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Monday, September 14, 2020

Jharkhand Ki Prashasanik Vyavastha Part-2(Administrative System Of Jharkhand)

झारखण्ड की प्रशासनिक व्यवस्था PART-2

(Administrative System Of Jharkhand)

क्षेत्रीय प्रशासन

➤प्रशासनिक सुविधा के लिए झारखंड राज्य को  प्रमंडलों में , प्रमंडल  को ज़िलों में, जिला को  अनुमंडलों में एवं अनुमंडल को प्रखंडों में प्रखंड को अंचलों में बांटा गया है

वर्तमान में झारखंड राज्य  वर्तमान में झारखंड राज्य में 5 प्रमंडल, 24 जिले, 45 अनुमंडल और 267 प्रखंड है 

राज्य में क्षेत्रीय प्रशासन होता है, जो व्यापक रूप से राज्य में सरकारी नीतियों, नियमों और सुविधाओं को आदेशात्मक रूप से क्रियान्वयन  करता है

राज्य में क्षेत्रीय प्रशासन को 5 भागों में बांटा गया है 

प्रमंडलीय प्रशासन

 जिला प्रशासन 

अनुमंडल प्रशासन

प्रखंड प्रशासन 

ग्राम पंचायत 

प्रमंडलीय प्रशासन

➤राज्य में पांच प्रमंडल है जो निम्न प्रकार है 

 प्रमंडल  -                                 मुख्यालय 

 पलामू प्रमंडल   -                     मेदिनीनगर

संथाल परगना प्रमंडल -           दुमका

उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल -    हजारीबाग

दक्षिणी छोटानागपुर         -      रांची

कोल्हान प्रमंडल         -            चाईबासा

प्रमंडलीय प्रशासन व्यवस्था जिसके प्रमुख प्रमंडलीय आयुक्त होते हैं। 
➤ये आयुक्त भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी होते हैं
आयुक्त के कार्यों में जिलाधिकारियों के विधि -विकास कार्यों में पर्यवेक्षक की भूमिका और न्यायालय के कार्य आदि होते हैं 
आयुक्त के सहायक अपर जिला दंडाधिकारी स्तर के सचिव के अलावा एक उपनिदेशक (खाद्य) उप-निदेशक (पंचायती राज) और अपर जिला दंडाधिकारी (फ्लाइंग स्क्वॉयड)के रूप में होते हैं  
प्रमंडल का प्रमुख आयुक्त कमिश्नर कहलाता है 

जिला प्रशासन    

 झारखंड में कुल 24 जिले हैं 

झारखंड राज्य गठन के समय 18 जिले थे

 झारखंड गठन के बाद 6 जिला का निर्माण हुआ

 सरायकेला खरसावां :- पश्चिमी सिंहभूम जिला के विभाजन के फल स्वरुप 19वॉ जिला के रूप में स्थापित किया गया, इसका गठन 1 अप्रैल 2001 को हुआ 

लातेहार :- पलामू जिला के विभाजन के फल स्वरुप 20वां जिला बना, इसका गठन 4 अप्रैल 2001 को हुआ

 जामताड़ा :- दुमका जिला के विभाजन के फल स्वरुप 21वां जिला बना, इसका गठन 26 अप्रैल 2001 को हुआ

सिमडेगा :- गुमला जिला के विभाजन के फल स्वरुप 22वां जिला बना , इसका गठन 30 अप्रैल 2001 को हुआ

 खूंटी :- रांची जिला के विभाजन के फल स्वरुप 23वां जिला के रूप में बना, इसका गठन 12 सितम्बर  2007 को हुआ

 रामगढ़ :- हजारीबाग जिले के विभाजन के फल स्वरुप 24वॉ जिला बना , इसका गठन 12 सितम्बर  2007 को हुआ

 जिला प्रशासन का उद्देश्य सरकार के सभी सेवाओं को प्रभावी ढंग से नागरिकों का तक पहुंचाना है। 
इसका प्रमुख जिला अधिकारी होता है। 
राज्य में जिला अधिकारी को 'उपायुक्त' पदनामित किया जाता है। 
इससे विभिन्न पदों में अपना कार्यभार संभालना होता है। 

कलेक्टर के रूप में उपायुक्त को निम्न कार्य करने होते हैं

भू-राजस्व वसूली
➤कैनाल एवं अन्य शुल्क की वसूली 
राजकीय ऋणों की वसूली 
➤राष्टीय विपदाओं का मूल्यांकन और उसमें सहायता कार्य
स्टांप एक्ट का प्रभावी क्रियान्वयन 
सामान्य एवं विशेष भूमि अर्जन का कार्य
जमीनदारी बॉण्ड्स का भुगतान
भू-अभिलेखों का समुचित रख-रखाव
भूमि पंजीकरण का कार्य 
➤संख्यांकी संबंधी रिकॉर्ड रखना

जिला पदाधिकारी की भूमिका में उपायुक्त के कार्य इस प्रकार हैं

कलेक्टर की भूमिका के साथ ही उपायुक्त को जिला पदाधिकारी की भूमिका भी निभानी पड़ती है
 नागरिक सुविधाओं के क्रियान्वयन हेतु इस भूमिका में उपायुक्त के कार्य इस प्रकार हैं 

 राज्य सरकार के आदेशों का क्रियान्वयन करना 
 जिला कोषागार का प्रबंध करना 
 प्रशासनिक पदाधिकारियों को परीक्षण देना  
चरित्र प्रमाण पत्र और नागरिकता संबंधी प्रमाण पत्र निर्गत करना  
अनुसूचित जनजाति,जनजाति, पिछड़े वर्गों, सैनिकों और भूमिहीनों के लिए भूमि बंदोबस्ती संबंधी कार्य करना  
जिला समाहरणालय में दंडाधिकारियों की प्रतिनियुक्ति करना 
कर्मचारियों एवं पदाधिकारियों के पेंशन संबंधी मामलों का निष्पादन करना  
जिला स्तरीय समितियों के अध्यक्षता और नियमित बैठकों का आयोजन करना 
केंद्र अथवा राज्य के मंत्रियों के जिले में आगमन पर सुरक्षा-प्रबंध करना 
जिला स्तर के सभी अधिकारियों पर बजट नियंत्रण रखना 
राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, उपराष्ट्रपति के जिला-भ्रमण दौरो पर सुरक्षा-प्रबंध करना 
➤जिला में शिक्षा की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए शिक्षा पदाधिकारियों का पर्यवेक्षण करना 
सामान्य नागरिकों की शिकायतें सुनकर आवश्यक कार्रवाई करना   
जिले में मूलभूत सुविधाओं का आपूर्ति संबंधी पर्यवेक्षण करना   
अनुमंडल प्रखंड ग्राम स्तर के पदाधिकारियों पर नियंत्रण, पर्यवेक्षण और उन्हें अवकाश देने संबंधी कार्य करना  

जिला दंडाधिकारी की भूमिका में उपायुक्त के कार्य इस प्रकार हैं

उपायुक्त को इन दो भूमिकाओं के बाद जिला दंडाधिकारी के रूप में भी जिला में शांति बनाए रखने का महत्वपूर्ण कार्य करना होता है 
इस भूमिका में उपायुक्त के कार्य इस प्रकार हैं 

पर्व त्योहार और विशेष व्यक्ति की सुरक्षा में दंडाधिकारी की तैनाती करना  
अनुसूचित जाति ,जनजाति, पिछड़े वर्ग को प्रमाण पत्र निर्गत करना  
अशांति, हिंसा और दंगों की स्थिति में सेना का प्रभावित क्षेत्र में फ्लैग मार्च कराना 
बिगड़ती न्याय व्यवस्था के नियंत्रण के लिए आवश्यक कदम उठाना, कर्फ्यू लगाना आदि  
अधीनस्थ कार्यपालक दंडाधिकारियों  की प्रतिनियुक्ति करना 
जेलों का औचक अथवा पूर्व नियोजित, नियोजित निरीक्षण करना 
➤बंदियों  को व्यवहार के आधार पर श्रेणी देना अथवा पैरोल पर छोड़ना  
अपराधों की वार्षिक रिपोर्ट राज्य सरकारों को सौंपना  
जिला अंतर्गत सभी थानों का वार्षिक निरीक्षण करना  
➤आपदा, दुर्घटना, उग्रवादी गतिविधियों में पीड़ितों को मुआवजा देना 
जिला स्तर के विभिन्न चुनाओं को शांतिपूर्ण संपन्न कराना 
जिले में मनोरंजन संस्थाओं से मनोरंजन कर लागू करके वसूलना 
जिले की मतदाता सूची को अद्यतन करना कराना 
संसदीय विधानसभा  क्षेत्रों का परिसीमन कराना  
जनगणना संबंधी कार्य पूर्ण कराना 

जिला समन्वयक की भूमिका में उपायुक्त के कार्य इस प्रकार हैं

जिला उपायुक्त को विभिन्न जिला स्तरीय विभागों के बीच सहयोग एवं समन्वय बनाकर रखना पड़ता है।

इस समन्वयक भूमिका में वह निम्नलिखित विभागों और उनके पदाधिकारियों से निरंतर संपर्क में रहता है 

पुलिस विभाग के पुलिस अधीक्षक से 
 वन विभाग के वन पदाधिकारी से  
शिक्षा विभाग के जिला शिक्षा पदाधिकारी से 
सहकारी विभाग के सहायक निबंधक से 
कृषि विभाग के जिला कृषि पदाधिकारी से 
खनन विभाग के सहायक खनन पदाधिकारी से 
चिकित्सा विभाग के सिविल सर्जन से  
निबंधन विभाग के सहायक निबंधक से  
उद्योग विभाग के जिला उद्योग पदाधिकारी से 
उत्पाद विभाग के अधीक्षक से 
आपूर्ति विभाग के जिला आपूर्ति पदाधिकारी से 

इस प्रकार जिलाधिकारी/उपायुक्त जिले का प्रमुख होता है जो अपनी पूर्ण क्षमता और अधिकारों के साथ जिले के नागरिकों और राज्य सरकार के बीच सुविधा-सेतु का काम करता है 

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Sunday, September 13, 2020

Jharkhand Ki Prashasanik Vyavastha Part-1(Administrative System Of Jharkhand)

झारखण्ड की प्रशासनिक व्यवस्था PART-1

(Administrative System Of Jharkhand)

झारखण्ड की प्रशासनिक व्यवस्था PART-1

सचिवालय (The Secretariat)

➤राज्य की सभी प्रशासनिक इकाइयों, विभागों के संचालन, समन्वय और प्रशासन पर केंद्रीय स्तर पर तालमेल बैठाने के लिए सचिवालय का गठन किया जाता है 
सचिवालय राज्य प्रशासन का मुख्य केंद्र होता है 
➤राज्यव्यवस्था और प्रशासनिक क्रियाओं से सम्बंधित सभी कार्यों का नीति निर्धारण ,निर्देशन और क्रियान्वयन यही से होता है 
सचिवालय मुख्यमंत्री व मंत्रिमण्डल तथा राज्य प्रशासन के बीच कड़ी का काम करता है 
➤झारखण्ड राज्य का प्रशासनिक मुख्यालय राँची स्थित सचिवालय है। 


राज्य सचिवालय में दो प्रकार के पदाधिकारी होते है


1. राजनीतिक पदाधिकारी और 
2 .प्रशासनिक पदाधिकारी 
 

1. राजनीतिक पदाधिकारी

मुख्यमंत्री 
कैबनिट मंत्री 
राज्य मंत्री 
उप मंत्री 
संसदीय सचिव 

2. प्रशासनिक पदाधिकारी

मुख्य सचिव 
अतिरिक्त मुख्य सचिव 
प्रमुख सचिव  
 सचिव 
विशिष्ट सचिव 
उप सचिव 
सहायक सचिव 
अनुभाग अधिकारी 
वरिष्ठ अधिकारी 
वरिष्ठ लिपिक 
कनिष्ट लिपिक 
चथुर्त श्रेणी कर्मचारी 

सचिवालय के विभाग

राज्य निर्माण के समय झारखंड में सचिवालयम के विभागों की संख्या सीमित थी।  
लेकिन वर्तमान में यह बढ़कर 31 तक पहुंच गई है विभागों के नाम इस प्रकार है। 
कार्मिक, प्रशासनिक सुधार एवं राजभाषा विभाग
मंत्रिमंडल सचिवालय एवं निगरानी विभाग 
मंत्रिमंडल(निर्वाचन)विभाग 
राजस्व, पंजीकरण एवं भूमि सुधार विभाग
ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग 
कृषि एवं पशुपालन एवं सहकारिता विभाग
खाद्य सार्वजनिक वितरण एवं उपभोक्ता  
➤उच्च एवं तकनीकी शिक्षा विभाग
विद्युत विभाग
भवन निर्माण
नगर विकास एवं आवास विभाग  
 परिवहन विभाग कार्य विभाग 
विधि विभाग
योजना-सह -वित्त विभाग
वाणिज्य कर विभाग
स्वास्थ्य चिकित्सा शिक्षा एवं परिवार कल्याण विभाग
 जल संसाधन विभाग 
पेयजल एवं स्वछता विभाग 
उद्योग विभाग
 सड़क निर्माण विभाग
खान एवं भूगर्भ विभाग
पर्यटन,कला संस्कृति ,खेलकूद एवं युवा विभाग 
➤सुचना एवं  प्रौद्योयोगिकी  प्रौद्योगिकी एवं इ -गवर्नेंस विभाग
वन पर्यावरण एवं जलवायु मामले विभाग 
कल्याण विभाग
श्रम एवं नियोजन विभाग
गृह ,जेल एवं आपदा प्रबंधन कल्याण विभाग
कर विभाग समाज कल्याण विभाग
➤ सूचना और जनसम्पर्क विभाग 
 आबकारी विभाग
महिला बाल विकास एवं सामाजिक सुरक्षा विभाग।  

प्रत्येक विभाग का राजनीतिक प्रधान एक मंत्री होता है 
प्रत्येक विभाग का एक सचिव सेक्रेट्री होता है, जो विभाग का प्रमुख अधिकारी होता है। 
विदित रहे कि कोई भी सचिव मंत्री विशेष का सचिव नहीं होता है, बल्कि वह विभाग या सरकार का सचिव होता है। 

 प्रत्येक विभाग के सचिवों को उनके कार्यों में सहायता पहुंचाने के लिए अधीनस्थ अधिकारियों, कर्मचारियों की एक लंबी श्रृंखला होती है।  
विशेष सचिव (Special Secretary),
 अपर सचिव (Additional Secretary), 
संयुक्त सचिव (Joint Secretary), 
उप सचिव (Deputy Secretary) 
अवर सचिव (Under Secretary) तथा अन्य अनेक अधिकारी एवं कर्मचारी।  

सचिव के मुख्य कार्य

सचिव के मुख्य कार्य  हैं 
नीति निर्धारण 
विधान एवं नियमावली निर्माण 
क्षेत्रीय नियोजन एवं परियोजना निर्माण 
बजट एवं नियंत्रण व्यवस्था 
➤क्रियान्वयन एवं मूल्यांकन 
➤समन्वय 
विभागीय मंत्रियों एवं मंत्रियों की सहायता करना  
  

मुख्य सचिव

 सचिवालय का प्रधान मुख्य सचिव (Chief  Secretary) होता है    
यह भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी होता है    
यह  सचिवों का प्रधान होता है,वह लोक सेवाओं का प्रधान माना जाता है    
यह राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था का नेतृत्व करता है  
➤वह सरकारी तंत्र का मुखिया होता है 
 राज्य सरकार का संपर्क अधिकारी होता है, वह केंद्र सरकार तथा अन्तर्राजीय सरकारों के साथ राज्य सरकार का संपर्क स्थापित करने का काम करता है  
झारखंड के प्रथम मुख्य सचिव का नाम विजय शंकर दुबे थे 
झारखंड के वर्तमान मुख्य सचिव सुखदेव सिंह हैं 
सुखदेव सिंह 1987 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हैं
➤झारखण्ड के 23वें  मुख्य सचिव के रूप में पदभार संभाले 
मुख्य सचिव मुख्यमंत्री के प्रधान सलाहकार के रूप में कार्य करता है

➤झारखण्ड राज्य का प्रशासनिक मुख्यालय राँची स्थित सचिवालय है ,इनके 3 भाग हैं  

1.  मुख्य भाग -प्रोजेक्ट भवन एच.ई.सी. हटिया 
2 . दूसरा भाग -डोरंडा स्थित नेपाल हाउस
3 . तीसरा भाग- ऑड्रे हाउस 

12 सितंबर 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झारखंड सरकार के नए विधानसभा के साथ-साथ सचिवालय का भी शिलान्यास किया 

 झारखंड के  नया सचिवालय की विषेशता:-

नया सचिवालय झारखंड की राजधानी रांची के जगन्नाथपुर के कुटे बस्ती में बनेगा
 इसमें  कुल -1238 करोड रुपए खर्च होंगे
 नया सचिवालय 23 पॉइंट 60 लाख वर्गफीट में बनना है 
झारखंड सरकार का नया सचिवालय भवन आधुनिक बनाने की योजना है 
नया सचिवालय भवन में दो ब्लॉक होंगे जो क्रमशःनॉर्थ ब्लॉक और साउथ ब्लॉक के रूप में जाने जाएंगे 
 सचिवालय भवन में मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव, के अलावा राज्य सरकार के 12 मंत्रियों के लिए भी कक्ष होंगे 
इसके अतिरिक्त सचिवालय भवन में 32 विभागों का कार्यालय होगा
 विभिन्न ब्लॉक में बेसमेंट के अतिरिक्त जी प्लस 3 बिल्डिंग होगा
 इससे थ्री स्टार ग्रीन बिल्डिंग जैसा विकसित करने की योजना है
 नया सचिवालय भवन में अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए कैंटीन,रिफ्रेशमेंट रूम, स्टोर आदि की व्यवस्था होगी

 सचिवालय के कार्य

 सचिवालय के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं 

सचिवीय सहायता :-  राज्य सचिवालय के महत्वपूर्ण कार्य में से एक है मंत्री मंडल एवं उसकी विभिन्न समितियों को सचिवीय सहायता प्रदान करना 

 सूचना केंद्र के रूप में :-राज्य सचिवालय सरकार से संबंधित आवश्यक सूचनाओं को मंत्रिमंडल एवं उनकी विभिन्न समितियों तथा राज्यपाल को प्रेषित करता है
 मंत्रिमंडल की  बैठकों में लिए गए निर्णयों की सूचना भी वह संबंधित विभागों को भेजता है

समन्वयात्मक कार्य :- मुख्य सचिव विभिन्न समितियों का अध्यक्ष होने के नाते विभिन्न विभागों के बीच समन्वय स्थापित करता है

सलाहकारी  कार्य :-राज्य सचिवालय मुख्यमंत्री एवं अन्य मंत्रियों को नीतियों के निरूपण एवं संपादन में सलाह देता है

अन्य कार्य :- राज्यपाल द्वारा विधानसभा में दिए जाने वाले अभिभाषणों एवं संदेशों को तैयार करना 
वित्त विभाग के सलाह  से विभाग का बजट तैयार करना 
नियुक्ति, पदोन्नति, वेतन आदि के बारे में नियम बनाना 
➤विभागीय अधिकारियों-कर्मचारियों का चयन एवं प्रशिक्षण, पदस्थापन  एवं  स्थानांतरण इत्यादि













 











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Sunday, September 6, 2020

Jharkhand Lok Sewa Aayog(Jharkhand Public Service Commission)

झारखंड लोक सेवा आयोग


झारखंड लोक सेवा आयोग की स्थापना रांची में 2002 ईस्वी में किया गया 

इसके प्रथम अध्यक्ष फटीक चंद्र हेंब्रम थे 

➤राज्य लोक सेवा आयोग एक संवैधानिक निकाय है। 

➤यह एक सलाहकारी निकाय हैं 

भारतीय संविधान के अनुच्छेद -315 के अनुसार झारखंड लोक सेवा आयोग (JPSC) का गठन किया गया है

वर्तमान में झारखंड लोक सेवा आयोग में एक अध्यक्ष और 8 अन्य सदस्यों की नियुक्ति का प्रावधान है

 राज्य के राज्यपाल को संबंधित राज्य लोक सेवा आयोग के सदस्यों की संख्या और उनकी सेवा की शर्तों का निर्धारण करने का अधिकार  है 

नियुक्ति

 राज्य के राज्यपाल द्वारा राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति की जाती है

कार्यकाल 

राज्य झारखंड लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों का कार्यकाल पद भार ग्रहण करने की तिथि से 6 वर्ष तक या 62 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक, जो भी पहले हो , होता है

लेकिन इसके पूर्व अध्यक्ष या सदस्य संबंधित राज्य के राज्यपाल को त्यागपत्र देकर अपना पद छोड़ सकता है 

इसके अलावा राज्यपाल आयोग के अध्यक्ष अथवा सदस्य को निलंबित कर सकता है

लेकिन आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्य को उसके पद से हटाने का अधिकार सिर्फ राष्ट्रपति को है

कार्य :- राज्य लोक सेवा आयोग के निम्नलिखित कार्य हैं

राज्य की सेवाओं में नियुक्तियों के लिए परीक्षाओं का आयोजन करते है

➤ 1 . झारखंड लोक सेवा आयोग राजपत्रित एवं अराजपत्रित पदों के लिए संयुक्त प्रतियोगी परीक्षा का आयोजन करता है 

➤2 . सार्वजनिक लोक सेवाओं में भर्ती के तरीके

एक सेवा से दूसरे सेवा में स्थानांतरण, पदोन्नति, पेंशन आदि के मामलों पर राज्य सरकार को सलाह देना

➤झारखण्ड लोक सेवा आयोग का मुख्यालय राँची में है 

➤झारखण्ड लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष बने है सुधीर त्रिपाठी 

सुधीर त्रिपाठी (पूर्व मुख्य सचिव)-31 मार्च 2019 को झारखण्ड सरकार के मुख्य सचिव के पद से सेवानिवृत्त  हुए हैं। 

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Saturday, September 5, 2020

Jharkhand Ki Rajvyavastha Part-4 (JUDICIARY OF JHARKHAND)

Jharkhand Ki Rajvyavastha Part-4

झारखंड की न्यायपालिका


➤भारत  के संविधान के अनुच्छेद -214 से हर-एक  राज्य में एक उच्च न्यायालय की व्यवस्था की गई है 
परन्तु दो या दो से अधिक राज्यों के लिए एक ही उच्च न्यायालय है  
अथवा एक अधिक जनसंख्या वाले किसी राज्य के लिए एक से ज्यादा उच्च न्यायालय की व्यवस्था करना, भारतीय संसद का विशेष अधिकार है 
न्यायपालिका सरकार का तीसरा महत्वपूर्ण अंग है 
इसका उद्देश्य नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना है ,
सरकार का मुख्य काम, व्यक्ति और व्यक्ति एवं व्यक्ति और राज्य के मध्य होने वाले विवादों को सुलझाना है


झारखंड उच्च न्यायालय

झारखंड राज्य का उच्च न्यायालय देश के 21वें  उच्च न्यायालय के रुप में है 
झारखंड राज्य उच्च न्यायालय का गठन 15 नवंबर 2000 को झारखंड राज्य के स्थापना के साथ ही किया गया
 पटना उच्च न्यायालय से कट के राँची उच्च न्यायालय में रूपांतरित किया गया है 
झारखंड उच्च न्यायालय के प्रथम मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विनोद कुमार गुप्ता नियुक्त किए गए
उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ झारखंड के प्रथम राज्यपाल प्रभात कुमार ने दिलाई 
 वर्तमान में झारखंड उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की कुल संख्या 25 है मुख्य न्यायाधीश सहित,अभी कुल -20 है , 5  पद रिक्त है 

न्यायाधीशों की नियुक्ति

राज्य  में राष्ट्रपति  मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और संबंधित राज्य के राज्यपाल के परामर्श  से करता है  
राष्ट्रपति अन्य न्यायाधीशो की नियुक्ति राज्यपाल , सर्वोच्च  न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश,के अतिरिक्त राज्य के मुख्य न्यायाधीश से भी परामर्श लेता है 

न्यायाधीशों की शपथ

➤राज्यपाल  या उसके द्वारा नियुक्त किसी अधिकृत व्यक्ति के समक्ष न्यायधीशो द्वारा शपथ ली जाती है  
➤16 वें संविंधान संशोधन के बाद उच्च न्यायालय का नयायधीश उसी  प्रकार  शपथ लेता शपथ है, जैसे सर्वोच्च  न्यायालय के न्यायाधीश के लिए निर्धारित है    

योग्यताएं     

वह भारत का नागरिक हो  
वह 62 वर्ष से कम आयु का हो वह कम से कम 10 वर्ष तक न्यायिक पद पर रह चुका हो  या किसी उच्च न्यायालय में या एक से अधिक उच्च न्यायालयों में निरन्तर 10 साल तक अधिवक्ता रह चुका हो 

वेतन एवं भत्ते

वेतन एवं भत्ते उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को ₹2,50,000  तथा अन्य न्यायाधीश को ₹2,25,000 मासिक वेतन मिलता है
 इसके अलावे  संसद द्वारा निर्धारित अन्य भक्तों एवं सुविधाएं मिलती हैं
'
कार्यकाल

 उच्च न्यायालय के न्यायधीश का कार्यकाल 62 वर्ष की आयु पूरी होने तक अपने पद धारण करता है 
परंतु वह किसी भी समय राष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र दे सकता है
 इसके अलावा वह राष्ट्रपति द्वारा अपने पद से हटाया जा सकता है, यदि संसद उसे अयोग्य या दुराचारी सिद्ध कर विशेष बहुमत से प्रस्ताव पारित कर दे

➤उच्च न्यायालय को तीन प्रकार का क्षेत्राधिकार प्राप्त है
1.मूल क्षेत्राधिकार 
2.अपीलीय क्षेत्राधिकार
3.प्रशासनिक अधिकार

1.मूल क्षेत्राधिकार :- के अंतर्गत संविधान की व्याख्या और नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा संबंधी मामले आते हैं, संविधान के अनुच्छेद-226 के अनुसार मौलिक अधिकार से संबंधित कोई भी मामला सीधे उच्च न्यायालय में लाया जा सकता हैमौलिक अधिकारों को लागू करवाने के लिए उच्च न्यायालय निम्न 5 प्रकार का लेख जारी करता है

2 परमा देश लेख  
3 प्रतिषेध लेख
4 अधिकार पृच्छा लेख 
5 उत्प्रेषण  लेख

2.अपीलीय क्षेत्राधिकार :-अपीलीय क्षेत्राधिकार के अंतर्गत जिला एवं सेशन जज के द्वारा हत्या के मुकदमे में मृत्युदंड की सजा, उच्च न्यायालय की बगैर पुष्टि के मान्य नहीं होगा 
संविधान की व्याख्या से संबंधित किसी प्रकार के मामले में उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है
उच्च न्यायालय को विवाह, तलाक, वसीयत, जल सेना विभाग, न्यायालय का अपमान, कंपनी कानून आदि से संबंधित अभियोग भी उच्च न्यायालय के आरंभिक अधिकार क्षेत्र में आते हैं

3.प्रशासनिक क्षेत्राधिकार  :- इस क्षेत्राधिकार के द्वारा उच्च न्यायालय अपने अधीनस्थ न्यायालय का निरीक्षण करता है एवं उन पर नियंत्रण रखता है 
उच्च न्यायालय के सलाह से ही राज्यपाल जिला ने न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है 
 न्यायाधीशों की पदोन्नति ,छुट्टी इत्यादि के बारे में भी राज्यपाल को उच्च न्यायालय से परामर्श से कार्य करना होता है
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Jharkhand Ke Mahadhivakta (Jharkhand Advocate General)

Jharkhand Ke Mahadhivakta

(झारखंड के महाधिवक्ता)

 महाधिवक्ता राज्य का सबसे ऊंचे विधि अधिकारी होता है, उनकी नियुक्ति राज्यपाल करते हैं

 महाधिवक्ता पद पर नियुक्त होने के लिए उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के पद के योग्यता के समान ही योग्यता निर्धारित है, लेकिन उसकी उम्र संबंधी कोई योग्यता निर्धारित निश्चित प्रावधान नहीं है 

महाधिवक्ता का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है या राज्यपाल की इच्छा पर निर्भर करती है 

  वह ऐसे वेतन का हकदार होता है, जो राज्यपाल समय-समय पर निर्धारित करता है 

राज्य सरकार को विधि संबंधी विषयों पर सलाह देना

जो राज्यपाल द्वारा किए गए हो, संविधान या अन्य अधिनियम द्वारा प्रदत कोई विधिक कार्य का निर्वाहन 

करना  महाधिवक्ता का  मुख्य कार्य है

 महाधिवक्ता राज्य  के विधान मंडल या किसी समिति में जिसमें उसका नाम सदस्य के रूप में है,

 उसमें भाग लेने या अपनी बात रखने का अधिकार महाधिवक्ता को है 

लेकिन  वह विधानमंडल के किसी भी कार्यवाही में मतदान देने का अधिकार नहीं है 

झारखंड के पहले महाधिवक्ता का नाम मंगलमय बनर्जी है 

झारखंड के वर्त्तमान महाधिवक्ता का नाम राजीव रंजन है 



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Thursday, September 3, 2020

Jharkhand ki Rajvyavastha Part-3 (Jharkhand Legislative Assembly)

Jharkhand Ki Rajvyavastha Part-3

विधानसभा (The Legislative Assembly)



विधायिका

➤भारतीय संविधान में संघीय शासन व्यवस्था होने के कारण राज्यों में अलग विधानमंडल की व्यवस्था की गई है 
 संविधान के अनुसार राज्य विधानमंडल में एक सदन हो सकता है या दो सदन हो सकता है 
 यह राज्य  की इच्छा पर निर्भर करता है 
 झारखंड राज्य में एक सदनीय विधान मंडल अर्थात केवल एक विधानसभा है 
 यहां राज्यपाल और विधान मंडल को मिलाकर विधानमंडल बनता है  
➤जिन राज्यों में द्विसदनीय विधानमंडल है, जैसे :- भारत के 5 राज्यों बिहार, जम्मू कश्मीर, कर्नाटक महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश में है, वहां राज्यपाल, विधानसभा एवं विधान परिषद को मिलाकर विधानमंडल बनता है 

विधानसभा (Legislative Assembly)

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 170 से संबंधित राज्य में एक विधानसभा के होने का उपबंध है  
जिसके सदस्यों का निर्वाचन राज्य के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्यक्ष मताधिकार द्वारा किया जाता हैइस अनुच्छेद के अनुसार किसी भी राज्य के विधानसभा में सदस्यों की कुल संख्या अधिकतम 500 और न्यूनतम 60 होनी चाहिए  
भारत में सिक्किम में (32), गोवा में (40), अरुणाचल प्रदेश  (40) मिजोरम (40) विधानसभा सदस्यों वाले राज्य है जो इसके अपवाद है 
 राज्य के विधानसभा के निर्वाचन क्षेत्र का निर्धारण परिसीमन आयोग द्वारा किया जाता है  
वर्तमान झारखंड में विधानसभा सदस्यों की संख्या 82 है, जिसमें 81 सदस्यों का निर्वाचन वयस्क मताधिकार के आधार पर और एक सदस्य का मनोनीत राज्यपाल द्वारा एंग्लो इंडियन समुदाय के प्रतिनिधि के रूप में किया जाता है

अवधि

विधानसभा का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है  
राज्य में आपात स्थिति लागू होने पर संसद के द्वारा इसकी अवधि 6 माह तक बढ़ाई जा सकती है 
इस तरह से इसका कार्यकाल 1 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है 
 भारतीय संविधान के अनुच्छेद 172 (१) में वर्णित है किसी दल के बहुमत नहीं होने पर अथवा सरकार के बहुमत नहीं होने की स्थिति में राज्यपाल के द्वारा विधानसभा को उसके कार्यकाल पूर्ण रूप होने से पहले ही विघटित किया जा सकता है
 राज्यपाल के द्वारा विधानसभा का अधिवेशन बुलाया जाता है, लेकिन विधानसभा के दो सत्रों के बीच 6 महीने के अधिक मध्यवकाश नहीं होना चाहिए 
झारखंड विधानसभा की कुल 82  सीटों में से अनुसूचित जनजाति के लिए (28), अनुसूचित जाति के लिए (9) सीटें आरक्षित हैं तथा शेष (44) सीट सामान्य श्रेणी की हैं

विधानसभा सदस्य बनने की योग्यताएं

वह भारत का नागरिक हो और  कम से कम 25 वर्ष की उम्र का हो
वह भारत सरकार या किसी राज्य के अधीन लाभ के पद पर ना हो 
वह दिवालिया या पागल ना हो

 सदस्य की समाप्ति

 विधानसभा की सदस्यता निम्नलिखित परिस्थितियों में समाप्त हो सकती है 

विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र  दे दें 
 यदि सदस्य अन्य किसी राज्य की विधान मंडल का सदस्य निर्वाचित हो जाए
 यदि वह सदन की अनुमति के बिना लगातार 60 दिन तक सदन में अनुपस्थित रहे
यदि वह दलबदल का दोषी साबित हो जाए
 विधानमंडल के किसी सदस्य की योग्यता या अयोग्यता का अंतिम निर्णय राज्यपाल चुनाव आयोग के परामर्श से करता है

विधानसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष

विधानसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष भारतीय संविधान के  अनुच्छेद 178 के तहत  प्रत्येक राज्य में विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पद का निर्धारित है
 इसका चुनाव संबंधित विधानसभा के सदस्यों के द्वारा किया जाता है
 लोकसभा अध्यक्ष के जैसे विधानसभा अध्यक्ष विधानसभा की कार्रवाई चलाने का अधिकारी होता है
 विधानसभा अध्यक्ष विधानसभा का सबसे उच्च अधिकारी होता है
 विधानसभा अध्यक्ष की अनुपस्थिति में विधानसभा उपाध्यक्ष सदन की कार्यवाही की अध्यक्षता करते हैं 
अध्यक्ष का कार्यकाल 5 वर्ष या नई विधानसभा के प्रथम बैठक के ठीक पहले तक होता है 
विधानसभा अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष को कम से कम 14 दिन की पूर्व सूचना के उपरांत लाए गए अविश्वास प्रस्ताव को विधानसभा में पास करा के पद से हटाया जा सकता है

विधानसभा अध्यक्ष के अधिकार

 राज्यपाल का सन्देश विधानसभा में और विधानसभा का निर्णय राजपाल को देता है
किसी विधेयक में पक्ष और विपक्ष का मत समान नहीं हो, तो अध्यक्ष मत विभाजन में भाग नहीं लेता है 
लेकिन मत समान होने की स्थिति में विधानसभा अध्यक्ष विधेयक के लिए निर्णायक मत देता है
 कोई विधेयक दोनों सदन में पास हो जाने के बाद विधानसभा अध्यक्ष उस विधेयक पर अपने हस्ताक्षर करते हैं
 विधानसभा अध्यक्ष का पद निष्पक्ष होता है

विधानसभा उपाध्यक्ष (द डिप्टी स्पीकर)

विधानसभा उपाध्यक्ष विधान सभा का दूसरा प्रमुख अधिकारी होता है 
विधान सभा अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उसका सारे कार्य विधानसभा उपाध्यक्ष करता है
वह विधानसभा अध्यक्ष को त्यागपत्र देकर अपना पद छोड़ सकता है 
झारखंड के प्रथम विधानसभा उपाध्यक्ष बागुन सुम्ब्रई थे 

विधानसभा के कार्य

विधायी कार्य  :- विधानसभा को राज्य सूची और समवर्ती सूची के सभी विषयों पर कानून बनाने का अधिकार है  
कोई भी साधारण विधेयक विधानसभा परिषद् में पास होने के बाद विधान परिषद में पेश किया जाता है लेकिन देश के 7 राज्यों आंध्र प्रदेश, बिहार, जम्मू कश्मीर, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश में विधान परिषद की व्यवस्था है 
झारखंड में विधान परिषद की व्यवस्था नहीं है 

वित्तीय कार्य :- धन  विधेयक केवल विधानसभा में ही पेश हो सकता है 
एक बार धन विधेयक विधानसभा में पारित होने के बाद विधान परिषद में उसे पेश किया जाता है 
विधान परिषद को 14 दिन के अंदर पास करना होता है नहीं तो स्वत: पारित मान लिया जाता है
इसके बाद वह राज्यपाल की स्वीकृति के लिए भेजा जाता है राज्यपाल को धन विधेयक पर अपनी स्वीकृति देनी ही पड़ती है

संवैधानिक कार्य :- संविधान के कुल अनुच्छेदों में संशोधन करने में भारतीय संसद को संशोधन करने के लिए देश के आधे राज्यों के विधान मंडलों की स्वीकृति जरुरत होती है
 विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों को राष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेने का अधिकार है 
विधानपरिषद् के सदस्यों को राष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेने का अधिकार प्राप्त नहीं है 
 














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Tuesday, July 28, 2020

Jharkhand ki Rajvyavastha Part-2 (झारखंड की राजव्यवस्था PART-2)

Jharkhand ki Rajvyavastha Part-2

झारखंड की राजव्यवस्था PART-2

मुख्यमंत्री (वास्तविक प्रधान)

💨संविधान में (अनुच्छेद 163) के अनुसार राज्यपाल को उनके कार्यों में सहायता एवं सलाह देने के लिए एक मंत्री परिषद का गठन किया जाता है,जिसका प्रधान मुख्यमंत्री होता है

मुख्यमंत्री के कार्यकाल

💨राज्य में मंत्री परिषद का प्रधान मुख्यमंत्री होता है,मुख्यमंत्री का कार्यकाल राज्य विधानसभा के कार्यकाल के समांतर ही 5 वर्ष का होता है
💨 यदि विधानसभा का कार्यकाल बढ़ा दिया जाता है तो मुख्यमंत्री का कार्यकाल स्वतः बढ़ जाता है

मुख्यमंत्री के कार्य और अधिकार

💨राज्य की मंत्री परिषद का प्रधान मुख्यमंत्री होने के नाते राज्य का प्रशासन प्रणाली पूरी तरह से मुख्यमंत्री के नियंत्रण में होता है
💨मुख्यमंत्री को मंत्रिपरिषद का विस्तार तथा पुनर्गठन करने का अधिकार प्राप्त है
💨राज्यपाल और मंत्रिपरिषद के बीच मुख्यमंत्री कड़ी का कार्य करता है 
💨मुख्यमंत्री राज्यपाल का मुख्य परामर्शदाता होता है
💨मंत्रिपरिषद के  निर्णयों की सूचना राज्यपाल को तथा राज्यपाल की कोई सलाह मंत्री परिषद को मुख्यमंत्री के द्वारा दी जाती है 
💨राज्य शासन प्रणाली के सभी विभागों में मुख्यमंत्री समन्वय स्थापित करता है 
💨मुख्यमंत्री मंत्री परिषद का अध्यक्ष होता है वह मंत्री परिषद के अधिवेशनो की अध्यक्षता करता है, तथा अधिवेशनो की तिथि तय करना तथा उसके लिए कार्य सूचना बनवाना 
💨राज्य में सभी महत्वपूर्ण नियुक्तियां राज्यपाल,मुख्यमंत्री,मुख्यमंत्री की सलाह पर ही करता है 
💨राज्य विधानमंडल का नेता मुख्यमंत्री होता है 
💨मुख्यमंत्री मंत्रियों की नियुक्ति करता है तथा विभागों का विभाजन मुख्यमंत्री की सलाह से राज्यपाल करता है

मंत्री परिषद

राज्य की कार्यपालिका को सुचारू रूप से चलाने के लिए मुख्यमंत्री एक मंत्री परिषद का गठन करता है,
इसमें एक मुख्यमंत्री और अन्य मंत्री होते हैं
💨इसमें मंत्री परिषद का मुख्य अध्यक्ष मुख्यमंत्री होते हैं
💨मुख्यमंत्री तथा अन्य मंत्री की नियुक्ति (मुख्यमंत्री की सलाह )पर राज्यपाल द्वारा की जाती है
💨मंत्री परिषद की कुल संख्या 12 है मुख्यमंत्री सहित  इस से अधिक नहीं हो सकती
💨मंत्री परिषद सामूहिक उत्तरदायित्व पर कार्य करती है एक मंत्री के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित होने पर समस्त मंत्री परिषद त्यागपत्र दे देती हैं

मंत्री परिषद के कार्य

💨संविधान के अनुसार मंत्री परिषद का कार्य राज्यपाल को उसके कार्यों में परामर्श एवं सहायता प्रदान करना है,लेकिन वास्तव में शासन का सारा कार्य मंत्री परिषद करती है 

मंत्री परिषद के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं

💨यह सरकार की नीति निर्धारित करती है तथा उस कार्य को पूरा करने का प्रयास करते हैं 
💨मंत्रियों के द्वारा ही विधान मंडल में विधेयक पेश किए जाते हैं 
💨राज्य के सभी महत्वपूर्ण नियुक्तियां राज्यपाल मंत्रिमंडल की परामर्श से करता है 
💨विधानसभा में बजट प्रस्तुत करने से पहले मंत्री परिषद बजट को स्वीकृत करती हैं

 झारखंड के मुख्यमंत्री की सूची:-


क्रमांक   नाम              कार्यकाल

   1       बाबूलाल मरांडी  -      15 नवंबर 2000 से 17 मार्च 2003
   2       अर्जुन मुंडा -               18 मार्च 2003 से 2 मार्च 2005
   3       शिबू सोरेन  -               2   मार्च 2005 से 12 मार्च 2005
   4       अर्जुन मुंडा  -              12  मार्च 2005 से 18 सितंबर 2006
   5        मधु कोड़ा    -             18  सितंबर 2006 से 27 अगस्त 2008 
   6        शिबू सोरेन-               27 अगस्त  2008  से 18 जनवरी 2009 
 💥       राष्ट्रपति शासन -       19  जनवरी 2009 से 29 दिसंबर 2009
   7        शिबू सोरेन-               30  सितंबर 2009 से 31 मई 2010
 💥      राष्ट्रपति शासन-           1   जून 2010 से 10 सितंबर 2010
   8       अर्जुन मुंडा -               11  सितंबर 2010 से 17 जनवरी 2013
 💥      राष्ट्रपति शासन -        18  जनवरी 2013 से 12 जुलाई 201 3
   9        हेमंत सोरेन  -            13  जुलाई 2013 से 28 दिसंबर 2014 
  10       रघुवर दास -              28  दिसंबर 2014 से 23 दिसंबर 2019
  11       हेमंत सोरेन -              29  दिसंबर 2019 से अब तक

महत्वपूर्ण तथ्य :-

💨 राष्ट्रपति शासन-3 बार  
💨शिबू सोरेन तीन बार मुख्यमंत्री बने थे 
💨 अर्जुन मुंडा तीन बार मुख्यमंत्री बने थे 
💨 मधु कोड़ा एक बार मुख्यमंत्री बने थे  
💨 बाबूलाल मरांडी एक बार मुख्यमंत्री बने थे  
💨 रघुवर दास  एक बार मुख्यमंत्री बने थे  
💨 हेमंत सोरेन दो बार मुख्यमंत्री बने थे  
💨शिबू सोरेन सबसे काम दिन (10 )के लिए मुख्यमंत्री बने थे 

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Sunday, July 26, 2020

Jharkhand ki Rajvyavastha Part-1 (झारखंड की राजव्यवस्था PART-1)

Jharkhand ki Rajvyavastha Part-1

झारखंड की राजव्यवस्था PART-1

भारतीय संविधान के प्रावधान के अनुसार झारखंड भारत संघ का एक अभिन्न अंग है झारखंड भारत संघ का एक राज्य है झारखंड की शासन प्रणाली भारत संघ के अन्य राज्यों के समान है, झारखंड में संसदीय शासन प्रणाली स्थापित है 



1. विधायिका-   सरकार के कानून बनाने वाले अंग को विधायिका कहते हैं 
2. कार्यपालिका - सरकार के कानूनों को कार्यान्वित करने वाले अंग को कार्यपालिका कहते हैं 

3. न्यायपालिका - सरकार के न्याय करने वाले अंग को न्यायपालिका कहते हैं

कार्यपालिका  

संसदीय शासन प्रणाली के अंतर्गत राज्य में दो प्रकार की कार्यपालिका होती है 

1.नाम मात्र की कार्यपालिका -जिसका प्रमुख राज्यपाल होता है 
2.वास्तविक कार्यपालिका  -   जिसका प्रमुख मुख्यमंत्री होता है 

💨राज्यपाल राज्य का नाम मात्र का अध्यक्ष है राज्य की समस्त कार्यपालिका संबंधित शक्ति राज्यपाल में निहित होता है जिसका प्रयोग वह मंत्रिपरिषद की सहायता से करता है 

💨 भारत के प्रत्येक राज्य में एक राज्यपाल होगा(अनुच्छेद 153 में यह प्रावधान है)। 
💨राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है तथा अपनी इच्छा के अनुरूप पद पर बना है रहता है(अनुच्छेद 155 )

राज्यपाल पद पर नियुक्त किए जाने वाले व्यक्ति में निम्नलिखित योग्यताएं होनी चाहिए

 💨वह भारत का नागरिक  हो
💨वह 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो
💨वह संसद या किसी राज्य विधानमंडल का सदस्य ना हो
💨वह किसी लाभ के पद पर ना हो 
💨राज्य की विधान सभा का सदस्य बनने की योग्यता रखता है

राज्यपाल की कार्यकाल

💨राज्यपाल का कार्यकाल (अनुच्छेद 156) के अनुसार उनके पद ग्रहण करने की तारीख से लेकर 5 वर्ष तक का होता है इस अवधि की समाप्ति के बाद भी वह तब तक अपने पद पर बना रहता है, जब तक की उसका कोई उत्तराधिकारी पद ग्रहण नहीं कर लेता है 
💨राज्यपाल  राष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र दे कर पद से मुक्त हो सकता है

राज्यपाल की शपथ

 राज्यपाल को शपथ संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाता है (अनुच्छेद 159 के तहत)

राज्यपाल का वेतन और भत्ता

राज्यपाल को तीन लाख पचास हजार रूपये (₹3,50,000) प्रति माह वेतन मिलता है तथा वह ऐसे भत्ते का भी हकदार होता है जिसे संसद द्वारा नियत किया जाता है

राज्यपाल के कार्य और अधिकार संक्षिप्त में:-

💨राज्य की समस्त कार्यपालिका शक्तियां राज्यपाल में निहित होता है (अनुच्छेद 154)
💨राज्यपाल का समस्त कार्य राज्यपाल के नाम से संचालित किया जाता है (अनुच्छेद 166 )
💨राज्यपाल मुख्यमंत्री की नियुक्ति करता है तथा मुख्यमंत्री के परामर्श से ही अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है।(अनुच्छेद 164)
💨राज्य के महाधिवक्ता, राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्य अधीनस्थ न्यायालयों के न्यायाधीशों आदि की नियुक्तियां भी राज्य के राज्यपाल करते हैं
💨राज्यपाल विधानसभा में एक अंगलो भारतीय सदस्य की नियुक्ति करता है(अनुच्छेद 333 )

राज्यपाल की आपत्कालीन अधिकार

💨राज्यपाल राज्य में(अनुच्छेद 356) के तहत राष्ट्रपति से राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने का सिफारिश कर सकता है 

राज्यपाल की विधायी अधिकार

💨राज्यपाल को  राज्य में  विधानमंडल का सत्र बुलाने,सत्रवास करने तथा विधानसभा को विघटित करने का अधिकार प्राप्त है(अनुच्छेद 174)
💨राज्यपाल की अनुमति के बिना कोई धन विधेयक अधिनियम पारित नहीं होता है (अनुच्छेद 200)
💨प्रतिवर्ष राज्य में वित्तीय लेखा-जोखा को तैयार करवा कर सदन के सामने प्रस्तुत करता है(अनुच्छेद 202 के तहत)

राज्यपाल के प्रमुख न्यायिक अधिकार निम्नलिखित हैं

💨राज्यपाल जिला न्यायाधीशों और अन्य अधिकारों की नियुक्ति स्थानांतरण पदोन्नति के संबंधित मामलों पर निर्णय करता है राज्यपाल इन शक्तियों का प्रयोग उच्च न्यायालय की सलाह से करता है
💨राज्यपाल किसी व्यक्ति को न्यायालय द्वारा दिए गए दंड को क्षमादान,लघु करण,निलंबन आदि में  परिवर्तित कर सकते हैं
💨किंतु मृत्युदंड प्राप्त किसी व्यक्ति के बारे में कोई भी निर्णय लेने का शक्ति राज्यपाल को प्राप्त नहीं है























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