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Wednesday, November 11, 2020

संथाल विद्रोह 1855-56 (Santhal vidroh-1855-56)

Santhal vidroh-1855-56

➤19वीं सदी के जनजातीय विद्रोहों  में संथालों का विद्रोह (1855-56) ईस्वी सबसे जबरदस्त था,इसे 'संथाल हूल' भी कहा जाता है।  

➤'हुल' का शाब्दिक अर्थ है -विद्रोह /बगावत। 

दरअसल संथाली विद्रोह करते वक्त 'हुल- हुल' चिल्लाते थे जिसके चलते इसे 'संथाल हूल' की संज्ञा दी गई।  

इस विद्रोह का नेतृत्व चार मुर्मू बंधुओं -सिद्धू ,कान्हू, चांद और भैरव ने किया  

यह विद्रोह अंग्रेजों शासकों के खिलाफ तथा ब्रिटिश शासन के आधार स्तंभ जमींदारों एवं साहूकारों के खिलाफ था। 

इस विद्रोह को दबाने में कंपनी सरकार को अत्यधिक श्रम करना पड़ा। 

कारण:-

इस विद्रोह के कारण उस युग की परिवर्तनीय अवस्थाओं में निहित थे 

आर0 सी0  मजूमदार के शब्दों में,  'संथाल विद्रोह आर्थिक कारणों से आरंभ हुआ लेकिन शीघ्र ही उसका उद्देश्य विदेशी शासन का अंत हो गया, क्योंकि उन्होंने यह देखा कि अंग्रेज अधिकारी उनकी शिकायतों पर  तनिक भी ध्यान नहीं देते हैं

वह तो शोषकों को प्रश्रय देते हैंअतएव  ब्रिटिश शासन का अंत ही उनकी स्थिति सुधार सकता है'

संथाल विद्रोह का प्रमुख कारण अंग्रेजी उपनिवेशवाद और उसमें निहित शोषण, बंगाली एवं  पछहि महाजनों तथा साहूकारों का शोषण था 

यह विद्रोह गैर आदिवासियों को भगाने उसकी सत्ता समाप्त कर अपनी सत्ता स्थापित करने के लिए छेड़ा गया था 

जमींदारों की अत्यधिक मांग:-

संथाल लोग हजारीबाग और मानभूम से राजमहल पहाड़ियों के इलाके में आकर बस गए थे

धीरे-धीरे राजमहल से लेकर भागलपुर के बीच का क्षेत्र,जो दामन-ए-कोह (पर्वत का दामन /आंचल अर्थात पहाड़ों के नीचे की भूमि/ पर्वतपदीय भूमि) के नाम से जाना जाता था, संथाल बहुल क्षेत्र बन गया

सीधे-साधे मेहनतकश संथालों ने कड़ी मेहनत से जंगलों को काट कर भूमि कृषि योग्य बनाई 

➤शीघ्र ही जमींदारों ने इस भूमि के स्वामित्व का दावा कर दिया 

इन पर बहुत ज्यादा लगान  लगा दिया  

बाद के वर्षों में लगान की दरें बढ़ कर 3 गुनी अधिक हो गई  

पैतृक भूमि को छोड़कर यहां आकर बसने वाले संथालों के दुखों का दुनिया में जैसे कहीं अंत न था

जमींदारों की अत्यधिक मांग से तंग आकर संथालों  ने विद्रोह का झंडा उठा लिया 

महाजनों का ऋणी जाल:-  

मालगुजारी नगदी देनी होती थी जिस कारण संथालों का महाजनों से ऋण लेना पड़ता था जिस पर भारी ब्याज चुकाना पड़ता था जो मूल ऋण  का 50% से 500% तक  हुआ करता था 

➤संथालों  द्वारा ऋण की अदायगी नहीं किए जाने पर ये सूदखोर महाजन उनके मवेशियों को खोल  ले जाते थे तथा उनके खेत खलिहानों  पर कब्जा कर लेते थे 

इस प्रकार सूदखोर महाजनों ने ऋण- जाल का फंदा तैयार कर दिया था, जिसमें संथाल फंसते चले गए

इससे भी खराब बात यह थी कि वे उनकी स्त्रियों की इज्जत लूट लेते थे 

पुलिस व न्यायालय का पक्षपात:-

जमींदारों वह महाजनों के खिलाफ संथालों  ने पुलिस को न्यायालय की शरण लेने की कोशिश की लेकिन सब व्यर्थ साबित हुआ क्योंकि वे ब्रिटिश साम्राज्यवाद के ही शोषण की उपकरण थी और वे जमींदारों-महाजनों का ही पक्ष लेते थे

जमींदारों, महाजनों  आदि की पुलिस व न्यायालय से मिली-भगत ने संथालों की मुश्किलों को और भी बढ़ा दिया 

स्पष्ट था कि संथालों  की पुलिस, न्यायालय- कहीं भी कोई सुनवाई न थी,अतएव वे अंग्रेजी सरकार के भी खिलाफ हो गए

तत्कालीन कारण:-

सरकार द्वारा भागलपुर से वर्तमान के बीच रेल बिछाने के काम में संथालों  से बेगारी करवाना :  संथालों की मुसीबत उस समय और बढ़ गई जब सरकार ने भागलपुर-वर्दमान  रेल परियोजना के तहत रेल बिछाने के काम में संथालों  को बड़ी संख्या में बेगार करने के लिए मजबूर किया

जिन लोगों ने ऐसा करने से इनकार किया, उन्हें कोढ़ो से पीटा गया संथालों ने इसका प्रतिहार करने का निश्चय किया  

उन्होंने रेलवे ठेकेदारों के ऊपर हमले किए और रेल परियोजना में लगे अधिकारियों व इंजीनियरों के तंबू उखाड़ दिए गए

संथाल विद्रोह का मुख्य उद्देश्य:-

➤देकुओं अर्थात दिक् (परेशान) करने वाले बाहरी लोगों को भगाना

विदेशियों का राज हमेशा के लिए खत्म करना तथा

सतयुग का राज- न्याय व धर्म का अपना राज्य (आबुआ राज्य) स्थापित करना 

परिणाम:-

संथाल विद्रोह के निम्नलिखित परिणाम हुए-- 

भ्रष्ट सरकारी कर्मचारियों, महाजनों व जमींदारों के मन में भय व्याप्त हो गया और उनकी लूट -खसोट कुछ दिनों के लिए थम गई 

कंपनी सरकार ने अपनी प्रशासनिक व्यवस्था में व्यापक फेर-बदल और सूधार किये ,इस प्रकार नये नियमों के कारण शासक और स्थानीय लोगों में सीधा संपर्क स्थापित हुआ

एल0 एस0  एस0 ओ0 मुले ने संथालों के विद्रोह को मुठभेड़ की संज्ञा दी है

➤जबकि कार्ल मार्क ने इसे 'भारत की प्रथम जनक्रांति' माना है, जो अंग्रेज़ हुकूमत को तो नहीं उखाड़ 
सकी पर सफ़ाहोड़ आंदोलन को जन्म देने का कारण जरूर बन गई 

इस विद्रोह के दमन के बाद संथाल क्षेत्र को एक अलग नॉन रेगुलेशन जिला बनाया गया ,जिसे  संथाल परगना का नाम दिया गया 

                                                                              👉Next Page:तमाड़ विद्रोह(1782-1821)

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Monday, November 9, 2020

Tax System Indian Economy

Tax System - Indian Economy

  •  A compulsory contribution given by a citizen or organization to the Governments is called Tax, which is used for meeting expenses on welfare work.


  • The distribution of tax between Centre & State has been clearly mentioned in the provisions of the Indian Constitution (Centre-State Financial Relations, Article 264 - 293)
  • For rationalizing it from time to time, the Finance Commission (Article 280) has been constituted.
Tax System has been divided into two parts:


There are two types of taxes:

Direct Tax

  • The taxes levied by the central government on incomes and wealth are important to direct taxes.
  • The important taxes levied on incomes are- 1.) Income Tax, 2.) Corporation Tax.
  • Taxes levied on wealth are- wealth tax, gift tax, property tax, etc.

Indirect Tax:
  • Indirect tax is not paid by someone to the authorities and it is actually passed on to the other in the form of increased cost.
  • They are levied on goods & services produced or purchased.
  • The important taxes levied are- Excise Tax, Sales Tax, Vat, Entertainment Tax, etc.
  • The main forms of Indirect Taxes are customs & excise duties and sales tax.
Taxes imposed by the Central Government- 
  • Income Tax, Corporate Tax, Property Tax, Succession Tax, Wealth Tax, Gift Tax, Customs Duty, Tax on Agricultural wealth, etc.
Taxes imposed by the State Government-
  • Land revenue tax, Sales tax, Agricultural income tax, Agricultural land revenue, State excise duty, Registration fee, Entertainment tax, Stamp duty, Road tax, Motor vehicle tax, etc.

Important Taxes Imposed in India:

  • Tax on Income & Wealth: The central government imposes different types of tax on income & wealth, i.e., income tax, corporate tax, wealth tax, gift tax. Out of the income tax & corporate tax are more important from the revenue point of view.
  • Personal Income Tax: It is imposed on an individual, combined with Hindu families & total income of people of any other communities. In addition to tax, separate surcharges have also been imposed on some items.
  • Income from Agriculture in India is free from Income Tax.
  • Corporate Tax: It is imposed on Registered Companies & Corporations. The rate of corporate tax on all companies is equal. However, various types of rebates (discounts) and exemptions have been provided.
  • Custom Duties: As per the Constitutional provisions, the central government imposes import duty & export duty both. Import & Export duties are not the only provenances (source) of income but with the help of it, the central government regulates the foreign trade.
  • Import Duties: Import duties are ad-Valorem in India. It is imposed on the taxable item on a percentage (%) basis.
  • Export Duties: It is more important, compared to Import duties in terms of revenue & regulation of foreign trade.
  • Excise Duties: This is commodity tax as it is imposed on the production of an item & it has no relevance with its sale. This is the largest pedigree of revenue for the Central Government. 
  • Except for liquor, opium & other drugs, the production of all the other items is taxable under Central Excise Duties.




 

 









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Sunday, November 8, 2020

मुण्डा मानकी शासन व्यवस्था (Munda Manki Shasan Vyavastha)

Munda Manki Shasan Vyavastha

मुण्डा मानकी शासन व्यवस्था

➤'हो' समाज भी मुंडाओं की ही एक तीसरी शाखा है। 

मानकी मुण्डा शासन व्यवस्था या 'हो' लोगों की पारम्परिक शासन व्यवस्था है 

मुंडा भाषा से  'हो' भाषा मिलती है, परन्तु संस्कृति और स्वशासन व्यवस्था में किंचित भिन्नता है।  

जहाँ मुंडाओं की पड़हा पंचायत बहुत कुछ उराँओं से मिलती है,हो लोगों 
की स्वशासन व्यवस्था पारम्परिक रूप से आज भी बनी हुई है। 
 

इनकी इस व्यवस्था में निम्नांकित पदधारी स्वशासन  का दायित्व 

निभाते है

1) मुंडा
2) डाकुआ
3) मानकी
4)तहसीलदार
5) मानकियों
6) दिउरी 
7) यात्रा दिउरी

1) मुंडा 

1) मुंडा - ग्राम के प्रधान को मुंडा कहा जाता है।

जबकि आज-कल मुंडा जाति के सभी लोग मुंडा कहलाते व लिखते हैं ।

➤'हो' समाज में मुंडा का पद होता है जो गांवो के मुखिया के लिए प्रयुक्त होता है।

इसका क्षेत्र प्रशासन न्याय तथा लगान लेने का है।

2) डाकुआ

मुंडा पदधारी ग्राम प्रधान के सहयोग के लिए डाकुआ होता है। 
 
यह मुंडा के सामाजिक व प्रशासन सम्बन्धी सुचना हो लोगो तक पहुँचाता है। 
 
एक तरह से यह मुंडा पदधारी लोगो का स्वशासन व्यवस्था का 
सन्देशवाहक का कार्य करता है।

3) मानकी

15 से 20 गांव के ऊपर  एक मानकी का पद होता है।

5 से 10 गांवो का एक पीड अर्थात ग्राम पंचायत पारम्परिक रूप 
से माना जाता है।

मानकी की बैठक में सभी मुंडा तथा डाकुआ बैठते है,और आगत 
मामलों का सबकी सहमति से मानकी अंतिम फैसला देते हैं । 

इसे सभी मान लेते हैं

4)तहसीलदार

लगान वसूली के लिए मानकी का सहयोगी तहसीलदार होता है। 

गांवो के मामले मुंडा पदधारी ही सुलझाते है। 

यदि मुंडा पदधारी से निपटारा नहीं हो सका तो मामला मानकी 
के पास जाता है। 

➤मानकी मामलों पर निर्णय करता है

5) मानकियों

मानकियों  की समिति- यदि मामला पेंचीदा हो जाता है। 

तब ऐसी स्तिथि  में 3 मानकियों की एक समिति गठित किया जाता है।

ये तीनो विचार-विमर्श  बाद अंतिम फैसला देते हैं।

6) दिउरी

➤यह गांव  का पुजारी  होता है।  जिसे दिउरी कहते है।
 
पूजा-पाठ,शादी-विवाह,पर्व-त्योहार में इसकी भूमिका प्रमुख रहती है।

पारम्परिक स्वशासन व्यवस्था में दिउरी का सहयोग मुण्डा तथा 
मानकी दोनों को मिलता है

➤विशेषकर धार्मिक मामलों के दंड निर्धारण में दिउरी की भूमिका 
महत्वपूर्ण हो जाती है

7) यात्रा दिउरी

➤यह दिउरी का सहयोगी होता है

➤गांव के देवी -देवताओं की पूजा करने -कराने में यह देउरी 
का साथ निभाता है
  
➤हो समाज में भी सरकारी पंचायत और परंपारिक पंचायत दोनों  
साथ -साथ चल रहें हैं      


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मांझी परगना /संथाल शासन व्यवस्था (Manjhi Pargana/santhal shasan vyavastha)

Manjhi Pargana/Santhal Shasan Vyavastha

मांझी परगना /संथाल शासन व्यवस्था (Manjhi Pargana/santhal shasan vyavastha)

➤'संथाल' झारखंड के प्रमुख आदिवासियों में से एक हैं

वैसे तो यह झारखंड के विभिन्न भाग में है, लेकिन बहुसंख्य संथालों  का निवास स्थान संथाल परगना है

नवीनतम जनगणना के अनुसार इनकी कुल जनसंख्या लगभग 24 लाख  है ,जो झारखंड के आदिवासियों में सबसे बड़ी संख्या है

➤संथालों की  पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था काफी प्रचलित है
 
अपने सामाजिक जीवन को सुरक्षित तथा संगठित रूप से चलाने के लिए प्रत्येक गांव में प्रशासकीय  एवं धार्मिक प्रधान होते हैं

जो इस प्रकार हैं

1) मांझी (प्रधान) 
2) प्रानीक 
3) गोड़ैत
4) जोग मांझी
5) जोग प्रानीक   
6) भाग्दो प्रजा 
7) लासेर टेंगोय 
8) नायके
10) देश मांझी /मोड़े मांझी 
11) परगनैत 
12) सुसारिया  
13) चौकीदार 
14) दिशोम परगना
 

1) मांझी (प्रधान)   

मांझी गांव का प्रधान होता है

यह गांव के  आंतरिक एवं बाह्य दोनों प्रकार की शासन व्यवस्था हेतु गांव का प्रतिनिधित्व करता है

मांझी गांव का प्रशासनिक एवं न्यायिक मुख्य होता है, तथा उससे लगान लेने का अधिकार है

2)प्रानीक 

प्रानीक  भी गांव का एक प्रमुख सदस्य हैं

उन्हें उप -मांझी का दर्जा प्राप्त है
 
मांझी की अनुपस्थिति में प्रानीक ही  मांझी का काम देखता है

➤प्रानीक  किसी अपराध के मामले में दंड निश्चित करता है

➤दंड वही माना जाता है, जो प्रानीक  द्वारा निश्चित किया गया हो

3) गोड़ैत

गोड़ैत मांझी के सचिव के रूप में काम करता है

मांझी के कहने पर गांव में  बैठकी करने के लिए ग्रामीणों को सूचित करता है

इसके अलावा गांव के पूजा पाठ में खजांची का काम भी करता है

चंदा इकट्ठा करता है ,पर्व -त्योहारों के बारे में गांव को सूचना देता है

गोड़ैत  को पूरे गांव की जनसंख्या तथा परिवार की जानकारी रहती है

4) जोग मांझी 

जोग मांझी, मांझी का उप सचिव है

गांव के शादी-विवाह का हिसाब किताब 'जोग मांझी', के पास रहता है

➤ये  युवाओं का नेता भी है

शादी-विवाह में लड़का-लड़कियों का नेतृत्व भी करता है

शादी-विवाह के विवादों में जोग मांझी निर्णय सुनाता है

5) जोग प्रानीक

जोग प्रानीक उप जोग मांझी है 

जोग मांझी के अनुपस्थिति में जोग प्रानीक ही कार्यभार संभालता है

6) भाग्दो प्रजा

भाग्दो प्रजा गांव के कुछ प्रमुख सज्जन है, जो गांव के प्रत्येक मामले में विचार-विमर्श के लिए सभा में उपस्थित रहते हैं 

प्रत्येक टोला में एक या दो लोग हो सकते हैं

7) लासेर टेंगोय 

लासेर टेंगोय संगठनात्मक  प्रमुख होता है ,जो ग्रामीणों को बाहरी हमलों से सुरक्षा प्रदान करता है

8) नायके

नायके गांव के धार्मिक पूजा-पाठ को संपन्न करता है तथा धार्मिक अपराधों के मामलो  पर अपना फैसला सुनाता है

यह गांव के अंदर जितने भी देवी-देवता है उसका पूजा-पाठ करता है

10) देश मांझी /मोड़े मांझी 

देश मांझी /मोड़े मांझी 5 से 8 गांवों  के मांझियों को देश मांझी कहा जाता है 

यदि किसी मामला का फैसला मांझी नहीं कर सकता है, तो उस मामले को मांझी द्वारा देश मांझी के पास लाया जाता है और 5 से लेकर 8 मांझी  मिलकर मामला का फैसला करते हैं

इससे मोड़े मांझी भी कहा जाता है 

11) परगनैत

परगनैत 15 से 20 गांवों  के बीच एक परग्नत होता है

यह गांवों  के  मांझियों  का प्रधान होता है

जिस मामला को 'देश मांझी' नहीं निपटा सकते उस मामला को परगनैत के पास संबंधित गांव के मांझी द्वारा लाया जाता है

12) सुसारिया

➤सुसारिया ये  सभा को सुचारु रुप से चलाते हैं

यह पद सभी क्षेत्रों में नहीं होता है

13) चौकीदार

चौकीदार यह मांझी के आदेश से अपराधी व्यक्ति को गिरफ्तार करता है 

यह पद पारंपरिक नहीं है 


14) दिशोम परगना

कुछ क्षेत्रों में सभी परगनेतो के ऊपर एक दिशोम परगना होता है
 
जब कोई मामला परगेनोतो द्वारा नहीं निपटाया जाता है तो ऐसे मामले को देशोंम परगना  के सभा में निपटाया जाता है 

गांव को संभालने के लिए ये अपने आप में एक कैबिनेट है
 
भाग्दो प्रजा को छोड़कर शेष सभी पदाधिकारियों को गांव की ओर से जमीन मिली रहती है
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मुंडा उलगुलान /बिरसा मुंडा आंदोलन (Munda Ungulan/Birsa Munda Andolan)

Munda Ungulan/Birsa Munda Andolan

(मुंडा उलगुलान /बिरसा मुंडा आंदोलन)


मुंडा उलगुलान /बिरसा मुंडा आंदोलन-(1899-1900)ईस्वी 

➤बिरसा आंदोलन 19वीं सदी के आदिवासी आंदोलनों में सबसे अधिक संगठित और व्यापक आंदोलन में से एक था, जो वर्तमान झारखंड राज्य के रांची जिले के दक्षिणी भाग में 1899-1900 ईसवी में हुआ

इसे 'मुण्डा उलगुलान ' मुण्डा महाविद्रोह भी कहा जाता है 

➤सामूहिक भू -स्वामित्व व्यवस्था का जमींदारी  या व्यक्तिगत भू-स्वामित्व व्यवस्था में परिवर्तन के विरुद्ध इस आंदोलन का उदय हुआ और बाद में बिरसा  के धार्मिक-राजनीतिक आंदोलन के रूप में इसका चरमोत्कर्ष हुआ 

कारण 

मुण्डा उलगुलान के निम्नलिखित कारण थे 

1)  खूंटकट्टी व्यवस्था की समाप्ति और बैठ बेगारी का प्रचलन :- 19वीं सदी में उत्तरी मैदान से आने वाले व्यापारियों, जमींदारों, ठेकेदारों, साहूकारों ने मुंडा जनजाति में प्रचलित सामूहिक भू -स्वामित्व वाली भूमि व्यवस्था (खूंटकट्टी व्यवस्था) को समाप्त कर व्यक्तिगत  भू -स्वामित्व वाली भूमि व्यवस्था का प्रचलन  किया

बंधुआ मजदूरी (बेठ बेगारी) के माध्यम से (देकु )गैर आदिवासियों/बाहरी लोग का शोषण करते थे

2) मिशनरियों  का कोरा आश्वासन और उनसे मोह -भंग :-  विभिन्न मिशनरियों ने भूमि  संबंधी समस्याओं के समाधान दूर करने का लालच देकर उन्हें अपने धर्म-ईसाई धर्म में दीक्षित करना प्रारंभ कर दिया

किंतु वे  भूमि की मूल समस्या का कोई समाधान नहीं कर पाए 

3) अदालतों से निराशा :- जब मुंडा कबीले के सरदारों ने बाहरी भूस्वामियों और जबरी बेगारी  के खिलाफ अदालतों  की शरण ली तो वहां भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी

तत्कालीन कारण

4) 1894 का  छोटानागपुर वन सुरक्षा कानून :-1894 का  छोटानागपुर वन सुरक्षा कानून बन जाने से जंगल पुत्र आदिवासी निर्वाह के सबसे प्रमुख साधन से वंचित हो गए

उन्हें भूखों मरने की नौबत आ गई

भूख से बिलबिलाते मुंडाओ को आंदोलन करने के सिवा कोई रास्ता नहीं बचा 

बिरसा आंदोलन का उद्देश्य 

आर्थिक उद्देश्य :-  सभी बाहरी तथा विदेशी तत्वों को बाहर निकालना विशेषकर मुंडाओ की  उनकी जमीन हथियाने वाले जमींदारों को भगाना एवं जमीन को मुंडा उनके हाथ में वापस लाना  

राजनीतिक उद्देश्य :- अंग्रेजों के राजनीतिक प्रभुत्व को समाप्त करना तथा स्वतंत्र मुंडा राज की स्थापना करना  

धार्मिक उद्देश्य :- ईसाई धर्म का विरोध करना तथा ईसाई बन गए असंतुष्ट मुंडाओ को अपने धर्म में  वापस लाना 

परिणाम 

बिरसा आंदोलन स्वतंत्र मुंडा राज की स्थापना करने में विफल रहा, लेकिन 1902 में गुमला एवं 1903 में खूटी  को अनुमंडल के रूप में स्थापना तथा 1908 के छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम के द्वारा मुण्डाओं  को कुछ आराम  अवश्य मिली  

वर्ष 1908 में पारित  छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम के के द्वारा (सामूहिक काश्तकारी) अधिकारों को पुनर्स्थापित किया गया, बंधुआ मजदूर (बेठ बेगारी) पर प्रतिबंध लगाया गया तथा लगान की दरें कम की गई  

➤फ़ादर हाफमैन ने 1908 के छोटानागपुर काश्तकारी को मानवीय मूल्यों की पुनर्स्थापना के लिए किया गया बहुत ही बहुमूल्य प्रयास बताया 

बिरसा मुंडा एक राष्ट्रवादी था 

परंतु इस आंदोलन को आदिम पर साम्राज्य विरोधी करने से इनकार किया जा सकता 

➤मुण्डा समाज आज भी उन्हे 'बिरसा भगवान', 'धरती आबा', धरती पिता) 'विश्वपिता का अवतार' आदि के रूप में याद करता है उसके गांव चालकंद को तीर्थ स्थल का दर्जा देता है

मुंडा समाज के बीच बिरसा के नाम से एक पंथ -बिरसाई पंथ चल निकला

➤बिरसा  पवित्र  स्मृति मुण्डाओं के हृदय में बनी हुई है।बिरसा की वीरता व  बलिदान की गाथा अनेक लोक कथाओ व लोक गीतों में अमर बन चुकी है

वह आज भी आदिवासियों में नये युग का प्रेरणा पुंज है

वैसा आंदोलन से मुंडा राज का सपना भले ही पूरा नहीं हो सका, लेकिन विद्रोह की आग अंदर ही अंदर सुलगती रही , यही विद्रोह की आग पृथक झारखंड राज्य की प्रेरणा बन गई

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झारखंड के प्रमुख वाद्य यंत्र (Jharkhand Ke Pramukh Vadya Yantra)

झारखंड के प्रमुख वाद्य यंत्र

(Jharkhand Ke Pramukh Vadya Yantra)

1) तंतु वाद्य 

2) सुषिर वाद्य

3) ताल वाद्य 

1) तंतु वाद्य :-

यह वैसे वाद्य होते हैं, जिनके  तारों में कंपन के माध्यम से संगीतमय ध्वनि उत्पन्न की जाती है। जैसे :- एकतारा, भुआंग,केंद्ररी आदि। 

एकतारा :- इसमें एक तार होने के कारण इसे एकतारा कहा जाता है 

इस वाद्य का निचला हिस्सा खोखली लौकी या लकड़ी का बना होता है

यह  देश भर के अपनी धुन में मस्त साधुओं और फकीरों की पहचान का वाद्य यंत्र है

झारखंड में भी अक्सर फकीर/साधुओ  के पास देखा जा सकता है

केन्द्री :- यह संथालों का प्रिय वाद्य है।  

इसे झारखंडी वायलिन भी कहा जाता है। 

इसका निचला हिस्सा कछुए की खाल या नारियल के खाल का बना होता है। 

इसमें 3 तार होते हैं जिनसे मधुर ध्वनि निकलती है। 

भुआंग:-  यह संथालों का प्रिय वाद्य है

दशहरा के समय दासोई नाच में संथाल भुआंग बजाते हुए नृत्य करते हैं

इसमें तार को ऊपर खींच कर छोड़ने से धनुष टंकार जैसी आवाज निकलती है

टूइला :- इसकी वादन शैली कठिन होने के कारण झारखंड में यह कम लोकप्रिय है

2) सुषिर वाद्य :- 

ये वैसे वाद्य होते हैं जिसमें पतली नलिका में फूंक मारकर संगीत में ध्वनि उत्पन्न की जाती है। जैसे :- बांसुरी,सनाई(शहनाई), मदनभेरी, शंख, सिंगा आदि 

बांसुरी :- यह झारखंड का सबसे अधिक लोकप्रिय सुषिर वाद्य है डोंगी बांस से सबसे अच्छी बांसुरी बनाई जाती है

सानाई :- झारखंड के लोक संगीत में सानाई (शहनाई) बांसुरी की तरह लोकप्रिय है 

यह यहां का मंगल वाद्य भी है ,जिससे पूजा, विवाह आदि के साथ-साथ छउ,पाइका आदि नृत्यों में भी बजाया जाता है 

 सिंगा :- प्राय: बैल या भैंस के सींग  से बनाए जाने के कारण सिंगा कहा जाता है

छऊ नृत्य में और शिकार के वक्त पशुओं को खदेड़ने के लिए बजाया जाता है

मदनभेरी :- इस सुषिर वाद्य  में लकड़ी की एक सीधा मिली होती है, जिसके आगे पीतल का मुह रहता है

इसे ढोल, बांसुरी,सानाई के साथ सहायक के रूप में बजाया जाता है

3) ताल वाद्य :-

वैसे वाद्य जिन्हे पीटकर या ठोककर ध्वनि उत्पन्न की जाती है
 

ताल वाद्य दो प्रकार के होते हैं 

I)अवनद्ध वाद्य:-

ये लकड़ी के ढांचे पर चमड़ा मढ़कर बनाए जाने वाले वाद्य हैं इसे मुख्य ताल वाद्य भी कहा जाता है 
जैसे :- मांदर, ढोल, नगाड़ा, धमसा,ढाक ,करहा,डमरू,ढप,जुड़ी नगाड़ा,खंजरी आदि  

मांदर :- यह झारखंड का प्राचीन एवं अत्यंत लोकप्रिय वाद्य है

 इस वाद्य यंत्र को यहां लगभग सभी समुदाय के लोग बजाते हैं

यह पार्शवमुखी  वाद्य है  इसमें लाल मिट्टी का गोलाकार  ढांचा होता है, जो अंदर से बिल्कुल खोखला होता है

इसके दोनों तरफ के खुले सिरे बकरे की खाल से मड़े होते हैं

रस्सी के सहारे कंधे से लटकार  इसे बजाया जाता है

मांदर की आवाज गूंज तार होती है

ढोल :- लोकप्रियता की दृष्टि से इनका स्थान मांदर के बाद आता है

इससे पूजा के साथ-साथ शादी, छांउ, नृत्य , घोड़नाच आदि में भी बजाया जाता है

इसका मुख्य ढांचा आम, कटहल, या गमहार की लकड़ी का बना होता है 

इसके दोनों खुले मुंह को बकरे की खाल से मढ़कर बद्दी से कस दिया जाता है

इसे हाथ या लकड़ी से बचाया जाता है

धामसा :- इसका उपयोग, मांदर, ढोल आदि मुख्य वाद्यों  के सहायक वाद्य  के रूप में किया जाता है

इसकी आकृति कढ़ाही  जैसे होती है

➤छउ  नृत्य में धामसा की आवाज से युद्ध और सैनिक प्रयाण जैसे दृश्यों को साकार किया जाता है

नगाड़ा :- इसे  छोटे और बड़े दोनों प्रकार का बनाया जाता है

➤बड़े नगाड़े का उपयोग सामूहिक उत्सवों  और सामूहिक नृत्य के लिए किया जाता है

ढाक :- इसका मुख्य ढाँचा गम्हार की लकड़ी का बना होता है 

इसके दोनों खुले मुँह को बकरे की खाल से मढ़कर बद्धी से कस दिया जाता है 

इसे कंधे से लटकाकर दो पतली लकड़ी के जरिए बजाया जाता है 

➤यह आकर में मांदर एवं  ढोल से बड़ा होता है

II)धन वाद्य:-

यह प्रया: कांसा के बने होते हैं, इन्हें सहायक ताल वाद्य भी कहा जाता है।जैसे :-करताल,झांझ ,झाल,  घंटा, काठी खाला आदि 

करताल  :- इसमें दो चपटे गोलाकार प्याले होते हैं, जिनके बीच का हिस्सा ऊपर की ओर उभरा होता है

➤उभरे हिस्से के बीच में एक छेद होता है, जिसमें रस्सी पिरो दी जाती है

रस्सीयों को हाथों की अंगुलियों में फंसाकर प्यालो को ताली बजाने की तरह एक दूसरे पर चोट की जाती है
ऐसा करने से मधुर ध्वनि निकलती है 

झांझ :-यह करताल  से बड़े आकार का होता है, बड़ा होने के कारण इसकी आवाज करताल से ज्यादा गुंजायमान होती है

काठी :- यह भी एक धन वाद्य  है ,इसमें कुडची की लकड़ी के दो टुकड़े होते हैं, जिन्हें आपस में टकराने पर मधुर ध्वनि उत्पन्न होती है 

थाला :- यह कासे से  निर्मित थाली की तरह होता है ,थाला  का गोलाकार किनारा दो-3 इंच का उठा होता है 
बीच में छेद होता है, जिससे रस्सी पिरोक झुलाया जाता है

बाएं हाथ से रस्सी थामकर  दाएं हाथ से इसे भुट्टे /मक्का की खलरी से बजाया जाता है 

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Saturday, October 31, 2020

झारखण्ड के प्रमुख लोक नाट्य(Jharkhand Ke Pramukh Lok Natya)

झारखण्ड के प्रमुख लोक नाट्य

(Jharkhand Pramukh Lok Natya)

नाट्य

नाट्य झारखंड के लोकजीवन का अभिन्न अंग है 

यह नाट्य मांगलिक अवसरों, पर्व-त्योहारों के अवसरों पर कभी-कभी मनोरंजन के लिए आयोजित किए जाते हैं 
यह नाट्य लोक जीवन में रंग-रास का संचार करते हैं 

झारखंड की संस्कृति तथा लोकजीवन में लोकनाट्यों का एक अपना ही अलग महत्व  है 

यहां के लोकनाट्य  में कथानक, संवाद, अभिनय, गीत,का अलग ही विशेष नज़ारा होते हैं 

यदि नहीं होते हैं तो वह है- सुसज्जित रंगमंच पात्रों का मेकअप एवं वेश-भूषा 


झारखंड राज्य में प्रचलित लोक नाट्य है 


जट-जटिन

जट-जटिन :- प्रत्येक वर्ष से लेकर कार्तिक माह तक पूर्णिमा अथवा उसके एक-दो दिन पूर्व अथवा पश्चात मात्र अविवाहिताओं द्वारा अभिनीत इस लोकनाट्य में जट -जटिन के विवाहित जीवन को प्रदर्शित किया जाता है 

भकुली बंका

भकुली बंका :-  प्रत्येक वर्ष सावन से कार्तिक माह तक आयोजित किए जाने वाले इस लोकनाट्य में जट- जटिन द्वारा नृत्य किया जाता है 

अब कुछ लोग स्वतंत्र रूप से भी इस नृत्य को करते हैं

इस लोकनाट्य में भकुली (पत्नी) एवं बंका (पति) के विवाहित जीवन को दर्शाया जाता है

सामा-चेकवा

सामा-चेकवा  :- प्रत्येक वर्ष कार्तिक महीने के पूरे शुक्ल पक्ष में चलने वाले इस लोकनाट्य में पात्र तो मिट्टी द्वारा निर्मित होते हैं 

लेकिन उनकी तरफ से अभिनय बालिकाएं करती है 

इस लोक नाट्य में चार प्रमुख पात्र हैं :- सामा (नायिका ), चेकवा(नायक), चूड़का(खलनायक) एवं साम्ब (सामा का भाई) 

इस लोक नाट्य के अंतर्गत सामूहिक गीतों के माध्यम से प्रश्नोत्तर शैली में विषय-वस्तु को प्रस्तुत किया जाता है 

यह लोक नाट्य भाई-बहन  के पवित्र प्रेम से संबंधित होता है  

किर तनिया

किर तनिया :- इस भक्ति पूर्ण लोकनाट्य में भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का वर्णन भक्ति-गीतों के साथ भाव एवं श्रद्धा पूर्वक किया जाते हैं 

डोमकच

डोमकच :- इस अत्यंत घरेलू एवं निजी लोकनाट्य को मुख्यतः घर-आंगन परिसर में विशेष अवसरों तथा बारात जाने के बाद देर रात्रि में महिलाओं द्वारा आयोजित किया जाता है

इस लोकनाट्य का सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं किया जाता है
 
क्योंकि इसके अंतर्गत हास् -परिहास् , अश्लील हाव-भाव एवं संवाद को प्रदर्शित किया जाता है

पुरुषों को इस लोकनाट्य को देखने की मनाही होती है
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