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Tuesday, February 2, 2021

Jharkhand Ke Raj Kile Aur Raj Prasad (झारखंड के राज किले /राज प्रसाद)

झारखंड के राज किले /राज प्रसाद

(Jharkhand Ke Raj Kile Aur Raj Prasad)



पलामू किला (लातेहार)

यह किला बेतला नेशनल पार्क से 5 किलोमीटर दूर औरंगा नदी के तट पर अवस्थित है

यहां दो किले हैं, जिन्हें पुराना किला एवं  नये किले  के नाम से जाना जाता है

➤नये  किले का निर्माण चेरो राजा मेदिनी राय ने कराया था

मेदनी राय मुगल शासक औररंगजेब का समकालीन था

नये  किले का नागपुरी दरवाजा अपने आकर्षक शैली के कारण प्रसिद्ध है दरवाजे की ऊंचाई 40 फीट तथा चौड़ाई 15 फीट है

किले के भीतरी भाग में चार दो मंजिली इमारतों के भग्नावेश और तीन गुंबदों से युक्त एक मस्जिद भी है इस  मस्जिद का निर्माण 1661 ईस्वी में  दाऊद खान ने करवाया था 

पुराने किले का निर्माण चेरवंशी  शासक प्रताप राय ने करवाया था 


विश्रामपुर किला (पलामू) 

➤यह किला चेरो राजवंश के संबंधी विश्रामपुर के तड़वन राजा द्वारा बनवाया गया था 

किले के निकट एक मंदिर भी है मंदिर और किले के निर्माण में लगभग 9 वर्षों का समय लगा

रोहिलो का किला (पलामू)

यह किला जलपा के पास अलीनगर में अवस्थित है

इस किले का निर्माण रोहिला  सरदार मुजफ्फर खा ने करवाया था

यह त्रिभुजाकार है 

चैनपुर का किला (पलामू) 

➤यह किला दीवान पूरणमल के वंशधरों  द्वारा बनवाया गया था

मेदनीनगर में कोयल नदी के तट पर उन लोगों द्वारा एक अन्य स्मारक भी बनवाया गया जिसका नाम चैनपुर बंगला है

कुंदा का किला (चतरा)

यह किला चेरों का था, जो चतरा जिले के कुंदा नामक स्थान पर अवस्थित है। अब यह खंडहर हो चुका है

इस किले की मीनारें मुगल शैली में निर्मित हैं 

किले के प्रांगण में एक कुआं है, जहां सुरंग नुमा रास्ता था 

तिलमी का किला (खूंटी)

यह किला खूंटी जिले के कर्रा प्रखंड के तिलमी गांव में अवस्थित है 

इस किले का निर्माण 1737 ईस्वी में अकबर ठाकुर द्वारा करवाया गया पालकोट था  

पालकोट का राजभवन (गुमला)

नागवंशी शासक यदुनाथ शाह ने पालकोट को अपनी राजधानी बनाई थी । यहीं पर उसने इस राज भवन का निर्माण कराया था

यहां उन्होंने अनेक राज भवन एवं मंदिर बनवाए

यहां गुमला जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर की दूरी पर NH-23 (गुमला-सिमडेगा) मार्ग पर है

नागफेनी का राजमहल (गुमला) 

गुमला के सिसई प्रखंड में नागफेनी नामक गांव में राजप्रसाद की अनेक टूटी हुई दीवारें मिली है

पुरातात्विक दृष्टि से इनकी तिथि 1704 ईस्वी आंकी गई है

इन दीवारों पर एक आलेख भी है पत्थर पर एक राजा और उनकी सात रानियों तथा एक कुत्ते का चित्र है

इसे नागों का शहर भी कहा जाता है

रामगढ़ का किला (रामगढ़)

इस किले का निर्माण सबल राय ने करवाया था

इस किले पर मुगल शैली की स्पष्ट झलक दिखाई देती है

बादाम का किला (हजारीबाग)

इसका निर्माण रामगढ़ का राजा हेमंत सिंह ने करवाया था 

1642 ईस्वी में राजा द्वारा यहां एक शिव मंदिर भी बनवाया गया था 

इसके अवशेष यहां आज भी विद्यमान हैं 

केसानगढ़ का किला (पश्चिमी सिंहभूम)

यह किला चाईबासा से दक्षिण-पूर्व केसानगढ़ में अवस्थित था 

वर्तमान में यहां किले का एक टीला है

जगन्नाथ का किला (पश्चिमी सिंहभूम)

➤यह  किला पश्चिमी सिंहभूम में स्थित जगन्नाथपुर में है  

इस किले का निर्माण पर पोड़ाहाट वंश के राजा जगन्नाथ सिंह ने करवाया था 

जैतगढ़ का किला (पश्चिमी सिंहभूम)

इस किले का निर्माण वैतरणी नदी के तट पर जैतगढ़ में पोड़ाहाट राजा अर्जुन सिंह ने करवाया था

पदमा का किला (हजारीबाग) 

पदमा महाराजा का किला हजारीबाग जिले की पदमा नामक स्थान पर NH-33 के किनारे अवस्थित है

अब इस किले को सरकार ने पुलिस प्रशिक्षण केंद्र बना दिया है 

दोईसागड़ (गुमला)

दोईसागड़ (नवरत्नगढ़) गुमला जिले के नगर ग्राम के निकट स्थित है

आज से लगभग पौने 400 वर्ष पूर्व यहां नागवंशी राजाओं की राजधानी थी

इतिहासकारों के अनुसार दोईसागड़ में एक पांच मंजिला महल था

प्रत्येक मंजिला पर नौ-नौ  कमरे थे राँची  गज़ेटियर भी  इसकी पुष्टि करता है, लेकिन दंतकथा है कि यह नौ तल्ला था जिसमें से 9 तल्ले  जमीन में धंस गए हैं 

खजाना घर इस महल का विशेष आकर्षण है 

➤दांतेदार परकोटों से घिरा यह महल कंगूरा शैली में है  

चक्रधरपुर की राजबाड़ी (पश्चिमी सिंहभूम)

इसका निर्माण अर्जुन सिंह के पुत्र नरपति सिंह ने 1910-20 की ईस्वी में करवाया था

यहां का राजमहल ईटों का बना है राजा की पुत्री शंशाक मंजरी ने इसे बेच दिया 

रातू महाराजा का किला (रांची)

नागवंशी राजाओं का यह किला रातू में अवस्थित है इसकी विशालता दर्शनीय है  

झरियागढ़ महल (धनबाद)

झरिया के राजाओं की प्रारंभिक राजधानी झरियागढ़ में थी, यहां इस महल का निर्माण हुआ  बाद में इसकी राजधानी कतरासगढ़ स्थानांतरित हो गई थी यहां पर भी अनेक महलों  के अवशेष हैं

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Monday, February 1, 2021

Respiration & Energy Transfer (Anaerobic Respiration) - NEET

RESPIRATION & ENERGY TRANSFER

Respiration & Energy Transfer (Anaerobic Respiration) 

  • Maintenance of life requires a continuous supply of energy.
  • Respiration fulfills the continuous need for energy.

  • Respiration is a catabolic process wherein complex organic substrate is oxidized to simple components to generate biological energy.


Cellular respiration occurs in two different ways like 1.) anaerobic and 2.) aerobic respiration.

A. ANAEROBIC RESPIRATION:
  • It is cellular respiration that does not involve oxygen at all.
  • It is completed through steps like glycolysis and conversion of glycolytic product to any suitable product like lactic acid, ethanol, etc.


A.) GLYCOLYSIS:

  • It involves the breakdown of a glucose molecule into two pyruvic acid molecules.
  • This is a common step in anaerobic as well as aerobic respiration.
  • It is completed in two phases as preparatory phase and the pay-off phase.
  • The overall process of glycolysis is completed in ten steps.

1.) Preparatory phase:

  • The first five steps constitute the preparatory phase through which glucose is phosphorylated twice at the cost of two ATP molecules and a fructose 1,6-biphosphate is formed.

  • This molecule is split to form: 1.) a molecule of glyceraldehyde 3-phosphate & 2.) a molecule of dihydroxyacetone phosphate.

  • Both of these molecules are 3-carbon carbohydrates (trioses) and are isomers of each other.

  • Dihydroxyacetone phosphate is isomerized to the second molecule of glyceraldehyde-3-phosphate.

  • Thus, two molecules of glyceraldehyde-3-phosphate are formed, and here, the preparatory phase of glycolysis ends.

2.) Pay-off phase:

  • Both the molecules of glyceraldehyde-3-phosphate are converted to two molecules of 1, 3-biphosphoglycerate by oxidation and phosphorylation.

  • Phosphorylation is brought about with the help of inorganic phosphate (Pi) and not ATP.

  • Both molecules of 1, 3-biphosphoglycerate are converted into two molecules of pyruvic acid through series of reactions accompanied by the release of energy.

  • This released energy is used to produce ATP (4 molecules) by substrate-level phosphorylation.

  • 2 ATP/glucose is the net outcome.

  • Energy is also converted by the formation of 2-NADH molecules.



B.) Lactic Acid Fermentation (In Muscle):

  • In muscles, the NADH+H ion produced during glycolysis is reoxidized to NAD+ by donating one proton and two electrons to pyruvic acid which yields lactic acid. 

 

  • In this reaction pyruvate is converted into a 3-carbon molecule called lactic acid.

 

  •  No production of carbon dioxide (CO2).

 

  • The only benefit is serves is that it allows glycolysis to continue with the small gain of ATP generated. 

 

  • Skeletal muscles usually derive their energy by anaerobic respiration. 

 

  •  After vigorous exercise lactic acid accumulates, leading to muscle fatigue. 

 

  • During rest, however, the lactic acid is reconvereted to pyruvic acid and is channeled back into the aerobic respiration pathway.


C.) Alcoholic Fermentation (In Yeast):

  • In yeast, the pyruvate is decarboxylated to acetaldehyde.

 

  • The acetaldehyde is then reduced by NADH+H ion to ethanol.

 

  • Carbon dioxide (CO2) is also produced in this process.

 

  • Accumulation of ethanol by fermentation in a culture of yeast may stop further multiplication and lead to the death of cells.

 

  • In the presence of oxygen (O2) however, yeast can respire aerobically.

 

  • Examples of food produced are alcoholic drinks, bread, cakes, etc.


 

 

 

 

 



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Friday, January 29, 2021

Jharkhand Paryatan Niti-2015 (झारखंड पर्यटन नीति- 2015)

झारखंड पर्यटन नीति 2015

(Jharkhand Paryatan Niti-2015)



वर्तमान समय में पर्यटन विश्वभर में तेजी से विकसित करता हुआ उद्योग है
। 

पर्यटकों  की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है और आने वाले समय में यह बढ़कर 1.5 मिलियन तक पहुंच जाएगी

विश्व भर के कार्यबल में पर्यटन उद्योग का योगदान 11 % और जी0 पीडीपी0- 10 पॉइंट 2 प्रतिशत योगदान है


झारखंड के पर्यटन नीति का मुख्य उद्देश्य इस प्रकार है


झारखंड की पर्यटन नीति का मुख्य उद्देश्य रोजगार के अवसरों का निर्माण करना, उच्च आर्थिक वृद्धि और पर्यटकों की संख्या को बढ़ाना है 

उपलब्ध संसाधनों का उचित तरीके से प्रयोग में लाना ताकि अधिक से अधिक संख्या में घरेलू और विदेशी पर्यटकों को लंबे समय तक राज्य में भ्रमण करने के लिए आकर्षित करना 

प्रत्येक पर्यटन क्षेत्र को एक विशेष भ्रमण केंद्र के रूप में विकसित करना  

निजी क्षेत्रों को पर्यटन के विकास के लिए उनकी भागीदारी को सुनिश्चित करना और राज्य में मूलभूत सुविधाओं को उपलब्ध कराना

मास्टर प्लान को तैयार करना और उसे लागू करना और पर्यटन क्षेत्र का एकीकृत विकास करना 

घरेलू और अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों को गुणवत्तायुक्त सेवा उपलब्ध कराना 

पर्यटन संबंधी उत्पादों को प्रोत्साहित करना, सांस्कृतिक स्मारकों  को क्षय  होने से बचाना

पर्यटन क्षेत्र में आम लोगों की भागीदारी को सुनिश्चित करना और सहयोगात्मक पर्यटन को बढ़ावा देना ताकि लोगों को आर्थिक लाभ की प्राप्ति हो सके

झारखंड को पर्यटन एडवेंचर के विभिन्न क्षेत्रों जैसे :- वायु, भूमि, जल आधारित एडवेंचर के प्रमुख स्थान दिलाना 

उचित सुविधाओं और सूचनाओं का विकास कर धार्मिक पर्यटन का विकास करना 

झारखंड को समृद्ध हस्तकरघा उद्योग, सांस्कृतिक विरासत, परंपरा और रिवाजों को बचाने और आगे बढ़ाने के लिए पर्याप्त कदम बढ़ाना


झारखंड के टूरिज्म नीति से ना केवल रोजगार के अवसरों का निर्माण होगा , बल्कि राज्य की आय में वृद्धि होगी 
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Thursday, January 28, 2021

Jharkhand Niryat Niti-2015 (झारखंड निर्यात नीति-2015)

झारखंड निर्यात नीति-2015

(Jharkhand Niryat Niti-2015)


इस नीति का मुख्य उद्देश्य वैश्विक बाजार में स्थान बनाए रखना और निर्यात इकाइयों को नये  तकनीकों से लैस करना और नए-नए साधनों को प्रयोग में लाना होगा 

झारखंड निर्यात नीति के अंतर्गत शीघ्र एवं उच्च निर्यात को प्रोत्साहन देना और देश के कुल निर्यात में राज्य की भागीदारी को 2019 तक 2% तक लाना शामिल है

इस नीति का मुख्य बिंदु इस प्रकार है:-


निर्यात के शीघ्र वृद्धि के लिए सरल, प्रभावी, सहयोगात्मक, उत्तरदाई व्यवस्था को लागू करना

पारंपारिक निर्यात क्षेत्र जैसे खनिज आधारित उत्पाद, हस्तशिल्प, हथकरघा, कृषि, प्रोसेस्ट  खाद्य पदार्थ को बढ़ावा देने हेतु नये  तकनीकी एवं कुशल व्यवस्था को लागू करना

झारखण्ड का मौसम फुलों, फलों एवं सब्जियों के उत्पादन के अनुकूल है अतः निश्चित समय के अन्तर्गत विमानों द्वारा उद्पादो को निर्धारित स्थानों तक पहुंचाना

वर्तमान में निर्यात करने वाले इकाइयों पर जोर देना और निर्यात को प्रोत्साहित करने के लिए उन्हें आवश्यक सहयोग प्रदान करना

गुणवत्ता युक्त प्रबंधन और पर्यावरण प्रबंधन व्यवस्था को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाना, जो निर्यात स्तर को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक ले जाएगा

अंतरराष्ट्रीय व्यापार में अधिकाधिक साझेदारी का विकास करने हेतु उचित प्रयास करना 


समय-समय पर निर्यात जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन करना ताकि निर्यातको एवं अन्य लोगों में निर्यात संबंधी विषयों के संबंध में जागरूकता पैदा किया जा सके 

उपरोक्त उद्देश्यों  को पूरा करने के लिए झारखंड सरकार अंतरराष्ट्रीय व्यापार एकल खिड़की व्यवस्था (सिंगल विंडो सिस्टम) मजबूत एनालिटिकल डाटा, इ- गवर्नस , पब्लिक-प्राइवेट-पार्टनरशिप रिसर्च एवं  डेवलपमेंट को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत हैं 
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Wednesday, January 27, 2021

Jharkhand khady prasanskaran niti 2015 (झारखंड खाद्य प्रसंस्करण नीति 2015)

झारखंड खाद्य प्रसंस्करण नीति 2015

(Jharkhand Khady Prasanskaran Niti 2015)


झारखंड खाद्य प्रसंस्करण नीति 2015 का मुख्य लक्ष्य खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना के लिए मूलभूत सुविधाओं को उपलब्ध कराना, निवेश को प्रोत्साहित करना, बाजार नेटवर्क को विकसित करना, तकनीकी सहायता प्रदान करना, अनुदान देना है

कृषि और उसके सहयोगी क्षेत्रों का विकास करना और निवेशकों को लाभ पहुंचा कर झारखंड को खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में झारखंड को अग्रणी राज्य के रूप में स्थापित करना है 

इस नीति के अंतर्गत मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं :-


प्रसंस्करण के स्तर को बढ़ाना, अनुपयोगी पदार्थों की मात्रा को कम करना, किसानों की आय में वृद्धि करना,और निर्यात को बढ़ावा देना ताकि समग्र रूप में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को प्रोत्साहन मिल सके

लघु वन उत्पादों, जड़ी-बूटी संबंधी उत्पादकों को प्रोत्साहन देना, ताकि जनजातीय लोगों की आय में वृद्धि दर्ज की जा सके

नए खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना हेतु वित्तीय मदद पहुंचाना, इसके साथ ही तकनीकी स्तर में सुधार लाना और उपस्थित इकाइयों का और विस्तार करना


तैयार खाद्य पदार्थों के लिए पूर्ण संरक्षण की व्यवस्था करना और उत्पादक क्षेत्रों से उपभोक्ताओं और बाजारों तक पहुंचाना

मांस एवं मछली के दुकानों में उचित सुविधाओं को उपलब्ध कराना एवं स्वस्थ खाद्य पदार्थों की उपलब्धता को सुनिश्चित करना

उपरोक्त उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु झारखंड सरकार मूलभूत सुविधाओं, उपयुक्त वातावरण, पूंजी निवेश, तकनीकी विकास, वित्तीय सहायता और अन्य दूसरे  सुविधाओं को बहाल करने हेतु प्रयासरत है

झारखंड में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के विकास की काफी संभावना मौजूद है

यहां 23 पॉइंट 60 लाख हेक्टेयर के क्षेत्र में वनों का फैलाव है, जहां बड़ी मात्रा में औषधीय एवं अन्य उपयोगी पौधों का उत्पादन होता है


मुर्गी पालन, बकरी पालन, सूअर पालन के लिए अनुकूल वातावरण मौजूद है

यहां कृषि, बागवानी, डेयरी, उद्योगों का विकास कर खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को सही दिशा प्रदान किया जा सकता है
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Monday, January 25, 2021

Jharkhand Ki Shaikshanik Sansthan Part-2 (झारखंड की शैक्षणिक संस्थान Part-2)

Jharkhand Ki Shaikshanik Sansthan Part-2

झारखंड की शैक्षणिक संस्थाओं की सूची



विश्वविद्यालय

➤रांची विश्वविद्यालय,  रांची (स्थापना : 12 जुलाई 1960 ईस्वी)

सिदो-कान्हू विश्वविद्यालय, दुमका (स्थापना : 1992 ईस्वी) 

विनोबा भावे विश्वविद्यालय, हजारीबाग (स्थापना : 12 सितंबर 1992  ईस्वी) 

बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, रांची (स्थापना:  1956 ईस्वी तथा 26 जून 1980 को विश्वविद्यालय का दर्जा प्राप्त हुआ) 

कोल्हन विश्वविद्यालय, चाईबासा/पश्चिमी सिंहभूम (स्थापना:  12 अगस्त, 2009 ईस्वी) 

➤नीलाम्बर- पीतांबर विश्वविद्यालय, मेदिनीनगर/पलामू  (स्थापना : 17 जनवरी 2009 ईस्वी)

नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ स्टडी एंड रिसर्च इन लॉ, रांची (स्थापना:  2010 ईस्वी)

रक्षा शक्ति विश्वविद्यालय रांची, रांची (स्थापना : 2016 ईस्वी) 

बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय, धनबाद (स्थापना : 13 नवंबर, 2017)

श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, रांची। 

विश्वविद्यालय के समकक्ष शिक्षण संस्थान:-

आई आई टी (इंडियन स्कूल ऑफ माइंस), धनबाद (स्थापना : 1926 ईस्वी)

बिड़ला इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी, मेसरा/रांची (स्थापना : 1955 ईस्वी) 

हिंदी विद्यापीठ, देवघर । 

केंद्रीय विश्वविद्यालय झारखंड, माण्डर/रांची  (स्थापना : 2010 ईस्वी)

विधि विश्वविद्यालय, बीआईटी मेसरा/रांची (स्थापना : 2010 ईस्वी)

झारखंड राय विश्वविद्यालय, झारखंड  (निजी) 

साईंनाथ विश्वविद्यालय,  (निजी) 

द इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर् फाइनेंशियल एनालिस्ट  ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी, रांची (निजी) 

➤एमिटी  यूनिवर्सिटी (निजी)  

➤AISECT (एस आई एस सी टी) यूनिवर्सिटी  (निजी)  

प्रज्ञान इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी (निजी)  

➤YBN यूनिवर्सिटी, रांची (निजी)  

अरका जैन यूनिवर्सिटी, सरायकेला (निजी)

स्थापित होने (प्रस्तावित)अन्य विश्वविद्यालय:-

➤सरला बिड़ला विश्वविद्यालय, रांची (निजी)

स्पोर्ट्स विश्वविद्यालय, रांची

➤वूमेन्स यूनिवर्सिटी, जमशेदपुर। 

इंजीनियरिंग कॉलेज 

➤बिरसा इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी सिंदरी/धनबाद (स्थापना : 1949 ईस्वी)

➤नेशनल इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी आदित्यपुर/ पूर्वी सिंहभूम (स्थापना :1960 ईस्वी तथा  27 दिसंबर 2000 में डीम्ड यूनिवर्सिटी घोषित)  

बिरला इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी मेसरा/रांची (स्थापना 1955 ईस्वी) 

फैकेल्टी आफ एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग, रांची 

आर. वी. एस. कॉलेज आफ इंजीनियरिंग, जमशेदपुर

डी. ए. वी. इंस्टीट्यूट आफ इंजीनियरिंग,  डालटेनगंज

➤कैम्ब्रिज इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी, रांची 

चिकित्सा महाविद्यालय 

➤केंद्रीय मनोचिकत्सा संस्थान, राँची (स्थापना :1918 ईस्वी)

➤राँची तंत्रिका मनोचिकत्सा एवं सम्बंद्ध  विज्ञान संस्थान, राँची (स्थापना : 1925 ईस्वी

➤राजेंद्र चिकित्सा महाविद्यालय, राँची (स्थापना : 1960 ईस्वी)

➤एम्. जी. एम्. चिकित्सा महाविद्यालय,जमशेदपुर (स्थापना : 1964  ईस्वी)

➤पाटलिपुत्र  चिकित्सा महाविद्यालय,धनबाद  (स्थापना : 1974 ईस्वी)

हजारीबाग चिकित्सा महाविद्यालय, हजारीबाग (स्थापना : 2019 ईस्वी

विधि महाविद्यालय 

गिरिडीह लॉ कॉलेज, गिरिडीह

➤छोटानागपुर विधि महाविद्यालय, राँची (स्थापना : 1955 ईस्वी

➤राजेंद्र विधि महाविद्यालय, हज़ारीबाग़  (स्थापना : 1977 ईस्वी

धनबाद लॉ कॉलेज, धनबाद (स्थापना: 1976) ईस्वी

इमामुल हाई खान लॉ कॉलेज, बोकारो

झारखंड लॉ कॉलेज, तिलैया/कोडरमा। 

➤कॉपरेटिव लॉ कॉलेज, जमशेदपुर

नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ स्टडी एंड रिसर्च इन लॉ, राँची 

होम्योपैथिक महाविद्यालय 

होम्योपैथिक महाविद्यालय रांची

योगदा सत्संग होम्योपैथिक कॉलेज, रांची

होम्योपैथिक कॉलेज एंड हॉस्पिटल, मिहिजाम/दुमका

सिंहभूम  होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (स्थापना: 1953 ईस्वी) 

महत्वपूर्ण केंद्र प्रशिक्षण और शिक्षण केंद्र 

➤पुलिस प्रशिक्षण केंद्र, हजारीबाग (स्थापना: 1912 ईस्वी) 

श्री कृष्ण लोक प्रशासन प्रशिक्षण संस्थान राँची (स्थापना: 1952 ईस्वी) 

➤ट्राइबल रिसर्च  इंस्टीट्यूट, राँची  (स्थापना: 1953 ईस्वी) 

नेतरहाट आवासीय विद्यालय, नेतरहाट (स्थापना: 1954 ईस्वी)

➤तकनीकी प्रशिक्षण केंद्र राँची (स्थापना: 1963 ईस्वी) 

➤सैनिक स्कुल, तिलैया (स्थापना: 1963 ईस्वी) 

सीमा सुरक्षा बल प्रशिक्षण केंद्र एवं स्कुल ,मेरू/ हजारीबाग (स्थापना: 1966 ईस्वी) 

इंदिरा गांधी आवासीय विद्यालय, हजारीबाग (स्थापना: 1984 ईस्वी) 

➤झारखण्ड न्यायिक अकादमी,राँची (स्थापना: 2002 ईस्वी) 

➤परमाणु ऊर्जा केंद्रीय विद्यालय, तुरामडीह/पश्चिमी सिंहभूम  (स्थापना: 2006 ईस्वी)

झारखंड पॉलिटेक्निक संस्थान

राजकीय पॉलिटेक्निक, राँची

राजकीय महिला पॉलिटेक्निक,राँची

राजकीय पॉलिटेक्निक,खुटरी / बोकारो 

राजकीय महिला पॉलिटेक्निक बी.एस.ल./बोकारो

राजकीय पॉलिटेक्निक धनबाद 

राजकीय पॉलिटेक्निक भागा, धनबाद

राजकीय पॉलिटेक्निक, दुमका  

राजकीय महिला पॉलिटेक्निक, जमशेदपुर 

राजकीय पॉलिटेक्निक आदित्यपुर/सरायकेला-खरसावाँ 

राजकीय पॉलिटेक्निक, लातेहार 

राजकीय पॉलिटेक्निक,कोडरमा 

राजकीय पॉलिटेक्निक सरायकेला-खरसावाँ 

राजकीय पॉलिटेक्निक, निरसा, धनबाद

झारखंड के निजी पॉलिटेक्निक संस्थान 

अलकबीर पॉलिटेक्निक, मांनगो/जमशेदपुर

के. के. पॉलिटेक्निक, धनबाद

सेंटर फॉर बायोइनफॉर्मेटिक, रांची 

प्रमुख् प्रबंधन संस्थान 

जेवियर लेबर रिसर्च इंस्टीट्यूट (एक्स एल आर आई), जमशेदपुर (स्थापना : 1949 ईस्वी)

ज़ेवियर इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल सर्विस, रांची

प्रबंधन प्रशिक्षण संस्थान, रांची

➤बिड़ला प्राद्यौगिकी संस्थान, रांची 

भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) राँची शाखा, रांची 

झारखंड के प्रमुख अनुसंधान केंद्र और प्रयोगशालाएं 

भारतीय लाख अनुसंधान संस्थान, राँची  (स्थापना :1925 ईस्वी)

केंद्रीय ईंधन अनुसंधान संस्थान, जलगोड़ा (स्थापना : 1947 ईस्वी)

केंद्रीय खनन अनुसंधान संस्थान, धनबाद (स्थापना: 1948 ईस्वी)

राष्ट्रीय धातु विज्ञान प्रयोगशाला, जमशेदपुर।

केंद्रीय मनोचिकित्सा संस्थान, रांची

केंद्रीय तसर अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान, रांची।

कुष्ठ रोग अनुसंधान केंद्र, रांची। 

रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेंटर फॉर आयरन एंड स्टील, रांची 

जनजातीय शोध अनुसंधान संस्थान, रांची (स्थापना: 1953 ईस्वी) 

➤मृदा शोध एवं अनुसंधान संस्थान, हजारीबाग। 

चावल अनुसंधान केंद्र, हजारीबाग।  

पशु चिकित्सा महाविद्यालय 

रांची भेटनरी महाविद्यालय ,रांची (स्थापना: 1964 ईस्वी) 

रांची कॉलेज ऑफ भेटनरी एण्ड एनीमल हसबैंड्री  राँची। 

झारखंड के प्रमुख पुस्तकालय 

प्रमंडलीय पुस्तकालय, हजारीबाग (स्थापना: 1922 ईस्वी)  

राज्य पुस्तकालय, दुमका (स्थापना: 1952 ईस्वी) 

राज्य पुस्तकालय रांची स्थापना (स्थापना:   1953  ईस्वी) 

राज्य पुस्तकालय धनबाद स्थापना (स्थापना:  1956  ईस्वी)

राज्य पुस्तकालय चाईबासा, (स्थापना:  1957 ईस्वी) 

राज्य संग्रहालय, रांची स्थापना (स्थापना: 1972 ईस्वी) 

अन्य संस्थान:-

कॉलेज ऑफ़ फॉरेस्ट्री,राँची। 

➤एस.पी.जी.बलाइणड स्कूल राँची।
 
गुरुकुल महाविद्यालय ,बैधनाथ धाम /देवघर 


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Thursday, January 21, 2021

Prachin kal me Jharkhand (प्राचीन काल में झारखंड)

Prachin Kal Me Jharkhand


प्राचीन काल को चार भागों में बांटा गया है 


1) मौर्य काल

➤मगध से दक्षिण भारत की ओर जाने वाला व्यापारिक मार्ग झारखंड से होकर जाता था

 अत: मौर्यकालीन झारखंड का अपना राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक महत्व था

कौटिल्य का अर्थशास्त्र 

कौटिल्य के अर्थशास्त्र में इस क्षेत्र को कुकुट/कुकुटदेश नाम से इंगित किया गया है

कौटिल्य के अनुसार कुकुटदेश में गणतंत्रात्मक शासन प्रणाली स्थापित थी 

कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य ने आटविक  नामक एक पदाधिकारी की नियुक्ति की थी 

जिसका उद्देश्य जनजातियों का नियंत्रण, मगध साम्राज्य हेतु इनका उपयोग तथा शत्रुओ  से इनके गठबंधन को रोकना था

इंद्रनावक नदियों की चर्चा करते हुए कौटिल्य ने लिखा है कि इंद्रनावक की नदियों से हीरे प्राप्त किये जाते थे। 

➤इन्द्रनवाक संभवत: ईब और शंख नदियों का इलाका था 

अशोक

अशोक के 13वें शिलालेख में समीपवर्ती राज्यों की सूची मिलती है, जिसमें से एक आटविक/आटव/आटवी  प्रदेश (बुंदेलखंड से उड़ीसा के समुद्र तट तक विस्तृत) भी था और झारखंड क्षेत्र इस प्रदेश में शामिल था

अशोक का झारखंड की जनजातियों पर अप्रत्यक्ष नियंत्रण था

अशोक के पृथक कलिंग शिलालेख-II में वर्णित है कि - 'इस क्षेत्र को अविजित जनजातियों को मेरे धम्म  का आचरण करना चाहिए, ताकि वे लोक परलोक प्राप्त कर सके

अशोक ने झारखंड में बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु रक्षित नामक अधिकारी को भेजा था 

2) मौर्योत्तर काल

मौर्योत्तर काल में विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत में अपने-अपने राज्य स्थापित किए 

इसके अलावा भारत का विदेशों से व्यापारिक संबंध भी स्थापित हुआ जिसके प्रभाव झारखंड में भी दिखाई देते हैं  

सिंहभूम 

➤सिंहभूम से रोमन साम्राज्य के सिक्के प्राप्त हुए हैं ,जिससे झारखंड के वैदेशिक संबंधों की पुष्टि होती है  

चाईबासा

चाईबासा से इंडो-सीथियन सिक्के प्राप्त हुए हैं   

रांची से कुषाणकालीन सिक्के प्राप्त हुए हैं जिससे यह ज्ञात होता है कि यह क्षेत्र कनिष्ठ के प्रभाव में था 

3) गुप्त काल

गुप्त काल में अभूतपूर्व सांस्कृतिक विकास हुआ अतः इस काल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग कहा जाता है 

हजारीबाग के मदुही पहाड़ से गुप्तकालीन पत्थरों को काटकर निर्मित मंदिर प्राप्त हुए हैं

झारखंड में मुंडा, पाहन, महतो तथा भंडारी प्रथा गुप्तकाल की देन माना जाता है 

समुद्रगुप्त

गुप्त वंश का सर्वाधिक महत्वपूर्ण शासक समुद्रगुप्त था। इसे भारत का नेपोलियन भी कहा जाता है

इसके विजयों का वर्णन प्रयाग प्रशस्ति (इलाहाबाद प्रशस्ति) में मिलता है। प्रयाग प्रशस्ति के लेखक हरीसेंण है। इन विजयों में से एक आटविक विजय भी था 

झारखंड प्रदेश इसी आटविक प्रदेश का हिस्सा था इससे स्पष्ट पता होता है कि समुद्रगुप्त के शासनकाल में झारखंड क्षेत्र उसके अधीन था

समुद्रगुप्त ने  पुन्डवर्धन को अपने राज्य में मिला लिया, जिसमें झारखंड का विस्तृत क्षेत्र शामिल था 

समुद्रगुप्त के  शासनकाल में छोटानागपुर को मुरुण्ड देश कहा गया है

समुद्रगुप्त के प्रवेश के पश्चात झारखंड क्षेत्र में बौद्ध धर्म का पतन प्रारंभ हो गया

चंद्रगुप्त द्वितीय 'विक्रमादित्य'

चंद्रगुप्त द्वितीय का प्रभाव झारखंड में भी था 

इसके काल में चीनी यात्री फाह्यान 405 ईस्वी में भारत आया था। जिसने झारखंड क्षेत्र को कुक्कुटलाड  कहा है 

➤मुदही पहाड़ हजारीबाग जिले में है जो पत्थरों को काटकर बनाए गए चार मंदिर सतगांवा  कोडरमा मंदिरों के अवशेष (उत्तर गुप्त काल से संबंधित) हैं पिठोरिया  रांची पहाड़ी पर स्थित कुआं तीनों गुप्तकालीन पुरातात्विक अवशेष हैं 

4) गुप्तोत्तर काल

शशांक

➤गौड़ (पश्चिम बंगाल) का शासक शशांक इस काल में एक प्रतापी शासक था

शशांक  के साम्राज्य का विस्तार संपूर्ण झारखंड, उड़ीसा तथा बंगाल तक था

शशांक  अपने विस्तृत साम्राज्य को सुचारू रूप से चलाने के लिए दो राजधानी स्थापित की:- 

1) संथाल परगना का बड़ा बाजार 

2) दुलमी 

प्राचीन काल में शासकों में यह प्रथम शासक था जिसकी राजधानी झारखंड क्षेत्र में थी 

शशांक शैव धर्म का अनुयाई था तथा इसने झारखंड में अनेक शिव मंदिरों का निर्माण कराया

शशांक के काल का प्रसिद्ध मंदिर वेणुसागर है जो कि एक शिव मंदिर है यह मंदिर सिंहभूम और मयूरभंज की सीमा क्षेत्र पर अवस्थित कोचिंग में स्थित है

शशांक ने बौद्ध धर्म के प्रति असहिषुणता की नीति अपनाई,जिसका उल्लेख हेन्सांग ने किया है

शशांक ने झारखंड के सभी बौद्ध केंद्रों को नष्ट कर दिया। इस तरह झारखंड में बौद्ध- जैन धर्म के स्थान पर हिंदू धर्म की महत्ता स्थापित हो गई 

हर्ष वर्धन

वर्धन वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक हर्षवर्धन था 

इसके साम्राज्य में काजांगल (राजमहल) का कुछ भाग शामिल था

काजांगल (राजमहल) में ही हर्षवर्धन हेनसांग से मिला। हेनसांग ने अपने यात्रा वृतांत में राजमहल की चर्चा की है

अन्य तथ्य 

हर्यक वंश का शासक बिंबिसार झारखंड क्षेत्र में बौद्ध धर्म का प्रचार करना चाहता था

नंद वंश के समय झारखंड मगध साम्राज्य का हिस्सा था

नंद वंश की सेना में झारखंड से हाथी की आपूर्ति की जाती थी इस सेना में जनजातीय लोग भी शामिल थे 

झारखंड में दामोदर नदी के उद्गम स्थल तक मगध की सीमा का विस्तार माना जाता है 

झारखंड में 'पलामू' में चंद्रगुप्त प्रथम द्वारा निर्मित मंदिर के अवशेष प्राप्त हुए हैं

कन्नौज के राजा यशोवर्मन के विजय अभियान के दौरान मगध के राजा जीवगुप्त द्वितीय ने झारखण्ड में शरण ली थी 

13वीं सदी में उड़ीसा के राजा जयसिंह ने स्वयं को झारखंड का शासक घोषित कर दिया था

 

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