सर्वोच्च देवता  :  धर्मेश (सूर्य )

2. ग्राम देवता      :  ठाकुर देवता 

3. सीमांत देवता  : डिहवार 

4. पहाड़ देवता     : मरांग बुरु 

5. कुल देवता       :  पूर्वाजात्मा 

6. गांव के धार्मिक प्रमुख को : पाहन 

7. पाहन के सहयोगी (ओझा-गुनी) : बैगा कहलाता है 

(ii) उरांव समुदाय के लोग फसल की रक्षा के लिए भेलवा पूजा तथा गांव की सुरक्षा के लिए गोरेया पूजा करते हैं

(iii) उरांव में मुख्य पूजा स्थल को सरना एवं पूर्वजों की आत्मा का निवास स्थान सासन कहलाता है। उरांव तंत्र-मंत्र विद्या में विश्वास करते हैं तथा इसमें बैगा की मुख्य भूमिका होती है 

(iv) उरांवों में सरना संस्कृतिक वाले शव का दाह संस्कार करते हैं, जबकि इसाई धर्म मानने वालों को दफनाया जाता है

➧ सांस्कृतिक दृष्टिकोण से

(i) इस जनजाति का मुख्य त्यौहार करमा एवं सरहुल है

(ii) इनका प्रमुख नृत्य यदुर है

(iii) इनका नित्य स्थान आखड़ा कहलाता है 

(iv) इनके नववर्ष का आरंभ नवम्बर-दिसम्बर धान की कटाई के बाद होता है

(v) उरांव गांवों को भुईहर कहते हैं 

(vi) उरांवों  की सबसे बड़ी पंचायत पड़हा कहलाती है

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Tuesday, May 18, 2021

Jharkhand Ki Janjatiya (झारखंड की जनजातियां)

Jharkhand Ki Janjatiya

➧ झारखंड में जनजातियों का अधिवास पुरापाषाण काल से ही रहा है

➧ विभिन्न पौराणिक ग्रंथों में भी जनजातियों की चर्चा मिलती है

➧ झारखंड की जनजातियों को वनवासी, आदिवासी, आदिम जाति एवं गिरिजन जैसे शब्दों से पुकारा जाता है 

➧ आदिवासी शब्द का शाब्दिक अर्थ 'आदि काल से रहने वाले लोग' हैं 

झारखंड की जनजातियां

➧ भारतीय संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत भारत के राष्ट्रपति द्वारा जनजातियों को अधिसूचित किया जाता है

➧ झारखंड राज्य में कुल 32 जनजातियां निवास करती हैं जिसमें सबसे अधिक जनसंख्या वाली जनजातियां क्रमश: संथाल, उरांव, मुंडा और हो हैं  

➧ झारखंड में 24 जनजातियां प्रमुख श्रेणी में आते हैं शेष 8 जनजातियों को आदिम जनजाति की श्रेणी में रखा गया है जिसमें बिरहोर, कोरवा, असुर, पहरिया, माल पहाड़िया, सौरिया पहाड़िया, बिरजिया तथा सबर शामिल हैं 

➧ आदिम जनजातियों की अर्थव्यवस्था कृषि पूर्वकालीन है तथा इसका जीवन-यापन आखेट, शिकार और झूम कृषि पर आधारित है

➧ झारखंड में खड़िया और बिरहोर जनजाति का आगमन कैमूर पहाड़ियों की तरफ से माना जाता है

➧ मुंडा जनजाति के बारे में मान्यता है कि इस जनजाति ने रोहतास क्षेत्र से होकर छोटानागपुर क्षेत्र में प्रवेश किया

➧ झारखंड में नागवंश की स्थापना में मुंडा जनजाति का अहम योगदान रहा है

➧ उराँव जनजाति दक्षिण भारत के निवासी थे जो विभिन्न स्थानों से होकर छोटानागपुर प्रदेश में आए। इनकी एक शाखा राजमहल क्षेत्र में जबकि दूसरी शाखा पलामू क्षेत्र में बस गयी 

➧ झारखंड राज्य की जनजातियां श्रीलंका की बेड्डा तथा आस्ट्रेलिया के मूल निवासियों से साम्यता रखते हैं

➧ झारखंड के आदिवासी प्रोटो-आस्ट्रोलॉयड प्रजाति से संबंध रखते हैं 

➧ जॉर्ज ग्रियर्सन (भाषा वैज्ञानिक) ने झारखंड क्षेत्र की जनजातियों को ऑस्ट्रिक एवं द्रविड़ दो समूह में विभाजित किया है

➧ भाषायी आधार पर झारखंड की अधिकांश जनजातियां ऑस्ट्रो-एशियाटिक भाषा परिवार तथा द्रविड़ियन/द्रविड़ भाषा परिवार से संबंधित है ऑस्ट्रो-एशियाटिक भाषा परिवार का संबंध आस्ट्रिक महाभाषा परिवार से है

➧ आस्ट्रिक महाभाषा परिवार के अंतर्गत ऑस्ट्रो-एशियाटिक भाषा परिवार के अलावा स्ट्रोनिशियन भाषा परिवार (दक्षिण-पूर्व एशिया) शामिल है

➧ द्रविड़ भाषा परिवार बोलने वाली अधिक जनसंख्या दक्षिण एशिया में निवास करती हैं

➧ भाषायी विविधता के आधार पर उरांव जनजाति का संबंध 'कुड़ुख' भाषा से है, जबकि माल पहाड़िया एवं सौरिया पहाड़िया जनजाति 'मालतो भाषा' (द्रविड़ समूह की भाषा) से संबंधित है। शेष जनजातियों का संबंध ऑस्ट्रिक भाषा समूह से है

➧ 2011 की जनगणना के अनुसार झारखंड में जनजातियों की कुल जनसंख्या का 26.2% है

➧ झारखंड की कुल जनजातीय आबादी को लगभग 91% ग्रामीण क्षेत्र में तथा 9% शहरी क्षेत्र में निवास करती हैं

➧ झारखंड का जनजातीय समाज मुख्यत: पितृसत्तात्मक है

➧ झारखंड की जनजातियों में प्रया: एकल परिवार की व्यवस्था पाई जाती है

➧ झारखंड के जनजातीय समाज में लिंग भेद की इजाजत नहीं होती है

➧ यहां की जनजातियों में विभिन्न गोत्र पाए जाते हैं गोत्र को किली, कुंदा, पारी आदि नामों से जाना जाता है

➧ जनजातियों के प्रत्येक गोत्र का एक प्रतीक/ गोत्रचिन्ह होता है, जिससे टोटम कहा जाता है

➧ प्रत्येक गोत्र से एक प्रतीक/गोत्रचिन्ह (प्राणी, वृक्ष या पदार्थ) संबंधित होता है, जिसे हानि पहुंचाना या इसका प्रयोग सामाजिक नियमों द्वारा वर्जित होता है 

➧ जनजातियों के प्रत्येक गोत्र अपने-आप को एक विशिष्ट पूर्वज की संतान मानते हैं

➧ पहाड़िया जनजाति में गोत्र की व्यवस्था नहीं पाई जाती है

➧ जनजातियों में समगोत्रीय में विवाह निषिद्ध होता है

➧ विवाह पूर्व सगाई की रस्म केवल बंजारा जनजाति में ही प्रचलित है

➧ सभी जनजातियों में वैवाहिक रस्म-रिवाज में सिंदूर लगाने की प्रथा है केवल खोंड जनजाति में जयमाला की प्रथा प्रचलित है

➧ जनजातियों में विवाद संबंधी कर्मकांड पुजारी द्वारा संपन्न कराया जाता है जिन्हें पाहन, देउरी आदि कहा जाता है कुछ जनजातियों में ब्राह्मण द्वारा भी संपन्न कराया जाता है

➧ झारखण्ड की जनजातियों में सामान्यतः बाल विवाह की प्रथा नहीं पाई जाती है

➧झारखण्ड की जनजातियों में प्रचलित प्रमुख विवाह इस प्रकार हैं 

क्रय विवाह : संथाल, उरांव, हो, खड़िया, बिरहोर, कवर 

सेवा विवाहसंथाल, उरांव, मुंडा , बिरहोर, कवर, भूमिज 

विनिमय विवाह : झारखण्ड की लगभग सभी जनजातियों में प्रचलित है 

हठ विवाह  : संथाल, हो , मुंडा , बिरहोर

हरण विवाह : उरांव, हो, खड़िया, बिरहोर, भूमिज, मुंडा , सौरिया पहाड़िया।

सह-पलायन विवाह: मुंडा , खड़िया, बिरहोर।  

विधवा विवाह : संथाल, उरांव, मुंडा , बिरहोर, बंजारा। 

➧ झारखंड की जनजाति में पाए जाने वाले कुछ प्रमुख संस्थाएं अखड़ा (पंचायत स्थल/नृत्य का मैदान), सरना (पूजा स्थल) एवं युवागृह (शिक्षण-प्रशिक्षण हेतु संस्था) आदि है 

➧ ताना भगत तथा साफाहोड़ (सिंगबोंगा के प्रति निष्ठा रखने वाले) समूहों को छोड़कर शेष जनजातीय  समाज प्राय: मांसाहारी होते हैं

➧ जनजातियों का प्राचीन धर्म सरना है जिसमें प्रकृति पूजा की जाती है

➧ जनजातियों के पर्व-त्यौहार सामान्यत: कृषि एवं प्रकृति से संबंधित होते हैं 

➧ झारखंड की अधिकांश जनजातियों के प्रमुख देवता सूर्य हैं। जिन्हें विभिन्न जनजातियों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है

➧ जनजातीय समाज में मृत्यु के बाद शवों को जलाने तथा दफनाने दोनों की प्रथा प्रचलित है इसाई, उरांव  में शवों को अनिवार्यता: दफनाया जाता है

➧ झारखण्ड की जनजातियों का प्रमुख आर्थिक क्रियाकलाप कृषि कार्य है इसके अतिरिक्त जीविकोपार्जन हेतु पशुपालन, पशुओं का शिकार, वनोत्पादों का संग्रह, शिल्पकारी कार्य व मजदूरी जैसी गतिविधियां भी अपनाते हैं 

➧ वस्तुओं और सेवाओं की खरीद-बिक्री हेतु यहां की जनजातियों में हाट का महत्वपूर्ण स्थान है

➧ राज्य की तुरी जनजाति एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते हैं तथा उस घर में पहुंचते हैं जहां हाल ही में किसी व्यक्ति की मृत्यु हुई हो या एक शिशु का जन्म हुआ हो

➧ यह जनजाति अपने घरों की नर्म, गीली मिट्टी को पेंट करने के लिए अपनी उंगलियों का प्रयोग करती हैं ये अपने घरों की सजावट पौधों और पशु प्रजनन स्वरूपों में करते हैं

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Monday, May 17, 2021

Breast Cancer (BRCA1) gene binding partner- CSIR/ ICMR/ DBT (Life Sciences)

Breast Cancer (BRCA1) Gene Binding Partner

1.) MDC1- Gene

Protein: Mediator of DNA-damage Checkpoint protein1

Function:

  • It is required for checkpoint-mediated cell cycle arrest in response to DNA damage within both the S-phase and G2/M phases of the cell cycle.
  • It serves as a scaffold for the recruitment of DNA repair and signal-transduction proteins to discrete foci of DNA damage marked by 'Ser-139' phosphorylation of histone H2AX. 
  • It helps in phosphorylation and activation of the ATM, CHEK1, CHEK2 kinases, and stabilization of TP53 and apoptosis. ATM and CHEK2 may also be activated independently by a parallel pathway mediated by TP53BP1.

2.) BAP1

Protein: Ubiquitin carboxyl-terminal hydrolase.

Function:

  • It helps regulates the function of many proteins involved in diverse cellular processes, control cell growth and division (proliferation), and cell death.
  • It helps repair damaged DNA, control the activity of genes, and act as tumor suppressor genes.

3.) BARD1

Protein: BARC1 Associated RING Domain 1

Function:

  • E3 ubiquitin-protein ligase. 
  • BARC1-BARD1 heterodimer specifically mediates the formation of 'Lys-6'- polyubiquitin chains.
  • It coordinates a diverse cleavage range of cellular pathways such as DNA damage repair, ubiquitination, and transcriptional regulation to maintain genomic stability. 
  • It acts by mediating ubiquitin E3 ligase activity that is required for its tumor suppressor function. 
  • It forms a heterodimer with CSTF1/CSTF-50 to modulate mRNA processing and RNAP II stability by inhibiting pre-mRNA 3' cleavage.


4.) CsTF

Protein: Cleavage Stimulation Factor.

Function:

  • It is recruited by Cleavage & Polyadenylation Specificity Factor (CPSF).
  • It assembles into protein complex on the 3' end to promote the synthesis of functional polyadenine tail, which results in mature mRNA molecule ready to be exported from nucleus to cytosol for the translation process.

 

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Sunday, May 16, 2021

Blue-White Screening Mechanism - CSIR/ ICMR/ DBT (Life Sciences)

Blue-White Screening Mechanism

  • It is a rapid and efficient technique for the identification and recombinant bacteria.
  • It relies on the activity of β- galactosidase ( β- gal) an enzyme that occurs in E. coli which cleaves lactose into glucose and galactose.
Schematic representation of typical plasmid vector that can be used for blue-white screening.

Fig: Schematic representation of typical plasmid vector that can be used for blue-white screening.


LacZ gene & their Disruption:

  • It also called the heart of the Blue/white selection and is allows the selection of insert DNA fragment into the vector.

  • It has been engineered to contain multiple cloning sites (MCS), which is an oligonucleotide sequence with a series of different restriction endonuclease recognition sites arranged in tandem in the same reading frame as the lacZ gene itself.

  • The lacZ gene codes for the β- gal enzyme, which metabolizes the β- galactosidase bond into lactose. It will also cleave the galactosidase bond in an artificial substrate called X-gal (5-Bromo-4-chloro- 3-indoyl-beta-D-galactopyranoside), which can be added to bacterial growth media and has a blue color when cleaves by intact enzymes.


  • Most plasmid vectors carry a short segment of the lacZ gene that contains coding information for the first 146-amino acids of β- galactosidase. The host E.coli strains used are competent cells containing lacZΔM15 deletion mutation. 

  • When the plasmid vector is taken up by such cells, due to the α- complementation process, a functional β- galactosidase enzyme is produced. 

  • If the fragment of DNA is cloned (inserted) into multiple cloning sites (MCS), the lacZ gene will be disrupted, inactivating it, and the resulting β- galactosidase will no longer be able to cleave X-gal, resulting in white bacterial colonies rather than blue colonies.

How does Blue/white screening work:

For screening the clones containing recombinant DNA, a chromogenic substrate, X-gal is added to the agar plate. If β- galactosidase is produced, X-gal (substrate) is produced, X-gal is hydrolyzed to form 5-Bromo-4-chloro-indoxyl, which spontaneously dimerizes to produce an insoluble blue pigment called 5,5'-dibromo-4,4'-dichloro indigo. The colonies formed by non-recombinant cells, therefore appear blue in color while the recombinant ones appear white. The desired recombinant colonies can be easily picked and cultured.

Isopropyl β-D-1- thiogalactopyranoside (IPTG) is used along with X-gal for blue-white screening. IPTG (inducer) is a non-metabolizable analog of galactose that includes the expression of the lacZ gene.

A schematic representation of a typical blue-white screening procedure

Fig: A schematic representation of a typical blue-white screening procedure


Limitations of the Blue/white screening:

  • The lacZ gene in the vector may sometimes be non-functional and may not produce β- galactosidase. The resulting colony will not be recombinant but will appear white. 
  • Even if a small sequence of foreign DNA may be inserted into MCS and change the frame of the lacZ gene. This results in false-positive white colonies.
  • Small inserts within the reading frame of lacZ may produce ambiguous light blue colonies as β- galactosidase is only partially inactivated.

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