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Thursday, August 27, 2020

Jharkhand Ke Pramukh Nadiya (झारखंड के प्रमुख नदियां)

Jharkhand Ke Pramukh Nadiya

राज्य की प्रवाह प्रणाली को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है 

(1) गंगा  से मिलने वाली नदियों की प्रवाह प्रणाली 

(2) दक्षिण में बहने वाली नदियां की प्रवाह प्रणाली









झारखंड की प्रमुख नदियों में दामोदर, उत्तरी कोयल, स्वर्णरेखा, शंख , दक्षिणी कोयल, अजय तथा मोर है 

उत्तरी कोयल तथा दामोदर प्रथम वर्ग में शामिल नदियाँ  है। 
स्वर्णरेखा, शंख ,दक्षिणी कोयल दूसरे वर्ग में शामिल नदियाँ  है 
इन दोनों के बीच स्थित जल विभाजक झारखंड के लगभग मध्य भाग में पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर फैला है
यहाँ की नदियां बरसाती नदियां हैं 
➤ दूसरे शब्दों में झारखंड की नदियां बरसात के महीने में पानी से भरी रहती हैं, जबकि गर्मी के मौसम में सूख जाती हैं
झारखंड की नदियां पानी के लिए मानसून पर निर्भर करती है, कठोर चट्टानी क्षेत्रों से होकर प्रवाहित होने के कारण झारखंड की नदियां में नाव चलाने के लिए उपयोगी नहीं है, अपवाद में मयूराक्षी नदी झारखंड की एकमात्र नदी है, जिसमें वर्षा ऋतु में नावें चला करती हैं 

दामोदर नदी

झारखंड में बहने वाली सबसे बड़ी और लंबी नदी दामोदर नदी है 
दामोदर नदी का उद्गम स्थल छोटा नागपुर का पठार लातेहार के टोरी नामक स्थान से निकलती है इस नदी का उद्गम स्थल पलामू जिला में है 
दामोदर नदी देवनंद के नाम से प्राचीन साहित्य में उपलब्ध है
यह पलामू जिले से निकलकर हजारीबाग, गिरिडीह, धनबाद होते हुए बंगाल में प्रवेश करती है, दामोदर बाँकुड़ा  के निकट होती हुई हुगली के साथ मिलकर बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है
 इस नदी की लंबाई 290 किलोमीटर है 
दामोदर नदी की सहायक नदियों में कोनार, बोकारो और बराकर  प्रमुख है,बराकर नदी में ही मैथन डैम बना हुआ है 
  दामोदर नदी का उपनाम देवनंदी और बंगाल के शोक के नाम से भी जाना जाता है, झारखंड की  सबसे प्रदूषित नदी में से एक है

स्वर्णरेखा नदी

स्वर्णरेखा नदी का उदगम स्थल छोटानागपुर के पठारी भू -भाग से रांची जिले के नगड़ी नामक  गांव से निकलती है। 
 रांची जिले से बहती हुई स्वर्णरेखा नदी  पूर्वी सिंहभूम जिले में प्रवेश करती है,यहां से उड़ीसा राज्य में चली जाती है 
यह मुख्यता बरसाती नदी है, वर्षा काल में इस में पानी भरा रहता है, परन्तु गर्मी में सूख जाता है
इस के सुनहरे रेत में सोना मिलने की संभावना के कारण इसे स्वर्ण रेखा नदी कहा जाता है लेकिन  सोना फिलहाल प्राप्त नहीं होता है, क्योंकि यह रेत के कणों में बहुत ही कम मात्रा में होता है
 यह नदी पठारी भाग की चट्टानों वाली प्रदेश से प्रवाहित होने के कारण स्वर्णरेखा नदी तथा इसकी सहायक नदियां, गहरी घाटियां तथा जलप्रपात का निर्माण करती है
यह रांची से 28 किलोमीटर उत्तर-पूर्व दिशा में हुंडरू जलप्रपात बनाती है, जहां से यह 320 फीट की ऊंचाई से गिरती है
➤राढू इसकी सहायक नदी है, यह नदी मार्ग में जोन्हा  के पास एक जलप्रपात का निर्माण करती है जो 150 फीट की ऊंचाई पर है यह जलप्रपात गौतम धारा जलप्रपात के नाम से जाना जाता है
 स्वर्णरेखा नदी की एक विशेषता यह है कि उद्गम स्थान से लेकर सागर में मिलने तक यह किसी की सहायक नदी नहीं बनती है। 
सीधे बंगाल की खाड़ी में गिरती है इसके तीन प्रमुख सहायक नदियां हैं राढू ,काँची और खरकई है

 बराकर नदी 

 बराकर नदी भी एक बरसाती नदी है, छोटा नागपुर के पठार से निकलकर हजारीबाग, गिरिडीह, धनबाद और मानभूम में जाकर दामोदर नदी में मिल जाती है
 यह बरसात में उमड़ कर बहती है, फिर धीमी गति से अपना अस्तित्व बनाए रहती है 
इस नदी पर दामोदर घाटी परियोजना के अंतर्गत मैथन बांध बनाया गया है जिससे बिजली का उत्पादन किया जाता है
 इस नदी का उल्लेख बौद्ध एवं जैन धार्मिक ग्रंथों में हुआ है।गिरिडीह के निकट इस नदी के तट पर बराकर  नामक स्थान है, जहां जैन मंदिर है
मैथन के निकट बराकर नदी के तट पर कल्याणेश्वरी नामक देवी मंदिर  है  

 उत्तरी कोयल

 उत्तरी कोयल नदी राँची  के पठार से निकलकर पाट क्षेत्रों में  ढालों पर बहती हुए उत्तर की ओर प्रवाहित होती हैं 
➤यह औरंगा  और अमानत नदियों को  भी अपने में विलीन कर लेती है तथा साथ ही कई छोटी नदियां को अपने में विलीन करते हुए 255 किलोमीटर की पहाड़ी और मैदानी दूरी तय कर सोन नदी में मिल जाती है
औरंगा और अमानत नदी इसकी सहायक नदियां हैं 
यह नदी गर्मी के मौसम में सूख जाती है,लेकिन बरसात के दिनों में बाढ़ के साथ उमड़ कर बहने लगती है
 बूढ़ा नदी महुआटांड क्षेत्र से निकलकर सेरेंगदाग पाट के दक्षिण में इससे मिलती है, यह दोनों नदियों के मिलन का महत्व बूढ़ा घाघ जलप्रपात के कारण का बढ़ जाता है

 दक्षिणी कोयल

 दक्षिणी कोयल  नदी रांची के पास  नगड़ी गांव की पहाड़ी से पश्चिम में बहती हुई लोहरदगा पहुंचती है फिर उत्तर पूर्वी होकर दक्षिण दिशा में हो जाती है 
फिर यह गुमला जिले से होकर सिंहभूम  के रास्ते शंख नदी में जा मिलती है 
लोहरदगा से 8 किलोमीटर उत्तर पूर्व में या दक्षिण दिशा की ओर मुड़ जाती है और यह लोहरदगा तथा गुमला जिले से होते हुए सिंहभूम में प्रवेश करती है 
अंत में यह नदी गंगापुर के निकट नदी में समा जाती है, इसकी सबसे बड़ी सहायक नदी कारो है, इसी स्थान पर कोयलाकारो परियोजना का निर्माण किया गया है

 कन्हार नदी 

 कन्हार नदी राज्य के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में पलामू के दक्षिणी-पश्चिमी सीमा का निर्माण करती हुई उत्तर की ओर बहती है
कन्हार  नदी सरगुजा को पलामू से 80 किलोमीटर तक बाँटती है। 
➤इस नदी का उद्गम सरगुजा से होती है। 
 यह नदी गढ़वा में भंडारित प्रखंड प्रवेश करती है यह रंका प्रखंड की पश्चिमी सीमा से होते हुए धुरकी प्रखंड में प्रवेश करती हैं 

फल्गु नदी

फल्गु नदी भी छोटा नागपुर पठार के उत्तरी भाग से निकलती है 
अनेक छोटी-छोटी सरिताओं के मिलने से इस नदी की मुख्यधारा बनती है,जिससे निरंजना भी कहते हैं
 इसको अंतत सलिला या लीलाजन भी कहते हैं, बोधगया के पास मोहना नामक सहायक नदी से मिलकर या विशाल रूप धारण कर लेती है 
गया के निकट इसकी चौड़ाई सबसे अधिक पाई जाती है 
 पितृपक्ष के समय देश के विभिन्न भागों से लोग फल्गु नदी में स्नान करने के लिए आते हैं और पिंडदान करते हैं 

सकरी नदी

सकरी नदी भी छोटानागपुर से निकलकर हजारीबाग, पटना, गया और मुंगेर जिले से होकर प्रवाहित होती है
 झारखंड से निकलकर या उत्तर पूर्व की ओर बहती हुई कियूल और मनोहर नदियों के साथ मिलकर गंगा के ताल  क्षेत्रों  में बिखर जाती हैं
 रामायण में इस नदी को सुमागधी के नाम से पुकारा गया है उस काल में यह नदी राजगीर के पास से प्रवाहित होती थी, यह नदी अपने मार्ग बदलने के लिए प्रसिद्ध है

पुनपुन नदी

पुनपुन नदी झारखंड में पुनपुन एवं उसकी सहायक नदियों का उद्भव हजारीबाग के पठार वह पलामू के उत्तरी क्षेत्रों में क्षेत्रों से होता है
 यह नदी तथा उसकी सहायक नदियां उत्तरी कोयल प्रवाह क्षेत्र के उत्तर से निकलकर सोन के समांतर बहती है 
पुनपुन का महत्व हिंदू धर्म में बहुत अधिक है
 इस नदी को पवित्र नदी के रूप में पूजा जाता है, पुनपुन नदी को कीकट नदी भी कहा जाता है,लेकिन इससे कहीं-कहीं  बमागधी भी कहा जाता है
 गंगा में मिलने के पूर्व इसमें दरधा  और मनोहर नामक सहायक नदियां भी आ मिलते  हैं

चानन नदी

चानन नदी को पंचाने भी कहा जाता है, वास्तव में इसका नाम पंचानन है जो कालांतर में चानन बन गया है 
यह नदी 5000 धाराओं के मेल से विकसित हुई, इसलिए इससे पंचानन कहा गया है 
छोटा नागपुर पठार से इस की सभी धाराएं निकलती है 

शंख नदी

 शंख नदी नेतरहाट पठार के पश्चिमी छोर में उत्तरी कोयल के विपरीत बहती है 
पाट क्षेत्र के दक्षिणी छोर से इसका उद्गम होता है, यह गुमला जिले के रायडी के दक्षिण में प्रारंभ होती है➤यह नदी शुरू में काफी सँकरी और  गहरी खाई का निर्माण करती है 
 मार्ग में राजा डेरा के पास 200 फीट ऊंचा जलप्रपात बनाती है, जो सदनीघाघ जलप्रपात के नाम से प्रसिद्ध है

अजय नदी

अजय नदी  का उद्गम क्षेत्र मुंगेर है, जहां से प्रवाहित होते हुए यह  देवघर जिले में प्रवेश करती है 
यहाँ से यह दक्षिण-पूर्व दिशा में बढ़ती हुए प्रवाहित होती है, पश्चिम से आकर इसमें पथरो नदी मिलती है 
आगे चलकर इसमें जयंती नदी मिलती है यह दोनों सहायक नदियां हजारीबाग, गिरिडीह जिले से निकलती हैं
अजय नदी जामताड़ा में कजरा के निकट प्रवेश करती है, संथाल परगना के दक्षिणी छोर में यह नदी कुशबेदिया से अफजलपुर तक प्रवाहित होती है

मयूराक्षी नदी

➤मयूराक्षी नदी देवघर जिले के उत्तर-पूर्वी किनारे पर स्थित त्रिकुट पहाड़ से निकलती है
 यह दुमका जिले के उत्तर-पश्चिमी भाग में प्रवेश करती है, यह दक्षिण-पूर्व दिशा में बहती हुई आमजोड़ा के निकट दुमका से अलग होती है 
झारखंड से निकलकर यह बंगाल में सैंथिया रेलवे स्टेशन के निकट गंगा में मिल जाती है 
यह नदी अपने ऊपरी प्रवाह क्षेत्र में मोतिहारी के नाम से भी जानी जाती है, यह भुरभुरी नदी के साथ मिलकर मोर के नाम से पुकारी जाती है, इसका दूसरा नाम मयूराक्षी है
इसकी सहायक नदियों में टिपरा, पुसरो,भामरी , दौना,धोवइ आदि प्रमुख है 
इस नदी पर कनाडा के सहयोग से मसानजोर डैम का निर्माण किया गया है, इस डैम को कनाडा डैम भी कहा जाता है

सोन नदी

➤यह नदी मैकाल पर्वत के अमरकटक पठार से निकलती है 
➤यह पटना के पास गंगा नदी में मिलने के लिए 780 किलोमीटर की दुरी तय करती है 
➤क्षेत्र विशेष में अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है जैसे :-सोनभद्र ,हिरण्यवाह
➤इसकी सहायक नदी उत्तरी कोयल है 
➤इसका अपवाह क्षेत्र पलामू और गढ़वा है 
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Wednesday, August 26, 2020

Jharkhand Ki Jalvayu (झारखंड की जलवायु)

Jharkhand Ki Jalvayu


झारखंड
का मौसम वैज्ञानिकों ने जलवायु के आधार पर पर्याप्त आर्द्रता और अधिक वर्षा वाला क्षेत्र माना है, उष्णकटिबंधीय क्षेत्र होने के बाद भी ऊंचा पठारी क्षेत्र होने से जलवायु में उतार-चढ़ाव होते रहते हैं

➤उष्णकटिबंधीय अवस्थिति एवं मानसून हवाओं के कारण झारखंड के जलवायु उष्णकटिबंधीय मानसूनी प्रकार की है

 कर्क रेखा झारखंड राज्य के लगभग मध्य से होकर गुजरती है

यहाँ  मुख्यतः तीन प्रकार की जलवायु पाई जाती है 

ग्रीष्म ऋतु 

वर्षा ऋतु

शीत  ऋतु 

तीनों ऋतु में काफी अंतर रहता है, कर्क रेखा पर स्थित झारखंड के स्थल है ,नेतरहाट, किस्को ,ओर मांझी, गोला,मुरहूलमुदि , गोपालपुर पोखना,गोसाइडीह और पालकुदरी। 

मौसम/ऋतु

झारखण्ड राज्य के अलग-अलग क्षेत्रों में स्थानीय कारणों से मौसमों में थोड़ा बहुत अंतर पाया जाता हैरांची में मौसम बहुत सुहाना रहता है, और तापमान 38 डिग्री सेल्सियस से ऊपर बहुत कम ही जाता है जबकि पलामू का तापमान 45 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचना साधारण बात है, वहां सूखा भी पड़ता है 
 जमशेदपुर लौह नगरी हैं, कल-कारखानों होने के कारण जमशेदपुर का मौसम बहुत गर्म रहता है, बोकारो, धनबाद कोयले की खानों के कारण गर्म इलाका है, धनबाद विशेषकर झरिया की धरती के अंदर कोयला धड़कते रहता है, इससे यहां का वातावरण गर्म रहता है
 हजारीबाग का मौसम बहुत सुहाना रहता है, क्योंकि यहां जंगल बहुत है, और कल-करखाने नहीं के बराबर है

ग्रीष्म ऋतु

ग्रीष्म ऋतु 15 मार्च से 15 जून तक रहता है, इस ऋतु में झारखंड का ग्रीष्म ऋतु में मासिक औसत तापमान 29 डिग्री से 45 डिग्री सेल्सियस के बीच  रहता है, राज्य का सर्वाधिक गर्म महीना में है

 इस उच्च तापमान का कारण सूर्य का उत्तरायण होना, दिन की लंबाई बढ़ना और  सूर्यताप  का बढ़ते जाना हैबढ़ते तापमान के कारण पठार के उत्तरी-पूर्वी  भाग में निम्न दाब उत्पन्न हो जाती है इस ऋतु में आर्द्रता कम होने लगती हैं

 राज्य का सबसे गर्म स्थल जमशेदपुर है,

 उत्तर पूर्वी भाग में निम्न वायुदाब का क्षेत्र बन जाता है परिणाम स्वरूप पश्चिम से पूर्व की दिशा में हवा प्रवाहित होने लगती है, इस समय थोड़े बहुत वर्षा पश्चिम बंगाल की खाड़ी से आने वाले हवाओं से होती है

वर्षा ऋतु 

वर्षा ऋतु 15 जून से 15 अक्टूबर तक वर्षा ऋतु रहता है, इस समय वर्षा अधिक होती है, यद्यपि वर्षा प्रारंभ में ग्रीष्मकालीन प्रभाव रहता है, लेकिन वर्षा बढ़ने के साथ ही मौसम में परिवर्तन होने लगता है

 क्षेत्रीय विषमताओं के कारण यह वर्षा में विभिन्नता पाई जाती है। यहाँ ऊँचे क्षेत्रों में अधिक वर्षा होती है, वर्षा का मात्रा दक्षिण से उत्तर और पूरब से पश्चिम की ओर कम होती जाती है

 सर्वाधिक वर्षा वाला स्थान नेतरहाट (लातेहार) हैं

➤जब की चाईबासा का मैदानी भाग कम वर्षा का क्षेत्र है 

झारखंड में वर्षा का वार्षिक औसत  140 सेंटीमीटर वर्षा होती है

शीत ऋतु

➤शीत ऋतु अक्टूबर से ही  उत्तरार्द्ध ही सर्दियां शुरू हो जाती है, और फरवरी के अंत तक रहती है

 सर्दियों का प्रभाव पूरी तरह 15 मार्च के पहले सप्ताह में ही समाप्त हो जाती है, जब धीरे-धीरे ग्रीष्म ऋतु का शुरुवात होता है 

यहां का सबसे ठंडा स्थान नेतरहाट है, यहां का तापमान जनवरी में 7.50 सेंटीग्रेड से नीचे चला जाता है यहां की अपेक्षा मैदानी इलाकों में ठंड कम होती है

उत्तरी-पश्चिमी हवा में सामयिक व्यवधान के कारण कभी-कभार हल्की बारिश हो जाती है, जो रबी फसलों के लिए बहुत उपयोगी साबित होती है

 राज्य का सर्वाधिक ठंडा महीना जनवरी होता है,जनवरी में कभी-कभी शीतलहरी चलती है और कभी-कभी पाला भी गिरता है 

जलवायु प्रदेश

  छोटा नागपुर की जलवायु को मौसम विज्ञानियों ने 7 विभागों में विभाजित किया है अयोध्या प्रसाद ने इस जलवायु चित्र वर्णन अपनी पुस्तक में किया है जो निम्न प्रकार है

(1)उत्तर व उत्तर पश्चिमी जलवायु का क्षेत्र

(2) मध्यवर्ती जलवायु क्षेत्र

(3)पूर्वी संथाल परगना (डेल्टाई प्रभाव क्षेत्र) 

(4) पूर्वी सिंहभूम (सागरीय प्रभाव वाला जलवायु क्षेत्र)

(5)दक्षिणी पश्चिमी जलवायु क्षेत्र

(6)रांची और हजारीबाग पठार का जलवायु क्षेत्र

(7) पाट जलवायु क्षेत्र

(1)उत्तर व उत्तर पश्चिमी जलवायु का क्षेत्र

उत्तर एवं उत्तर पश्चिमी जलवायु का क्षेत्र यह जलवायु क्षेत्र गढ़वा, पलामू, हजारीबाग जिले सहित गिरिडीह जिले के मध्यवर्ती भाग में है 

इस जलवायु क्षेत्र की विशेषता है कि इसका अतिरिक्त स्वभाव का होना अर्थात जाड़े के मौसम में अत्यधिक जाड़ा, गर्मी के मौसम में अत्यधिक गर्मी पड़ना। 

देवघर दुमका और गोड्ड़ा के पश्चिमी भाग में भी इसका प्रभाव देखने को मिलता है जब ठंडा ज्यादा हो जाती है, तब पाले की स्थिति पैदा हो जाती है, वर्षा अपेक्षाकृत  कम होता है

(2) मध्यवर्ती जलवायु क्षेत्र

 इस क्षेत्र में वर्षा 50से 60  सेंटीमीटर होती है

तेज हवाओं का आगमन होने से लू तथा तेज आंधी भी इस क्षेत्र में यदा-कदा रहती है, लेकिन इसका प्रभाव अधिक नहीं होता, इसमें हजारीबाग,बोकारो और धनबाद शामिल है

➤यह क्षेत्र लगभग महाद्वीपीय प्रकार की है। किंतु तापमान में अपेक्षाकृत कमी एवं वर्षा में अपेक्षाकृत अधिकता के कारण इससे एक पृथक प्रकार उपमहाद्वीप प्रकार का दर्जा दिया गया है 

(3)पूर्वी संथाल परगना (डेल्टाई प्रभाव क्षेत्र)

इस जलवायु क्षेत्र का विस्तार साहिबगंज, पाकुड़ जिले क्षेत्रों में है, जो राजमहल पहाड़ी के पूर्वी ढाल का क्षेत्र है, इस जलवायु क्षेत्र की समानता बंगाल की जलवायु से की जा सकती है

 यह नॉर्वेस्टर का क्षेत्र है ग्रीष्म काल में नार्वे स्तर से इस क्षेत्र में 13 पॉइंट 5 सेंटीमीटर वर्षा होती है और इस क्षेत्र में कुल औसत वार्षिक वर्षा 152 पॉइंट 5 सेंटीमीटर होती है

राजमहल की पहाड़ियां उष्ण पश्चिमी वायु और बंगाल की खाड़ी के आर्द्र वायु के बीच दीवार खड़ी हो जाती है, गर्मियों में अधिक वर्षा का कारण भी बनती है

(4) पूर्वी सिंहभूम (सागरीय प्रभाव वाला जलवायु )क्षेत्र

पूर्वी सिंहभूम क्षेत्र (सागर प्रभावित प्रकार) :-इस जलवायु क्षेत्र का विस्तार पूर्वी सिंहभूम,सरायकेला खरसावां जिला एवं पश्चिमी सिंहभूम जिला के पूर्वी क्षेत्र में है

इस जलवायु क्षेत्र का उत्तरी हिस्सा सागर से 200 किलोमीटर की दूरी पर है, जबकि दक्षिणी हिस्सा सागर से 100 किलोमीटर की दूरी पर है

 यह जलवायु क्षेत्र नॉर्वेस्टर के प्रभाव क्षेत्र में आता है इसलिए इस क्षेत्र में नॉर्वेस्टर के प्रभाव से होने वाले मौसमी घटनाएं घटित होती है 

यह जलवायु क्षेत्र गर्मी के मौसम  में सर्वाधिक वर्षा प्राप्त करने वाले जलवायु क्षेत्र है  

➤इस जलवायु क्षेत्र में  कुल औसत वार्षिक वर्षा 140 सेंटीमीटर से 152 सेंटीमीटर के बीच होती हैं 

(5)दक्षिणी पश्चिमी जलवायु क्षेत्र

दक्षिणी पश्चिमी जलवायु क्षेत्र पश्चिमी सिंहभूम का दक्षिणी क्षेत्र है, जिसमें कोयल, शंख  नदी है 

इस जलवायु के विस्तार क्षेत्र है, यहां पहाड़ी क्षेत्र के कारण समुद्री हवाओं का आगमन नहीं होता है, इसी कारण यहां शुष्कता बनी रहती है,और यहाँ  शुष्कता का सघन वन क्षेत्रों के कारण गर्मी पैदा करती है, यहां वार्षिक वर्षा औसत रूप से 60 सेंटीमीटर है 

(6)रांची और हजारीबाग पठार का जलवायु क्षेत्र

➤इस जलवायु क्षेत्र का विस्तार राँची - हजारीबाग जलवायु पठारी क्षेत्र में है  

 इस जलवायु क्षेत्र की जलवायु तीव्र एवं सुखद प्रकार की है जो झारखंड में कहीं और नहीं मिलती है  

इस प्रकार की जलवायु के निर्माण में इस भु-विभाग की ऊंचाई की महत्वपूर्ण भूमिका है ऊंचाई के कारण ही चारों और की अपेक्षा यहां तापमान कम रहता है 

 रांची में औसतन अधिक वर्षा औसतन वर्षा 151 ऑन पॉइंट 5 सेंटीमीटर एवं हजारीबाग में औसतन वर्षा 148 पॉइंट 5 सेंटीमीटर होती है

 यहां गर्मियों में तापमान अधिक रहता है और राते अपेक्षाकृत ठंडी रहती है 

(7) पाट जलवायु क्षेत्र

मौसम अध्ययन के अनुसार के गीष्मकालीन तापमान जमशेदपुर में सर्वाधिक और हजारीबाग में सबसे कम रहता है राज्यभर में वार्षिक वर्षा का औसतन 1200  मिलीमीटर है, इससे कई क्षेत्रों में बाढ़ की स्थिति पैदा होती है, वर्षा के असमान वितरण और कहीं-कहीं अधिकता से किसी को हानि भी पहुंचाती है 

इस जलवायु क्षेत्र  में वनों की सघनता और क्षेत्र की ऊंचाई अधिक होने के कारण यहां अधिक वर्षा होती है मौसम सुखद रहता है इस क्षेत्र में बगड़ू और नेतरहाट आदि क्षेत्र आते हैं

➤इस जलवायु की प्रमुख  विशेषताएं हैं -अधिक वर्षा का होना,अधिक बादलों का आना,ग्रीष्म में शीलत बना रहना ,और शीत ऋतु में शीतलतम हो जाना। 

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Monday, August 24, 2020

Jharkhand Me Vano Ke Prakar(झारखंड में वनों के प्रकार)

झारखंड में वन और वनों के प्रकार

(Jharkhand Me Vano Ke Prakar)

झारखंड में वन

झारखण्ड शब्द से झाड़ -जंगल  से भरे  इलाका  ज्ञात होता है। 
वन संपदा और वन्य जीव-जंतु प्रकृति के द्वारा झारखंड को दिया हुआ एक अमूल्य तोहफा है। झारखंड में प्राकृतिक रूप से वन क्षेत्र बहुत विशाल है
राज्य के कुल क्षेत्रफल का 79,71 4 वर्ग किलोमीटर के 23605 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में जंगल फैला हुआ है, जो झारखंड के कुल क्षेत्रफल का 29 पॉइंट 61% भाग है। 
भारत के कुल वन क्षेत्र का 3 पॉइंट 4 प्रतिशत (3.4%) भाग झारखंड का वन क्षेत्र है जबकि पूरे भारत के कुल क्षेत्रफल का 2.42 % झारखंड का क्षेत्रफल है
झारखण्ड में प्रति व्यक्ति वन -0. 08 प्रति हेक्टेयर है 
झारखण्ड में सबसे प्रमुख वृक्ष -साल है। 
झारखण्ड सबसे अधिक वन प्रतिशत वाला जिला -लातेहार (56.02%) है 
झारखण्ड सबसे कम वन प्रतिशत वाला जिला -जामताड़ा  (5.36 %) है
अति सघन वन - 2598 वर्ग किलोमीटर है  
मध्यम सघन वन - 9686  वर्ग किलोमीटर है 
खुला  वन - 11.269 वर्ग किलोमीटर है 


झारखंड में वनों के प्रकार

 झारखंड में वनों की सुरक्षा के आधार पर वनों की तीन श्रेणियां हैं जो निम्नलिखित है। 

💥आरक्षित वन 

💥सुरक्षित वन 

💥अवर्गीकृत वन

आरक्षित वन (Reserved) (सरकारी संरक्षण )

वैसे वन जिसमें मनुष्यों को अपने पशुओं को चराने तथा लकड़ी काटने की अनुमति नहीं होती है, अर्थात इन्हें सरकारी संरक्षण में रखा जाता है,ताकि वनों को कोई हानि न पहुंचे। 
राज्य में संरक्षित वनों का क्षेत्रफल 4387 वर्ग किलोमीटर है जो कुल वन क्षेत्र का 18 पॉइंट 58% है  
राज्य का सबसे बड़ा संरक्षित वन क्षेत्र कोल्हान एवं पोरहट वन क्षेत्र है  
राजमहल और पलामू क्षेत्र के वन  इस श्रेणी में है  
सुरक्षित वन के अंतर्गत सर्वाधिक क्षेत्रफल पश्चिमी सिंहभूम जिला में है 

सुरक्षित वन (Protected Forest)

जिसमें पशुओं को चराने एवं एक सीमा तक लकड़ी काटने की अनुमति सरकार के द्वारा दी जाती है रक्षित वन कहलाता है  
 इन वनों का कुल क्षेत्रफल 19.185 वर्ग किलोमीटर जो कुल  वन क्षेत्रफल का 81 पॉइंट 28 प्रतिशत है  
इनका सर्वाधिक विस्तार हजारीबाग में है 
इसके  बाद गढ़वा, पलामू ,रांची ,लोहरदगा का स्थान है 

अवर्गीकृत वन (Unclassified Forest)

ऐसा वन  जिसमे पशुओं को चराने तथा लकड़ी काटने के लिए सरकार का कोई प्रतिबंध नहीं होता है  
लेकिन सरकार इसके लिए शुल्क लेती है, अवर्गीकृत वन की श्रेणी में आता है 
इन का कुल क्षेत्रफल 33 वर्ग किलोमीटर है जो कूल वन क्षेत्रफल का जीरो पॉइंट 14% है
राज्य में इस तरह के वन  साहिबगंज, पश्चिमी सिंहभूम,दुमका, हजारीबाग, पलामू एवं गुमला में पाए जाते हैं
 

झारखंड में दो प्रकार के वन  प्रदेश पाए जाते हैं 

1) उष्ण कटिबंधीय आर्द्र वर्षा वन 

2)  उष्ण कटिबंधीय शुष्क पतझड़ वन

उष्णकटिबंधीय आर्द्र वर्षा वन

जिन क्षेत्रों में 120 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा होती है वैसे  उष्ण कटिबंधीय आर्द्र वर्षा वन पाया जाता है  
 ऐसे क्षेत्र को उष्ण कटिबंधीय आर्द्र वर्षा वन प्रदेश कहा जाता है झारखंड में आर्द्र वनों का विस्तार सिंहभूम, दक्षिणी लातेहार एवं संथाल परगना में है
यह वही क्षेत्र है जो जलवायु की दृष्टि से सागरीय मौसम से प्रभावित जलवायु क्षेत्र है और जहां अधिक वर्षा होती है
 इन वनों में साल,शीशम ,जामुन ,पलाश ,सेमल,करमा ,महुआ ,और बांस मिलते हैं
साल के वृक्षों की प्रधानता है जिनके वन घने होते हैं, और पेड़ों की ऊंचाई भी ज्यादा होती है, साल को पर्णपाती पतझड़ वनों का राजा कहा जाता है

उष्ण कटिबंधीय शुष्क पतझड़ वन

शुष्क पतझड़ वन प्रदेश जिन क्षेत्रों में 120 सेंटीमीटर से कम वर्षा होती है, वहां ऐसे वन पाए जाते हैं,ऐसे  क्षेत्र को उष्ण कटिबंधीय शुष्क पतझड़ वन प्रदेश कहा जाता है
 झारखंड में शुष्क पतझड़ वनों का विस्तार पलामू, गिरिडीह, सिंहभूम, हजारीबाग,धनबाद और संथाल परगना में है, ऐसे क्षेत्र में कम वर्षा होती है 
ऐसे जगहों पर लगभग झाड़ियां एवं घास है, इस क्षेत्र  में साल, अमलतास, सेमल, महुआ एवं शीशम के पेड़ मिलते हैं इनकी गुणवत्ता अपेक्षाकृत निम्न होती है बाँस , नीम, पीपल, हर्रा , पलाश, कटहल एवं गूलर के वृक्षों की प्रधानता है

 वन संपदा

वन संपदा या वनों से प्राप्त होने वाले उत्पाद  को वन संपदा के अंतर्गत शामिल किया गया है इन को दो वर्गों में रखा गया है

मुख्य उपज

 गौण उपज 

मुख्य उपज

मुख्य उपज में केवल लकड़ियों से उत्पादन को गिना जाता है

 झारखंड में जिन वृक्षों की लकड़ियां को बहुत उपयोग में लाया जाता है उनका संक्षिप्त में विवरण निम्न  प्रकार है
 
साल :- यह वृक्ष लगभग संपूर्ण क्षेत्र में मिलता है ,साल झारखंड का राजकीय वृक्ष है
यह वृक्ष यहां के जनजातीय समाज में बड़ी धार्मिक महत्व की है
 इसका उपयोग मकान ,फर्श , फर्नीचर, रेल के डिब्बे एवं पटरियों  को रखने के लिए स्लैब इत्यादि को  बनाने में उपयोग होता है
साल को सुखवा भी कहते हैं, साल के पुष्पों को 'सरई फूल' कहते हैं
साल के बीजों से तेल निकाला जाता है, जिससे कुजरी तेल कहते हैं ,जो प्राकृतिक चिकित्सा के लिए बहुत उपयोगी है 

शीशम :- इसकी लकड़ी काफी मजबूत होती है, इसका उपयोग फर्नीचर बनाने में होता है 
राज्य में उत्तरी एवं मध्यवर्ती क्षेत्र में शीशम का वृक्ष अधिकांश मिलते हैं, इसकी लकड़ियां चिकनी और धारदार होती हैं

 महुआ :- झारखंड में महुआ वृक्ष लगभग सभी जगह पर पाया जाता है
इसके फूल, फल एवं लकड़ी सभी उपयोगी होते हैं फूल से शराब, पके फलों के बीज से तेल निकाला जाता है, कच्चे फलों को सब्जी के रूप में उपयोग किया जाता है
 इसकी लकड़ियां काफी मजबूत होती है, जो पानी में भी जल्दी नहीं सड़ती है, महुआ झारखंड का सर्वाधिक उपयोगी वृक्ष है, इसलिए इसकी लकड़ी के दरवाजा एवं खंभे बनाए जाते हैं
इसके फूल से देसी शराब बनाई जाती है

सागौन :- सागौन सारंडा, पोरहाट  और कोल्हान क्षेत्र में अपेक्षाकृत अधिक जलवायु होने के कारण इन वृक्षों का रोपण किया जाता है इसकी लकड़ी बहुत ही मजबूत एवं सुंदर होती है इनका उपयोग रेल के डिब्बे ,हवाई जहाज इत्यादि बनाने में होता है

 गम्हार :- इसकी लकड़ी हल्की,मुलायम और चिकनी होने के साथ-साथ काफी टीकाऊ  होती है
 लकड़ियों पर नक्काशी करने की दृष्टि से यह सबसे अधिक उपयोगी लकड़ी है ,फर्नीचर बनाने में भी उपयोग होता है

 आम :- इस  पेड़ की लकड़ी सबसे सस्ते और सुलभ होती है, इसका उपयोग दरवाजे ,खंबे, खड़की एवं अन्य फर्नीचर बनाने में उपयोग होता है
 इसके फल बहुत स्वादिष्ट होते हैं, जिस कारण से फलों का राजा कहा जाता है, इसके फल को अमृत फल भी कहा जाता है 

जामुन :- की लकड़ी पानी में हजारों वर्ष रहने के बावजूद नहीं सड़ती है, इसी कारण इसे कुआं के आधार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है 
अन्य उपयोग फर्नीचर बनाने में, इसका फल भी खाया जाता है, और इसके बीज से दवा बनाया जाता है
 
केन्दु:- को मुख्य उत्पाद एवं गौण  उत्पाद दोनों वर्गों में शामिल किया जाता है  
जब  केन्दु की  लकड़ियों  का उत्पाद बनाया जाता है,तो वह मुख्य उत्पाद होता है, लेकिन  जब केन्दु की  पत्तियों का उत्पाद बनाया जाता है तो गौण वह उत्पाद होता है 
 ध्यान देने योग्य बात यह है कि केन्दु  का उपयोग मुख्य उत्पाद की तुलना में, गौण उत्पाद के रूप में मुख्य होता है 

सेमल :- की लकड़ियां हल्की मुलायम और सफेद होती है, इनका सर्वाधिक उपयोग पैकिंग के लिए,पेटियां बनाने में और खिलौना बनाने में होता है, इसकी रुई काफी उपयोगी होती है 

अन्य:- इमारती लकड़ियों में पैसार ,तुन,करमा, आसन,सिध्दा ,ढेला ,नीम ,बेल , इमली (तेतर) ,बेल,पीपल आदि महत्वपूर्ण है

 गौण उपज 

 झारखंड में पाए जाने वाले गौण उत्पाद इस प्रकार है:-

लाह :- उत्पादन की दृष्टि से झारखंड का देश में प्रथम स्थान है
 यहां देश का कुल उत्पादन का 50 प्रतिशत झारखण्ड में उत्पादन होता है, झारखंड में ऐसे क्षेत्र बहुतायत में मिलते हैं जो लाह उत्पादन की दृष्टि में सर्वथा अनुकूल है,इन क्षेत्र में लाह उत्पादन के लिए उपयुक्त वातावरण प्राप्त होता है 
लाह  के उत्पादन के लिए खूटी-रांची जिला, गढ़वा-पलामू-लातेहार ,सिंहभूम क्षेत्र,संताल परगना और  हजारीबाग क्षेत्र प्रमुख है  
लाह से संबंधित शोध कार्य के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अंतर्गत नामकुम रांची में भारतीय लाह  शोध अनुसंधान केंद्र की स्थापना की गई है

केंदु पत्ता:-  झारखंड के  वन उत्पाद में बहुत ही ख़ास वस्तु और बहुत अधिक राजस्व का साधन माना जाता है पलामू गढ़वा सिंहभूम, गिरिडीह और हजारीबाग जिले में इसका उत्पादन होता है 
केंदु पत्ता का  व्यापार अन्य सभी लघु वन उपज संग्रहक  की तरह बिक्री हेतु स्वतंत्र नहीं है इसके लिए सरकार द्वारा बेचने की मंजूरी लेना जरुरी होता है 
व्यापार में ठेकेदारों की भूमिका कम करने और प्राथमिक संग्रहको केंदु पत्ता  संग्रहण के बदले उचित मजदूरी का भुगतान करने के उद्देश्य से झारखंड राज्य केंद्र पत्ता नीति 2015 को दिनांक 27 /01/2016 को अधिसूचित की गई। केंदु पत्ता से बीड़ी और तंबाकू के मिश्रण बनाए जाते हैं
सर्वाधिक लाह उत्पादक जिला -खूटी  है। 

तसर/मलबरी/ रेशम :- तसर उत्पादन की दृष्टि से झारखंड का देश में प्रथम स्थान है 
यहां देश के कुल तसर उत्पादन का 60% होता है
 रेशम के उत्पादन में साल, अर्जुन, आसन,शहतूत आदि वृक्षों की आवश्यकता होती है जो झारखंड के वनों में बहुतायत में मिलते हैं 
रांची के नगड़ी  में भारत सरकार ने 'तसर अनुसंधान केंद्र' स्थापित किया है
रेशम आधारित उत्पादों के विकास के लिए झारखंड सरकार ने 2006 में 'झारखंड सिल्क, टेक्सटाइल एवं हैंडीक्राफ्ट डेवलपमेंट कारपोरेशन' (झारक्राफ्ट) की स्थापना की है
झारखंड देश का सबसे बड़ा कोकून और तसर का उत्पादक राज्य है 
सिल्क के सूत प्राप्त करने के लिए कोकून की खेती की जाती है इसकी खेती राज्य में दो मौसम में होती  मई से जून, से अगस्त सितंबर तक तथा दूसरा सितंबर-अक्टूबर से नवंबर - दिसंबर तक 
कोकून की खेती से 17000 किसान जुड़े हुए हैं

बाँस :- गौण  उत्पाद में बांस का अपना अलग महत्व है, क्योंकि कई आदिवासी एवं अनुसूचित जातिया  बांस द्वारा खेती-गृहस्ती एवं घरेलू उपयोग के लिए सामान तैयार कर सीधे बाजार में बेचकर अपना जीवन- यापन करते हैं 
व्यापारिक स्तर पर इसका उपयोग घर बनाने कागज उद्योग एवं टेंट हाउस चलाने आदि में होता है

अन्य :-गौण उत्पादों में साल बीज, महुआ बीज ,महुआ पत्ता ,चिरौंजी, इमली, आंवला ,कत्था , मधु, गोंद, घास, पत्तियां, छाल, बीज, फूल-फल, कंद-मूल, जड़ी बूटियां उल्लेखनीय है



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Friday, August 21, 2020

Jharkhand Ke Pramukh Udyan Aur Abhyaran(झारखंड के प्रमुख उद्यान और अभयारण्य)

Jharkhand Ke Pramukh Udyan Aur Abhyaran


💥  झारखंड में एकमात्रा बेतला राष्ट्रीय उद्यान (नेशनल पार्क) है। 
💥 11 वन्य प्राणी  अभयारण्य या शरण स्थल है।  
और  कई जैविक उद्यान है। 

बेतला राष्ट्रीय उद्यान




💨बेतला झारखंड का विख्यात वन्य प्राणियों की आश्रय स्थल है
💨यह राष्ट्रीय उद्यान लातेहार जिले में स्थित है
💨इसकी स्थापना -1986 में की गयी थीं। 
💨इसका क्षेत्रफल - 231. 67 वर्ग किलोमीटर है  
💨भारत सरकार द्वारा बाघ परियोजना मुहिम चलाया जा रहा है 
💨विश्व में पहली बार बाघों की गणना 1932 ईस्वी में बेतला राष्ट्रीय उद्यान में कराई गयी थी। 
💨रांची - डाल्टनगंज सड़क मार्ग पर रांची से लगभग 156 किलोमीटर की दूरी पर यह अभयारण्य स्थित है 
💨इस अभयारण्य के मुख्य जीव-जंतु में से रॉयल बंगाल टाइगर, हाथी, चीता, हिरण आदि प्रधान रूप से पाये जाते है
💨पर्यटकों के ठहरने के लिए वन विभाग के विश्राम गृह सहित निजी होटल एवं रेस्ट हाउस का भी यहाँ इंतज़ाम है  
 

पालकोट अभयारण्य




💨 रांची से पलकोट अभयारण्य की दूरी लगभग 120 किलोमीटर है, यह गुमला जिले के पालकोट प्रखंड के अंतर्गत चैनपुर वन प्रमंडल में अवस्थित  है 
💨इसकी स्थापना -1909  में की गयी थीं।
💨पलकोट अभयारण्य के चारों ओर से कई नदियां बहती हैं इन नदियों में शंख ,बाँकी, सिंजरा,पाईलमारा ,तोरपा है 
💨इस अभयारण्य में चीता, भालू, लकड़बग्घा, भेड़िया, सियार, बंदर, खरगोश आदि वन्य-पशु पाये जाते हैं  
💨पलकोट झारखंड के ऐतिहासिक स्थलों में से एक है, जहां छोटानागपुर के राजा के महल के अवशेष भी मोहकता का केंद्र है 

तोपचांची अभयारण्य





💨 वन्य पशुओं के आश्रय श्रेणी के रूप में विकास किया गया है ,यह अभयारण्य धनबाद जिला के तोपचांची नामक स्थान में स्थित है
💨 सड़क मार्ग धनबाद से इसकी दूरी 37 किलोमीटर है
💨इसकी स्थापना -1978   में की गयी थीं।
💨 झारखंड के विभिन्न अभयारण्यों की तुलना में यह एक छोटा अभयारण्य है जो 8 पॉइंट 75 वर्ग किलोमीटर में प्रसारित है
💨तोपचांची अभयारण्य के बीच में एक खूबसूरत झील है जिसका नाम हरी पहाड़ी है 
💨 इस अभयारण्य में चीता, जंगली सूअर, लंगूर, हिरण जैसे वन्य पशुओं को उनके प्राकृतिक रूप में देख सकते  हैं  


हजारीबाग अभयारण्य




💨हजारीबाग अभयारण्य  वन्य-पशु अभयारण्य रांची-पटना मार्ग पर हजारीबाग के नजदीक स्थित है। 
💨हजारीबाग से इसकी दूरी लगभग 22 किलोमीटर है, लगभग 186 पॉइंट 25 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र  तक में इसका विस्तार है 
💨इसकी स्थापना -1976  में की गयी थीं।
💨यहाँ पर विभिन्न तरह की प्राकृतिक वनस्पति एवं जीव जंतु पाए जाते हैं 
💨 इसमें सांभर, चीता, नीलगाय, भालू, बाघ, गैंडा, जंगली सूअर,लंगूर, हिरण आदि वन्य पशु पाये जाते हैं💨वन्य पशुओं एवं अभयारण्य का देख-रेख करने के लिए चार ऊंचे वॉच टावर बनाए गए हैं जिनकी ऊंचाई 200 फीट है 


कोडरमा अभयारण्य



 

💨कोडरमा अभयारण्य रांची-पटना मार्ग पर हजारीबाग से आगे कोडरमा से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर यह अभयारण्य स्थित  है 
💨इसकी स्थापना -1976  में की गयी थीं।
💨177 पॉइंट 5 वर्ग किलोमीटर में घने  साल वन में फैले इस अभयारण्य में सांभर, चीता , नीलगाय, जंगली सूअर, लंगूर, हिरण, खरगोश, मोर इत्यादि वन प्राणी प्रधान रूप से पाये जाते हैं 


दलमा अभयारण्य




💨दलमा अभयारण्य पूर्वी सिंहभूम जिले में टाटानगर के पास यह अभयारण्य लगभग 195 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में प्रसारित है
💨इसकी स्थापना -1976  में की गयी थीं।
💨भारत सरकार द्वारा देश का पहला हाथी आरक्षय सिंहभूम  जिले में दिनांक -26 -09 -2001 को अधिसूचित किया गया
💨 दलमा अभयारण्य पर हिरण, बंदर, नीलगाय, हाथी इत्यादि वन्य प्राणी देखने को मिलते है,यहाँ के आकर्षण का केंद्र हाथी है


बिरसा जैविक उद्यान




💨बिरसा जैविक उद्यान रांची-रामगढ़ मार्ग पर रांची से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर ओरमांझी प्रखंड के अंतर्गत चकला नामक गाँव  के निकट स्थित है
💨इसकी स्थापना -1994  में की गयी थीं।
💨इसमें विभिन्न प्रजातियों  के जीव-जंतु, पशु-पक्षी एक बहुत विशाल क्षेत्र में फैले हुए, साल पेड़ों के वन के बीच प्राकृतिक अवस्था में रखे गए हैं 
💨विशाल एकड़ क्षेत्र में फैले उद्यान भ्रमण करने के लिए वर्त्तमान में पर्यटन विभाग द्वारा इको - फ्रेंडली गाड़ी भी प्रबंध  कराई गई है, जिस पर सवार होकर जीव-जंतु को देखने का मजा ही कुछ और लगता है
💨बच्चों के मनोरंजन के लिए यहाँ  नौका-विहार भी है
💨बिरसा  जैविक उद्यान के निकट ही मुटा  मगर प्रजनन केंद्र हैं, जिस जगह पर वैज्ञानिकों की देख-रेख में मगर प्रजनन कराया जाता है
💨 मगर प्रजनन केंद्र रुक्का राँची में है 


 बिरसा मृग विहार




💨रांची खूंटी के मार्ग पर जोड़ा पुल नामक स्थान के नजदीक काला माटी में  बिरसा मृग विहार अवस्थित है, रांची से इसकी दूरी मुख्य सड़क मार्ग से 20 किलोमीटर है जो सड़क  के पास  ही मिलता है 
💨इसकी स्थापना -1982 में की गयी थीं।
💨मृग विहार के पास ही से एक पहाड़ी नदी निकलती है, जो उस जगह को वनभोज  के लिए उपयुक्त बनाती है 
💨इस नदी पर एक के बाद एक दो पुल बना हुआ है यही कारण है की यह स्थान जोड़ा पुल के नाम से विख्यात है 
💨मृग विहार को विभिन्न प्रकार के हिरणों की आश्रय स्थली के रूप में विकास किया गया है

उधवा पक्षी अभयारण्य 





💨संथाल परगना प्रमंडल के साहिबगंज जिले से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह अभयारण्य विभिन्न प्रकार के विभिन्न प्रजातियों के पक्षियों के कारण विख्यात है
💨इसकी स्थापना -1991  में की गयी थीं।
💨यह लगभग 650 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तरित  है 
💨यहां एक विस्तृत विशाल झील भी है, जो प्रवासी पक्षियों के निवास के लिए उपयुक्त है शरद ऋतु में इन प्रवासी पक्षियों को देखने के लिए पुरे देश से पर्यटक एवं पक्षी प्रेमी यहां आते हैं 
💨यहां पर कबूतर, चन्दुल, वनमुर्गी, खंजन, बुलबुल, नीलकंठ पक्षी अधिक पाए जाते हैं
💨राजमहल जीवाश्म अभयारण्य साहिबगंज जिले में है




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Jharkhand Ke Pramukh Jalprapat (झारखंड के प्रमुख जलप्रपात)

Jharkhand Ke Pramukh Jalprapat

(झारखंड के प्रमुख जलप्रपात)

झारखंड की भौगोलिक संग रचनाओं में यहां के जलप्रपात विशेष महत्व रखते हैं यह झारखंड के दर्शनीय स्थल भी है झारखंड के पठारी क्षेत्र में अनेक जलप्रपात हैं



यहां इन का संक्षिप्त में विवरण निम्नलिखित है

1) उसरी जलप्रपात

💨 उसरी जलप्रपात  गिरिडीह जिले की उसरी नदी में धनबाद से 52 किलोमीटर दूर मुख्य सड़क से 2 किलोमीटर अंदर खंडोली पहाड़ी की ढलान पर स्थित है

💨 उसरी जलप्रपात उसरी नदी की धारा से बनने के कारण  इस जलप्रपात को उसरी जलप्रपात कहते  है

💨यहां आस-पास में घने जंगल होने के कारण यहां का दृश्य मनोहर और रोमांचकारी प्रतीत होता है 

💨उसरी जलप्रपात की एक विशेषता यह है कि नदी का पानी कुछ ऊपर उठकर नीचे की ओर गिरता है, यहां साल भर पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है

2) क्रांति जलप्रपात

💨 क्रांति जलप्रपात चंदवा कुंडू मार्ग पर स्नेहा गांव से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, इसके नजदीक ही हरा-भरा जंगल होने के कारण यहां का दृश्य मनोहर और हरियाली है 

💨 मुख्य सड़क से नजदीक  होने के कारण यहां लोगों के लिए अच्छा पिकनिक स्पॉट बन गया है

3) जोन्हा जलप्रपात या गौतम धारा जलप्रपात

💨जोन्हा जलप्रपात या गौतम धारा जलप्रपात रांची से 32 किलोमीटर दक्षिण पूर्व में राढू  नदी पर स्थित है

💨 इस  जलप्रपात की  ऊंचाई लगभग 150 फिट है ,जोन्हा  गांव के नजदीक होने के कारण इसका नाम जोन्हा जलप्रपात पड़ा,ये जगह अत्यंत गहराई होने के कारण यहां नीचे उतरने के लिए सीढ़ियों का निर्माण किया गया है

4दशम जलप्रपात

💨 दशम जलप्रपात  रांची जमशेदपुर मार्ग पर रांची से 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है

💨 इसकी ऊंचाई लगभग 144 फीट है, यह जलधारा जिस स्थान से गिरती है ,उसकी गहराई बहुत अधिक है, कहा जाता है इतनी ऊंचाई से गिरने के कारण इसकी जलधारा 10 धाराओं में बाँट जाती है, इसी कारण इसका नाम दशम जलप्रपात पड़ा

💨दशम जलप्रपात रांची के बुंडू प्रखंड के नजदीक तैमारा घाटी में कांची नदी पर स्थित है 

5) पंचघाघ  जलप्रपात

💨पंचघाघ  जलप्रपात  चाईबासा मार्ग पर खूंटी  से लगभग 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है

💨यहां ऊंचाई से गिरकर 5 धाराओं में बाँट जाती है, इसी कारण इसका नाम पांचघाघ जलप्रपात पड़ा दिसंबर से फरवरी माह तक यहां का दृश्य अत्यंत ही मनोहर और रोमांचकारी रहता है

6) बूढ़ा घाघ जलप्रपात

💨बूढ़ा घाघ  जलप्रपात लातेहार जिले में महुआटांड़ से 14 किलोमीटर की दूरी पर उत्तरी कोयल नदी पर स्थित है

💨 इसकी ऊंचाई 143 मीटर है, यह झारखंड का सबसे ऊंचा जलप्रपात है, इससे लोधा जलप्रपात के नाम से भी जाना जाता है, यहां सितंबर अक्टूबर में इसके आसपास का दृश्य देखने योग्य अत्यंत ही मनोहर रहता है

7) सुखलदरी   जलप्रपात

💨सुखलदरी  जलप्रपात नगर उंटारी से लगभग 35 किलोमीटर दक्षिण में कन्हर नदी में स्थित है 

💨इसकी ऊंचाई लगभग 100 फीट की ऊंचाई से गिरते हुए देखने में आंखों को सुकून देने वाला दृश्य उत्पन्न करती है

8) हुंदरू जलप्रपात

💨हुंदरू जलप्रपात  रांची से 36 किलोमीटर पूर्व अनगड़ा प्रखंड के अंतर्गत स्वर्णरेखा नदी पर स्थित है 

💨इस जलप्रपात की ऊंचाई लगभग 98 मीटर (322 फीट) है , यह रांची  के निकट का और सबसे प्रसिद्ध जलप्रपात है

 💨यह  झारखंड का दूसरा सबसे ऊंचा जलप्रपात और भारत का 21वे  सबसे ऊंचा जलप्रपात है

9) हिरनी जलप्रपात

💨हिरनी जलप्रपात रांची चाईबासा मार्ग पर चक्रधरपुर से 40 किलोमीटर उत्तर में स्थित है

💨 इसकी जलधारा अधिक ऊंचाई से नहीं गिरती है फिर भी यहाँ का स्थान हरा-भरा दर्शकों  बहुत आकर्षित करता है, इसी कारण से अच्छा पिकनिक स्पॉट बना हुआ है

10) सीता जलप्रपात

💨सीता जलप्रपात रांची पुरुलिया मार्ग पर रांची से 45 किलोमीटर दूरी पर स्थित है

💨 इस जलप्रपात 350 फिट है, यहां पर 350 सीढ़ी  उतरकर झरने तक पहुंच सकते है 

💨झरना के पास सीता माता का मंदिर है, जिसका निर्माण बिरला परिवार ने कराया था, ऐसी मान्यता है, कि वनवास के दौरान भगवान राम, लक्ष्मण और सीता के साथ कुछ दिन के लिए यहां पर ठहरे हुए थे

 11) घाघरी जलप्रपात

💨घाघरी  जलप्रपात नेतरहाट पठार पर नेतरहाट से 7 किलोमीटर उत्तर में घाघरी  नदी पर स्थित है इसका  ऊंचाई  43 मीटर है,

12) सदनी  जलप्रपात

💨सदनी जलप्रपात गुमला जिले में शंख नदी पर स्थित है इसकी ऊंचाई लगभग 200 फीट है, इस जलप्रपात का आकार एक साँप  के रूप जैसा  है, जो देखने में बड़ा ही मनमोहक लगता है 





 



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