झारखंड में वन और वनों के प्रकार
(Jharkhand Me Vano Ke Prakar)
झारखंड में वन
➤वन संपदा और वन्य जीव-जंतु प्रकृति के द्वारा झारखंड को दिया हुआ एक अमूल्य तोहफा है। झारखंड में प्राकृतिक रूप से वन क्षेत्र बहुत विशाल है।
➤राज्य के कुल क्षेत्रफल का 79,71 4 वर्ग किलोमीटर के 23605 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में जंगल फैला हुआ है, जो झारखंड के कुल क्षेत्रफल का 29 पॉइंट 61% भाग है।
➤भारत के कुल वन क्षेत्र का 3 पॉइंट 4 प्रतिशत (3.4%) भाग झारखंड का वन क्षेत्र है। जबकि पूरे भारत के कुल क्षेत्रफल का 2.42 % झारखंड का क्षेत्रफल है।
➤झारखण्ड में प्रति व्यक्ति वन -0. 08 प्रति हेक्टेयर है।
झारखंड में वनों के प्रकार
➤ झारखंड में वनों की सुरक्षा के आधार पर वनों की तीन श्रेणियां हैं जो निम्नलिखित है।
💥आरक्षित वन
💥सुरक्षित वन
💥अवर्गीकृत वन
आरक्षित वन (Reserved) (सरकारी संरक्षण )
➤राज्य में संरक्षित वनों का क्षेत्रफल 4387 वर्ग किलोमीटर है जो कुल वन क्षेत्र का 18 पॉइंट 58% है।
➤राज्य का सबसे बड़ा संरक्षित वन क्षेत्र कोल्हान एवं पोरहट वन क्षेत्र है।
➤राजमहल और पलामू क्षेत्र के वन इस श्रेणी में है।
➤सुरक्षित वन के अंतर्गत सर्वाधिक क्षेत्रफल पश्चिमी सिंहभूम जिला में है।
सुरक्षित वन (Protected Forest)
➤ इन वनों का कुल क्षेत्रफल 19.185 वर्ग किलोमीटर जो कुल वन क्षेत्रफल का 81 पॉइंट 28 प्रतिशत है।
➤इनका सर्वाधिक विस्तार हजारीबाग में है।
➤इसके बाद गढ़वा, पलामू ,रांची ,लोहरदगा का स्थान है।
अवर्गीकृत वन (Unclassified Forest)
झारखंड में दो प्रकार के वन प्रदेश पाए जाते हैं
1) उष्ण कटिबंधीय आर्द्र वर्षा वन
2) उष्ण कटिबंधीय शुष्क पतझड़ वन
उष्णकटिबंधीय आर्द्र वर्षा वन
➤ ऐसे क्षेत्र को उष्ण कटिबंधीय आर्द्र वर्षा वन प्रदेश कहा जाता है झारखंड में आर्द्र वनों का विस्तार सिंहभूम, दक्षिणी लातेहार एवं संथाल परगना में है।
➤यह वही क्षेत्र है जो जलवायु की दृष्टि से सागरीय मौसम से प्रभावित जलवायु क्षेत्र है और जहां अधिक वर्षा होती है।
➤ इन वनों में साल,शीशम ,जामुन ,पलाश ,सेमल,करमा ,महुआ ,और बांस मिलते हैं।
➤साल के वृक्षों की प्रधानता है जिनके वन घने होते हैं, और पेड़ों की ऊंचाई भी ज्यादा होती है, साल को पर्णपाती पतझड़ वनों का राजा कहा जाता है।
उष्ण कटिबंधीय शुष्क पतझड़ वन
➤ऐसे जगहों पर लगभग झाड़ियां एवं घास है, इस क्षेत्र में साल, अमलतास, सेमल, महुआ एवं शीशम के पेड़ मिलते हैं इनकी गुणवत्ता अपेक्षाकृत निम्न होती है बाँस , नीम, पीपल, हर्रा , पलाश, कटहल एवं गूलर के वृक्षों की प्रधानता है।
➤वन संपदा
➤वन संपदा या वनों से प्राप्त होने वाले उत्पाद को वन संपदा के अंतर्गत शामिल किया गया है इन को दो वर्गों में रखा गया है।
➤मुख्य उपज
➤ गौण उपज
➤मुख्य उपज
➤ झारखंड में जिन वृक्षों की लकड़ियां को बहुत उपयोग में लाया जाता है उनका संक्षिप्त में विवरण निम्न प्रकार है।
➤यह वृक्ष यहां के जनजातीय समाज में बड़ी धार्मिक महत्व की है।
➤ इसका उपयोग मकान ,फर्श , फर्नीचर, रेल के डिब्बे एवं पटरियों को रखने के लिए स्लैब इत्यादि को बनाने में उपयोग होता है।
➤साल को सुखवा भी कहते हैं, साल के पुष्पों को 'सरई फूल' कहते हैं।
➤साल के बीजों से तेल निकाला जाता है, जिससे कुजरी तेल कहते हैं ,जो प्राकृतिक चिकित्सा के लिए बहुत उपयोगी है।
➤ इसकी लकड़ियां काफी मजबूत होती है, जो पानी में भी जल्दी नहीं सड़ती है, महुआ झारखंड का सर्वाधिक उपयोगी वृक्ष है, इसलिए इसकी लकड़ी के दरवाजा एवं खंभे बनाए जाते हैं।
➤इसके फूल से देसी शराब बनाई जाती है।
➤ इसके फल बहुत स्वादिष्ट होते हैं, जिस कारण से फलों का राजा कहा जाता है, इसके फल को अमृत फल भी कहा जाता है।
➤अन्य उपयोग फर्नीचर बनाने में, इसका फल भी खाया जाता है, और इसके बीज से दवा बनाया जाता है।
➤ध्यान देने योग्य बात यह है कि केन्दु का उपयोग मुख्य उत्पाद की तुलना में, गौण उत्पाद के रूप में मुख्य होता है।
➤ गौण उपज
➤लाह :- उत्पादन की दृष्टि से झारखंड का देश में प्रथम स्थान है।
➤ यहां देश का कुल उत्पादन का 50 प्रतिशत झारखण्ड में उत्पादन होता है, झारखंड में ऐसे क्षेत्र बहुतायत में मिलते हैं जो लाह उत्पादन की दृष्टि में सर्वथा अनुकूल है,इन क्षेत्र में लाह उत्पादन के लिए उपयुक्त वातावरण प्राप्त होता है।
➤लाह के उत्पादन के लिए खूटी-रांची जिला, गढ़वा-पलामू-लातेहार ,सिंहभूम क्षेत्र,संताल परगना और हजारीबाग क्षेत्र प्रमुख है।
लाह से संबंधित शोध कार्य के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अंतर्गत नामकुम रांची में भारतीय लाह शोध अनुसंधान केंद्र की स्थापना की गई है।
➤केंदु पत्ता का व्यापार अन्य सभी लघु वन उपज संग्रहक की तरह बिक्री हेतु स्वतंत्र नहीं है। इसके लिए सरकार द्वारा बेचने की मंजूरी लेना जरुरी होता है।
➤व्यापार में ठेकेदारों की भूमिका कम करने और प्राथमिक संग्रहको केंदु पत्ता संग्रहण के बदले उचित मजदूरी का भुगतान करने के उद्देश्य से झारखंड राज्य केंद्र पत्ता नीति 2015 को दिनांक 27 /01/2016 को अधिसूचित की गई। केंदु पत्ता से बीड़ी और तंबाकू के मिश्रण बनाए जाते हैं।
➤सर्वाधिक लाह उत्पादक जिला -खूटी है।
➤यहां देश के कुल तसर उत्पादन का 60% होता है।
➤ रेशम के उत्पादन में साल, अर्जुन, आसन,शहतूत आदि वृक्षों की आवश्यकता होती है जो झारखंड के वनों में बहुतायत में मिलते हैं।।
➤रांची के नगड़ी में भारत सरकार ने 'तसर अनुसंधान केंद्र' स्थापित किया है।
➤रेशम आधारित उत्पादों के विकास के लिए झारखंड सरकार ने 2006 में 'झारखंड सिल्क, टेक्सटाइल एवं हैंडीक्राफ्ट डेवलपमेंट कारपोरेशन' (झारक्राफ्ट) की स्थापना की है।
➤झारखंड देश का सबसे बड़ा कोकून और तसर का उत्पादक राज्य है।
➤व्यापारिक स्तर पर इसका उपयोग घर बनाने कागज उद्योग एवं टेंट हाउस चलाने आदि में होता है।
➤अन्य :-गौण उत्पादों में साल बीज, महुआ बीज ,महुआ पत्ता ,चिरौंजी, इमली, आंवला ,कत्था , मधु, गोंद, घास, पत्तियां, छाल, बीज, फूल-फल, कंद-मूल, जड़ी बूटियां उल्लेखनीय है।