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Sunday, April 25, 2021

Mahatma Gandhi National Employment Guarantee Act (NREGA/MGNREGA)

NREGA/MGNREGA, 2005:

  • Mahatma Gandhi National Employment Guarantee Act 2005 (MGNREGA) is Indian labor law and social security measure that aims to guarantee the 'right to work'. This was passed in September 2005 under the UPA government of PM Dr. Manmohan Singh and launched on 2nd February 2006 from Bandapalli in Andhra Pradesh.

Mahatma Gandhi National Employment Guarantee Act


  • It aims to enhance livelihood security in rural areas by providing at least 100 days of wage employment in a financial year to every household whose adult members volunteer to do unskilled manual work. Another aim is to create durable assets (such as roads, canals, ponds, wells).


  • Apart from providing economic security and creating rural assets, it can help protect the environment, empower rural women, reduce rural-urban migration, and foster social equity.

  • 'Sampoorna Gram Rozgar Yojana and 'Kaam Ke Badle Anaj' have been merged in this scheme. 

  • The cost of the scheme is shared by the Centre and the State in the ratio of 90:10. According to Mahendra Dev Committee, the minimum wage shall be paid based on wages fixed by regulations. This will be reviewed concerning Consumer Price Index (CPI) and Rural Inflation Index.

  • Mihir Shah Committee played a significant role in making MGNREGA more effective and giving it a new shape. Based on these recommendations, changes were incorporated in MGNREGA to ensure that its execution helped in improving the productivity of smallholding. MGNREGA projects have now been linked to the Member of Parliament Local Area Development Scheme (MPLADS).

  • Under Geo-MGNREGA, 99 thousand assets have been geotagged in Jharkhand. Mates have been selected for the successful execution of the scheme. 50% of the position of selected mates has been reserved for women. The members of the self-help group (Sakhi Mandal) are given preference in selection mates. Only female mates are chosen in the block where Cluster Facilitation Team (CFT) is functional.

  • CFT is functioning in 76 blocks of 21 districts in the state. They are responsible to assist workers in getting work and job cards, augmenting the capacity of Sakhi Mandal, etc. This team is being managed by the Ministry of Rural Developments, Government of India since July 2014. 28 new blocks in the state have been included under CFT-II.

      
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Saturday, April 24, 2021

Sansad Adarsh Gram Yojana (SAGY)

Sansad Adarsh Gram Yojana, 2014:

  • This scheme was launched on 11th October 2014 on the birth anniversary of Lok Nayak Jai Prakash Narayan at Vigyan Bhawan, New Delhi by PM Narendra Modi. This is being administered by the Ministry of Rural Development, GoI. 

  • Under this scheme, every Member of Parliament (MP) shall adopt villages in his/her parliamentary constituency to develop them as model villages. 

  • The Gram Panchyat shall be the basic unit for this development. Its population shall be 3000-3500 in plains and 1000-3000 in hilly, tribal, and remote areas. In the districts where a unit of that size is not available, the Gram Panchayats approximating the desirable population size may be selected. The MP will identify one Gram Panchyat initially and two others later. 


  • Rajya Sabha MP may select a Gram Panchayat of his choice from the state from which he/she is elected. 

  • Nominated MPs may choose a Gram Panchayat from the rural of any district in the country. 

  • In the case of urban constituencies (where there are no Gram Panchayats), the MP will identify a Gram Panchayat from a nearby rural constituency.

  • Goal: To develop three Adarsh Grams by March 2019, of which one was to be achieved by 2016. Thereafter, five such Adarsh Grams (one per year) will be selected and developed by 2024 and to translate this comprehensive and organic vision of Mahatma Gandhi into reality, keeping in view the present context.

  • Objective: To trigger processes that led to the holistic development of the identified Gram Panchayats. To substantially improve the standard of living and quality of life of all sections of the population through improved basic amenities, higher productivity, enhanced human development, better livelihood opportunities, reduced disparities, access to rights and entitlements, wider social mobilization, enriched social capital. 


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Friday, April 23, 2021

Chotanagpur Kashtkari Adhiniyam 1908 Part-3 (छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908)

Chotanagpur Kashtkari Adhiniyam 1908 Part-3



अध्याय - 5

खूंटकट्टी अधिकार प्राप्त रैयत - (धारा- 37) 

धारा-37  :- इस अधिनियम के अधिभोगी रैयत संबंधी प्रावधान उन रैयतों पर भी लागू होंगे, जिन्हें खूँटकट्टी अधिकार प्राप्त हों,  लेकिन :- 

1 - यदि रैयत द्वारा इस अधिनियम के प्रारंभ के 20 वर्षों से अधिक पूर्व भूमि की काश्तकारी सृजित की गई हो, तो भूमि का लगान  नहीं बढ़ाया जाएगा 

2 - यदि भूमि के लगान में वृद्धि हेतु कोई आदेश पारित किया गया हो तो,  लगान में वृद्धि उसी गांव में समरूप भूमि के  अधिभोगी रैयत पर लगाये गए लगान के आधे से अधिक नहीं होगी

अध्याय - 6

अनधिभोगी रैयत- धारा - (38 से 42)

धारा- 38  :- अनधिभोगी रैयत का प्रारंभिक लगान और पट्टा 

अनधिभोगी रैयत की भूमि का लगान उसके और भूस्वामी के बीच किये गए करार के आधार पर तय किया जाएगा 

धारा- 39 :- अनधिभोगी रैयत  को अपनी जोत का लगान उसी प्रकार देना होगा जिस प्रकार अधिभोगी रैयत देते हैं 

धारा- 40 :- अनधिभोगी रैयत के के लगान की वृद्धि  

लगान में वृद्धि रजिस्ट्रीकृत करार तथा धारा-42 के अधीन करार के सिवाय नहीं बढ़ाया जा सकता है 

धारा- 41 :- अनधिभोगी रैयत की बेदखली का आधार 

➤किसी भी अनधिभोगी रैयत को निम्नलिखित आधारों में से किसी एक या अधिक के आधार पर ही बेदखल किया जा सकता है :- 

तीसरे कृषि वर्ष के आरंभ के बाद 90 दिनों के अंदर पिछले 2 कृषि वर्षों का लगान देने में असमर्थ रहा हो  

➤जोत की भूमि का अनुपयुक्त प्रयोग जिसके कारण भूमि का मूल्य हासिल हुआ हो अथवा इसे काश्तकारी प्रयोग के अनुपयुक्त बना देता हो 

➤यदि रैयत ने अपने और भूस्वामी के बीच हुए संविदा के किसी प्रावधान का उल्लंघन किया हो 

रजिस्ट्रीकृत पट्टे की अवधि समाप्त हो गयी हो 

रैयत ने उचित लगान का भुगतान करने से इंकार कर दिया हो

धारा- 42 :- यदि रैयत ने उचित एवं साम्यिक लगान का भुगतान करने से इनकार कर दिया हो तो भूस्वामी रैयत को बेदखल करने हेतु उपायुक्त के कार्यालय में  आवेदन देगा। उपायुक्त द्वारा विभिन्न पक्षों को सुनने के पश्चात् ही बेदखली होने या न होने का निर्णय दिया जायेगा 

अध्याय - 7

अध्याय-4 एवं अध्याय-6 से छूट प्राप्त भूमि

धारा- 43  :- भूस्वामी की विशेषाधिकारयुक्त भूमियों  तथा अन्य भूमियों को अध्याय-4 और 6 के प्रावधानों से छूट:- 

➤निम्नलिखित प्रकार के भूमियों पर न तो अधिभोगाधिकार अर्जित किया जा सकता है और न ही इन पर अनधिभोगी रैयत संबंधी प्रावधान लागू होंगे। अर्थात इस प्रकार की भूमि लगान मुक्त होगी। ये हैं :-

अधिनियम की धारा-188 के अंतर्गत भूस्वामी की विशेषाधिकारयुक्त भूमि जिसे अभिधारी ने 1 वर्ष से अधिक अवधि के लिए रजिस्ट्रीकृत पट्टे पर  अथवा 1 वर्ष से कम समय के लिए लिखित या मौखिक पट्टे के पर  धारित किया हो 

सरकार या किसी स्थानीय प्राधिकारी या रेलवे कंपनी के लिए अर्जित भूमि।

किसी छावनी के भीतर सरकार की भूमि

ऐसी भूमि जिसका उपयोग किसी विधिसम्मत प्राधिकारी द्वारा सड़क, तटबंध  बांध, नहर, या जलाशय  जैसे लोक कार्यों के लिए किया जा रहा हो 

                     
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Thursday, April 22, 2021

Jharkhand Ki Sanskritik Sthiti (झारखंड की सांस्कृतिक स्थिति)

Jharkhand Ki Sanskritik Sthiti


➤जनजातीय जीवन की आधारशिला  उनकी परंपराएं हैं, क्योंकि समाज संस्कृति का नियमन भी वही होता है तथा अनुशासन और मानवीय संबंध उसी की छत्रछाया में पुष्पित पल्लवित होते हैं

आदिवासी प्रकृति पूजक होते हैं। उनके पर्व-त्यौहार भी प्रकृति से ही जुड़े होते हैं

झारखंड की जनजातियों के दो बड़े त्योहार सरहुल और करमा है इनमें प्रकृति की उपासना की जाती है। अन्य त्योहारों में भी प्रकृति को सर्वोपरि स्थान दिया जाता है

नामकरण, गोत्र बंधन एवं शादी-व्याह  जैसे उत्सव भी प्रकृति से प्रेरित होते हैं

झारखंड की प्रत्येक जनजाति की पूजा-पद्धति अपने परंपरागत विधि-विधान के अनुसार निर्धारित होती है इनमें मुख्यत: मातृदेवी और पितर देवता की पूजा होती है

धर्मांतरण के कारण झारखंड की जनजातियों का एक वर्ग भिन्न पूजा पद्धतियों में विश्वास करने लगा है, किंतु अभी भी यहां की जनजातियों की एक बड़ी संख्या मूल सरना धर्म की प्रथाओं के अनुसार पूजा-अर्चना करती है

झारखंड की जनजातियों में मृतक-संस्कार में भिन्नता पाई जाती है। यहां अलग-अलग जनजातियां भिन्न-भिन्न तरीकों से मृतक संस्कार करती हैं इस क्रिया में मुख्यत: दो तरीके प्रचलित है कहीं मृतक को जलाया जाता है, तो कहीं मृतक को मिट्टी में दफनाया जाता है। 

झारखंड का जनजातीय परिवार पितृसत्तात्मक है

प्रत्येक जनजाति कई गोत्र में विभक्त है प्रत्येक गोत्र का अपना गोत्र-चिन्ह होता है, जिसे टोटम कहा जाता है , जो टोटम सामान्यतः पशु-पक्षी या पौधों के नाम पर होता है जनजातियां गोत्र चिन्हों को पूज्य मानती है इसलिए उनकी हत्या या कष्ट पहुंचाने पर पाबंदी होता है 

प्रत्येक जनजाति गोत्र के बाहर ही विवाह करती है। गोत्र के अंदर विवाह करना जनजातीय समाज में अपराध माना जाता है। हालांकि  जनजातियां अपनी जाति के अंदर ही विवाह करती हैं

संतान पिता का गोत्र पाती है, माता का नहीं। शादी होने के बाद लड़की पति का गोत्र अपनाती है

जनजातीय परिवार अधिकांशतः एकाकी होता है होते हैं परिवार में माता-पिता और उनके अविवाहित बच्चे होते हैं परिवार समाज की सबसे छोटी इकाई है, परंतु कुछ जनजातियों में संयुक्त परिवार की परंपरा भी प्रचलित है 

पहाड़िया को छोड़कर अन्य जनजातियां कई गोत्रों में विभक्त है एक गोत्र के सभी सदस्य अपने को एक ही पूर्वज की संतान मानते हैं

जनजातियां जीवन में गोत्र सामाजिक संबंधों में आपसी सहायता और सुरक्षा के मजबूत धागों का सृजन करती हैं 

जनजातियों में स्थानीय प्रशासन के लिए गठित परिषद, पंचायत आदि में मुखिया, सरदार या  राजा का पद एक निश्चित गोत्र का सदस्य ही संभालता है प्रशासन संबंधी अन्य कार्य भी गोत्र के अनुसार चुने गए व्यक्ति ही करते हैं 

माता-पिता की संपत्ति पर पहला अधिकार पुत्रों  का होता है, किंतु अविवाहित बेटियों का भी संपत्ति में हिस्से का प्रावधान है

उरांव जनजाति में परिवार के धन पर सिर्फ पुरुष का अधिकार होता है, स्त्री का नहीं 

हो जनजाति में किली के आधार पर परिवार बनते हैं। किली एक सामाजिक और राजनीतिक इकाई होती है

सौरिया पहाड़ियां में संपत्ति पर सिर्फ पुत्रों का अधिकार होता है

बिरहोर जनजाति में पिता की मृत्यु के बाद संपत्ति बेटों के बीच बांट दी जाती है, लेकिन बड़े बेटे को कुछ ज्यादा हिस्सा मिलता है लेकिन बड़े बेटे को कुछ हिस्सा ज्यादा मिलता है बेटा न होने पर परिवार के साथ रहने वाले घर जमाई को पूरी संपत्ति मिलती है 

झारखंड की जनजातियों में धार्मिक विश्वास और आस्था का आधार है -बोंगा। उनके अनुसार बोंगा वह शक्ति है, जो संपूर्ण जग के कण-कण में व्याप्त है उसका न कोई रूप है और न रंग। 

संथाल, मुंडा, हो, बिरहोर आदि जनजातियों में आदि-शक्ति एवं सर्वशक्तिमान देव को सिंगबोंगा कहा जाता है।  माल पहाड़िया, उरांव और खड़िया जनजाति के लोग उसे धर्म-गिरीग आदि नामों से पुकारते हैं जनजातियों में ग्राम प्रधान को हाथों जनजाति में ग्राम देवता को हाथों बंगाली बंगाली बंगाली नामों से पुकारते हैं 

जनजातियों में ग्राम देवता को हेतु बोंगा, देशाउली बोंगा, चांडी बोंगा के नामों से पुकारा जाता है 

मुंडा, हो आदि जनजातियों में ग़ृह देवता को ओड़ा बोंगा के नाम से पुकारा जाता है 

जनजातियों के अधिकांश देवता प्रकृति प्रदत जंगल, झाड़ आदि होते हैं, बुरु बोंगा, इकरी बोंगा आदि      नामों से जाना जाता है गांव के बाहर सरना नामक स्थान होता है माना जाता है कि वह देवताओं का निवास स्थान है। वहीं पूजा होता है और बलि दी जाती है। इसके लिए हर गांव में एक पाहन होता है 

जनजातीय संस्कृति में अखड़ा का एक खास महत्व है यह एक ऐसी जगह है जो पंचायत स्थल के साथ-साथ गांव के मनोरंजन केंद्र के रूप में पहचानी जाती है

जनजातीय युवागृह  एक ऐसा सामाजिक संगठन है , जो जनजातीय क्षेत्र से बाहर की दुनिया में जिज्ञासा, उत्सुकता, कोतूहल और विस्मय के भाव से चर्चित रहा है यह एक प्रकार के प्रशिक्षण केंद्र अर्थात गुरुकुल की तरह कार्य करता है यहां जनजातियों को किशोरों और किशोरियों को सह-शिक्षा के लिए किसी अनुभवी ग्रामवासी की देख-रेख में रखा जाता है

हड़िया सेवन जनजातियों की सर्वकालिक परंपरा है धार्मिक कृत्यों, सामाजिक त्योहारों और घर में आने वाले अतिथियों के सत्कार में हड़िया पीना-पिलाना अनिवार्य माना जाता है

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Wednesday, April 21, 2021

Jharkhand Me Dharmik Andolan (झारखंड में धार्मिक आंदोलन)

Jharkhand Me Dharmik Andolan

झारखंड में धार्मिक आंदोलन

➤6ठी सदी ईस्वी पूर्व में बौद्ध तथा जैन धर्म आंदोलन हुए जिसका व्यापक असर झारखण्ड में भी 
पड़ा। 

धार्मिक आंदोलन को दो वर्गों में विभाजित किया गया है।  

जैन धर्म और बौद्ध धर्म 

 जैन धर्म 

जैन धर्म  का झारखंड पर गहरा प्रभाव पड़ा।  

जैनियों के  23वें तीर्थकर पाशर्वनाथ का निर्वाण 717  ई0 पू0 में गिरिडीह जिला के इसरी के निकट एक पहाड़ पर हुआ। जिसका नामकरण उन्ही के नाम पर पार्शवनाथ/पारसनाथ पड़ा।  

जैन ग्रंथो में भगवान महावीर के 'लोरे-ए-यदगा' की यात्रा का संदर्भ है जिस का मुंडारी में अर्थ 'आंसुओं की नदी' होता है

जैन घर्म के 24 तीर्थकरों में से 20 तीर्थकरों ने इसी पहाड़ी पर निर्वाण प्राप्त किया 

पारसनाथ पहाड़ी की ऊंचाई 1365 मीटर / 4478 फीट है 

यह गिरिडीह जिला में अवस्थित है

यह पहाड़ जैन धर्मवलबियों का प्रमुख तीर्थ स्थल है

इसे जैन धर्म का मक्का कहा जाता है

छोटा नागपुर का मानभूम (वर्तमान में धनबाद) यह जैन सभ्यता व संस्कृति का केंद्र था

दामोदर व कसाई नदियों की घाटी से जैन धर्म संबंधी अवशेष प्राप्त हुए हैं 

हनुमान्ड गॉव पलामू में स्थित है, यहां से जैनियों  के कुछ पूजा स्थल प्राप्त हुए हैं 

सिंहभूम  के बेनुसागर से सातवीं शताब्दी की जैन मूर्तियां प्राप्त हुई है

सिंहभूम के आरंभिक निवासी जैन धर्म को मानने वाले थे जिन्हें 'सरक' कहा जाता था यह गृहस्थ जैन मतावलंबी थे 

सरक ,श्रावक का बिगड़ा हुआ रूप है। हो जनजाति के लोगों ने इन्हें सिंहभूम  से बाहर निकाल दिया था

कोल्हुआ पहाड़ यह चतरा जिले में अवस्थित है

इसका संबंध बौद्ध और जैन धर्म दोनों से है

यहां पर जैन व बौद्ध धर्म की अनेकों मूर्तियों के अवशेषों विद्यमान है

इस पहाड़ पर 10वें तीर्थकर शीतनाथ को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी

यहां पर 9 जैन तीर्थकारों की प्रतिमा है

इस पहाड़ के पत्थर पर एक पद्चिन्ह है जिसे जैन धर्म के अनुयायी पार्शवनाथ का  पद्चिन्ह  मानते हैं 

बौद्ध धर्म 

बौद्ध धर्म का झारखंड पर गहरा प्रभाव पड़ा

झारखण्ड के विभिन्न स्थलों से बौद्ध धर्म संबंधी अवशेष प्राप्त हुए हैं। 

मूर्तियाँ गॉव यह पलामू में अवस्थित है

यहां से एक सिंह शीर्ष मिला है जो सांची स्तूप के द्वार पर उत्कीर्ण सिंह शीर्ष से मेल खाता है

कुरुआ गांव यहां से बौद्ध स्तूप की प्राप्ति हुई है

सूर्यकुंड यह हजारीबाग जिले में अवस्थित है

यहां से बुद्ध  की प्रस्तर मूर्ति मिली है

बेलवादाग यह खूंटी जिला में स्थित है, यहां से बौद्ध विहार के अवशेष प्राप्त हुए हैं 

कटूंगा गांव यह गुमला जिले में स्थित है, यहां से बौद्ध की एक प्रतिमा मिली है

पटंबा गांव स्थित है यह जमशेदपुर में अवस्थित है ,यहां से बुद्ध की 2 प्रतिमाएं मिली है

दीयापुर और दालमी  यह धनबाद जिला में अवस्थित है,यहां से बौद्ध स्मारक प्राप्त हुए हैं।  

बुद्धपुर में बुद्धेश्वर मंदिर निर्मित है। यह बौद्ध स्थल दामोदर नदी के किनारे अवस्थित है। 

घोलमारा यहाँ से प्रस्तर की खंडित बुद्ध मूर्ति मिली है।  

ईचागढ़ यह सरायकेला-खरसावां जिला में स्थित है, यहाँ से तारा की मूर्ति मिली है, जो एक बौद्ध देवी है।इस मूर्ति को रांची संग्रहालय में रखा गया है 

सीतागढ़ पहाड़ यह हजारीबाग जिले में स्थित है, यहां से प्राप्त बौद्ध  विहार का उल्लेख फाह्यान  द्वारा किया गया है। यहां से भगवान बुद्ध की चार आकृतियों वाला एक स्तूप मिला है

बंगाल के पाल शासकों के शासन के दौरान झारखंड में बौद्ध धर्म की वज्रयान शाखा विकसित हुयी।

झारखंड में  'कुमार गुप्त' के प्रवेश के उपरांत बौद्ध धर्म का ह्रास प्रारंभ हो गया

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Tuesday, April 20, 2021

Jharkhand Ke Pramukh Vanya Prani Sanrakshan Sansthan (झारखंड के प्रमुख वन्य प्राणी संरक्षण संस्थान)


➽ वन्य प्राणियों के संरक्षण प्रदान करने तथा उनका विकास करने हेतु झारखण्ड में विभिन्न वन्य प्राणी क्षेत्रों की स्थापना की गयी है। 

➽ झारखण्ड में एक राष्ट्रीय उद्यान और 11 वन्य जीव अभ्यारण्य तथा कई जैविक उद्यान स्थित है। 

1) बेतला राष्ट्रीय उद्यान

➽ झारखंड का एकमात्र राष्ट्रीय उद्यान है

➽ इसकी स्थापना 1986 में की गई है

➽ यह लातेहार जिले में स्थित है, यह उद्यान 231 पॉइंट 67 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है

➽ विश्व में सबसे पहले बाघ गणना का कार्य 1932 में यहीं से आरंभ हुआ था

➽ भारत सरकार ने 1973-74 से इस राष्ट्रीय उद्यान में बाघ परियोजना का संचालन कर रही है

यह झारखंड में स्थित एकमात्र टाइगर रिजर्व है 

➽ पिछली राष्ट्रीय बाघ गणना आंकड़ों के अनुसार इस क्षेत्र में 3 बाघ  स्थित है

➽ यहाँ मुख्य रूप से बाघ,शेर ,देन्दुआ ,जंगली सूअर , चीतल, सांभर,गौर ,चिंकारा, नीलगाय, भालू ,बंदर, मोर ,वनमुर्गी, घनेश इत्यादि वन्य प्राणी पाये जाते हैं

➽बेतला का पूरा नाम :- बायसन, एलिफैंट,टाइगर, लियोपार्ड, एक्सिस- एक्सिस (BETLA- Bison, Eliphant, Tiger, Leopard, Axis-Axis)

2) पलामू वन्य-जीव अभयारण्य 

➽ यह झारखंड में एकमात्र राष्ट्रीय स्तर का अभयारण्य है। 

➽ झारखंड के शेष सभी अभयारण्य राज्यस्तरीय है। 

➽ पलामू अभ्यारण्य राज्य का सबसे बड़ा अभ्यारण है

➽ इसका विस्तार 794 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में है। इसकी स्थापना 1976 में की गई थी तथा यहां हाथी, सांभर जैसे वन्य जीव पाए जाते हैं

3) दालमा अभयारण्य

➽ यह पूर्वी सिंहभूम जिले में स्थित है

➽ भारत सरकार 1992 से इस जिले में हाथी परियोजना की शुरुआत की है

 26 सितम्बर , 2001 सिंहभूम क्षेत्र में देश के प्रथम गज रिज़र्व (एलिफैंट रिज़र्व) की स्थापना की गयी थी 

➽ इसका विस्तार 13,440 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम, तथा सरायकेला-खरसावां जिले में है। 

➽ इसी में स्थित सारंडा का वन हाथियों के लिए प्रसिद्ध है। इस क्षेत्र में लौह-अयस्क के खनन के कारण इस अभ्यारण्य को क्षति हो रही है

4) महुआडांड़ अभयारण्य 

यह लातेहार जिले में स्थित है

 इस अभयारण्य में विलुप्तप्राय भेड़िया प्रजाति के संरक्षण का कार्य संचालित किया जा रहा है

➽ इसकी स्थापना 1976 में की गई थी 

5) उधवा झील  पक्षी विहार 

 यह साहिबगंज जिले में स्थित है 

यह प्रवासी पक्षियों के लिए प्रसिद्ध है

➽ यहां साइबेरिया सहित विश्व के कई प्रकार के पक्षी आते हैं

 इसकी स्थापना 1991 में की गई यहां के प्रमुख पक्षियों में जल कौवा,बातन, किंगफिशर प्रमुख  हैं

झारखंड में स्थापित 11 वन्य जीव अभ्यारण्य 

अभ्यारण्य                           जिला            क्षेत्रफल        स्थापना      वन्य जीव

1) ऊर्धवा झील पक्षी विहार - साहेबगंज   5. 65           1991     जल कौवा,बटान, किंगफिशर 

2) कोडरमा अभयारण्य-    कोडरमा        177.95        1985     तेंदुआ, सांभर, नीलगाय

3) पालकोट अभयारण्य-     गुमला           183.18        1990      तेंदुआ, जंगली भालू 

4) दलमा अभयारण्य -   पश्चिमी सिंहभूम  193.22       1976       हाथी, तेंदुआ, हिरण

5) महुआडांड़ अभयारण्य- लातेहार          63.25         1976      भेड़िया, हिरण

6) हजारीबाग अभयारण्य- हजारीबाग       186.25      1976      तेंदुआ, सांभर, 

7) पलामू अभ्यारण्य -         पलामू              794.33      1976      हाथी,  सांभर 

8) गौतम बुध अभ्यारण -   कोडरमा            259          1976      चीतल, सांभर, नीलगाय 

9) तोपचांची अभ्यारण -     धनबाद              8.75        1978       तेंदुआ, जंगली भालू, हिरण  

10) लावालौंग  अभयारण्य   चतरा               207         1978       बाघ, तेंदुआ, नीलगाय, हिरण 

11) पारसनाथ अभयारण्य -गिरिडीह           43.33      1981       तेंदुआ, नीलगाय, हिरण, सांभर 

प्रमुख पक्षी विहार 

झारखण्ड में निम्न प्रमुख पक्षी विहार है :- 

पक्षी विहार                      जिला

1) तिलैया पक्षी विहार     कोडरमा 

2) तेनुघाट पक्षी विहार    बोकारो 

3) चंद्रपुरा पक्षी विहार     बोकारो 

4) इचागढ़ पक्षी विहार     सरायकेला -खरसावाँ  

5) उधवा पक्षी विहार       साहिबगंज 

जैविक उद्यान

1) बिरसा जैविक उद्यान :- इसकी स्थापना 1994 में की गई यह रांची जिले के ओरमांझी में स्थित है

2) नेहरू जैविक उद्यान :- इसकी स्थापना 1980 में हुई यह  बोकारो जिले में स्थित है यह पर्यटन हेतु प्रसिद्ध है

3) मगर प्रजनन केंद्र :- इसकी की स्थापना 1987 में की गई यह आई.यू.सी.एन.(IUCN) कार्यक्रम के तहत रांची जिले के मुटा-रूक्का ग्राम में स्थित है 

4) बिरसा मृग विहार :- इसकी स्थापना 1987 में की गई यह  झारखंड के खूंटी जिले में कालीमाटी नामक स्थान पर स्थित है यहां सांभर व चीतल का संरक्षण किया जाता है

5) मछलीघर :- इसकी स्थापना 2018 में की गई। यह बिरसा जैविक उद्यान के सामने हैं

झाड़ पार्क 

 इसका संचालन झारखंड पार्क प्रबंधन एवं विकास प्राधिकरण (JPMDA) जे.पी.एम.डी.ए. के द्वारा किया जाता है

➽ इसके तहत झारखंड में 10 पार्कों को शामिल किया गया है, जिसमें 6 पार्क  रांची में स्थित है, जबकि एक-एक पार्क हजारीबाग, सिल्ली, जमशेदपुर एवं दुमका में स्थित है

➽ झारखंड के रांची जिले में अवस्थित पार्क निम्न हैं 

1) बिरसा मुंडा जैविक उद्यान रांची 

2) नक्षत्र वन, रांची 

3) ऑक्सीजन पार्क, रांची

4) निर्मल महतो पार्क, हजारीबाग

5) घोड़ा बंधा थीम पार्क, जमशेदपुर

6) दीनदयाल पार्क, रांची 

7) सिद्धू कान्हू पार्क, रांची

8) श्री कृष्ण पार्क, रांची 

9)अंबेडकर पार्क, सिल्ली 

10) सिद्धू कान्हू पार्क, दुमका 

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Monday, April 19, 2021

Jharkhand Vastra Paridhan Aur Futviyar Niti-2016 (झारखंड वस्त्र, परिधान और फुटवियर नीति- 2016)

(Jharkhand Vastra Paridhan Aur FutviyarNiti-2016)



➤झारखंड में उद्योग एवं प्रोत्साहन नीति-2016 में टेक्सटाइल क्षेत्र को झारखंड में एक विशेष क्षेत्र के रूप में चिन्हित किया गया है 

रेशम क्षेत्र में झारखंड में महत्वपूर्ण वृद्धि दर्ज की है तथा झारखंड देश में सर्वाधिक तसर रेशम उत्पादित  करने वाला राज्य है 

यहाँ देश के कुल तसर रेशम का लगभग 40% उत्पादित किया जाता है 

झारखंड राज्य में उत्पादित तसर रेशम अपने गुणवत्ता के कारण वैश्विक स्तर पर जाना जाता है तथा अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस जैसे विकसित देशों में इसकी बहुतायत में मांग है 

राज्य में रेशम के डिजाइन, प्रशिक्षण, उधमिता, विपणन व उत्पादन  को बढ़ावा देने के उद्देश्य से राज्य सरकार द्वारा झारखंड सिल्क टेक्सटाइल एवं हैंडीक्राफ्ट विकास प्राधिकरण(झारक्राफ्ट ) का गठन वर्ष 2006 में किया गया था

इसके माध्यम से राज्य में लगभग दो लाख रेशम कीट पालकों, सूत कातने वाले लोगों, बुनकरों  एवं शिल्पकारों को रोजगार हेतु सहायता प्रदान किया जा रहा है

झारक्राफ्ट  द्वारा राज्य एवं देश के विभिन्न शहरों में 18 आउटलेट का संचालन भी किया जा रहा है।इसमें  कोलकाता, बेंगलुरु, अहमदाबाद, रांची, दिल्ली, एवं मुंबई  प्रमुख है 

झारखंड रेशम उत्पादन के साथ-साथ सूती धागों व हैंडलूम वस्तुओं के उत्पादन में भी देश का अग्रणी राज्य है। इस परिप्रेक्ष्य में राज्य में कपास ऊन बुनाई, हैंडलूम कपड़ों की बुनाई, ऊन और रेशमी धागा आदि को भी प्रोत्साहित करने हेतु गंभीर प्रयास किया जा रहा है

इस प्रकार की वस्तुओं के निर्माण की दृष्टि से रांची, लातेहार, पलामू, रामगढ़, धनबाद, बोकारो, गोड्डा  , पाकुड़ साहिबगंज और खूंटी प्रमुख जिले हैं 

राज्य में सरकार ने राजनगर  (सरायकेला-खरसावां )और इरबा (रांची) सिल्क पार्क तथा देवघर में मेगा टैक्सटाइल पार्क की स्थापना की है  साथ ही देवघर, दुमका, साहिबगंज, पाकुड़ और जामताड़ा  जिले को भी भारत सरकार की ओर से मेगा हैंडलूम कलस्टर योजना में शामिल किया गया है  

झारखंड सरकार की वस्त्र, परिधान और फुटवियर नीति, 2016 के उद्देश्य निम्नवत है

1) समग्र टेक्सटाइ क्षेत्र में उच्च एवं सतत वृद्धि दर प्राप्त करना

2) टेक्सटाइल क्षेत्र की मूल्य श्रृंखला को मजबूती प्रदान करना

3) सहकारी क्षेत्र की कताई मिलों को बेहतरी हेतु प्रोत्साहित करना

4) विद्युतकरधा क्षेत्र के आधुनिकीकरण द्वारा उन्हें मजबूती प्रदान करना ताकि वे उत्तम कोटि के वस्त्रों का निर्माण कर सकें

5) टेक्सटाइल उत्पादन क्षेत्र में सूचना प्रौद्योगिकी का सदुपयोग करके उसकी गुणवत्ता, डिजाइन एवं विपणन को बढ़ावा देना

6) आयात को प्रतिस्थापित करना 

7) टेक्सटाइल उद्योगों के विनियमन संबंधी नियमों का उदारीकरण करना, ताकि इस क्षेत्र को अधिकाधिक प्रतिस्पर्धात्मक बनाया जा सके

8) इस क्षेत्र में कुशल कामगारों का निर्माण करना तथा इस नीति के तहत 5,00,000 रोजगार सृजन करना


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