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Saturday, May 22, 2021

Kishan Janjati Ka Samanya Parichay (किसान जनजाति का सामान्य परिचय)

Kishan Janjati Ka Samanya Parichay

➧ किसान जनजाति सदनों की एक जनजाति है जिन्हें नगेश्वर/नगेशिया भी कहा जाता है 

➧ यह जनजाति स्वयं को नागवंश का वंशज मानती है 

किसान जनजाति का सामान्य परिचय

 
➧ डाल्टन ने इन्हें पांडवों का वंशज बताया है 

➧ इस जनजाति का संबंध द्रविड़ समूह से है

 इस जनजाति की भाषा मुंडारी (ऑस्ट्रो-एशियाटिक) है 

➧ इनका संकेंद्रण मुख्यत: पलामू, लातेहार, गढ़वा, लोहरदगा, गुमला और सिमडेगा जिले में है में है

➧ समाज एवं संस्कृति

➧ विवाह की दृष्टि से इस जनजाति को 2 वर्ग हैं:- सिंदुरिया तथा तेलिया 

➧ सिंदुरिया लोगों का विवाह सिंदूरदान से होता है जबकि तेलिया लोगों के विवाह में तेल का प्रयोग करते हैं 

➧ इस जनजाति में परीक्षा विवाह का प्रचलन है

➧ इस जनजाति में वधू मूल्य को 'डाली' कहा जाता है

 इनका प्रमुख त्योहार सोहराई, सरहुल, कर्मा, नवाखानी, जितिया, फगुन, दीपावली आदि है 

➧ आर्थिक व्यवस्था 

➧ इस जनजाति के लोगों का प्रमुख पेशा कृषि कार्य तथा लकड़ी काटना है

➧ धार्मिक व्यवस्था 

➧ इनके सर्व प्रमुख देवता सिंगबोंगा है

 इनका धार्मिक प्रधान वेगा कहलाता है

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Karmali Janjati Ka Samanya Parichay (करमाली जनजाति का सामान्य परिचय)

Karmali Janjati Ka Samanya Parichay 

➧ यह जनजाति झारखंड के सदन समुदाय की जनजाति है। 

➧ इस जनजाति का संबंध प्रोटो-ऑस्ट्रोलॉयड समूह से है। 

 इस जनजाति की मातृभाषा खोरठा है तथा बोलचाल हेतु करमाली भाषा (आस्ट्रो-एशियाटिक भाषा परिवार से संबंधित) का प्रयोग किया जाता है

करमाली जनजाति का सामान्य परिचय

➧ झारखंड में इनका मुख्यतः हजारीबाग, चतरा, कोडरमा, गिरिडीह, रांची, सिंहभूम और संथाल परगना में पाया जाता है

 समाज एवं संस्कृति 

 इस जनजाति के नातेदारी व्यवस्था हिंदू समाज के समान है

➧ यह जनजाति सात गोत्रों (कछुवार, कैथवार, संठवार, खालखोलहार , करहर , तिर्की और सोना) में विभाजित है

➧ इस जनजाति में आयोजित विवाह, विनिमय विवाह, राजी-खुशी विवाह, ढुकु विवाह आदि अत्यंत प्रचलित है

➧ इस जनजाति में वधू मूल्य को 'पोन' या 'हड़ुआ' कहा जाता है 

➧ इनके पंचायत के प्रमुख को मालिक कहा जाता है

 इस जनजाति में टुसु पर्व (अन्य नाम-मीठा परब या बड़का परब) प्रमुखता से मनाया जाता है इसके अतिरिक्त ये सरहुल, करमा, सोहराई, नवाखानी आदि पर्व मनाते हैं

➧ आर्थिक व्यवस्था

➧ ये एक दस्तकार या शिल्पकार जनजाति हैं तथा इनका परंपरागत पेशा लोहा गलाना और औजार बनाना है

 ➧अस्त्र -शस्त्र  के निर्माण में यह जनजाति अत्यंत दक्ष होती है 

धार्मिक व्यवस्था

➧ इनके प्रमुख देवता सिंगबोंगा है 

➧ इनके पुजारी को पाहन या नाया कहा जाता है 

➧ इस जनजाति में ओझा भी पाया जाता है जिसके पवित्र स्थान को देउकरी कहा जाता है

➧ इस जनजाति के लोग दामोदर नदी को अत्यंत पवित्र मानते हैं

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Friday, May 21, 2021

Lohra Janjati Ka Samanya Parichay (लोहरा जनजाति का सामान्य परिचय)

Lohra Janjati Ka Samanya Parichay

➧ इस जनजाति के प्रजाति प्रोटो-ऑस्ट्रोलॉयड है 

➧ ये असुर के वंशज माने जाते हैं

 झारखंड में इस जनजाति का निवास रांची, गुमला, सिमडेगा, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम, सरायकेला- खरसावां,, पलामू , और संथाल परगना क्षेत्र में है 

➧ इनकी भाषा सदानी है 

लोहरा जनजाति का सामान्य परिचय

➧ समाज और संस्कृति

➧ इस जनजाति के सात गोत्र (सोन , साठ ,  तुतली , तिर्की , धान , मगहिया, एवं कछुआ) है 

➧ इनकी सामाजिक व्यवस्था पितृसत्तात्मक तथा पितृवंशीय है 

➧ इनका  प्रमुख पेशा लौह उपकरण बनाना है  

इनके प्रमुख त्योहार विश्वकर्मा पूजा, सोहराय, फगुआ आदि हैं

➧ आर्थिक व्यवस्था 

➧ इनका प्रमुख पैशा लौह उपकरण बनाना है। यह मुख्यत: कृषि संबंधी उपकरण बनाते हैं

➧ धार्मिक व्यवस्था 

➧ इनके प्रमुख देवता सिंगबोंगा तथा धरती माय हैं 

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Kharwar Janjati Ka Samanya Parichay (खरवार जनजाति का सामान्य परिचय)

Kharwar Janjati Ka Samanya Parichay

➧ यह झारखंड की पांचवी सबसे अधिक जनसंख्या वाली जनजाति है

➧ इनका मुख्य संकेन्द्रण पलामू प्रमंडल में है

 इसके अलावा हजारीबाग, चतरा, रांची, लोहरदगा, संथाल परगना तथा सिंहभूम में भी खरवार जनजाति पाई जाती हैं 

खरवार जनजाति का सामान्य परिचय

➧ खेरीझार से आने के कारण इनका नामकरण खेरवार हुआ

➧ पलामू एवं लातेहार जिला में इस जनजाति को 'अठारह हाजिरी' भी कहा जाता है तथा ये स्वयं को सूर्यवंशी राजपूत हरिश्चंद्र रोहताश्व का वंशज मानते हैं 

➧ यह एक बहादुर मार्शल (लड़ाकू) जनजाति हैं

➧ सत्य बोलने के अपने गुण के कारण इस जनजाति की विशेष पहचान है 

➧ यह जनजाति सत्य हेतु अपना सभी कुछ बलिदान करने के लिए प्रसिद्ध है 

➧ खरवार जनजाति का संबंध द्रविड़ प्रजाति समूह से है

➧ इस जनजाति की भाषा खेरवारी है जो ऑस्ट्रो-एशियाटिक भाषा परिवार से संबंधित है

 समाज एवं सांस्कृतिक

 संडर  के अनुसार खरवार की 6 प्रमुख उपजातियां हैं :-मंझिया, गुझू , दौलतबंदी, घटबंदी, सूर्यवंशी तथा खेरी 

➧ खरवार में सामाजिक स्तर का मुख्य निर्धारक तत्व भू-संपदा है

 खरवारों में घूमकुरिया (युवागृह) जैसी संस्था नहीं पाई जाती है 

➧ इस जनजाति का परिवार पितृसत्तात्मक तथा पितृवंशीय होता है

➧ खरवार जनजाति में बाल विवाह को श्रेष्ठ माना जाता है

➧ सामाजिक व्यवस्था से संबंधित विभिन्न नामकरण :-

(i) विधवा पुनर्विवाह - सगाई 

(ii) ग्राम पंचायत  -  बैठेकी 

(iii) ग्राम पंचायत प्रमुख  - मुख्या या बैगा 

(iv) चार गांव की पंचायत - चट्टी 

(v) 5 गांव की पंचायत  - पचौरा 

(vi) 7 गांव की पंचायत - सचौरा 

➧ इस जनजाति के पुरुष सदस्य सामान्यत: घुटने तक धोती, बंडी एवं सर पर पगड़ी तथा महिलाएँ साड़ी पहनती  हैं 

 इस जनजाति के प्रमुख पर्व सरहुल, कर्मा, नवाखानी सोहराय, जितिया, दुर्गापूजा, दीपावली, रामनवमी, फागू आदि है 

➧ इस जनजाति में सुबह के खाना को 'लुकमा', दोपहर के भोजन को 'बियारी' तथा रात के खाने 'कलेवा' कहा जाता है

➧ आर्थिक व्यवस्था 

➧ खरवार जनजाति का मुख्य पेशा कृषि है

➧ इनका परंपरागत पेशा खेर वृक्ष से कत्था बनाना था 

➧ धार्मिक व्यवस्था

➧ खरवार जनजाति के सबसे प्रमुख देवता सींगबोंगा है 

➧ खरवार जनजाति में पाहन या वेगा (धार्मिक प्रधान) की सहायता से बलि चढ़ाई जाती है 

➧ घोर संकट या बीमारी के समय जनजाति ओझा या मति की सहायता लेती हैं

➧ इस जनजाति में जादू-टोना करने वाले व्यक्ति को माटी कहा जाता है 

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Mahali Janjati Ka Samanya Parichay (माहली जनजाति का सामान्य परिचय)

Mahali Janjati Ka Samanya Parichay

➧ इस जनजाति का संबंध द्रविड़ परिवार से है

➧ इस जनजाति का झारखंड में सकेन्द्रण  मुख्यत: सिंहभूम क्षेत्र, रांची, गुमला, सिमडेगा, लोहरदगा, हजारीबाग बोकारो, धनबाद और संथाल परगना क्षेत्र में है

माहली जनजाति का सामान्य परिचय

➧ समाज एवं संस्कृति 

➧ इस जनजाति की नातेदारी व्यवस्था हिंदू समाज के समान है

 इस जनजाति के सामाजिक व्यवस्था पितृसत्तात्मक है

 इस जनजाति में कुल 16 गोत्र पाए जाते हैं

 रिजले द्वारा माहली जनजाति को निम्न पांच उप जातियों में विभक्त किया गया है :-

(i) बांस फोड़ माहली - बांस से टोकरी बनाने वाली (तुरी जनजाति भी टोकरी बनाने का कार्य करती है)

(ii) पातर माहली  -  खेती कार्य (तमाड़ क्षेत्र में सकेन्द्रण) 

(iii) तांती माहली  -  पालकी ढोने वाले 

(iv) सोलंकी माहली -  मजदूरी  व खेती कार्य 

(v) माहली मुंडा  -  मजदूरी और खेती कार्य 

➧ इनका विवाह टोटमवादी वंशों में होता है

➧ माहली जनजाति में बाल विवाह प्रचलित है 

➧ इस जनजाति में वधू मूल्य को पोन टाका तथा तथा जातीय पंचायत को परगैनत कहा जाता है

➧ इनके प्रमुख त्यौहार सुरजी देवी पूजा, मनसा पूजा, टुसू पर्व दिवाली आदि हैं

➧ आर्थिक व्यवस्था 

➧ यह एक शिल्पी जनजाति है जो बांस कला में पारंगत है 

➧ यह जनजाति बांस की टोकरी व ढोल बनाने में पारंगत है

इस जनजाति को सरल कारीगर/शिल्पकार के रूप में वर्गीकृत किया जाता है

➧ धार्मिक व्यवस्था 

➧ इनकी मुख्य देवी सुरजी देवी है बड़ पहाड़ी तथा मनसा देवी इनके अन्य देवता है

 इस जनजाति के लोग पुरखों की पूजा गोड़म साकी (बूढ़ा-बूढ़ी पर्व) के रूप में करते हैं 

➧ सिल्ली क्षेत्र में इस जनजाति द्वारा की जाने वाली विशेष पूजा को 'उलुर पूजा' कहा जाता है 

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Bhumij Janjati Ka Samanya Parichay (भूमिज की जनजाति का सामान्य परिचय)

Bhumij Janjati Ka Samanya Parichay

➧ झारखंड के हजारीबाग, रांची और धनबाद जिला में इनका सर्वाधिक संकेंद्रण पाया जाता है

➧ इस जनजाति की प्रजाति प्रोटो-ऑस्ट्रोलॉयड है

भूमिज की जनजाति का सामान्य परिचय

➧ इनको 'धनबाद के सरदार' के नाम से भी जाना जाता है

➧ घने जंगलों में रहने के कारण मुगल काल में भूमिज को चुहाड़ उपनाम से जाना जाता था

 इनकी भाषा मुंडारी (ऑस्ट्रो-एशियाटिक) है तथा इनकी भाषा पर बंगला व सदानी भाषा का प्रभाव है

 समाज एवं संस्कृति 

➧ इस जनजाति का समाज पितृसत्तात्मक होता है 

➧ इस जनजाति में कुल 4 गोत्र (पत्ती, जेयोला, गुल्गु , हेम्ब्रोम) पाए जाते हैं

➧ इस जनजाति में सगोत्रीय विवाह निषिद्ध होता है 

इस जनजाति में प्रसिद्ध प्रचलित विवाह आयोजित विवाह है इसके अतिरिक्त इसमें अपहरण विवाह, गोलट  विवाह, सेवा विवाह, राजी-खुशी विवाह आदि भी प्रचलित है

➧ इस जनजाति में तलाक की प्रथा पाई जाती है तथा पति द्वारा पत्ते को फाड़कर टुकड़े करने पर तलाक हो जाता है 

➧ इस जनजाति की जातीय पंचायत का मुखिया प्रधान कहलाता है

 इनके प्रमुख त्योहार धुला पूजा, चेत पूजा, काली पूजा, गोराई ठाकुर पूजा, ग्राम ठाकुर पूजा, करम पूजा आदि हैं

➧ आर्थिक व्यवस्था

➧ इस जनजाति का प्रमुख पेशा कृषि कार्य है

➧ यह जनजाति अच्छी काश्तकार है

➧ धार्मिक व्यवस्था

➧ इनके सर्वोच्च देवता ग्राम ठाकुर और गोराई ठाकुर है

 इनके धार्मिक प्रधान को लाया कहा जाता है

 इस जनजाति में श्राद्ध संस्कारों को कमावत कहा जाता है

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Baiga Janjati Ka Samanya Parichay (बैगा जनजाति का सामान्य परिचय)

Baiga Janjati Ka Samanya Parichay

➧ बैगा झारखंड की एक उपेक्षित जनजाति है

➧ इस जनजाति का संबंध द्रविड़ परिवार से है

➧ इनका संकेन्द्रण मुख्यत: पलामू प्रमंडल, रांची, हजारीबाग और सिंहभूम क्षेत्र में है 

बैगा जनजाति का सामान्य परिचय

➧ समाज और संस्कृति 

➧ इस जनजाति के रीति-रिवाज खरवार जनजाति के समान है

➧ इसमें संयुक्त परिवार की व्यवस्था पाई जाती है

➧ बैगा की सामुदायिक पंचायत का मुखिया मुकददम कहलाता है

➧ करमा नृत्य इस जनजाति का प्रमुख नृत्य है झरपुट, विमला आदि अन्य नृत्य है इस जनजाति में पुरुषों द्वारा 'दशन' या 'सैला' नृत्य तथा स्त्रियों द्वारा 'रीना' नृत्य भी किया जाता है

➧ इनके वर्ष का प्रथम पर्व 'चरेता' है, जो बच्चों को बाल भोज देकर मनाया जाता है

➧ इस जनजाति में 9 वर्षों पर 'रसनावा' नामक पर्व का आयोजन किया जाता है इसके अतिरिक्त सरहुल, दशहरा दिवाली, होली आदि पर्व भी प्रचलित है 

 आर्थिक व्यवस्था 

➧ इनका प्रमुख पैशा वैध कार्य तथा तंत्र -मंत्र है इसके अतिरिक्त ये खाद्य संग्रह व मजदूरी का कार्य भी करते हैं

 यह पेड़-पौधों के अच्छे जानकार होते हैं

➧ धार्मिक व्यवस्था

➧ इस जनजाति का प्रधान देवता बड़ा देव है जिसका निवास साल वृक्ष में माना जाता है

➧ यह जनजाति बाघ को पवित्र पशु मानती है 

➧ इसमें सबसे अधिक प्रचलित विवाह मंगनी है साथ ही लामसेना (सेवा विवाह), पैठुल विवाह (ढुकु विवाह) तथा उठावा विवाह (राजी-खुशी विवाह) का भी प्रचलन है 

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