Jharkhand Audyogik Niti-2001
➤इसके अलावा सरकार ने औद्योगिक क्षेत्रों को और अधिक मजबूती प्रदान करना, उत्पादकता में वृद्धि, रोजगार के अवसरों में वृद्धि करना, और राज्य के उद्योगों को अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा प्राप्त करना आदि निर्धारित किया गया।
➤सरकार ने उद्योगों से संबंधित अनेक नीतिगत उपायों की घोषणा की,
➤जिन्हें निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया जा सकता है :-
➤राज्य के कृषि, खनन एवं मानव संसाधनों का सम्यक उपयोग।
➤राज्य के आर्थिक विकास को सुनिश्चित करने हेतु राज्य में अधिकतम पूंजी निवेश को बढ़ावा देना।
➤थ्रस्ट जॉन एवं थ्रस्ट एरिया की पहचान करना।
➤राज्य के औद्योगिक विकास को सुनिश्चित करने हेतु आधुनिकतम प्रौद्योगिकी तथा मूलभूत अधिसंरचना का विकास।
➤राज्य के असंतुलित विकास को रोकने हेतु संतुलित क्षेत्रीय विकास को प्राथमिकता देना।
➤राज्य में औद्योगिकीकरण की गति की तीव्रता प्रदान करने हेतु निजी क्षेत्र की भागीदारी को सुनिश्चित करना।
➤ऐसी सामग्री ,जिसमें अन्य राज्यों की अपेक्षा झारखंड बेहतर स्थिति में है, उसके निर्यात को प्रोत्साहित करना।
➤राज्य के रुग्ण औद्योगिक इकाइयों को पुनर्जीवित करना।
➤प्रक्रियाओं को सरल करना तथा प्रशासनिक सुधार को सुनिश्चित करना, जिससे एक संवेदनशील एवं पारदर्शितापूर्ण शासन व्यवस्था स्थापित हो सके।
➤अनुसूचित जाति, जनजाति, कमजोर वर्ग, विकलांग तथा महिलाओं की उन्नति एवं उन्हें उचित अवसर प्रदान करना।
➤उत्पादन एवं उत्पादकता को बढ़ावा देने हेतु अनुसंधान एवं उच्च प्रौद्योगिकी का उपयोग करना।
➤व्यवसायी विकास संस्थान एवं अन्य विशेषीकृत संस्थानों के द्वारा व्यवसायी विकास पर अधिक जोर।
➤रुग्ण उद्योगों की जांच एवं समय रहते उनको पुन: रुत्थान हेतु प्रयास एवं जिला स्तर पर सतत निगरानी हेतु व्यवस्था।
➤पारंपरिक व्यवसायों की सघनता वाले क्षेत्रों की पहचान एवं उनके विकास के लिए प्रशिक्षण, उन्नत डिजाइन तथा प्रौद्योगिकीय एवं विपणन सहयोग को सुनिश्चित करना तथा शिल्पकारों को विपणन सहयोग हेतु शिल्प ग्राम एवं शिल्प बाजार की स्थापना करना।
➤खाद्य प्रसंस्करण उद्योग तथा फल, सब्जी, मसाले और अन्य बागवानी उत्पादों के विकास हेतु विशेष सुविधाएँ एवं उद्योग हेतु अधिसंरचना मुहैया कराना।
➤औद्योगिक पार्क का विशेषकृत क्रियाकलापों हेतु विकास तथा सूचना प्रौद्योगिकी, तसर/मलबरी ,इलेक्ट्रॉनिक्स, प्लास्टिक, रसायन, जैव-तकनीक एवं जड़ी-बूटियां। इस हेतु ऊर्जा, जल, संचार, परिवहन सुविधाओं का विकास।
➤लघु उर्जा उत्पादन इकाइयों पर जोर एवं निजी क्षेत्र के सहयोग से गैर-पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों का विकास।
➤उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन करने वाले उद्योगों यथा-प्लास्टिक, जड़ी-बूटी, औषधि, चर्म , हैंडुलम ,हस्तशिल्प और खादी उद्योगों के विकास को प्रोत्साहन।
➤निरीक्षण एवं मूल्यांकन तंत्र को संस्थागत बनाना।