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Wednesday, September 9, 2020

Jharkhand Ki Janjatiya Shasan Vyavastha Part-1(Jharkhand Tribal Governance)

झारखंड की जनजातीय शासन व्यवस्था PART-1

मुंडा शासन व्यवस्था


Jharkhand Ki Janjatiya Shasan Vyavastha Part-1(Jharkhand Tribal Governance)

विभिन्न शासन व्यवस्थाएं

प्रत्येक जनजाति की अपनी सामाजिक-संस्कृति विशेषताएं और प्रशासनिक व्यवस्थायें हैं 

यह व्यवस्थाएं प्राचीन काल से वर्तमान तक चली आ रही है। इनका महत्व आज भी इन क्षेत्रों में देखने को मिलता है।  

यह शासन व्यवस्थाएं निम्न प्रकार है

1.मुंडा शासन व्यवस्था

मुंडा जनजाति झारखंड में कोलेरियन समूह की एक सशक्त एवं शक्तिशाली जनजाति है।   

इससे प्रजातीय दृष्टि से प्रोटो ऑस्ट्रोलॉएड में रखा जाता है।  

इसके निवास स्थान को लेकर विद्वानों में मतभेद है।   

प्रथम विचारधारा के अनुसार इनका मूल भूमि तिब्बत को माना जाता है।  

 जबकि दूसरे विचारधारा के अनुसार भारत के दक्षिण-पश्चिमी से चलकर आर्यों के दबाव में मध्य प्रदेश आए और बाद में झारखंड के क्षेत्रों में इनका प्रवेश हुआ।   

➤तीसरे विचारधारा के अनुसार यह भारत के दक्षिण-पूर्वी भाग झारखंड में प्रवेश किए तथा असुर जनजाति को पराजित कर उनके निवास स्थल झारखंड पर अपना अधिकार स्थापित किये।  

मुंडा भाषा

मुंडा जनजाति  की अपनी भाषा है, जिससे मुंडारी कहते हैं

 यह भाषा ऑस्ट्रो-एशियाटिक भाषा परिवार के अंतर्गत आती है

➤यह जनजाति मुख्य रूप से झारखंड के रांची, खूंटी, हजारीबाग, गुमला, सिमडेगा,गिरिडीह, सिंहभूम, संथाल परगना में पाई जाती है। 

मुंडा अपनी भाषा को 'होडो जगर' कहते हैं

मुंडा गांव में तीन विशेष स्थल है

जो जनजातीय गांव की विशेषता भी मानी जा सकती है 

➤1 . यह स्थान है -  'सरना' जहां इनके ग्राम देवता निवास करते हैं

➤2 . 'अखाड़ा' जहां पंचायत की बैठक होती है और रात्रि में युवक-युवती एकत्र होकर नाचते गाते हैं

➤3.  तीसरा स्थल है 'सासन' जो समाधि स्थल होता है यहां शव को दफनाया जाता है

 समाधि स्थल पर पत्थर के शील रखे जाते हैं जिससे 'सासनदारी'  कहा जाता है 

मुंडा जनजातीय  गांव में युवागृह  को 'गीतिओढ़ा' कहा जाता है

आजीविका

झारखंड क्षेत्र में जब मुंडाओं का प्रवेश हुआ, तो वे आजीविका के लिए वनों का साफ-सुथरा कर कृषि कार्य करने लगे और स्थाई निवासी के रूप झारखण्ड में बस गये 

उनका बनाया गया खेत  खूंटकट्टी  खेत और उसका बसाया गांव खूंटकट्टी गांव कहा जाने लगा 

खेत बनाने वाला खूंटकट्टीदार कहा जाता है 

 खूंट का तात्पर्य एक परिवार से होता है 

कहा जाता है कि उस समय की प्रशासनिक व्यवस्था खूंटकट्टीदार व्यवस्था थी

इस व्यवस्था में प्रत्येक परिवार अपने जंगल और जमीन का मालिक होता है 

जनसंख्या बढ़ने के कारण जगह की कमी होने लगी तो खूंटकट्टीदारो  ने आस-पास में ही नए-नए गांव बनाने लगे
  
यह गांव नए हुए जरूर किंतु इन गांव की सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक एवं राजनीतिक व्यवस्थाओं का संचालन उसी पैतृक खूंटकट्टीदार गांव से ही होता है  

शासन व्यवस्था

 मुंडा जनजाति की शासन व्यवस्था को मुंडा प्रशासन व्यवस्था कहा जाता है  

प्राचीन काल से यह शासन व्यवस्था चली आ रही है 

➤इसके  द्वारा मुंडा अपने समाज में घटित, सामाजिक ,धार्मिक ,आर्थिक, मामलों का निपटारा करते हैं  

शासन व्यवस्था की सबसे छोटी इकाई गांव है 

गांव के प्रधान को मुंडा कहा जाता है गांव की शासन व्यवस्था में इसकी केंद्रीय भूमिका है, मुंडा का सहायक पाहन  होता है

 मुंडा की गैरमौजूदगी में पाहन ही गांव के सारे काम करता है 

  मुंडा और पाहन का सहायक महतो  होता है 

महतो का मुख्य काम है - गांव में सूचनाओं का आदान-प्रदान करना 

गांव से  बड़ी इकाई पड़हा व्यवस्था है। कई गांवों (लगभग 12 से 20 )को मिलाकर बनता है पड़हा के प्रधान को राजा कहा जाता है

➤कुछ मुंडा क्षेत्रों में पड़हा राजा को मानकी भी कहा जाता है 

पड़हा राजा  ठाकुर, दीवान, पांडे, सिपाही, दरोगा,लाल  की सहायता से काम को अंजाम देता है  

ठाकुर पड़हा राजा  का सहायक होता है और उनके कर्मों में सहयोग करता है   

➤दीवान पड़हा राजा का मंत्री होता है और उसके हुकुम की तालीम करता है

 दीवान दो तरह के होते हैं गढ़ दीवान - (गढ़ के अंदर के क्रियाकलापों की देखरेख करने वाले) एवं राज दीवान- (गढ़ के बाहर के क्रियाकलापों की देखरेख करने वाले) 

पांडेय पर सभी तरह के कागजातों (दस्तावेजों) को संभाल कर रखने की जिम्मेदारी होती है पड़हा राजा  के आदेश पर नोटिस जारी करता है

 सिपाही दीवान के आदेश पर गाँव -गाँव  में नोटिस तामिल करता है 

दरोगा सभा की कार्रवाई के दौरान लोगों को नियंत्रण रखता है 

 लाल सभा में वकील की  भांति बहस करने का काम करता है लाल कि तीन श्रेणियां होती है -

बढ़ लाल ,मझलाल ,लाल छोटे

 पड़हा  से बड़ी इकाई राज होती है जिसका प्रधान राजा कहलाता है

➤कई पड़हाओं को मिलाकर एक राज बनता है

➤जब पड़हा  सभा में मामले का निपटारा नहीं हो पाता है, तब राज सभा में मामला पहुंचता है और वहां निपटारा किया जाता है जिससे मानना ही पड़ता है

 दूसरे शब्दों में राज सभा मुण्डाओं के लिए उच्चतम न्यायालय के समान है

👉Next Page: पड़हा पंचायत शासन व्यवस्था

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Monday, September 7, 2020

Prominent Ancient Ports of India

PROMINENT ANCIENT PORTS OF INDIA:

The naval trade with various countries during the ancient & medieval times played a great role in the spread of Indian culture abroad. The detailed account of the ports in ancient India can be found from the books "Periplus of the Erythraean Sea & Geographia". During Mauryan rule, the Navadhyaksha, i.e., Superitendent of Shipping used to look after the shipping administration. The coins of the last Satavahana King Yajna Sri Satakarni contained the figure of ships, probably indicating the naval strength of the dynasty. Let us look at an illustrative list of prominent port in ancient times.

Name of the Port

Region

Associated Dynasty & the Time Period

Brief Details

Lothal

Gujarat (near present Ahmedabad)

Indus Valley; 2400 BC

Export of copper, hardwoods, ivory, pearls, carnelian & gold to Mesopotamia and timber wood & Lais Lazuli to Sumeria

Barygaza

Present Bharuch in Gujarat

3rd Century BC onwards; Major trade center of Roman trade under Western Satraps

1. Spice & silk trade with Arabs. 

2. Import of wheat, rice, sesame oil, cotton & cloth.

Muziris

Malabar Coast, Kerala (near present-day Kochi)

1st century BC onwards; Chera Kingdom

1. Mentioned in Sangam literature. 

2. Export of spices, semi-precious stones like beryl, pearls, diamonds, sapphires, ivory, Chinese silk, Gangetic spikenard & tortoise shells to Persi, Rome, Greece & Egypt.

 Kokai

 Tamil Nadu

 Early Pandyan Kingdom

 Well known center of pearl fishery & finds mention in the Sangam literature.

 Puhar (Kaveri Poompattinam)

 Tamil Nadu (the mouth of Cauveri river)

 Early Chola; 400 BC - 200 AD

 1. Import of various articles.

2. Mentioned in "Silappadikaram".

 Podouke

 Present Arikmedu near Puducherry

 2nd century BC - 8th century AD

 1. Greek trading port to trade with Rome.

 2. Items of export included gems, pearls, spices & silk. Import of wine was prevalent.

Barbarikon

 Near Karachi, Pakistan

 Parthians & Scythians

 1. Import of lines, topaz, coral, strox, frankincense, vessels of glass, silver & gold plate & wine.

2. Export included turqoise, lapis lazuli, seric skins, cotton cloth, silk yarn & indigo.

 Sounagora

 Wari (Bateshwar in present Bangladesh)

 450 BC; Maurayan dynasty

 Mathematician Ptolemy mentioned in his book "Geographia"

 Maisolia or Masulipatnam 

 Machilipatnam, Andhra Pradesh

 From 3rd century BC onwards; Satavahana's dynasty

 1. Muslin clothes were traded by ancient Greeks. 

2. Principal sea port of the Golkonda kingdom from 15th to 17th centuries

 Tamralipti

 Present-day West Bengal

 Mauryan dynasty

 1. Exit point of the Mauryan trade route for the South & South-East.

 2. Dudhpani rock inscription of Udayman of 8th century AD contains the last record of Tamralipti as a port of ancient South Asia.

 3. Chinese pilgrim Hieun-Tsang call the town Tan-mo-lih-ti, who visited in 639 AD. 

4. Fa-hian stayed here for 2 years.

Palur

Odisha2nd century AD; Kalinga dynsaty1. Place of voyage to South-East Asia & China and trade of pottery.
  
2. Mentioned by Ptolemy & Hiuen Tsang in the 2nd & 7th century AD.
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Indian Sculpture

INDIAN SCULPTURE:

Three prominent schools of sculpture developed in this period at three different regions of India- centered at Gandhara, Mathura, and Amravati.

Basis

Gandhara School (Kushana rulers)

Mathura School (Kushana rulers)

Amravati School (Satvahana rulers)

1. External Influence

Heavy influence of Greek or Hellenistic sculpture, so it is also known as Indo-Greek art.

It was developed indigenously & not influenced by external cultures.

It was developed indigenously & not influenced by external cultures.

2. Ingredients Used

Early Gandhara School used bluish-grey sandstone while the later period saw the use of mud & stucco.

The sculptures of Mathura School were made using spotted red sandstone.

The sculpture of Amravati School was made using white marbles.

3. Religious Influence

Mainly Buddhist imagery, influenced by the Greco-Roman pantheon.

Influence of all three religions of the time, i.e. Hindusim, Buddhism & Jainism.

Mainly Buddhist influence.

4. Area of Development

Developed in the North-West Frontier, in the modern-day of Kandhar.

Developed in & around Mathura, Sonkh & Kankalitila. Kankalitila was famous for Jain sculptures.

Developed in the Krishna-Godavari lower valley, in and around Amravati & Nagarjunakonda.

5. Features of Buddha Sculpture

1. The Buddha is shown in a spiritual state, with wavy hair.

2. He wears a few ornaments & seated in a yogi position.

3. The eyes are half-closed as in meditation.

4. A protuberance is shown on the head signifying the omniscience of Buddha.


1. Buddha is shown in a delighted mood with s smiling face.

2. The body symbolizes muscularity, wearing a tight dress.

3. The face and head are shaven.

4. Buddha is seated in padmasana with different mudras & his face reflects grace. A similar protuberance is shown on the head.

1. Since the sculptures are generally part of narrative art, there is less emphasis on the individual features of Buddha.

2. The sculptures generally depict life stories of Buddha & the Jataka tales, i.e., the previous lives of Buddha in both human & animal form.


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Sunday, September 6, 2020

Jharkhand Lok Sewa Aayog(Jharkhand Public Service Commission)

झारखंड लोक सेवा आयोग


झारखंड लोक सेवा आयोग की स्थापना रांची में 2002 ईस्वी में किया गया 

इसके प्रथम अध्यक्ष फटीक चंद्र हेंब्रम थे 

➤राज्य लोक सेवा आयोग एक संवैधानिक निकाय है। 

➤यह एक सलाहकारी निकाय हैं 

भारतीय संविधान के अनुच्छेद -315 के अनुसार झारखंड लोक सेवा आयोग (JPSC) का गठन किया गया है

वर्तमान में झारखंड लोक सेवा आयोग में एक अध्यक्ष और 8 अन्य सदस्यों की नियुक्ति का प्रावधान है

 राज्य के राज्यपाल को संबंधित राज्य लोक सेवा आयोग के सदस्यों की संख्या और उनकी सेवा की शर्तों का निर्धारण करने का अधिकार  है 

नियुक्ति

 राज्य के राज्यपाल द्वारा राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति की जाती है

कार्यकाल 

राज्य झारखंड लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों का कार्यकाल पद भार ग्रहण करने की तिथि से 6 वर्ष तक या 62 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक, जो भी पहले हो , होता है

लेकिन इसके पूर्व अध्यक्ष या सदस्य संबंधित राज्य के राज्यपाल को त्यागपत्र देकर अपना पद छोड़ सकता है 

इसके अलावा राज्यपाल आयोग के अध्यक्ष अथवा सदस्य को निलंबित कर सकता है

लेकिन आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्य को उसके पद से हटाने का अधिकार सिर्फ राष्ट्रपति को है

कार्य :- राज्य लोक सेवा आयोग के निम्नलिखित कार्य हैं

राज्य की सेवाओं में नियुक्तियों के लिए परीक्षाओं का आयोजन करते है

➤ 1 . झारखंड लोक सेवा आयोग राजपत्रित एवं अराजपत्रित पदों के लिए संयुक्त प्रतियोगी परीक्षा का आयोजन करता है 

➤2 . सार्वजनिक लोक सेवाओं में भर्ती के तरीके

एक सेवा से दूसरे सेवा में स्थानांतरण, पदोन्नति, पेंशन आदि के मामलों पर राज्य सरकार को सलाह देना

➤झारखण्ड लोक सेवा आयोग का मुख्यालय राँची में है 

➤झारखण्ड लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष बने है सुधीर त्रिपाठी 

सुधीर त्रिपाठी (पूर्व मुख्य सचिव)-31 मार्च 2019 को झारखण्ड सरकार के मुख्य सचिव के पद से सेवानिवृत्त  हुए हैं। 

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Saturday, September 5, 2020

Jharkhand Ki Rajvyavastha Part-4 (JUDICIARY OF JHARKHAND)

Jharkhand Ki Rajvyavastha Part-4

झारखंड की न्यायपालिका


➤भारत  के संविधान के अनुच्छेद -214 से हर-एक  राज्य में एक उच्च न्यायालय की व्यवस्था की गई है 
परन्तु दो या दो से अधिक राज्यों के लिए एक ही उच्च न्यायालय है  
अथवा एक अधिक जनसंख्या वाले किसी राज्य के लिए एक से ज्यादा उच्च न्यायालय की व्यवस्था करना, भारतीय संसद का विशेष अधिकार है 
न्यायपालिका सरकार का तीसरा महत्वपूर्ण अंग है 
इसका उद्देश्य नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना है ,
सरकार का मुख्य काम, व्यक्ति और व्यक्ति एवं व्यक्ति और राज्य के मध्य होने वाले विवादों को सुलझाना है


झारखंड उच्च न्यायालय

झारखंड राज्य का उच्च न्यायालय देश के 21वें  उच्च न्यायालय के रुप में है 
झारखंड राज्य उच्च न्यायालय का गठन 15 नवंबर 2000 को झारखंड राज्य के स्थापना के साथ ही किया गया
 पटना उच्च न्यायालय से कट के राँची उच्च न्यायालय में रूपांतरित किया गया है 
झारखंड उच्च न्यायालय के प्रथम मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विनोद कुमार गुप्ता नियुक्त किए गए
उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ झारखंड के प्रथम राज्यपाल प्रभात कुमार ने दिलाई 
 वर्तमान में झारखंड उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की कुल संख्या 25 है मुख्य न्यायाधीश सहित,अभी कुल -20 है , 5  पद रिक्त है 

न्यायाधीशों की नियुक्ति

राज्य  में राष्ट्रपति  मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और संबंधित राज्य के राज्यपाल के परामर्श  से करता है  
राष्ट्रपति अन्य न्यायाधीशो की नियुक्ति राज्यपाल , सर्वोच्च  न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश,के अतिरिक्त राज्य के मुख्य न्यायाधीश से भी परामर्श लेता है 

न्यायाधीशों की शपथ

➤राज्यपाल  या उसके द्वारा नियुक्त किसी अधिकृत व्यक्ति के समक्ष न्यायधीशो द्वारा शपथ ली जाती है  
➤16 वें संविंधान संशोधन के बाद उच्च न्यायालय का नयायधीश उसी  प्रकार  शपथ लेता शपथ है, जैसे सर्वोच्च  न्यायालय के न्यायाधीश के लिए निर्धारित है    

योग्यताएं     

वह भारत का नागरिक हो  
वह 62 वर्ष से कम आयु का हो वह कम से कम 10 वर्ष तक न्यायिक पद पर रह चुका हो  या किसी उच्च न्यायालय में या एक से अधिक उच्च न्यायालयों में निरन्तर 10 साल तक अधिवक्ता रह चुका हो 

वेतन एवं भत्ते

वेतन एवं भत्ते उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को ₹2,50,000  तथा अन्य न्यायाधीश को ₹2,25,000 मासिक वेतन मिलता है
 इसके अलावे  संसद द्वारा निर्धारित अन्य भक्तों एवं सुविधाएं मिलती हैं
'
कार्यकाल

 उच्च न्यायालय के न्यायधीश का कार्यकाल 62 वर्ष की आयु पूरी होने तक अपने पद धारण करता है 
परंतु वह किसी भी समय राष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र दे सकता है
 इसके अलावा वह राष्ट्रपति द्वारा अपने पद से हटाया जा सकता है, यदि संसद उसे अयोग्य या दुराचारी सिद्ध कर विशेष बहुमत से प्रस्ताव पारित कर दे

➤उच्च न्यायालय को तीन प्रकार का क्षेत्राधिकार प्राप्त है
1.मूल क्षेत्राधिकार 
2.अपीलीय क्षेत्राधिकार
3.प्रशासनिक अधिकार

1.मूल क्षेत्राधिकार :- के अंतर्गत संविधान की व्याख्या और नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा संबंधी मामले आते हैं, संविधान के अनुच्छेद-226 के अनुसार मौलिक अधिकार से संबंधित कोई भी मामला सीधे उच्च न्यायालय में लाया जा सकता हैमौलिक अधिकारों को लागू करवाने के लिए उच्च न्यायालय निम्न 5 प्रकार का लेख जारी करता है

2 परमा देश लेख  
3 प्रतिषेध लेख
4 अधिकार पृच्छा लेख 
5 उत्प्रेषण  लेख

2.अपीलीय क्षेत्राधिकार :-अपीलीय क्षेत्राधिकार के अंतर्गत जिला एवं सेशन जज के द्वारा हत्या के मुकदमे में मृत्युदंड की सजा, उच्च न्यायालय की बगैर पुष्टि के मान्य नहीं होगा 
संविधान की व्याख्या से संबंधित किसी प्रकार के मामले में उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है
उच्च न्यायालय को विवाह, तलाक, वसीयत, जल सेना विभाग, न्यायालय का अपमान, कंपनी कानून आदि से संबंधित अभियोग भी उच्च न्यायालय के आरंभिक अधिकार क्षेत्र में आते हैं

3.प्रशासनिक क्षेत्राधिकार  :- इस क्षेत्राधिकार के द्वारा उच्च न्यायालय अपने अधीनस्थ न्यायालय का निरीक्षण करता है एवं उन पर नियंत्रण रखता है 
उच्च न्यायालय के सलाह से ही राज्यपाल जिला ने न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है 
 न्यायाधीशों की पदोन्नति ,छुट्टी इत्यादि के बारे में भी राज्यपाल को उच्च न्यायालय से परामर्श से कार्य करना होता है
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Jharkhand Ke Mahadhivakta (Jharkhand Advocate General)

Jharkhand Ke Mahadhivakta

(झारखंड के महाधिवक्ता)

 महाधिवक्ता राज्य का सबसे ऊंचे विधि अधिकारी होता है, उनकी नियुक्ति राज्यपाल करते हैं

 महाधिवक्ता पद पर नियुक्त होने के लिए उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के पद के योग्यता के समान ही योग्यता निर्धारित है, लेकिन उसकी उम्र संबंधी कोई योग्यता निर्धारित निश्चित प्रावधान नहीं है 

महाधिवक्ता का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है या राज्यपाल की इच्छा पर निर्भर करती है 

  वह ऐसे वेतन का हकदार होता है, जो राज्यपाल समय-समय पर निर्धारित करता है 

राज्य सरकार को विधि संबंधी विषयों पर सलाह देना

जो राज्यपाल द्वारा किए गए हो, संविधान या अन्य अधिनियम द्वारा प्रदत कोई विधिक कार्य का निर्वाहन 

करना  महाधिवक्ता का  मुख्य कार्य है

 महाधिवक्ता राज्य  के विधान मंडल या किसी समिति में जिसमें उसका नाम सदस्य के रूप में है,

 उसमें भाग लेने या अपनी बात रखने का अधिकार महाधिवक्ता को है 

लेकिन  वह विधानमंडल के किसी भी कार्यवाही में मतदान देने का अधिकार नहीं है 

झारखंड के पहले महाधिवक्ता का नाम मंगलमय बनर्जी है 

झारखंड के वर्त्तमान महाधिवक्ता का नाम राजीव रंजन है 



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Thursday, September 3, 2020

Jharkhand ki Rajvyavastha Part-3 (Jharkhand Legislative Assembly)

Jharkhand Ki Rajvyavastha Part-3

विधानसभा (The Legislative Assembly)



विधायिका

➤भारतीय संविधान में संघीय शासन व्यवस्था होने के कारण राज्यों में अलग विधानमंडल की व्यवस्था की गई है 
 संविधान के अनुसार राज्य विधानमंडल में एक सदन हो सकता है या दो सदन हो सकता है 
 यह राज्य  की इच्छा पर निर्भर करता है 
 झारखंड राज्य में एक सदनीय विधान मंडल अर्थात केवल एक विधानसभा है 
 यहां राज्यपाल और विधान मंडल को मिलाकर विधानमंडल बनता है  
➤जिन राज्यों में द्विसदनीय विधानमंडल है, जैसे :- भारत के 5 राज्यों बिहार, जम्मू कश्मीर, कर्नाटक महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश में है, वहां राज्यपाल, विधानसभा एवं विधान परिषद को मिलाकर विधानमंडल बनता है 

विधानसभा (Legislative Assembly)

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 170 से संबंधित राज्य में एक विधानसभा के होने का उपबंध है  
जिसके सदस्यों का निर्वाचन राज्य के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्यक्ष मताधिकार द्वारा किया जाता हैइस अनुच्छेद के अनुसार किसी भी राज्य के विधानसभा में सदस्यों की कुल संख्या अधिकतम 500 और न्यूनतम 60 होनी चाहिए  
भारत में सिक्किम में (32), गोवा में (40), अरुणाचल प्रदेश  (40) मिजोरम (40) विधानसभा सदस्यों वाले राज्य है जो इसके अपवाद है 
 राज्य के विधानसभा के निर्वाचन क्षेत्र का निर्धारण परिसीमन आयोग द्वारा किया जाता है  
वर्तमान झारखंड में विधानसभा सदस्यों की संख्या 82 है, जिसमें 81 सदस्यों का निर्वाचन वयस्क मताधिकार के आधार पर और एक सदस्य का मनोनीत राज्यपाल द्वारा एंग्लो इंडियन समुदाय के प्रतिनिधि के रूप में किया जाता है

अवधि

विधानसभा का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है  
राज्य में आपात स्थिति लागू होने पर संसद के द्वारा इसकी अवधि 6 माह तक बढ़ाई जा सकती है 
इस तरह से इसका कार्यकाल 1 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है 
 भारतीय संविधान के अनुच्छेद 172 (१) में वर्णित है किसी दल के बहुमत नहीं होने पर अथवा सरकार के बहुमत नहीं होने की स्थिति में राज्यपाल के द्वारा विधानसभा को उसके कार्यकाल पूर्ण रूप होने से पहले ही विघटित किया जा सकता है
 राज्यपाल के द्वारा विधानसभा का अधिवेशन बुलाया जाता है, लेकिन विधानसभा के दो सत्रों के बीच 6 महीने के अधिक मध्यवकाश नहीं होना चाहिए 
झारखंड विधानसभा की कुल 82  सीटों में से अनुसूचित जनजाति के लिए (28), अनुसूचित जाति के लिए (9) सीटें आरक्षित हैं तथा शेष (44) सीट सामान्य श्रेणी की हैं

विधानसभा सदस्य बनने की योग्यताएं

वह भारत का नागरिक हो और  कम से कम 25 वर्ष की उम्र का हो
वह भारत सरकार या किसी राज्य के अधीन लाभ के पद पर ना हो 
वह दिवालिया या पागल ना हो

 सदस्य की समाप्ति

 विधानसभा की सदस्यता निम्नलिखित परिस्थितियों में समाप्त हो सकती है 

विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र  दे दें 
 यदि सदस्य अन्य किसी राज्य की विधान मंडल का सदस्य निर्वाचित हो जाए
 यदि वह सदन की अनुमति के बिना लगातार 60 दिन तक सदन में अनुपस्थित रहे
यदि वह दलबदल का दोषी साबित हो जाए
 विधानमंडल के किसी सदस्य की योग्यता या अयोग्यता का अंतिम निर्णय राज्यपाल चुनाव आयोग के परामर्श से करता है

विधानसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष

विधानसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष भारतीय संविधान के  अनुच्छेद 178 के तहत  प्रत्येक राज्य में विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पद का निर्धारित है
 इसका चुनाव संबंधित विधानसभा के सदस्यों के द्वारा किया जाता है
 लोकसभा अध्यक्ष के जैसे विधानसभा अध्यक्ष विधानसभा की कार्रवाई चलाने का अधिकारी होता है
 विधानसभा अध्यक्ष विधानसभा का सबसे उच्च अधिकारी होता है
 विधानसभा अध्यक्ष की अनुपस्थिति में विधानसभा उपाध्यक्ष सदन की कार्यवाही की अध्यक्षता करते हैं 
अध्यक्ष का कार्यकाल 5 वर्ष या नई विधानसभा के प्रथम बैठक के ठीक पहले तक होता है 
विधानसभा अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष को कम से कम 14 दिन की पूर्व सूचना के उपरांत लाए गए अविश्वास प्रस्ताव को विधानसभा में पास करा के पद से हटाया जा सकता है

विधानसभा अध्यक्ष के अधिकार

 राज्यपाल का सन्देश विधानसभा में और विधानसभा का निर्णय राजपाल को देता है
किसी विधेयक में पक्ष और विपक्ष का मत समान नहीं हो, तो अध्यक्ष मत विभाजन में भाग नहीं लेता है 
लेकिन मत समान होने की स्थिति में विधानसभा अध्यक्ष विधेयक के लिए निर्णायक मत देता है
 कोई विधेयक दोनों सदन में पास हो जाने के बाद विधानसभा अध्यक्ष उस विधेयक पर अपने हस्ताक्षर करते हैं
 विधानसभा अध्यक्ष का पद निष्पक्ष होता है

विधानसभा उपाध्यक्ष (द डिप्टी स्पीकर)

विधानसभा उपाध्यक्ष विधान सभा का दूसरा प्रमुख अधिकारी होता है 
विधान सभा अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उसका सारे कार्य विधानसभा उपाध्यक्ष करता है
वह विधानसभा अध्यक्ष को त्यागपत्र देकर अपना पद छोड़ सकता है 
झारखंड के प्रथम विधानसभा उपाध्यक्ष बागुन सुम्ब्रई थे 

विधानसभा के कार्य

विधायी कार्य  :- विधानसभा को राज्य सूची और समवर्ती सूची के सभी विषयों पर कानून बनाने का अधिकार है  
कोई भी साधारण विधेयक विधानसभा परिषद् में पास होने के बाद विधान परिषद में पेश किया जाता है लेकिन देश के 7 राज्यों आंध्र प्रदेश, बिहार, जम्मू कश्मीर, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश में विधान परिषद की व्यवस्था है 
झारखंड में विधान परिषद की व्यवस्था नहीं है 

वित्तीय कार्य :- धन  विधेयक केवल विधानसभा में ही पेश हो सकता है 
एक बार धन विधेयक विधानसभा में पारित होने के बाद विधान परिषद में उसे पेश किया जाता है 
विधान परिषद को 14 दिन के अंदर पास करना होता है नहीं तो स्वत: पारित मान लिया जाता है
इसके बाद वह राज्यपाल की स्वीकृति के लिए भेजा जाता है राज्यपाल को धन विधेयक पर अपनी स्वीकृति देनी ही पड़ती है

संवैधानिक कार्य :- संविधान के कुल अनुच्छेदों में संशोधन करने में भारतीय संसद को संशोधन करने के लिए देश के आधे राज्यों के विधान मंडलों की स्वीकृति जरुरत होती है
 विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों को राष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेने का अधिकार है 
विधानपरिषद् के सदस्यों को राष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेने का अधिकार प्राप्त नहीं है 
 














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