Chotanagpur Kashtkari Adhiniyam 1908 Part-5
अध्याय 10 :- भू-स्वामी तथाा काश्तकार केे लिए प्रकीर्ण उपबंध (कोड़कर) (धारा- 64 से 75)
➧ धारा - 64 :- उपायुक्त के आदेश से भूमि के कोड़कर में परिवर्तन
➧ किसी गांव के कृषक या भूमिहीन श्रमिक उपायुक्त की पूर्व अनुमति लेकर सामान्य भूमि को कोड़कर भूमि में बदल सकते हैं।
➧ सामान्यत परती या टांड़ भूमि को रैयत कोड़कर समतल बनाते हैं तथा इस पर धान की खेती करते हैं। इस प्रकार से तैयार किया गया खेत शुरू में लगान मुक्त होता है , परंतुु बाद में इस पर उपयुक्त लगान का निर्धारण कियाा जाता है , लेकिन यह सामान्य लगान दर से हमेशा कम होताा है।
➧ छोटानागपुर काश्तकारी, 1947 के द्वारा धारा-21 के तहत यह प्रावधान समाप्त कर दिया गया है।
➧ धारा - 66 :- कतिपय भूमि को कोड़कर में परिवर्तित करने का प्रतिषेघ (रोक)
➧ कोई कृषक या श्रमिक किसी दूसरे व्यक्ति के प्रत्यक्ष कब्जा वाले बागान या बगीचे या कृषि भूमि या आवास भूमि को कोड़कर में नहीं बदल सकता है।
➧ धारा - 67 :- कोड़कर में अधिभोगाधिकार
➧ ऐसे रैयत, जो किसी भूमि का जोत धारण करता हो और उसके परिवार के किसी सदस्य ने उस भूमि को कोड़कर में परिवर्तित कर दिया हो, लेकिन वह 12 वर्ष तक उस भूमि पर खेती नहीं किया हो, तो प्रथम व्यक्ति का भूमि पर अधिभोगाधिकार बना रहेगा।
➧ धारा - 67 (क) :- कोड़कर में समपरिवर्तित भूमि के लगान का निर्धारण
➧ अगर कोई व्यक्ति भूमि को कोड़कर में बदला हो तो उस भूमि पर प्रथम कृषि वर्ष की फसल कटाई से 4 वर्ष तक कोई लगान का निर्धारण नहीं किया जाएगा। 4 वर्ष के पश्चात कोड़कर भूमि पर लगान का निर्धारण किया जाएगा, लेकिन वह लगान की दर गांव के तृतीय वर्ग की धनहर भूमि के लिए प्रचलित दर के आधे से अधिक नहीं होगी।
➧ धारा - 68 :- काश्तकार को बेदखल किया जाना
➧ किसी भी काश्तकार को किसी डिक्री या उपायुक्त के आदेश के सिवाय किसी दूसरे तरीके से उसे जमीन से बेदखल नहीं किया जा सकता है।
➧ धारा - 69 :- काश्तकार को राहत पाने का अधिकार
➧ किसी अधिभोगी रैयत ने भूमि का उपयोग रूढ़ि और रीति के अनुसार किया हो और उसके कार्य के कारण भूमि के मूल्य में कोई गिरावट नहीं आया हो तथा भूस्वामी और काश्तकार के बीच हुए संविदा की शर्तों को नहीं तोड़ा हो, तो अधिभोगी रैयत राहत पाने का अधिकारी है।
➧ धारा - 70 :- वेदखली का डिक्री या आदेश कब प्रभावी होगा
➧ इस अधिनियम में अधीन पारित आदेश उस कृषि वर्ष के अंत से या ऐसे पूर्ववर्ती तारीख जिसे न्यायालय निर्देशित करें, उसी के अनुसार प्रभावी होगा।
➧ धारा - 71 :-विधि-विरुद्ध बेदखल किए गए काश्तकार को कब्जे में प्रतिस्थापित करने की शक्ति उपायुक्त में अंतर्निहित रहेगी।
➧ धारा-71(क) :- विधिविरुद्ध अंतरिम भूमि पर अनुसूचित जनजातियों के सदस्य को कब्जा प्रत्यावर्तित करने की शक्ति उपायुक्त में अंतर्निहित रहेगी।
➧ इस संदर्भ में निम्न विधान है:-
(i) यदि उपायुक्त को यह ज्ञात हो कि कोई व्यक्ति धारा-46 के नियम उल्लंघन कर अनुसूचित जनजाति के रैयत की जमीन कपट या छल पूर्वक प्राप्त किया है।
➧ तो वह अंतरिति (क्रेता) सफाई देने का अवसर देगा। इसके पश्चात दोषी पाए जाने पर अंतरिति को बिना कोई रकम लौटाई ही उसका जमीन अनुसूचित जनजाति के सदस्य को वापस कर देगा।
(ii) अंतरक अर्थात विक्रेता का अगर कोई वारिस बारिश नहीं हो, तो वैसा स्थिति में स्थानीय नियम अनुसार किसी दूसरे अनुसूचित जनजाति के रैयत को उपायुक्त जमीन का पुर्नबंदोबस्त कर देगा।
(iii) अगर अंतरित (क्रेता) के अंतरण (हस्तांतरण) के तारीख के 30 वर्ष के भीतर उपायुक्त को यह जानकारी मिलती हो, कि अंतरीति ने अनुसूचित जनजाति के सदस्य से प्राप्त जोत पर भवन निर्माण कर लिया हो और अंतरक (विक्रेता) उसका मूल्य चुकाने में रजामंद न हो तो ऐसे में उपायुक्त अंतरिति अर्थात क्रेता के 2 वर्ष के भीतर भवन हटाने का आदेश देगा, अगर क्रेता द्वारा भवन नहीं हटाया गया, तो उपायुक्त खुद हटाएगा।
(v) यदि उपायुक्त जांच के उपरांत यह पाए कि अंतरिति (क्रेता) ने बिहार अनुसूचित क्षेत्र विनिमय 1969 कानून लागू होने के पहले ही किसी भूमि पर भवन का निर्माण कर लिया है, तो ऐसे में उपायुक्त अर्थात क्रेता को यह आदेश देगा, कि वह अंतर अर्थात विक्रेता को पुनर्वास के लिए समतुल्य भूमि उपलब्ध कराएं।
➧ साथ ही उपायुक्त द्वारा निर्धारित पुनर्वास राशि अंतरक को प्रदान करें। ऐसा करने पर अंतरिति को जमीन से जुड़े अधिकार की मान्यता उपायुक्त दे देगा।
(vi) जाँच उपरांत अगर उपायुक्त को यह पता चले की अंतरिति अर्थात क्रेता ने कब्ज़ा द्वारा प्राप्त भूमि पर अपना हक़ अर्जित किया है तथा अंतरिती अर्थात प्राप्त भूमि को लेने के लिए अंतरक तैयार नहीं है। तो ऐसी स्थिति में उपायुक्त उपयुक्त प्रति कर का निर्धारण कर सकता है।
(vii) इस धारा के तहत आदिवासी जमीनों की पुनर्वापसी के लिए एक विशेष अदातलायी व्यवस्था अनुसूचित क्षेत्र विनिमय न्यायालय (SAR- Scheduled Area Regulation Court) कोर्ट की स्थापना की गई है
➧ धारा-71(ख) :- यदि कपट पूर्ण तरीके से कोई भूमि अंतरिति (विक्रय) की जाए, तो जांच उपरांत कपट करने वाले को दंड स्वरूप 3 वर्ष की सजा अथवा ₹1000 जुर्माना या दोनों लगेगा। अपराध जारी रहने की दशा में अपराध की अवधि तक अंतरिती अर्थात (क्रेता) को प्रत्येक दिन अधिकतम ₹50 अतिरिक्त जुर्माना देना होगा।
➧ धारा-72 :- रैयत द्वारा भूमि का अभ्यर्पण (Slender)
➧ यदि कोई रैयत किसी करार से न जुड़ा हुआ हो तो वह किसी वर्ष के अंत में उपायुक्त की पूर्व मंजूरी लेकर अपने जोत को सैरेंडर कर सकता है, परंतु इसकी सूचना रैयत द्वारा भूस्वामी को सरेंडर के 4 माह पूर्व देना होगा। यदि वह ऐसे सूचना नहीं देता है, तो सरेंडर के पश्चात अगले कृषि वर्ष के लिए जोत भूमि का लगान का भुगतान भूस्वामी को करना ही होगा।
➧ धारा-73 :- रैयत द्वारा भूमि का परित्याग
➧ यदि कोई रैयत भूमि का परित्याग स्वेच्छा से कर दे और लगान देना बंद कर दे तो उसकी भूमि को भूस्वामी किसी दूसरे को पट्टे में दे सकता है।
➧ कोई अधिभोगी रैयत 3 वर्ष के भीतर एवं अनाधिभोगी रैयत 1 वर्ष के भीतर उपरोक्त भूमि पर कब्जा वापस लेने का आवेदन उपायुक्त को दे, और उपायुक्त जांच उपरांत यह पाए के रैयत ने स्वेच्छा से भूमि का परित्याग नहीं किया था, तो वैसी स्थिति में रैयत द्वारा बकाया लगान के भुगतान करने के बाद रैयत को भूमि पर पुन: कब्जा दिलाने का आदेश दे सकता है।
➧ धारा-74 :- किसी रैयत के अधिभोग का जारी रहना पट्टे की स्थिति पर निर्भर करता है
➧ धारा-75 :- भूमि का माप
➧ प्रत्येक भूस्वामी को अपने क्षेत्राधीन भूमि का माप करने का अधिकार होगा। या इससे जुड़े दूसरे संपदा का भी वे सर्वेक्षण कर सकेगा। अधिभोगी रैयत सर्वेक्षण या माप का विरोध करें। तो भू-स्वामी उपायुक्त को आवेदन देकर इस संदर्भ में उचित दिशा-निर्देश प्राप्त कर सकेगा।
अध्याय -11 :-रुढ़ि और संविदा (धारा- 76 से 79)
➧ धारा-76 रूढ़ि की व्यावृति :- रूढ़ि एवं प्रथा किसी अधिकार को प्रभावित नहीं करेगी।
➧ धारा-77 सेवा भू धृतियों तथा जोतों के विषय में व्यावृति :- भू -धृति या जोत का प्रभाव अधिकार पर नहीं पड़ेगा।
➧ धारा-78 वासभूमि:-
➧ धारा-79 :- अधिनियम के अपवर्जन का करार द्वारा प्रतिबंध
➧ इस अधिनियम के लागू होने के पूर्व या पश्चात कोई भूस्वामी किसी रैयत के साथ संविदा के माध्यम से कोई अधिभोगाधिकार को वर्जित नहीं करेगा और ना ही हटाएगा।
अध्याय-12 :-अधिकार अभिलेख और लगान का निर्धारण (धारा- 80 से 100(क)
➧ धारा-80 :- सर्वेक्षण करने और अधिकार-अभिलेख तैयार करने का आदेश देने की शक्ति।
➧ राज्य सरकार राज्य सरकार किसी राज्य स्वराज अधिकारी द्वारा किसी स्थानीय क्षेत्र, भू-धृति या संपदा का सर्वे कराने या उससे जुड़े अधिकार अभिलेख कराने का आदेश दे सकती है।
➧ धारा-81 :- अभिलिखित की जाने वाले विशिष्टयां
➧ धारा-80 के आदेश अनुसार जो अधिकार अभिलेख तैयार होगा उसमें काश्तकार का नाम, भूमि की सीमा, उसका वर्ग, भूमि की सीमा, भू-स्वामी का नाम, भुगतान होने वाला लगान , लगान निर्धारण की प्रक्रिया जैसे शर्ते वर्णित होगी।
➧ धारा-82 :- जल के विषय में सर्वेक्षण करने तथा अधिकार-अभिलेख तैयार करने का आदेश देने की शक्ति
➧ राज्य सरकार किसी ऐसे राजस्व अधिकारी को आदेश निर्गत कर सकती है, जो भू -स्वामी या काश्तकारों के बीच जल के उपयोग एवं उसके बहाव से संबंधित विवाद का निपटारा कर सकें।
➧ धारा-83 :-अधिकार-अभिलेख का प्रारंभिक प्रकाशन, संशोधन और अंतिम प्रकाशन।
➧ धारा-84 :-अधिकार-अभिलेख के अंतिम प्रकाशन और उसकी शुद्धता के बारे उपधारणाएँ।
➧ धारा-85 :- उचित लगान का परिनिर्धारण
➧ धारा-86 :- लगान परिनिर्धारण में अगर किसी प्रकार का विवाद हो तो ऐसे में राजस्व अधिकारी नए सिरे से तैयार किए गए अधिकार अभिलेख पर विचार करते हुए, धारा 85 के तहत लगान का परिनिर्धारण कर सकेगा।
➧ धारा-87 :-राजस्व अधिकारी के समक्ष संस्थित किया जाना
➧ अधिकार अभिलेख के अंतिम प्रकाशन हो जाने के बाद अगर अलग-अलग पक्षों के बीच कोई विवाद हो तो इसे राजस्व अधिकारी के समक्ष रखा जा सकता है । ऐसे में राजस्व अधिकारी इस वाद/मामले को किसी सक्षम न्यायालय में सुनवाई हेतु भेज सकता है।
➧ धारा-87(क) :- कतिपय कार्यवाहियो और वादों में उपरैयत को भी पक्षकार बनाया जाना ।
➧ धारा-88 :-अगर लगाने या उससे जुड़े किसी दूसरे मामलों पर नए फैसले आते हैं, तो उससे अधिकार अभिलेख में प्रविष्टि किया जायेगा।
➧ राज्य सरकार द्वारा नामित राजस्व अधिकारी आवेदन मिलने पर या फिर स्वप्रेरणा से अधिकार अभिलेख के प्रारूप में की गई किसी भी प्रवृष्टि या आदेश को चाहे तो 12 महीने के भीतर पुनरीक्षण कर सकता है।
➧ धारा-90 :-अधिकार-अभिलेख की भूलों की राजस्व अधिकारी द्वारा शुद्धि किया जाएगा।
➧ धारा-91 :-अधिकार-अभिलेख के आदेश को रोका जाना
➧ अधिकार अभिलेख की तैयारी के किसी आदेश को अधिकार अभिलेख के अंतिम प्रकाशन के पश्चात् छः माह तक उपायुक्त या सिविल न्यायालय द्वारा रोका नहीं जा सकेगा।
➧ धारा-92 :-अधिकार-अभिलेख संबंधी विषयों में न्यायालयों की अधिकारिता का वर्जन
➧ अधिकार अभिलेख की तैयारी से जुड़े कोई भी वाद/मुकदमा किसी भी न्यायालय में नहीं लाया जा सकता।
➧ धारा-93 :-अधिकार-अभिलेख के अंतिम प्रकाशन तक उपायुक्त या सिविल न्यायालय के समक्ष कतिपय कार्यवाहियों पर रोक
➧ अधिकार अभिलेख के अंतिम प्रकाशन से छः महीने तक सम्बंधित भूमि या उसके किसी कस्तकार को प्रभावित करने से जुड़ा कोई आवेदन न तो सिविल न्यायालय में दायर किया जाएगा और न ही उपायुक्त के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा।
➧ धारा-94 :- जिस कालावधि के लिए अधिकार-अभिलेख में लगान दर्ज किया हो वह अपरिवर्तित रहेगा।
➧ धारा-95 :- इस अध्याय के अधीन कार्यवाहियों के खर्च-अधिकार अभिलेख की तैयारी एवं संपूर्ण प्रक्रिया में खर्च अधिभोगियों के द्वारा चुकाया जाएगा।
➧ धारा-97 :- वह तारीख, जब से परिनिर्धारित लगान प्रभावी होगा।
➧ नियमानुसार परिनिर्धारित लगान अगले कृषि वर्ष के प्रारंभ से लागू होगा।
➧ धारा-98 :-राज्य सरकार के आदेशाधीन अधिकार-राज्य सरकार चाहे तो, अपने आदेश के जरिए अभिलेख का पुनरीक्षण एवं लगान का नया परिनिर्धारण का आदेश जारी कर सकता है।
➧ धारा-99 :-लगान में वृद्धि
➧ धारा-100 :- इस अधिनियम के प्रारंभ के पूर्व कतिपय अधिकारियों के अभिलेख के लिए दिए गए निर्देशों का विधिमान्यकरण।
➧ इस अधिनियम के पूर्व बंगाल काशतकारी अधिनियम, 1885 की धारा-101 के अंतर्गत, यदि इस अधिनियम धारा-81 के उपखण्ड (ढ )में अधिकार को अभिलिखित किया जाये, तो विधिमान्य होगा।
➧ धारा-100(क) :-चराई,वन-उपज लेने आदि के अधिकारों एवं तत्त्संबंधी भुगतान के सम्बन्ध में कतिपय उपबंधों का लागु होना।
➧ चराई, वन-उपज लेने, मत्स्य पालन आदि अधिकार उस व्यक्ति का होगा जो भूमि धारण करता हो।
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