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Saturday, December 6, 2025

Teaching Aptitude (शिक्षण अभिक्षमता)

Teaching Aptitude  शिक्षण अभिक्षमता का तात्पर्य शिक्षण कार्य और शिक्षण सिद्धांत तथा उसकी विधियों के किसी नए वातावरण, भूमिका या अवधारणा से परिचित होना या उसे समझने से है। शिक्षण एक कला है जिसमें उसकी प्रतिभा और सृजन की झलक मिलती है। शिक्षण एक कार्य प्रणाली है जो सामाजिक और भौतिक वातावरण के अनुकूल प्रशिक्षु को अपने ज्ञान से सृजित करता है। शिक्षण एक पारस्परिक क्रिया है जो किसी उद्देश्य हेतु जो विद्यार्थी के बौद्धिक विकास में सहायक होता है।

शिक्षण एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है जिसमें शिक्षक और विद्यार्थी के बीच परस्पर संवाद होता है। शिक्षण एक कला है जो प्रशिक्षुओं को प्रभावशाली ज्ञान प्रदान करता है। शिक्षक औपचारिक एवं अनौपचारिक दोनों रूप में होता है जो प्रशिक्षुओं को अधिक से अधिक सीखने के लिए प्रोत्साहित करती है तथा उसे सामाजिक वातावरण में ढलने में मदद करता है।

शिक्षण की प्रकृति एवं विशेषताएं (The Nature and Characteristics)

  • शिक्षण एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है।
  • शिक्षण औपचारिक और अनौपचारिक दोनों प्रकार के होते हैं।
  • शिक्षण एक कला है जो अध्यापकों को  प्रभावी ढंग से ज्ञान प्रदान करती है।
  • शिक्षण एक विज्ञान भी है जो विषय से संबंधित विभिन्न तथ्यों और उसके कारणों की शिक्षा प्रदान करता है।
  • शिक्षण कला अध्यताओ को अधिक से अधिक सीखने के लिए प्रोत्साहित करती है।

शिक्षण के उद्देश्य (Objectives of Teaching)

शिक्षण एक सामाजिक प्रक्रिया है  जिसमें मनोवैज्ञानिक एवं दार्शनिक दृष्टिकोण सम्मिलित होता है। शिक्षण व्यवसाय को अपनाने वाले व्यक्ति में शिक्षा के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण होना चाहिए। यदि शिक्षक की शिक्षा में अभिरुचि एवं शिक्षा के प्रति सकारात्मक सोच रहता है तो उसके लिए शिक्षा मात्र औपचारिक ना होकर जीवन के लिए मूल्यवान और उपयोगी होती है। शिक्षण एक उद्देश्य पूर्ण प्रक्रिया है जिसमें सामाजिक मनोवैज्ञानिक दार्शनिक दृष्टिकोण सम्मिलित होता है।ताकि शिक्षा को जीवन में उपयोगी एवं मूल्यवान बनाया जा सके। शिक्षण प्रक्रिया मुख्य रूप से छात्र और शिक्षक के अंतरक्रिया पर आधारित होती है। जिसमें शिक्षकों द्वारा विद्यार्थियों को सीखने के लिए प्रेरित किया जाता है।

शिक्षण के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं:-

  • अध्येताओं के संपूर्ण विकास
  • व्यवहार परिवर्तन
  • सामंजस्यता का विकास
  • पाठ अभ्यास
  • अध्येताओं के मानसिक योग्यता का विकास
  • ज्ञान संचार
  • कक्षा वातावरण
  • शिक्षण प्रक्रिया का मुख्य उद्देश्य अध्येताओं के संपूर्ण विकास है जिसमें भौतिक, मानसिक, अध्यात्मिक व नैतिक विकास शामिल है।
  • शिक्षण प्रक्रिया में अध्येताओं के व्यवहार परिवर्तन होता है शिक्षा व्यक्ति में व्यवहारिक परिवर्तन लाता है। इसी से किसी व्यक्ति की दृष्टिकोण और उसकी व्यक्तिगत आदर्श की झलक मिलती है।
  • शिक्षण से अध्येताओं में मानसिक विकास के साथ तार्किक क्षमता, विषय वस्तु की समझ तथा सामाजिक सामंजस्यता का विकास भी होता है। तथा विश्व बंधुत्व की भावना जागृत होती है।
  • शिक्षण प्रक्रिया का मुख्य उद्देश्य शिक्षक के द्वारा छात्राओं में सूचना तथा ज्ञान संचार करना होता है। शिक्षण प्रक्रिया में शिक्षक का अपने व्याख्यान को लगातार रखते हैं और छात्रों को गृह कार्य भी देते हैं। शिक्षकों का उत्तरदायित्व होता है कि छात्रों ने क्या सीखा है इसकी जांच करना। छात्रों ने क्या पढ़ा औऱ क्या सीखा इसकी जांच करना शिक्षण प्रक्रिया का महत्वपूर्ण उद्देश्य होता है।
  • शिक्षण के लिए कक्षा-वातावरण होना अति आवश्यक है क्योंकि यदि शिक्षक- छात्र के बीच दोस्ताना तथा व्यवहारिक शिक्षण प्रक्रिया नहीं होती है तो सीखने की प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न होती है। इसलिए शिक्षक-छात्रों को हमेशा शिक्षण प्रशिक्षण की प्रक्रियाओं में सहज महसूस करना चाहिए।

शिक्षा दर्शन में शिक्षण एक त्रिकोणीय प्रक्रिया है जिसमें शिक्षक, छात्र (अध्येता) और विषय-वस्तु तीनों शामिल होते हैं। शिक्षण की त्रिकोणीय प्रक्रिया में कक्षा वातावरण शामिल किया जा सकता है। शिक्षण के लिए स्वच्छ स्वस्थ वातावरण की आवश्यकता होती है। जहां शिक्षक, छात्र, विषय-वस्तु और स्वच्छ स्वस्थ वातावरण का मिलन होता है वहां शिक्षण प्रशिक्षण का केंद्र बन जाता है। शिक्षण के इन आवश्यक तत्वों का अपना-अपना महत्व है शिक्षण की प्रक्रिया में इन चार तत्वों का होना अति आवश्यक है जो निम्न हैं :-

शिक्षक  (Teacher) 

शिक्षण- प्रशिक्षण की प्रक्रिया में शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है जो अध्येताओं में व्यवहार परिवर्तन के साथ-साथ नैतिकता का संचार करता है। शिक्षक विषय के ज्ञाता होते हैं और अध्येता के व्यवहार परिवर्तन के लिए प्रभाव कारी संचार के लिए पूर्णता उत्तरदायित्व होता है। आज के विज्ञान एवं तकनीकी युग में शिक्षण को प्रभाव कारी संचार के लिए शिक्षकों को अत्याधुनिक तकनीकी का प्रयोग करना चाहिए। शिक्षक पथ प्रदर्शक होते हैं वह ज्ञान का सृजन कर अध्येताओं में भौतिक, सामाजिक, मानसिक तथा भावनात्मक विकास को जागृत करता है।

अध्येता (Learner)

शिक्षण-प्रशिक्षण का केंद्र बिंदु अध्येता होता है जो ज्ञान और सूचना प्राप्त करने के लिए शिक्षकों का अनुसरण करते हैं।अध्येताओं का ध्येय अधिक से अधिक सूचना और ज्ञान प्राप्ति की जिज्ञासा होती है तथा शिक्षकों का उत्तरदायित्व होता है कि वह अपना अद्यतन ज्ञान को उचित रूप से अध्येता को दे ताकि उसका बोद्धिक विकास हो सके। अध्येता कोई छात्र या विद्वान हो सकता है। शिक्षण प्रशिक्षण की प्रक्रिया में अध्येता की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अध्येता की विषय जिज्ञासा तथा उसकी आवश्यकता के अनुसार शिक्षकों को ज्ञान और सूचना का संचार करना चाहिए। ताकि वे एक सफल नैतिकवान नागरिक बन सके और देश और समाज का कल्याण हो सके।

विषय वस्तु (Subject Matter)

शिक्षण प्रशिक्षण की प्रक्रिया में विषय वस्तु की अहम भूमिका होती है। विषय वस्तु महत्वपूर्ण तत्व है जो सामान्यता शिक्षकों द्वारा निर्धारित की जाती है किंतु विषय के निर्धारण में अध्येताओं की सहभागिता हो सकती है। विषय वस्तु को सुगम बनाने हेतु संबंधित आवश्यक चार्ट, मानचित्र ,तालिका एवं मॉडल की तैयारी शिक्षकों या प्रशिक्षकों के द्वारा की जाती है। शिक्षण उपकरण में मीडिया तकनीकी का प्रयोग शिक्षकों द्वारा किया जाना किसी भी विषय वस्तु को अध्येताओं के लिए अधिक से अधिक बोध्यगम व रुचिकर बनाने का कार्य करती है। शिक्षण में विषय वस्तु एक महत्वपूर्ण तत्व होता है। जिसका निर्धारण शिक्षकों द्वारा की जाती है विषय वस्तु को सुगम बनाने के लिए संबंधित आवश्यक शिक्षण उपकरण का प्रयोग किया जाना वांछित होता है।

स्वच्छ-स्वस्थ कक्षा वातावरण (Cool-Healthy Classroom Environment)

शिक्षण का मुख्य उद्देश्य अध्येताओं के बहुमुखी विकास होता है और यह तभी संभव है जब शिक्षण प्रशिक्षण के लिए अनुकूल वातावरण हो। क्योंकि शोरगुल शोर शराबा की वातावरण में शिक्षण प्रक्रिया बाधित होती है। इसका प्रभाव शिक्षण पर पड़ता है। शिक्षण कक्ष का वातावरण पिंड्राप साइलेंट होना चाहिए ताकि शिक्षकों द्वारा जो ज्ञान या सूचना अध्येताओं को दिया जा रहा है और वह बिना किसी बाधा के अध्येताओं के पास पहुंचे। इसलिये शिक्षण प्रशिक्षण के लिए अनुकूल वातावरण के साथ स्वच्छ-स्वस्थ कक्षा वातावरणका होना आवश्यक है।

शिक्षण एक सामाजिक दृष्टिकोण है जबकि सीखना एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है। शिक्षण बिना अध्येताओं के संभव नहीं है जबकि सीखना अपने व्यक्तिगत अनुभव से भी हो सकता है। शिक्षण प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाने के लिए निम्न चरणों की जरूरत होती है।

योजना (Preparation)

किसी भी कार्य को संपादित करने के लिए योजना की जरूरत होती है। योजना कार्य को गति प्रदान करती है। शिक्षण प्रशिक्षण की प्रक्रिया में शिक्षक अपनी क्षमता के अनुकूल, छात्रों की संख्या, विषय वस्तु के अनुसार शिक्षण के लिए योजना तैयार करते हैं और शिक्षण कार्य को संपादित करते हैं। जब शिक्षक छात्रों को पढ़ने के लिए अपने हर दृष्टिकोण से अपना अच्छा सही ज्ञान के संचार के लिए योजना बनाते हैं तो शिक्षण बोध्यगम सुगम हो जाता है बिना योजना के कोई भी कार्य संपादन नहीं की जा सकती है।

तैयारी (Planning)

शिक्षण प्रशिक्षण का आयोजन किसी विशेष स्कूल, कॉलेज तथा विश्वविद्यालय में होती है जहां शिक्षक नई संभावनाओं की तलाश में आए छात्र छात्राओं को चरणबद्ध तरीके से विषय वस्तु का ज्ञान देते हैं। जब किसी कार्य को संपादित करने के लिए योजना बनाते हैं तो उस समय अपने योजना अनुसार तैयारी भी करनी होती है। शिक्षकों को जो विषय वस्तु पर पढ़ानी होती है उस विषय वस्तु अच्छी तरह से तैयार करनी होती हैं और उस विषय वस्तु को अधिक से अधिक रुचिकर बनाने का प्रयास किया जाता है ताकि अध्येता उस विषय वस्तु को अच्छे ढंग से हृदयागम्य करें। शिक्षण प्रक्रिया में तैयारी का अर्थ किसी विषय वस्तु को कैसे अध्येताओं के लिए सुगम बनाया जाए ताकि विषय वस्तु रुचिकर हो।शिक्षण विधि में शिक्षण सहायक उपकरण सामग्री का प्रयोग तथा उपयोग आदि पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है।

प्रस्तुतीकरण (Presentation)

तैयारी के पश्चात किसी विषय वस्तु का अच्छे से प्रदर्शन करना आवश्यक होता है। किसी विषय वस्तु का प्रदर्शन ऐसा होना चाहिए ताकि उसे विद्यार्थी पूर्णता से ग्रहण कर सके और प्रशिक्षु संतुष्ट हो सके। शिक्षण प्रक्रिया में विषय वस्तु की प्रस्तुतिकरण महत्वपूर्ण चरण होते हैं जिसके माध्यम से कक्षा में शांतिपूर्वक विद्यार्थी विषय को समझ पाता है। शिक्षकों के द्वारा अपनी योग्यता और क्षमता के अनुकूल अच्छे ढंग से विषय वस्तु को प्रस्तुत करने का प्रयास किया जाता है ताकि अध्येता उसे ग्रहण कर सके। अध्येता अपनी क्षमता के अनुकूल ग्रहण या समझने का प्रयास करते हैं। इस प्रकार प्रस्तुतीकरण शिक्षण का एक महत्वपूर्ण चरण हैं।

 तुलना (Comparison)

तुलना भी शिक्षण का महत्वपूर्ण विशेषता है जिसके माध्यम से हमें अपनी गलती को सुधारने का मौका मिलता है। शिक्षण प्रशिक्षण की प्रक्रिया में तुलना कर प्रथम कक्षा प्रदर्शन से दूसरा कक्षा प्रदर्शन को बेहतर तथा सारगर्भित सुसंगत बनाया जा सकता है। इस प्रकार तुलनात्मक अध्ययन अध्यापन से अध्येताओं में जागृति आती है और वे अच्छे से ज्ञान प्राप्त कर सकता है।

समान्यनिकरण (Generalization)

शिक्षण की प्रक्रिया में एक कक्षा प्रदर्शन का दूसरे कक्षा प्रदर्शन का तुलना कर समान्यनिकरण किया जा सकता है जो शिक्षण को अधिक आकर्षक बेहतर परिणाम दे सकता है। समान्यनिकरण शिक्षण का महत्वपूर्ण चरण होती है जिसमें कक्षा प्रदर्शन परिणामों का तुलनात्मक अध्ययन कर शिक्षण प्रक्रिया को और बेहतर परिणाम देने वाला बनाया जा सकता है। शिक्षण प्रक्रिया में सामान्यनिकरण बेहतर परिणाम का द्योतक है। शिक्षण कार्य नियम संगत होना चाहिए।

अनुप्रयोग (Application)

शिक्षण का मुख्य उद्देश्य समाज को विकासशील बनाना है। शैक्षिक वातावरण समाज में विकसित करने में शिक्षकों का महत्वपूर्ण भूमिका होती है। नित्य नए सूचना तथा ज्ञान का सृजन कर देश और समाज के सर्वांगीण विकास करना है। व्यक्ति में नैतिक गुण को विकसित किया जाता है। इसलिए शिक्षण में शिक्षक अपने योजना अनुसार बेहतर नियमतः कक्षा प्रदर्शन कर नित्य प्रतिदिन नये अनुप्रयोग करना आवश्यक ही नहीं बल्कि अनिवार्य है। क्योंकि किसी नियम का समान्यनिकरण का अनुप्रयोग से ही विकास की गति को जारी रखा जा सकता है इसलिए शिक्षण प्रक्रिया में नित्य नये अनुप्रयोग करना चाहिए।

किसी कक्षा में विषय वस्तु का प्रदर्शन शैली शिक्षण विधि है। विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास हेतु सूचना तथा ज्ञान को संचारित करने की विधि शिक्षण विधि है। शिक्षण विधि का अर्थ समान्यतः शिक्षण प्रक्रिया की योजना तथा नीति को क्रियान्वित करने से लिया जाता है। शिक्षण अभिरुचि मुख्यतः पहलू होते हैं- किसी विषय वस्तु के प्रदर्शन की योजना बनाना तथा अध्येताओं में बौद्धिक विकास एवं व्यवहारिक परिवर्तन लाना। यह विधि तार्किक एवं वैज्ञानिक हो सकती है।

व्याख्यान विधि (Lecture Method)

व्याख्यान विधि शिक्षण की महत्वपूर्ण एवं पुरानी शिक्षण विधि है। यह ऑटोक्रेटिक शिक्षण विधि है। यह ज्ञान संचार का सशक्त माध्यम है। इस विधि में शिक्षक सक्रिय तथा विद्यार्थी निष्क्रिय होते हैं। लेकिन शिक्षक प्रश्नोत्तर तकनीक को अपनाकर कलात्मक ढंग से छात्रों पर प्रभावकारी नीति अपनाकर शिक्षण को बोध्यगम बनाया जाता है। शिक्षण की प्रक्रिया में व्याख्यान विधि को लेकर निम्न बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता है –

  • विषय शीर्षक संपूर्ण विषय को प्रदर्शित करें
  • प्रदर्शन की कला में प्रवीणता
  • छात्रों में सुनने की आदत
  • एक विषय वस्तु को अन्य रोचक विषय वस्तु के साथ जोड़ने की कला
  • नए ज्ञान को पुराने ज्ञान से जोड़ने की कला

यद्यपि व्याख्यान विधि शिक्षण की प्रभाव कारी शिक्षण विधि है परंतु शिक्षकों को व्याख्यान को रोचक बनाने के लिए शिक्षण उपकरण आदि का प्रयोग किया जाना अनिवार्य होता है। व्याख्यान के दौरान छात्रों से प्रश्नोत्तर करना आवश्यक होता है। ताकि अध्येता विषय वस्तु में रुचि ले।

पाठ प्रदर्शन विधि Lesson Demonstration Method)

पाठ प्रदर्शन शिक्षण विधि एक परंपरागत शिक्षण विधि है जिसे तकनीकी स्कूल तथा प्रशिक्षण संस्थानों में प्रयोग किया जाता है। पाठ प्रदर्शन विधि में सर्वप्रथम किसी विषय वस्तु को निर्धारित कर उसके उद्देश्य का निर्धारण करना। दूसरे चरण में प्रश्नोत्तरी तकनीक को अपनाकर प्रशिक्षु में जिज्ञासा को जागृत करना तथा अंतिम चरण में पाठ के विषय वस्तु को प्रदर्शन कर उसका मूल्यांकन किया जाता है। इस विधि का प्रयोग सामान्यतः प्रशिक्षण के लिए होता है जिसमें अ-प्रशिक्षित, अ-अनुभवी लोग भाग लेते हैं। यह विधि शिक्षक-छात्रों में पाठ संबंधी विषय में प्रवीणता हेतु बहुत ही उपयोगी विधि है।

प्रश्नोत्तर विधि (Question-Answer Method)

शिक्षण में प्रश्नोत्तर विधि प्रभावशाली शिक्षण विधि है जिसके माध्यम से प्रशिक्षुओं या अध्येताओं को विषयों में जिज्ञासा एवं रुचि को विकसित किया जाता है और कक्षा का वातावरण शांतिपूर्ण एवं शिक्षण प्रभावशाली होता है। प्रश्नोत्तर विधि के माध्यम से अध्येताओं में विषय के प्रति जिज्ञासा पैदा किया जा सकता है साथ ही साथ नए प्रश्नों को पूछकर अध्येताओं की जांच की जा सकती हैं। शिक्षक अपना मूल्यांकन कर शिक्षण प्रक्रिया को प्रभावशाली एवं उपयोगी बना सकता है। प्रश्नोत्तरी विधि को अपनाकर अध्येताओं में विषय अभिरुचि पैदा करने तथा सीखने की प्रबल इच्छा शक्ति को जागृत करना होता है। शिक्षक मुख्यतः तीन स्तर पर अर्थात प्रथम निरीक्षण, दूसरा अनुभव, तीसरा जांच, की प्रक्रिया निर्धारित कर विषय वस्तु को रोचक एवं बोध्यगम बनाते है। शिक्षक अपने पाठ को विषयों से संबंधित प्रश्न को तैयार कर शिक्षण प्रशिक्षण की प्रक्रिया प्रभावी बनाते है।

शिक्षण में कक्षा प्रदर्शन बेहतर एवं प्रभावशाली होना चाहिए ताकि अध्येता अपनी शैक्षणिक योग्यतानुसार सामाजिक, राजनीतिक, व्यावहारिक एवं बोद्धिक ज्ञान को विकसित कर सके। शिक्षण प्रक्रिया में शिक्षकों की केंद्रीय भूमिका होती है। किसी भी शिक्षक का कक्षा-प्रदर्शन को प्रभावित करने के उनके व्यक्तिगत कारक (Personal Factor) तथा बौद्धिक कारक (इंटेलेक्चुअल फैक्टर)हो सकते हैं। व्यक्तिगत कारक का तात्पर्य शिक्षकों के व्यक्तित्व से है। शिक्षकों को शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक रूप से विकसित होना चाहिए। शिक्षकों के व्यक्तित्व के कारण शिक्षण प्रभावित हो सकता है। इसलिए शिक्षकों को व्यक्तिगत स्तर पर सामाजिक एवं नैतिक होना चाहिए। साथ ही साथ शिक्षकों को विवेकी होना चाहिए। बौद्धिक कारक का तात्पर्य शिक्षकों के बुद्धि विवेक से है। शिक्षकों की बुद्धि और विवेक में कमी के कारण शिक्षण प्रभावित हो सकती है। शिक्षकों के बौद्धिक क्षमता के कारण संबंधित विषय में प्रवीणता प्रभावित कर सकता है। सोचने समझने की शक्ति होनी चाहिए साथ ही साथ मनोवैज्ञानिक स्तर पर शिक्षकों में भय, घबराहट नहीं होनी चाहिए। शिक्षकों को निडर, निर्भीक ऊर्जावान, सकारात्मक सोच वाला होना चाहिए।व्यक्तिगत कारक (Personal Factor) तथा बौद्धिक कारक (Intellectual Factor के अलावा अन्य निम्न कारणों से शिक्षण प्रभावित हो सकती है –

विषय का कम ज्ञान (Poor Knowledge of Subject)

शिक्षकों को अपने विषय में प्रवीण होना चाहिए। यदि शिक्षक अपने विषय का कम ज्ञान रखता है तो वह विद्यार्थी को संतुष्ट नहीं कर सकेगा। जिसका प्रभाव शिक्षण-प्रशिक्षण पर पड़ता है विषय के ज्ञान ही प्रभावशाली शिक्षण का परिचायक है।

शिक्षक का स्वास्थ्य (Health of Teacher)

स्वास्थ्य ही धन है। स्वास्थ्य के बिना किसी भी कार्य को सुचारू रूप से जारी रखना कठिन होता है। शिक्षण में शिक्षकों की केंद्रीय भूमिका होने के साथ-साथ उसे मेहनती होना चाहिए। शिक्षकों को शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ होना जरूरी है। यदि शिक्षक शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं है अर्थात बीमार है तो उसका विपरीत प्रभाव शिक्षण पर अवश्य पड़ेगा।

ज्ञान-संचार प्रक्रिया (Knowledge-Communication)

ज्ञान का संचार करने के लिए शिक्षकों को अपने विषय में प्रवीणता हासिल करना होगा तभी वह अपने छात्रों को सही ज्ञान का संचार कर सकता है। अन्यथा वह ज्ञान के संचार में असफल हो जाएंगे। विषयों का अच्छी जानकारी या अपने ज्ञान के आधार पर अपने अध्येताओं को सही ज्ञान या सूचना का संचार कर सकता है। संचार प्रक्रिया में कोई शोरगुल नहीं होना चाहिए। संचार प्रक्रिया में बाधा शिक्षण को प्रभावित करती है।

मानसिक स्तर (Mental level)

शिक्षकों को समझना होगा कि अध्येताओं की क्या जरूरत है? उसकी मानसिक स्तर को टटोलना होगा तभी शिक्षण को प्रभावकारी बनाया जा सकता है। यदि शिक्षक अध्येताओं के मानसिक स्तर की समझ स्तर को समझे बैगर या अपने स्तर से शिक्षण जारी रखता है तो वह शिक्षण प्रक्रिया बुरी तरह प्रभावित हो सकती है।

तैयारी (Preparation)

किसी भी कार्य को सुचारू रूप से संपादित करने के लिए संबंधित कार्य की तैयारी करनी होती है। यदि शिक्षण में शिक्षक जिस विषय वस्तु का कक्षा प्रस्तुतीकरण करने जा रहा है तो उस विषय वस्तु से संबंधित विषयों की तैयारी करनी होती है। यदि विषयों की तैयारी किये बगैर कक्षा-प्रदर्शन प्रस्तुत करता है तो शिक्षण प्रभावित हो सकता है। शिक्षण में विद्यार्थी की ओर से कई प्रकार से प्रश्न किए जा सकते हैं जिसका जवाब देना कक्षा शिक्षकों का दायित्व होता है। यह तभी संभव है जब पढ़ाए जाने वाले विषय वस्तु की अच्छी तैयारी के साथ कक्षा प्रस्तुतीकरण किया जाए।

तत्क्षण बौद्धिक क्षमता (Presence of mind)

शिक्षकों को तत्क्षण बौद्धिक क्षमता रखना आवश्यक होता है। उदाहरण स्वरूप शिक्षक विषय वस्तु को कक्षा में पढ़ा रहे हैं परंतु अध्येता विषय वस्तु में रुचि नहीं ले रहा है और उसे समझने में कठिनाई महसूस हो रहा है तो शिक्षकों को तुरंत किसी शिक्षण सहायक तकनीक या तत्कालिक उदाहरण को प्रस्तुत कर विषय वस्तु को बोधगम्य बनाना अनिवार्य हो जाता है अन्यथा शिक्षण प्रभावित होता है। शिक्षकों में विषय वस्तु को रोचक और बोधगम्य बनाने की काल होनी चाहिए।

असंतुलित छात्र-शिक्षक औसत (Unbalanced Student-Teacher Ratio)

विद्यालय या विश्वविद्यालय के लिए शिक्षक-छात्र औसत का मानक निर्धारण किया गया है। उसके अनुसार कक्षा का संचालन किया जाए तो शिक्षण प्रभावी तथा उपयोगी होगा। यदि शिक्षक छात्र का मानक औसत असंतुलित होता है तो उसका स्पष्ट प्रभाव शिक्षण पर दिखाता है। छात्र-शिक्षक असंतुलित औसत की स्थिति में शिक्षकों का व्याख्यान सुनने में कुछ छात्रों के लिए कठिनाई हो सकती है। साथ ही साथ शिक्षण प्रक्रिया प्रभावित होती है

आधारभूत संरचना (Infrastructure)

किसी भी संस्थान का आधारभूत संरचना शिक्षण को प्रभावित कर सकती है। आधारभूत संरचना जैसे उपस्कर, प्रसाधन, स्वच्छ पेयजल, खेलकूद की सुविधा एवं पुस्तकालय आदि स्वस्थ एवं प्रभावशाली शिक्षण के लिए अनिवार्य होता है। यदि शिक्षण संस्थानों में आवश्यक सुविधाओं से अनिभिज्ञ होकर संस्थान में शिक्षण को प्रभावी नहीं बनाया जा सकता है। पुस्तकालय और सूचना प्रौद्योगिकी की मूल भूत सुविधाएं होना आवश्यक है।

शिक्षण सहायक उपकरण (Teaching Aids/Tools)

सहायक उपकरण किसी कार्य को संपादित करने में सहायता प्रदान करता है। किसी विषय वस्तु तथा तथ्य को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करने के लिए तथा कक्षा को प्रभावी बनाने के लिए शिक्षकों के द्वारा सहायक सामग्री का उपयोग किया जाता है। जब किसी शिक्षण सहायक सामग्री उपयोग के बिना अध्यापन कार्य को संपादित करते हैं तो विषय वस्तु को स्पष्ट करने में कठिनाई होता है और फिर शिक्षण कार्य प्रभावित हो सकता है। संतुष्टि जनक ढंग से विषय को प्रस्तुत करने में शिक्षण के आवश्यक सामग्री का उपयोग या प्रयोग किया जाना चाहिए। केवल व्याख्यान विधि से शिक्षण कार्य प्रभावी नहीं हो सकता। शिक्षण सामग्री का उपयोग कर किसी विषय वस्तु को रोचक और बोधगम्य बनाया जा सकता है। इस प्रकार शिक्षण सहायक सामग्री शिक्षण को प्रभावित करती है।

स्रोत :-इंटरनेट और किताब 


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