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Friday, May 21, 2021

Kharwar Janjati Ka Samanya Parichay (खरवार जनजाति का सामान्य परिचय)

Kharwar Janjati Ka Samanya Parichay

➧ यह झारखंड की पांचवी सबसे अधिक जनसंख्या वाली जनजाति है

➧ इनका मुख्य संकेन्द्रण पलामू प्रमंडल में है

 इसके अलावा हजारीबाग, चतरा, रांची, लोहरदगा, संथाल परगना तथा सिंहभूम में भी खरवार जनजाति पाई जाती हैं 

खरवार जनजाति का सामान्य परिचय

➧ खेरीझार से आने के कारण इनका नामकरण खेरवार हुआ

➧ पलामू एवं लातेहार जिला में इस जनजाति को 'अठारह हाजिरी' भी कहा जाता है तथा ये स्वयं को सूर्यवंशी राजपूत हरिश्चंद्र रोहताश्व का वंशज मानते हैं 

➧ यह एक बहादुर मार्शल (लड़ाकू) जनजाति हैं

➧ सत्य बोलने के अपने गुण के कारण इस जनजाति की विशेष पहचान है 

➧ यह जनजाति सत्य हेतु अपना सभी कुछ बलिदान करने के लिए प्रसिद्ध है 

➧ खरवार जनजाति का संबंध द्रविड़ प्रजाति समूह से है

➧ इस जनजाति की भाषा खेरवारी है जो ऑस्ट्रो-एशियाटिक भाषा परिवार से संबंधित है

 समाज एवं सांस्कृतिक

 संडर  के अनुसार खरवार की 6 प्रमुख उपजातियां हैं :-मंझिया, गुझू , दौलतबंदी, घटबंदी, सूर्यवंशी तथा खेरी 

➧ खरवार में सामाजिक स्तर का मुख्य निर्धारक तत्व भू-संपदा है

 खरवारों में घूमकुरिया (युवागृह) जैसी संस्था नहीं पाई जाती है 

➧ इस जनजाति का परिवार पितृसत्तात्मक तथा पितृवंशीय होता है

➧ खरवार जनजाति में बाल विवाह को श्रेष्ठ माना जाता है

➧ सामाजिक व्यवस्था से संबंधित विभिन्न नामकरण :-

(i) विधवा पुनर्विवाह - सगाई 

(ii) ग्राम पंचायत  -  बैठेकी 

(iii) ग्राम पंचायत प्रमुख  - मुख्या या बैगा 

(iv) चार गांव की पंचायत - चट्टी 

(v) 5 गांव की पंचायत  - पचौरा 

(vi) 7 गांव की पंचायत - सचौरा 

➧ इस जनजाति के पुरुष सदस्य सामान्यत: घुटने तक धोती, बंडी एवं सर पर पगड़ी तथा महिलाएँ साड़ी पहनती  हैं 

 इस जनजाति के प्रमुख पर्व सरहुल, कर्मा, नवाखानी सोहराय, जितिया, दुर्गापूजा, दीपावली, रामनवमी, फागू आदि है 

➧ इस जनजाति में सुबह के खाना को 'लुकमा', दोपहर के भोजन को 'बियारी' तथा रात के खाने 'कलेवा' कहा जाता है

➧ आर्थिक व्यवस्था 

➧ खरवार जनजाति का मुख्य पेशा कृषि है

➧ इनका परंपरागत पेशा खेर वृक्ष से कत्था बनाना था 

➧ धार्मिक व्यवस्था

➧ खरवार जनजाति के सबसे प्रमुख देवता सींगबोंगा है 

➧ खरवार जनजाति में पाहन या वेगा (धार्मिक प्रधान) की सहायता से बलि चढ़ाई जाती है 

➧ घोर संकट या बीमारी के समय जनजाति ओझा या मति की सहायता लेती हैं

➧ इस जनजाति में जादू-टोना करने वाले व्यक्ति को माटी कहा जाता है 

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Mahali Janjati Ka Samanya Parichay (माहली जनजाति का सामान्य परिचय)

Mahali Janjati Ka Samanya Parichay

➧ इस जनजाति का संबंध द्रविड़ परिवार से है

➧ इस जनजाति का झारखंड में सकेन्द्रण  मुख्यत: सिंहभूम क्षेत्र, रांची, गुमला, सिमडेगा, लोहरदगा, हजारीबाग बोकारो, धनबाद और संथाल परगना क्षेत्र में है

माहली जनजाति का सामान्य परिचय

➧ समाज एवं संस्कृति 

➧ इस जनजाति की नातेदारी व्यवस्था हिंदू समाज के समान है

 इस जनजाति के सामाजिक व्यवस्था पितृसत्तात्मक है

 इस जनजाति में कुल 16 गोत्र पाए जाते हैं

 रिजले द्वारा माहली जनजाति को निम्न पांच उप जातियों में विभक्त किया गया है :-

(i) बांस फोड़ माहली - बांस से टोकरी बनाने वाली (तुरी जनजाति भी टोकरी बनाने का कार्य करती है)

(ii) पातर माहली  -  खेती कार्य (तमाड़ क्षेत्र में सकेन्द्रण) 

(iii) तांती माहली  -  पालकी ढोने वाले 

(iv) सोलंकी माहली -  मजदूरी  व खेती कार्य 

(v) माहली मुंडा  -  मजदूरी और खेती कार्य 

➧ इनका विवाह टोटमवादी वंशों में होता है

➧ माहली जनजाति में बाल विवाह प्रचलित है 

➧ इस जनजाति में वधू मूल्य को पोन टाका तथा तथा जातीय पंचायत को परगैनत कहा जाता है

➧ इनके प्रमुख त्यौहार सुरजी देवी पूजा, मनसा पूजा, टुसू पर्व दिवाली आदि हैं

➧ आर्थिक व्यवस्था 

➧ यह एक शिल्पी जनजाति है जो बांस कला में पारंगत है 

➧ यह जनजाति बांस की टोकरी व ढोल बनाने में पारंगत है

इस जनजाति को सरल कारीगर/शिल्पकार के रूप में वर्गीकृत किया जाता है

➧ धार्मिक व्यवस्था 

➧ इनकी मुख्य देवी सुरजी देवी है बड़ पहाड़ी तथा मनसा देवी इनके अन्य देवता है

 इस जनजाति के लोग पुरखों की पूजा गोड़म साकी (बूढ़ा-बूढ़ी पर्व) के रूप में करते हैं 

➧ सिल्ली क्षेत्र में इस जनजाति द्वारा की जाने वाली विशेष पूजा को 'उलुर पूजा' कहा जाता है 

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Bhumij Janjati Ka Samanya Parichay (भूमिज की जनजाति का सामान्य परिचय)

Bhumij Janjati Ka Samanya Parichay

➧ झारखंड के हजारीबाग, रांची और धनबाद जिला में इनका सर्वाधिक संकेंद्रण पाया जाता है

➧ इस जनजाति की प्रजाति प्रोटो-ऑस्ट्रोलॉयड है

भूमिज की जनजाति का सामान्य परिचय

➧ इनको 'धनबाद के सरदार' के नाम से भी जाना जाता है

➧ घने जंगलों में रहने के कारण मुगल काल में भूमिज को चुहाड़ उपनाम से जाना जाता था

 इनकी भाषा मुंडारी (ऑस्ट्रो-एशियाटिक) है तथा इनकी भाषा पर बंगला व सदानी भाषा का प्रभाव है

 समाज एवं संस्कृति 

➧ इस जनजाति का समाज पितृसत्तात्मक होता है 

➧ इस जनजाति में कुल 4 गोत्र (पत्ती, जेयोला, गुल्गु , हेम्ब्रोम) पाए जाते हैं

➧ इस जनजाति में सगोत्रीय विवाह निषिद्ध होता है 

इस जनजाति में प्रसिद्ध प्रचलित विवाह आयोजित विवाह है इसके अतिरिक्त इसमें अपहरण विवाह, गोलट  विवाह, सेवा विवाह, राजी-खुशी विवाह आदि भी प्रचलित है

➧ इस जनजाति में तलाक की प्रथा पाई जाती है तथा पति द्वारा पत्ते को फाड़कर टुकड़े करने पर तलाक हो जाता है 

➧ इस जनजाति की जातीय पंचायत का मुखिया प्रधान कहलाता है

 इनके प्रमुख त्योहार धुला पूजा, चेत पूजा, काली पूजा, गोराई ठाकुर पूजा, ग्राम ठाकुर पूजा, करम पूजा आदि हैं

➧ आर्थिक व्यवस्था

➧ इस जनजाति का प्रमुख पेशा कृषि कार्य है

➧ यह जनजाति अच्छी काश्तकार है

➧ धार्मिक व्यवस्था

➧ इनके सर्वोच्च देवता ग्राम ठाकुर और गोराई ठाकुर है

 इनके धार्मिक प्रधान को लाया कहा जाता है

 इस जनजाति में श्राद्ध संस्कारों को कमावत कहा जाता है

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Baiga Janjati Ka Samanya Parichay (बैगा जनजाति का सामान्य परिचय)

Baiga Janjati Ka Samanya Parichay

➧ बैगा झारखंड की एक उपेक्षित जनजाति है

➧ इस जनजाति का संबंध द्रविड़ परिवार से है

➧ इनका संकेन्द्रण मुख्यत: पलामू प्रमंडल, रांची, हजारीबाग और सिंहभूम क्षेत्र में है 

बैगा जनजाति का सामान्य परिचय

➧ समाज और संस्कृति 

➧ इस जनजाति के रीति-रिवाज खरवार जनजाति के समान है

➧ इसमें संयुक्त परिवार की व्यवस्था पाई जाती है

➧ बैगा की सामुदायिक पंचायत का मुखिया मुकददम कहलाता है

➧ करमा नृत्य इस जनजाति का प्रमुख नृत्य है झरपुट, विमला आदि अन्य नृत्य है इस जनजाति में पुरुषों द्वारा 'दशन' या 'सैला' नृत्य तथा स्त्रियों द्वारा 'रीना' नृत्य भी किया जाता है

➧ इनके वर्ष का प्रथम पर्व 'चरेता' है, जो बच्चों को बाल भोज देकर मनाया जाता है

➧ इस जनजाति में 9 वर्षों पर 'रसनावा' नामक पर्व का आयोजन किया जाता है इसके अतिरिक्त सरहुल, दशहरा दिवाली, होली आदि पर्व भी प्रचलित है 

 आर्थिक व्यवस्था 

➧ इनका प्रमुख पैशा वैध कार्य तथा तंत्र -मंत्र है इसके अतिरिक्त ये खाद्य संग्रह व मजदूरी का कार्य भी करते हैं

 यह पेड़-पौधों के अच्छे जानकार होते हैं

➧ धार्मिक व्यवस्था

➧ इस जनजाति का प्रधान देवता बड़ा देव है जिसका निवास साल वृक्ष में माना जाता है

➧ यह जनजाति बाघ को पवित्र पशु मानती है 

➧ इसमें सबसे अधिक प्रचलित विवाह मंगनी है साथ ही लामसेना (सेवा विवाह), पैठुल विवाह (ढुकु विवाह) तथा उठावा विवाह (राजी-खुशी विवाह) का भी प्रचलन है 

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Khadiya Janjati Ka Samanya Parichay (खड़िया जनजाति का सामान्य परिचय)

Khadiya Janjati Ka Samanya Parichay

➧ इनका मूल निवास स्थान रोहतास है। 

➧ झारखंड में इसका सबसे अधिक संकेन्द्रण गुमला, सिमडेगा क्षेत्र में है।  

➧ प्रजाति दृष्टिकोण से प्रोटो-ऑस्ट्रोलॉयड है इनकी भाषा खड़िया है, जो मुंडारी भाषा परिवार की ही एक भाषा है। 

➧ यह जनजाति झारखंड के अलावा उड़ीसा, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल में भी पाई जाती है खड़खड़िया अर्थात पालकी ढोने के कारण इन इस जनजाति को खड़िया कहा गया

खड़िया जनजाति का सामान्य परिचय

 सामाजिक दृष्टिकोण से

(i) खड़िया जनजाति 3 भाग में विभाजित है। 

1- पहाड़ी खड़िया :  सबसे अधिक पिछड़ा समूह है, जो बीहड़ प्रवेश प्रदेश में निवास करती है इसका सिद्धांत है "लूट लाओ और कूट खाओ"। 

2- ढ़ेलकी खड़िया  :  

3- दूध खड़िया   :  खड़िया समाज में सबसे अधिक विकास इन्हीं का हुआ है।  

(ii) ऊपर वर्णित तीनों वर्गों में आपस में विवाह नहीं होता है

(iii) समाज प्रतृसत्तात्मक है तथा बहु विवाह का प्रचलन है

(iv) सबसे अधिक प्रचलित विवाह ओलोल दाय है, जिसे असल विवाह भी कहते हैं इसमें वर द्वारा कन्या को मूल्य देकर विवाह किया जाता है, विवाह के अन्य रूपों निम्न है 

उधराउधारी  : सह पलायन विवाह (अर्थात भाग कर शादी)

ढुकुचाेलकी  : अनाहातु विवाह (बिना निमंत्रण दिए विवाह)

राजी-खुशी   : प्रेम विवाह 

(v) खड़िया जनजाति में युवागृह को गोतिओ कहते हैं इनके प्रमुख गोत्र में किरो, गिलूगु, टोपनो, टोप्पो, डुंगडुंग, मुरु,भुईया हैं 

 राजनीतिक दृष्टिकोण से

(i) इनकी प्रशासनिक व्यवस्था को ढ़ोकलो सोहोर कहते हैं

(ii) ग्राम पंचायत का प्रमुख महतो कहलाता है, जिसका सहयोगी करटाहा होते हैं

(iii) इनका जातीय पंचायत धीरा एवं जातीय पंचायत का प्रमुख बंदिया कहलाता है 

(iv) झारखंड में सबसे अधिक ईसाईकरण इसी जनजाति का हुआ है

➧ सांस्कृतिक दृष्टिकोण से

(i) खड़िया जनजाति का सबसे प्रमुख पर्व बा-बीड, बंगारी, कादो लेटा, नयोदेम आदि है बा -बीड, बीजारोपण का सर्वजनिक त्यौहार है, जबकि नयोदेम नया चावल खाने से पहले पूर्वजों को अर्पित करने की पूजा है

(ii) फ़ागु इनका शिकार उत्सव है, जिसमें पाट और बोराम की पूजा की जाती है 

 धार्मिक दृष्टिकोण से 

(i) इनके सबसे प्रमुख देवता बेला भगवान/ठाकुर है, जो सूर्य का ही प्रतिरूप है 

(ii) इस जनजाति के प्रमुख देवता निम्न है 

पहाड़ देवता  : पारदुबो 

वन देवता     : बोराम, सरना 

देवी             :  गुमी 

(iii) धार्मिक कार्य संपन्न कराने वाले व्यक्ति को पहाड़ी खड़िया के लोग दिहुरी/ढ़ेलकी जबकि दूधिया खड़िया के लोग पाहन या कालो कहते हैं 

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Ho Janjati Ka Samanya Parichay (हो जनजाति का सामान्य परिचय)

Ho Janjati Ka Samanya Parichay

➧ जनसंख्या की दृष्टि से हो जनजाति झारखंड की चौथी सबसे बड़ी जनजाति है, जो प्रोटो-आस्ट्रोलॉयड श्रेणी से संबंधित है 

➧ इनकी भाषा 'हो' है जिसकी लिपि वारंग क्षिति है

➧ इनका निवास स्थान मुख्यत: पूर्वी एवं पश्चिमी सिंहभूम तथा सरायकेला-खरसावां है 

हो जनजाति का सामान्य परिचय

➧ राजनीतिक दृष्टिकोण से

(i) हो जनजाति मुंडा ओं से प्रभावित है प्रशासनिक व्यवस्था के तहत ग्राम प्रधान को मुंडा एवं मुंडा के सहायक को डाकुआ कहते हैं 

(ii) फिर 7-12 गांवों का एक समूह बनता है, जिसे पीर या परहा कहते हैं, जिसका प्रमुख मानकी होता है, अर्थात यह मुंडा-मानकी शासन व्यवस्था का ही रूप है

 सामाजिक दृष्टिकोण से

(i) हो जनजाति 80 से अधिक गोत्र में विभाजित है, जिसमें बोदरा, बारला, बालमुचु , हेम्ब्रम,अंगारिया मुख्य है

(ii) आरंभ में यह जनजाति मातृसतात्मक था, परंतु धीरे-धीरे इसका रूपांतरण पितृसतात्मक में हुआ है 

(iii) संगोत्रीय विवाह निषेध है, परंतु बहुविवाह का प्रचलन है। ममेरे  भाई तथा बहन की शादी को प्राथमिकता दी जाती है

(iv) हो जनजाति में पांच प्रकार के विवाह का प्रचलन है, जिसमें सबसे अधिक प्रचलित विवाह आंदि विवाह है, जिसमें वर विवाह का प्रस्ताव लेकर वधू के घर जाता है 

अन्य विवाह निम्न है

दिकू आंदि        :  गैर जनजातिय परंपरा के साथ विवाह

अंडी/ओपोर्तिपि : कन्या का हरण कर विवाह 

राजी-खुशी विवाह : प्रेम विवाह

आंदेर विवाह         : वधू द्वारा वर के यहां बलपूर्वक रहना, जब तक शादी ना हो जाए

(iv) इनका युवागृह  गीतिओड़ा कहलाता है, जहां अस्त्र-शस्त्र वाद्य यंत्र भी रखा जाता है 

आर्थिक दृष्टिकोण से

हो जनजाति का प्रमुख पैसा कृषि है

इली इनका प्रमुख पेय पदार्थ है, जिससे देवी-देवताओं पर भी चढ़ाया जाता है

ये अपनी भूमियों को तीन श्रेणी में बाँटते हैं

बेड़ो   :  अधिक उपजाऊ भूमि 

वादी  :  धान खेती के लिए उपयुक्त 

गोडा  :  मोटे अनाज के लिए उपयुक्त 

➧ धार्मिक दृष्टिकोण से

(i) हो जनजाति के सर्वप्रमुख देवता सिंगबोंगा है, परंतु साथ ही कई अन्य देवताओं का भी प्रचलन है जैसे:-

पाहुई बोंगा  :  ग्राम देवता

ओरी बोड़ोम :  पृथ्वी देवता 

मरांग बुरु    :  पहाड़ देवता

देशाउली बोंगा  :  वर्षा देवता 

(ii) हो जनजाति के लोग 'सूर्य, चंद्रमा, नदी, दुर्गा, काली, हनुमान' के भी उपासक होते हैं भूत-प्रेत, जादू-टोना में विश्वास करते हैं

(iii) देउरी नामक पुरोहित इनका धार्मिक अनुष्ठान संपन्न कराता है

सांस्कृतिक दृष्टिकोण से 

(i) इनके गांवों के बीच एक अखाड़ा होता है जिसे स्टे:तुरतुड कहते हैं। यहां नाच, गान, मनोरंजन, प्रशिक्षण की व्यवस्था होती है

(ii) इनके घर के एक कोने में आंदि स्थल होता है, जो पूर्वजों का पवित्र स्थान माना जाता है

(iii) इस जनजाति के लोगों को सामान्यत: मूंछ-दाढ़ी नहीं होती है

(iv) इस जनजाति का सबसे प्रमुख त्यौहार माघे हैं इसके अलावे 'बाहा, हेरो, बताउली, दमुराई, जोमनाया, कोलोभ प्रमुख पर्व है

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Thursday, May 20, 2021

Munda Janjati Ka Samanya Parichay (मुंडा जनजाति का सामान्य परिचय)

Munda Janjati Ka Samanya Parichay

➧ यह झारखंड की तीसरी सबसे बड़ी जनजाति है तथा कुल जनजातीय आबादी में इसका प्रतिशत 14 पॉइंट 56 है 

➧ मुंडा का मूल निवास स्थान तिब्बत बताया जाता है तथा इनका फैलाव संपूर्ण झारखंड में है

➧ मुंडा एक ऐसी जनजाति है, जो केवल झारखंड में ही निवास करती है 

➧ झारखंड में इसका मुख्य संकेन्द्रण रांची, गुमला, सिमडेगा, पश्चिमी सिंहभूम एवं सरायकेला-खरसावां में है 

➧ मुंडा जनजाति प्रोटो-आस्ट्रोलॉयड प्रजाति से संबंधित है, जिसे कोलेरियन समूह में रखा जाता है

➧ मुंडा जनजाति को कोल भी कहा जाता है ये अपनी जाति को होड़ो तथा स्वयं को होड़ोको कहते हैं

➧ इनकी भाषा मुंडारी है

मुंडा जनजाति का सामान्य परिचय

➧ राजनीतिक दृष्टिकोण से

(i) मुंडा का प्रशासनिक व्यवस्था मुंडा-मानकी व्यवस्था कहलाती है, जिसमें ग्राम प्रमुख को मुंडा, ग्राम पंचायत प्रमुख को हेतु मुंडा एवं कई गांवों को मिलाकर बनाई गयी पड़हा पंचायत के प्रमुख को मानकी कहते हैं। मुंडा एवं मानकी का पद वंशानुगत होता है

(ii) मुण्डाओं ने ही सबसे पहले राज्य गठन की प्रक्रिया आरंभ की थी तथा इनका प्रथम प्रशासनिक केंद्र सुतयाम्बे में स्थापित हुआ था

➧ सामाजिक दृष्टिकोण से

(i) मुंडा जनजाति 13 उपशाखा में बँटी है, जिसमें रिजले के अनुसार 340 गोत्र हैं

(ii) यह जनजाति माहली मुंडा एवं कपाट मुंडा नामक शाखा में विभक्त है 

(iii) एकल परिवार की अवधारणा है, जो पितृसतात्मक एवं पितृवंशीय होता है 

(iv) इस जनजाति में गोत्र को किली कहते हैं 

(v) समगोत्रीय विवाह वर्जित है 

(vi) पुरुषों द्वारा धारण किए गए वस्त्र को करेया तथा महिला वस्त्र को कोरेया कहते हैं

(vii) मुंडाओ के युवागृह को गितीओंड़ा कहते हैं जबकि वंशकुल -खूँट कहलाता है

(viii) मुंडा जनजाति के विवाह को अरंडी कहते हैं तथा सर्वाधिक प्रचलित विवाह आयोजित विवाह है। विवाह के अन्य रूप निम्न है:- 

1- राजी-खुशी विवाह 
2- हरण विवाह 
3- सेवा विवाह 
4- हठ विवाह 

(vii) सगाई विधवा विवाह को कहते हैं, जबकि तलाक को सकामचारी कहा जाता है

(viii) यदि स्त्री तलाक देती है तो उसे वधू मूल्य लौटाना होता है, जिसे गोनोंग टका कहते हैं

(ix) मुंडा समाज में कर्णछेदन संस्कार को तुकुईलूतूर कहते हैं मुंडा जनजाति के प्रसिद्ध लोक कथा सोसो बोंगा है

➧ धार्मिक दृष्टिकोण से 

(i) मुंडा जाति के सर्वोच्च देवता सिंगबोंगा है इनके अलावा निम्न देवताओं की महत्ता है:-

हातुबोंगा       :  ग्राम देवता 

ओड़ा बोंगा    : कुल देवता

इकिर बोंगा   : पहाड़  देवता 

देशाउली       : गांव की सर्वोच्च देवी

(ii) मुंडा जनजाति में 

पूजा स्थल को           : सरना 

धार्मिक स्थल को       : पाहन 

पाहन के सहयोगी को : पनभरा 

ग्रामीण पुजारी को      : डेहरी कहते हैं 

(iii) तंत्र-मंत्र विद्या का प्रमुख तथा झाड़-फूंक करने वाले को देवड़ा कहा जाता है 

(iv) इस जनजाति में शव के साथ दफनाने की प्रथा ज्यादा प्रचलित है, हालांकि दाह-संस्कार भी किया जाता है दफन स्थल को सासन कहते हैं, जबकि सासन में निर्मित पूर्वज का शिलाखंड सासनदीरीया हड़गड़ी कहलाता है

➧ आर्थिक दृष्टिकोण से

(i) मुंडा की आर्थिक व्यवस्था कृषि एवं पशुपालन निर्भर है

(ii) आर्थिक उपयोगिता के आधार पर भूमि को तीन श्रेणियों में बांटते हैं

पंकु        :   सबसे उपजाऊ भूमि 

नागरा     :  औसत उपजाऊ भूमि

खिरसी    :  बालूयुक्त भूमि  

(iii) मुण्डाओं द्वारा निर्मिट भूमि को खुंटकट्टी भूमि कहा जाता है ,जिसमें खूंट का आशय परिवार होता है 

➧ सांस्कृतिक दृष्टिकोण से

(i) मुंडा जनजाति के सभी अनुष्ठानों में हड़िया  एवं रान का प्रयोग करते हैं 

(ii) पशु पूजा के लिए सोहराय पर्व मनाया जाता है 

(iii) मुंडा जनजाति का सबसे प्रमुख त्योहार सरहुल, करमा एवं सोहराय हैं  सरहुल को बा परब के नाम से भी जाना जाता है

(iv) यह जनजाति के द्वारा मनाया जाने वाला बतौली पर्व को छोटा सरहुल तथा रोआपुना को धानबुनी पर्व भी कहा जाता है

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