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Wednesday, January 20, 2021

Jharkhand Karmchari Chayan Aayog (झारखंड कर्मचारी चयन आयोग)

झारखंड कर्मचारी चयन आयोग

(Jharkhand Karmchari Chayan Aayog)



झारखंड सरकार न अराजपत्रित पदों पर नियुक्ति हेतु वर्ष 2011 में झारखंड कर्मचारी चयन आयोग का गठन किया है 

जिसके प्रथम अध्यक्ष भारतीय वन सेवा के सेवानिवृत्ति अधिकारी सी.आर. सहाय थे। इसका मुख्यालय रांची में है

इस आयोग का गठन झारखंड कर्मचारी चयन आयोग अधिनियम 2008 के अंतर्गत किया गया है 

आयोग

आयोग राज्य सरकार के अधीन वर्ग 'ग' के सभी पदों एवं वर्ग 'ख' के अराजपत्रित सभी सामान्य/प्रावैधिक/अप्रवैधिक सेवाओ/संवर्गों के  पदों  पर जिन पर आंशिक या पूर्ण रूप से सीधी  नियुक्ति का प्रावधान हो अथवा राज्य सरकार द्वारा समय-समय पर निर्धारित पदों पर नियुक्ति हेतु अनुशंसा करती है 

अध्यक्ष

अध्यक्ष :- राज्य सरकार द्वारा नियुक्त अखिल भारतीय सेवा/अन्यून पंक्ति के कार्यरत या सेवानिवृत्त एक पदाधिकारी

सदस्य

सदस्य :- राज्य सरकार द्वारा नियुक्त 37400-67000/- ग्रेड पे-8700 (अथवा समय-समय पर यथा पुनरीक्षित समरूप वेतनमान प्रत्येक सदस्य को देय) से अन्यून वेतनमान के कार्यरत अथवा सेवानिवृत्त अखिल भारतीय सेवा/सेना के दो पदाधिकारी होते हैं

कार्यकाल

कार्यकाल:- आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्य अपने पदग्रहण की तारीख से सामान्यत: 5 वर्ष की अवधि तक होता है

मुख्यालय

मुख्यालय :- आयोग का मुख्यालय रांची में स्थित है। यह कार्मिक, प्रशासनिक सुधार तथा राजभाषा विभाग आयोग का प्रशासी  विभाग है इसका संचालन नामकुम स्थित कार्यालय भवन से होता है

चयन

चयन :- राज्य सरकार के पूर्णनुमोदन से आयोग, विभिन्न सेवाओं/ पदों के लिए चयन की प्रक्रिया का संचालन करता है

आयोग के कार्यकाल और आयोग के कार्य संपादन में होने वाले संपूर्ण व्यय राज्य सरकार द्वारा वहन किया जाता है

आयोग, विभिन्न परीक्षाओं/ चयन के आयोजनों   के लिए अभ्यर्थियों से शुल्क प्राप्त कर सकेगा जो आयोग द्वारा राज्य कोषागार में जमा किया जाता है

आयोग स्नातक स्तरीय परीक्षाओं के जरिए 

1) प्रखंड आपूर्ति पदाधिकारी 

2) प्रखंड कल्याण पदाधिकारी 

3) सहकारिता प्रसार पदाधिकारी

4) सचिवालय सहायक

5) अंचल निरीक्षक

6) श्रम प्रवर्तन पदाधिकारी 

7) प्रखंड कृषि पदाधिकारी

8) सहायक अनुसंधान पदाधिकारी

9) पौधा संरक्षण निरीक्षक

10) संख्यांकी सहायक 

11) मतस्य प्रसार पर्येवेक्षक 

12) वरीय अंकेक्षक

13) उद्योग विस्तार पदाधिकारी

14) भूतात्विक विश्लेषक, पदों पर नियुक्ति की अनुशंसा  करती है

इसके अतिरिक्त इंटरमीडिएट स्तर की प्रतियोगिता परीक्षा से लेकर

1) राजस्व कर्मचारी, 

2) अमीन 

3) पंचायत सचिव

4) निम्नवर्गीय लिपिक आदि की नियुक्ति की अनुशंसा की जाती है

आशुलिपिकीय सेवा के अंतर्गत 

1) आशुलिपिक  

2) सहायक जेलर

3) कनीय अभियंता,

4) सिपाही

5) फायर स्टेशन पदाधिकारी

6) उत्पाद अवर निरीक्षक,

7) उत्पाद सहायक अवर निरीक्षक आदि की नियुक्ति भी आयोग की अनुशंसा पर की जाती है

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Tuesday, January 19, 2021

Jharkhand Ki Vit Vyavastha(झारखंड की वित्त व्यवस्था)


झारखंड की वित्त व्यवस्था

(Jharkhand Ki Vit Vyavastha)



भारत जैसे विकासशील राष्ट्र की अर्थव्यवस्था में 

विकास के दो चरण होते हैं:-

1) सर्वजनिक क्षेत्र एवं 

2) निजी क्षेत्र 

➤ये दोनों क्षेत्र मिलाकर ही अर्थव्यवस्था को प्रगति प्रदान करते हैं

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत  ने आर्थिक नियोजन को अपनाया 

इसका अर्थ यह था कि राज्य उत्पादन वितरण तथा उपभोक्ता के स्तर तथा तरीकों को निर्धारण करने में सक्रिय भूमिका निभाते हुए निजी संपत्ति तथा बाजार की संस्थाओं की कद्र भी करेगा

हमारे संविधान ने बाजार को अपना कार्य करने की स्वतंत्रता दी है लेकिन साथ ही इसने राज्य को  बाजार की कार्यप्रणाली में हस्तक्षेप करने का अधिकार भी दिया है 

1991 में नरसिम्हा राव की सरकार ने राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक अर्थव्यवस्था से जोड़ने का कार्य किया जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थितियां भारत के लिए अनुकूल होती गई  

राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था तथा संवैधानिक प्रावधानों के तहत ही झारखंड की वित्त व्यवस्था भी संचालित होती है

जट प्रक्रिया 

भारतीय संविधान की धारा 202 के अंतर्गत राज्य सरकारों  द्वारा वित्तीय ब्यौरा प्रस्तुत करना अनिवार्य होता है, जिसे वार्षिक वित्तीय वितरण भी कहा जाता है इसे सामान्यतः बजट कहा जाता है

बजट पेश किया जाना 

आगामी वित्तीय वर्ष के लिए राज्य की सभी प्राप्तियों  और विवरणों को सामान्य चर्चा के लिए विधान सभा के समक्ष राज्यपाल के निर्देश पर राज्य के वित्तमंत्री विधान सभा में बजट प्रस्तुत करते हैंइससे बजट 'प्रस्तुतीकरण' कहा जाता है


बजट भाषण समाप्त होने के बाद विधानसभा की बैठक अगले दिन के लिए स्थगित हो जाती है। प्राय: उस दिन आगे कोई कामकाज नहीं होता है

बजट प्रस्तुत करने के दिन बजट पर कोई चर्चा नहीं होती है 

बजट का वितरण 

वित्तमंत्री के भाषण के बाद बजट विधानसभा सचिवालय द्वारा सदस्यों को तथा पत्रकार दीर्घा में प्रवेश पाने वाले पत्रकारों में वितरित कर दिया जाता है 

बजट पर चर्चा 


उस दिन बजट पर कोई चर्चा नहीं होती है, जिस दिन बजट विधानसभा में प्रस्तुत किया जाता है

बजट पर दो प्रक्रमों में चर्चा की जाती है पहले संपूर्ण बजट पर सामान्य चर्चा होती हैसामान्यत: चर्चा अध्यक्ष द्वारा निर्धारित 3 से 4 दिनों तक चलती है

इसमें बजट की मुख्य-मुख्य बातों, इसके सिद्धांतों तथा नीतियों पर चर्चा होती है

सामान्य चर्चा के बाद अनुदानों  की मांगों पर चर्चा तथा मतदान का सिलसिला शुरू होता है

चर्चा के लिए समय तय करना 

बजट पर सामान्य  चर्चा, अनुदान-मांगों पर मतदान, विनियोग विधेयक एवं वित्त विधेयक को पास करने की समस्त प्रक्रिया को निश्चित समय में पूरा किया जाना होता है

➤मांगों पर मतदान के लिए निर्धारित पूरे समय का विभाजन विभिन्न मांगों के लिए अथवा विभिन्न मंत्रियों की मांगों के लिए अलग-अलग से किया जाता है

बजट पर सामान्य चर्चा

बजट पर सामान्य चर्चा के दौरान विधानसभा संपूर्ण बजट पर या उसमें निहित सिद्धांतों के किसी प्रश्न पर चर्चा करने के लिए स्वतंत्र होती है, किंतु इस मौके पर कोई अन्य प्रस्ताव प्रस्तुत नहीं किया जा सकता और ना ही बजट मतदान के लिए रखा जा सकता है

चर्चा का विस्तार सामान्य योजनाओं और बजट के ढांचे का परीक्षण, कर लगाने की नीति तक सीमित होनी चाहिए 

वित्त मंत्री को बहस के अंत में उत्तर देने का अधिकार होता है

अनुदान मांगों पर चर्चा एवं मतदान

अनुदान की मांगों पर मतदान के लिए अध्यक्ष द्वारा निर्धारित समय के दौरान चर्चा का विस्तार उस विषय तक सीमित होना चाहिए, जो प्रभारी मंत्री के प्रशासकीय नियंत्रण में हो

याह सदस्यों के ऊपर निर्भर करता है कि वह किसी विशेष विभाग द्वारा अनुसरण की जाने वाली नीति का अनुमोदन करें या विभागीय प्रशासन में मितव्ययिता के उपाय बताएं या विभाग का ध्यान विशेष स्थानीय शिकायतों की ओर केंद्रित करें

➤इस प्रक्रम पर किसी नुदान की मांग को कम करने हेतु कटौती प्रस्ताव पेश किये जा सकता है, किंतु किसी मांगों में कमी चाहने वाले प्रस्ताव में संशोधन स्वीकार योग्य नहीं होते
 

कटौती प्रस्ताव

अनुदान की मांग को कम करने के लिए लाए जाने वाले प्रस्ताव को कटौती प्रस्ताव कहा जाता है

कटौती प्रस्तावों उद्देश्य उसमें निहित विषय की ओर सदन का ध्यान आकर्षित करना होता है

कटौती प्रस्तावों की सूचना मांगों पर मतदान के लिए नियत प्रथम दिन से सामान्यत: 4 दिन पूर्व निर्धारित समय से पहले विधानसभा सचिवालय में दी जानी चाहिए

लेखानुदान

बजट के पारित होने तक सरकारी खर्चों की वैकल्पिक व्यवस्था करने के लिए विधानसभा को लेखानुदान के रूप में अनुदानों  की स्वीकृति का अधिकार है

लेखानुदान अनुदान के रूप में जो राशि स्वीकृत कराई जाती है, वह उस वित्तीय वर्ष के एक भाग के खर्चे की पूर्ति के लिए आवश्यक होती है

संबंधित वित्तीय वर्ष के अनुमानित व्यय के लिए सामान्यत: लेखानुदान 3 या 4 माह के लिए भी पास किया जा सकता है

अनुपूरक /अतिरिक्त अनुदानों  पर चर्चा व्याप्ति 

संपूर्ण अनुदान को कम करने के लिए जिन मदों से मिलकर अनुदान बना हो, उनको कम करने या निकाल देने के लिए संशोधन के रूप में कटौती प्रस्ताव प्रस्तुत किए जा सकते हैं 

अनुपूरक मांगों पर चर्चा के समय बहस मात्र शामिल की गई मदों के संबंध में ही सीमित रहती है इस अवसर पर मूल मांगो और नीतिगत विषयों पर सामान्य चर्चा संभव नहीं होती

मुख्य बजट में सम्मिलित योजनाओं के बारे में अन्तर्निहित  सिद्धांतों के विषय में चर्चा नहीं उठाई जाती। इस मौके पर सदस्य अनुपूरक मांगों की आवश्यकता के बारे में इंगित कर सकते हैं 

सांकेतिक अनुदान 

जब किसी नई सेवा पर प्रस्तावित व्यय के लिए पुनर्विनियोग द्वारा धन उपलब्ध कराना हो तो सांकेतिक राशि के अनुदान  की  मांग विधानसभा में मतदान के लिए रखी जा सकती है  

विनियोग विधेयक 

राज्य की संचित निधि में से कोई भी राशि तब तक नहीं निकाली जा सकती,  जब तक कि उसके संबंध में विनियोग विधेयक पारित नहीं कर लिया जाता

विधानसभा द्वारा अनुदान की मांगों को पारित करने के तुरंत बाद सभी धनराशियों  को राज्य की संचित निधि से विनियोग किए जाने की व्यवस्था के लिए विनियोग विधेयक पुन:स्थापित किया जाता है

विधानसभा में विनियोग विधेयक के पुन:स्थापित होने के बाद अध्यक्ष विधेयक के प्रक्रम को पूरा करने के लिए विनिश्चित करता है

विनियोग विधेयक पर वाद-विवाद उन अनुदानों  में निहित लोक महत्व के विषयों या प्रशासकीय नीति तक सीमित रहता है, जो उस समय ना उठाए गए हों और जो अनुदानों  की मांगों पर विचार करते समय पहले उठायें  न जा चुके हों

वाद-विवाद की पुनरावृति रोकने के लिए अध्यक्ष चाहे तो विनियोग विधेयक पर चर्चा में भाग लेने के लिए इच्छुक सदस्यों से कह सकता है कि वह पहले उन विशिष्ट विषयों की सूची सूचना दें, जिन्हें वे उठाना चाहते हैं

अध्यक्ष वैसे विषयों को उठाए जाने की अनुमति देने से इंकार कर सकता है, जो उनके विचार में पुनरावृत्ति हों, जो अनुदानों  की मांग पर चर्चा के समय उठायी जा चुकी हों  या जो समुचित लोक महत्व की न हों
 

अध्यक्ष की शक्तियां

नियमों के अधीन अध्यक्ष द्वारा प्रयोग की जाने वाली शक्तियों  के अतिरिक्त अध्यक्ष उन सभी शक्तियों का प्रयोग कर सकता है, जो समस्त कार्य को समय पर पूरा करने के लिए आवश्यक हों

राज्यों के राजस्व स्त्रोत

1) प्रति व्यक्ति कर 
2) कृषि-भूमि, उत्तराधिकारी संबंधी शुल्क
3) राज्यों  में उत्पादित या निर्मित शराब, अफीम आदि मादक द्रव्यों पर उत्पादन कर
4) कृषि भूमि पर संपदा शुल्क
5) न्यायालयों द्वारा लिए जाने वाले मूल्य को छोड़कर राज्य सूची में सम्मिलित विषयों पर मूल्य
6) भू राजस्व
7) संघ सूची में वर्णित लेखों को छोड़कर अन्य लेखों पर मुद्रांक मूल्य 
8) कृषि आय पर कर 
9) भूमि और भवनों पर कर 
10) खनिज पदार्थों के विकास के लिए निश्चित सीमा के अधीन खनन अधिकारों पर कर 
11) बिजली के उपभोग तथा विक्रय पर कर 
12) स्थानीय क्षेत्र में उपभोग, प्रयोग तथा विक्रय के लिए लायी गयी वस्तुओं पर कर 
13) समाचार-पत्रों को छोड़कर अन्य वस्तुओं के क्रय तथा विक्रय  मूल्य पर कर 
14) समाचार पत्रों में प्रकाशित होने वाले विज्ञापनों को छोड़कर अन्य विज्ञापनों पर कर 
15) सड़कों तथा अंतर्देशीय जलमार्गों  से ले जाया जाने वाला माल तथा यात्रियों पर कर 
16) वाहनों पर कर 
17) पशुओं तथा नौकाओं पर कर 
18) व्यवसायों, आजीविकाओं  गांव तथा नौकरियों पर कर
19) विलासिता की वस्तुओं पर कर इनमें मनोरंजन तथा जुआ भी शामिल है
20) चुंगी करपर कर 
14) समाचार पत्रों में प्रकाशित होने वाले विज्ञापनों को छोड़कर अन्य विज्ञापनों पर कर 
15) सड़कों तथा अंतर्देशीय जलमार्गों  से ले जाया जाने वाला माल तथा यात्रियों पर कर 
16) वाहनों पर कर 
17) पशुओं तथा नौकाओं पर कर 
18) व्यवसायों, आजीविकाओं  गांव तथा नौकरियों पर कर
19) विलासिता की वस्तुओं पर कर इनमें मनोरंजन तथा जुआ भी शामिल है
20) चुंगी कर
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Monday, January 18, 2021

Jharkhand Ki Chitrakala (झारखंड की चित्रकला/चित्रशैली)

Jharkhand Ki Chitrakala


Jharkhand Ki Chitrakala (झारखंड की चित्रकला/चित्रशैली)

झारखंड की चित्रकला और उसकी प्रमुख शैलियाँ

➤झारखंड की जनजातियों में चित्रकला उनकी भावना के उद्गार का एक माध्यम है। 

जनजातियों की कला का प्रेरणा स्रोत उनके आस-पास का प्राकृतिक वातावरण है 

जनजातियों के चित्रकला एवं शिल्पकला उनकी सामाजिक मान्यताओं, रीति-रिवाजों संस्कृति आदि को प्रतिबिंबित करती है 

सोहराय चित्रकला

सोहराय जनजातियों की एक प्रसिद्ध स्थानीय चित्रकला शैली है

यह उनके प्रसिद्ध पर्व सोहराय से जुड़ी शैली है

इस कला में जंगली जीव-जंतुओं, पक्षियों और पेड़-पौधों को अंकित किया जाता है

यह चित्रकारी वर्षा ऋतु के बाद घरों की लिपाई-पुताई से प्रारंभ होता है

इस चित्रकारी में कला के देवता प्रजापति या पशुपति का चित्रण मिलता है तथा पशुपति का सांड की पीठ पर खड़ा चित्रण किया जाता है

➤'मंझू  सोहराई'  तथा 'कुर्मी सोहराय' इस चित्रकला की दो प्रमुख शैलियाँ  हैं 

यह चित्रकला हजारीबाग जिले में अत्यंत प्रसिद्ध है

सोहराय और कोहबर चित्रकला को 2020 में (भौगोलिक संकेतक) प्रदान किया गया है 

➤यह झारखंड में किसी भी श्रेणी में प्राप्त होने वाला प्रथम जी आई टैग है  

इसके लिए सोहराय कला विकास सहयोगी समिति, हजारीबाग द्वारा आवेदन दिया गया था

जादूपटिया चित्रकला 

यह संथाल जनजाति की सर्वाधिक मशहूर  लोक चित्रकला शैली रही है, जो अब लगभग समाप्त हो चुकी है 

यह शैली संथालों  की सामाजिक, धार्मिक, रीति-रिवाजों और मान्यताओं को उकेरती है 

➤इन चित्रों की रचना करने वाले को संथाली भाषा में जादो  कहा जाता है

जादो  (चित्रकार) एवं पटिया (कागज या कपड़ा के छोटे-छोटे टुकड़े) को जोड़कर बनाए जाने वाला चित्र फलक है

इस चित्रकला में कागज के छोटे-छोटे टुकड़े को जोड़कर निर्मित 15 से 20 फीट चौड़े पटो पर चित्रकारी की जाती है

प्रत्येक पट  पर 4 से 16 तक चित्र बनाए जाते हैं

इसमें चित्रकारी हेतु मुख्य रूप से लाल, हरा, पीला, भूरा और काले रंगों का प्रयोग होता है 

इसमें बाघ  देवता और जीवन के बाद के दृश्यों का चित्रण किया जाता है

यह चित्रकला दुमका जिले में अत्यंत प्रसिद्ध है 

कोहबर चित्रकला

यह फारसी शब्द कोह (गुफा) तथा हिंदी शब्द वर (दूल्हा अथवा दंपति) से मिलकर बना है, जिसका सामान्य अर्थ है- गुफा में विवाहित जोड़ा 

यह चित्रकारी विवाह के मौसम में जनवरी से जून महीना तक की जाती है

इसमें घर-आंगन में विभिन्न ज्यामितीय आकृतियों में पेड़-पौधों, फूल-पत्तों आदि का चित्रण किया जाता है

बिरहोर जनजाति इस कला में निपुण मानी जाती है

इसमें सिकी  (देवी) का चित्रण मिलता है 

गूंज चित्रकला

गूंज कला में पशुओं,  वन्य तथा पालतू जानवरों एवं वनस्पतियों की तस्वीरें बनाई जाती हैं 

इस चित्रकला के माध्यम से संकटग्रस्त जानवरों को रीति-रिवाजों में दर्शाया जाता है

पईत्कार चित्रकला

यह चित्रकारी आमदुबी (सिंहभूम)  गांव में अत्यंत प्रसिद्ध है, जिसके कारण इस गांव को पईत्कार का गांव भी कहा जाता है

➤इसे झारखंड का स्क्रॉल चित्रकला भी कहते हैं 

यह प्राचीन काल से झारखंड में विद्यमान है कि  माना जाता है कि इसकी शुरुआत सबर जनजाति द्वारा की गई थी

इससे भारत का सबसे पुराना आदिवासी चित्रकला माना जाता है

चित्रकला गरुड़ पुराण में भी मिलती है

झारखंड के अतिरिक्त यह चित्रकला बिहार, उड़ीसा तथा पश्चिम बंगाल में भी लोकप्रिय है 

इस चित्रकला के माध्यम से जनजातियों द्वारा विभिन्न कहानियों तथा स्थानीय रीति का वर्णन किया जाता है 

इसके माध्यम से जीवन के बाद होने वाली घटनाओं का वर्णन किया जाता है

राणा तेली एवं प्रजापति चित्रकला

➤इन तीन चित्रकलाओं का प्रयोग उक्त  तीन उपजातियों द्वारा किया जाता है

इस चित्रकला में पशुपति (भगवान शिव) को पशुओं  एवं पेड़-पौधों के देवता के रूप में प्रदर्शित किया जाता है

इस चित्रकला में धातु के तंतुओं का प्रयोग किया जाता है


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Sunday, January 17, 2021

jharkhand ke lokgeet (झारखंड के लोकगीत)

झारखंड के लोकगीत

Jharkhand Ke Lokgeet


जनजातियों का लोकगीत उनके जीवन पद्धति और सांस्कृतिक धारा का दर्पण है

जनजातीय लोकगीतों में सुख-दुख, हर्ष-विषाद और खुशी-निराशा की झलक मिलती है 

आकर्षक, उत्कंठा, वेदना, आनंद, सुनहरे अतीत की याद, जातीय आदर्श के पालन का आह्वान आदि इनके गीतों के मुख्य विषय होते हैं
 
जनजातियों लोकगीतों को दो भागों में विभाजित किया जाता है

पहला :-महिलाओं के द्वारा गाए जाने वाले लोकगीत, जैसे:-  जनानी , झूमर,  डोमकच, झूमता, अंगनई,  वियाह , झांझइन इत्यादि

दूसरा :- पुरुषों का लोकगीत जिसमें सभी प्रकार के गीत सम्मिलित हैं 

अन्य लोकगीतों में संस्कारगीत, गाथागीत, बीजमैल, सलहेस, दोना  भदरी, पर्वगीत , ऋतुगीत, पेशागीत, जातीयगीत आदि प्रमुख हैं 

संथालों  लोकगीतों  की संख्या बहुत अधिक है 

मौसम के अनुसार संथाली गीतों में दोड, लागेड़े ,सोहराई, मिनसार , बाहा , दसाय ,पतवार आदि प्रमुख है


जनजाति       
लोकगीत 

संथाल:-                           ⧪दोड (विवाहित संबंधी लोकगीत)

                                        विर सेरेन (जंगल लोकगीत) 

                                         सोहराय, लगड़े ,मिनसार, बाहा, दसाय, 

                                         पतवार, रिजा, डाटा, डाहार,मातवार

                                         भिनसार, गोलवारी, धुरु मजाक, रिंजो, झिका आदि                                                                     

मुंडा:-                               जदुर, (सरहुल/बाहा पर्व से संबंधित लोकगीत)

                                         गेना व ओर  जदुर( जदुर लोकगीत के पूरक)

                                        ⧪अडन्दी (विवाहित संबंधी लोकगीत)

                                        ⧪जापी (शिकार संबंधी लोकगीत)

                                        ⧪जरगा, करमा  

हो:-                                 वा (बसंत लोक गीत)

                                       ⧪ हैरो (धान की बुवाई के समय गाया जाने वाला लोकगीत)

                                       नोम नामा ( नया अन्न खाने के अवसर पर 

                                          गाया जाने वाला लोकगीत)

उरांव:-                             सरहुल (बसंत लोक गीत)

                                        जतरा  (सरहुल के बाद गाया जाने वाला लोकगीत)

                                         करमा (जतरा के बाद गाया जाने वाला लोकगीत)

                                        धुरिया, अषाढ़ी, जदुरा , मट्ठा आदि 

प्रमुख लोकगीत व उनके गाए जाने के अवसर 

लोकगीत             गाए जाने का असर 

झांझइन :-                        जन्म  संबंधी संस्कार के अवसर पर स्त्रियों  

                                         द्वारा गाया जाता है 


डइड़धरा :-                      वर्षा ऋतु में देवस्थानों में गाया जाता है 


प्रातकली :-                      इसका प्रदर्शन प्रात:काल किया जाता है 


अधरतिया:-                     इसका प्रदर्शन मध्य रात्रि में किया जाता है


कजली :-                        इसका गायन वर्षा ऋतु में किया जाता है

                                       टुनमुनिया , बारहमास  तथा  झूलागीत 

                                      स्थानीय संगीत के प्रकार है जो कजली की

                                       ही श्रेणी में आते हैं

औंदी:-                           यह गीत विवाह के समय गाया जाता है


अँगनई :-                       यह  स्त्रियों द्वारा गाया जाता है


झूमर:-                           इस गीत को विभिन्न त्योहारों

                                      (जैसे :- जितिया, सोहराई, करमा आदि) के अवसर   

                                      पर झूमर राग में गाया जाता है                         


उदासी तथा पावस :-    यह नृत्यहीन गीत है उदासी गर्मी के समय तथा

                                     पावस  वर्षा  के शुरू में गाया जाता  है                                                              

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Friday, January 15, 2021

Chotanagpur Kashtkari Adhiniyam 1908 Part-1(छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908)

Chotanagpur Kashtkari Adhiniyam 1908 Part-1


छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908

'छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम', का प्रारूप 1903 तक तैयार हो गया था

जिसमें संशोधन एवं परिवर्तन करते हुए 11 नवंबर 1908 को छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908 लागू कर दिया गया

इस अधिनियम को भारतीय परिषद अधिनियम, 1892 की धारा-5 के अधीन गवर्नर जनरल की मंजूरी से अधिनियमित किया गया
 
इस अधिनियम का ब्लू प्रिंट जॉन एच हॉफमैन ने तैयार किया था

इस अधिनियम में कुल 19 अध्याय और 271 धाराएं हैं

अध्यायों का संक्षिप्त विवरण :- 

💥अध्याय-1 में (धारा -1 से धारा-3 तक) 

➤धारा -1  संक्षिप्त नाम तथा प्रसार:-इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम 'छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम', 1908 है।
  
इसका प्रसार उत्तरी छोटानागपुर और दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल में होगा । 

जिसमें वे क्षेत्र या उन क्षेत्रों के भाग भी शामिल होंगे, जिनमें उड़ीसा, बिहार नगर पालिका अधिनियम, 1922 के अधीन कोई नगरपालिका या अधिसूचित क्षेत्र समिति गठित हो या किसी छावनी के भीतर पड़ते  हो। 

➤धारा -2 निरसन:-  अनुसूची 'क' में निर्दिष्ट अधिनियमों  और अधिसूचना को छोटानागपुर प्रमंडल में निरसित किया जाता है
 
अनुसूचित 'ख'  में निर्दिष्ट अधिनियमों  को धनबाद जिले में तथा सिंहभूम में पटमदा, ईचागढ़ , और चांडिल  थानाओ में निरसित किया जाता है 

➤धारा -3 परिभाषाएं :- 

कृषि वर्ष :- वह वर्ष जो किसी स्थानीय क्षेत्र में कृषि कार्य हेतु प्रचलित हो। 

➤भुगुतबन्ध बंधक :-किसी काश्तकार  के हित का उसके काश्तकारी  से -उधार स्वरूप दिए गए धन के भुगतान को बंधक रखने हेतु इस शर्त पर अंतरण, कि उस पर के ब्याजों के साथ उधार- बंधक की कालावधि के दौरान कश्तकारी से होने वाले लाभों से वंचित समझा जाएगा

➤जोत :- रैयत  द्वारा धारित एक या अनेक भूखंड

➤कोड़कर/ कोरकर:- ऐसी बंजर भूमि या जंगली भूमि जिसे भूस्वामी के अतिरिक्त किसी कृषक द्वारा बनाई गयी हो 

भूस्वामी :- वह व्यक्ति जिसने किसी काश्तकार को अपनी जमीन दिया हो 

काश्तकार:- वह व्यक्ति जो किसी अन्य व्यक्ति के अधीन भूमि धारण करता हो तथा उसका लगान चुकाने  का दायी हो। 

काश्तकार के अंतर्गत भूधारक, रैयत तथा खुंटकट्टीदार तीनों को शामिल किया गया है  

लगान :- रैयत द्वारा धारित भूमि के उपयोग या अधिभोग के बदले अपने स्वामी को दिया जाने वाला धन या  वस्तु 

➤जंगल संपत्ति :- के अंतर्गत खड़ी फसल भी आती है

मुंडारी-खुंटकट्टीदारी कश्तकारी से अभिप्रेत है, मुंडारी-खुंटकट्टीदार का  हित 

➤भूघृति (TENURES):-भूधारक का हित इसके अंतर्गत मुंडारी-खुंटकट्टीदारी कश्तकारी नहीं आती है 

➤स्थायी भूघृति :- वंशगत भूघृति 

पुनग्रार्हय भूघृति :- वैसे भूघृति जो परिवार के नर वारिस नहीं होने पर, रैयत के निधन के बाद पुनः भूस्वामी को वापस हो जाए 

ग्राम मुखिया :- किसी ग्राम या ग्राम समूह का मुखिया। चाहे इसे मानकी,  प्रधान, माँझी  या अन्य किसी भी नाम से जाना जाता हो 

स्थायी  बंदोबस्त (परमानेंट सेटेलमेंट):- 1793 इसमें बंगाल, बिहार और उड़ीसा के संबंध में किया गया स्थायी बंदोबस्त 

डिक्री (DECREE) :- सिविल न्यायालय का आदेश

💥अध्याय-2 में कश्तकारों के वर्ग (धारा- 4 से धारा- 8 तक)

➤धारा - 4 कश्तकारों के वर्ग 

कश्तका के अंतर्गत भूधारक (TENURE HOLDERS), रैयत (RAIYAT), दर रैयत तथा मुंडारी खुंटकट्टीदार  को शामिल किया गया है

➤अधिभोगी रैयत (OCCUPANCY RAIYAT) :- वह व्यक्ति जिसे धारित भूमि पर अधिभोग का अधिकार प्राप्त हो 

➤अनधिभोगी रैयत (NON-OCCUPANCY RAIYAT) :-वह व्यक्ति जिसे धारित भूमि पर अधिभोग का अधिकार प्राप्त ना हो 

खुंटकट्टी अधिकार प्राप्त रैयत OCCUPANCY RAIYAT)

धारा - 5  भूधारक :- ऐसे व्यक्ति से है जो अपनी या दूसरे की जमीन खेती कार्य के लिए धारण किए हुए हैं एवं उसका लगान चुकाता हो

धारा -6 रैयत :- रैयत के अंतर्गत वैसे व्यक्ति शामिल है, जिन्हें खेती करने के लिए भूमि धारण करने का अधिकार प्राप्त हो

धारा -7  खुंटकट्टी अधिकारयुक्त रैयत :- वैसे रैयत जो वैसे भूमि पर अधिभोग का अधिकार रखते हों, जिसे उसके मूल प्रवर्तकों या उसकी नर परंपरा के वंशजों द्वारा जंगल में कृषि योग्य भूमि बनाई गई है, उसे खुंटकट्टी अधिकारयुक्त रैयत कहा जाता है 

धारा -8 मुंडारी-खुंटकट्टीदार :-वह मुंडारी जो जंगल भूमि के भागो को जोत में लाने के लिए भूमि का धारण करने का अधिकार अर्जित किया हो, उसे मुंडारी-खुंटकट्टीदा कहा जाता है 

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Thursday, January 14, 2021

Pragaitihasik Kal Me Jharkhand (प्रागैतिहासिक काल में झारखंड)

प्रागैतिहासिक काल में झारखंड

(Pragaitihasik Kal Me Jharkhand)



➤वह काल जिसके लिए कोई लिखित साक्ष्य उपलब्ध नहीं है ,बल्कि पूरी तरह पुरातात्विक साक्ष्यों पर निर्भर रहना पड़ता है उससे प्रागैतिहासिक इतिहासिक काल कहते हैं

प्रागैतिहासिक इतिहासिक

प्रागैतिहासिक काल को तीन भागों में विभाजित किया जाता है

1) पुरापाषाण काल 

2) मध्य पाषाण काल

3) नवपाषाण काल

1) पुरापाषाण काल:-

इसका कालक्रम 25 लाख ईस्वी पूर्व से 10 हजार ईस्वी पूर्व माना जाता है


➤इस काल में कृषि का ज्ञान नहीं था तथा पशुपालन का शुरू नहीं हुआ था

➤इस काल में आग की जानकारी हो चुकी थी,किंतु उसके उपयोग करने का ज्ञान नहीं था 
 
झारखंड में इस काल के अवशेष हजारीबाग, बोकारो ,रांची, देवघर, पश्चिमी सिंहभूम, 

पूर्वी सिंहभूम इत्यादि क्षेत्रों से प्राप्त हुए हैं

हजारीबाग से पाषाण कालीन मानव द्वारा निर्मित पत्थर के औजार मिले हैं

2) मध्य पाषाण काल:-

मध्य पाषाण काल का कालक्रम 10,000 ईसवी पूर्व से 4000 ईसवी पूर्व तक माना जाता है


झारखंड में इस काल के अवशेष दुमका, पलामू, धनबाद , रांची, पश्चिमी सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम आदि क्षेत्रों से मिले हैं

3) नवपाषाण काल:-

नवपाषाण काल का कालक्रम 10,000 ईसवी पूर्व से 1,000 ईसवी पूर्व तक माना जाता है

 इस काल में कृषि की शुरुआत हो चुकी थी 

इस काल में आग के उपयोग करना प्रारंभ कर चुके थे 

झारखंड में इस काल में अवशेष रांची, लोहरदगा, पश्चिमी  सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम, आदि क्षेत्रों से प्राप्त हुए हैं 

छोटानागपुर प्रदेश में इस साल के 12 हस्त कुठार पाए गए हैं

नवपाषाण काल को तीन भागों में विभाजित किया गया है

1) ताम्र पाषाण काल

2) कांस्य युग 

3) लौह युग

1) ताम्र पाषाण काल:- 

➤इसका कालक्रम 4,000 ईस्वी पूर्व  से 1000 ईसवी पूर्व तक माना जाता है

➤यह काल हड़प्पा पूर्व काल, हड़प्पा काल तथा हड़प्पा पश्चात काल तीनों से संबंधित है 

पत्थर के साथ-साथ तांबे का उपयोग होने के कारण इस काल को ताम्र पाषाण काल कहा जाता है

मानव द्वारा प्रयोग की गई प्रथम धातु तांबा ही थी 

झारखंड में इस काल का केंद्र बिंदु सिंहभूम था  

इस काल में असुर,बिरजिया तथा बिरहोर जनजातियां तांबा गलाने तथा उससे संबंधित उपकरण बनाने की कला से परिचित थे 

झारखंड के कई स्थानों से तांबा की कुल्हाड़ी तथा हजारीबाग के बाहरगंडा से तांबे की 49 खानों के अवशेष प्राप्त हुए हैं 

2) कांस्य युग:-

इस युग में तांबे में टिन मिलाकर कांसा निर्मित किया जाता था तथा उससे बने उपकरणों का प्रयोग किया जाता था  

छोटानागपुर क्षेत्र के असुर (झारखंड की प्राचीनतम जनजाति) तथा बिरजिया जनजाति को कांस्य युगीन औजारों का प्रारंभकर्ता  माना जाता है 

3) लौह युग:- 

इस युग में लोहा से बने उपकरणों का प्रयोग किया जाता था।  

झारखंड के असुर तथा बिरजिया जनजाति को लौह  युग से निर्मित औजारों का प्रारम्भकर्ता  माना जाता है। 

असुर तथा बिरजिया  जनजातियों के जनजातियों ने  उत्कृस्ट लौह तकनीकी का विकास किया। 

इस युग में झारखंड का संपर्क सुदूर विदेशी राज्यों से भी था। 

झारखंड में निर्मित लोहे को इस युग में मेसोपोटामिया तक भेजा जाता था,जहां दश्मिक  में इस लोहे से तलवार का निर्माण किया जाता था। 

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Jharkhand Me Sanchar Vyavastha (झारखंड में संचार व्यवस्था)

Jharkhand Me Sanchar Vyavastha

(झारखंड में संचार व्यवस्था)

झारखंड में संचार के मुख्य साधन:- डाक तार, रेडियो,  दूरभाष, दूरदर्शन तथा समाचार पत्र-पत्रिकाएं हैं 

राज्य में आकाशवाणी के पास केंद्र है :- रांची, हजारीबाग, जमशेदपुर, मेदिनीनगर व चाईबासा

इसके मुख्य केंद्र - रांची और जमशेदपुर में है

झारखंड में अभी ऑल इंडिया रेलवे स्टेशन के 13 केंद्र हैं। इसके मुख्य केंद्र - रांची एवं जमशेदपुर में  अन्य आकाशवाणी के स्थानीय रेडियो स्टेशन (एल आर सी) है :-  हजारीबाग, बोकारो, धनबाद, गिरिडीह, मेदनीनगर ,चाईबासा, चतरा ,देवघर,गढ़वा, घाटशिला, गुमला

राज्य में दूरदर्शन का प्रथम केंद्र 1974 (छठी पंचवर्षीय योजना) रांची में स्थापित किया गया

वर्तमान में मेदनीनगर (डालटेनगंज) तथा जमशेदपुर में भी दूरदर्शन केंद्र कार्यरत हैं। 

राज्य में केवल 26 पॉइंट 8% (जनगणना 2011) घरों में टीवी है यह अखिल भारतीय औसत (47. 2%) से बहुत कम है

झारखंड में टीवी कवरेज पूरे भारत के औसत कवरेज का आधा है

राज्य में इंटरनेट का प्रचलन भी बहुत कम है। यहां प्रति एक लाख आबादी पर इंटरनेट कनेक्शनो की संख्या 151 है, जो कि राष्ट्रीय औसत 1919 से काफी कम है

राज्य में आधुनिक पत्रकारिता का आरंभ जी0 एल0 चर्च, रांची के द्वारा 1 दिसंबर 1872 से 'घर-बंधु' नामक पत्रिका प्रकाशित होने के साथ हुआ

झारखंड का पहला दैनिक 'राष्ट्रीय भाषा' 1950 से प्रकाशित होना शुरू हुआ

15 अगस्त 1963  से सप्ताहिक रांची एक्सप्रेस का प्रकाशन आरंभ हुआ

वर्तमान झारखंड में कई पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित हो रहे हैं

झारखंड में कुल डाकघरों की संख्या 3094 है, जो प्रति एक लाख लोगों पर डाकघरों की संख्या 1 पॉइंट 06  है, जबकि भारत में यह संख्या 1.50 है

आधारभूत संरचना के क्षेत्र में संचार सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है

राज्य प्रशासन ने संचार व्यवस्था के महत्व को देखते हुए इसे सुदृढ़ करने के लिए कई कदम उठाए हैं

झारनेट:-

झारनेट :- सरकार द्वारा 'झारखंड स्टेट वाइड एरिया नेटवर्क' (Jharkhand State Wide Area Network) की स्थापना 2005-06 में की गई 

वर्तमान में झारनेट से सभी जिला मुख्यालयों, 45 अनुमंडल एवं 264 प्रखंडों में कनेक्टिविटी उपलब्ध कराई गई है 

ई-ऑफिस:-

➤ई-ऑफिस:-  झारखंड सरकार ऑफिस को पेपरलेस  करने के उद्देश्य से ई-ऑफिस web-application झारखंड के सरकारी विभागों में कार्यों के अनुरूप कस्टमाइज तथा विकसित किया गया है 

इस परियोजना हेतु सूचना प्रौद्योगिकी एवं ई-गवर्नेंस विभाग नोडल विभाग है तथा जैप -आई टी क्रियान्वयन अभिकर्त्ता (Implementing Agency) है 

जैप -आई टी का गठन 29 मार्च 2004 को किया गया है 

ई-मुलाकात :- 

ई-मुलाकात :- यातायात के  लागत, ईंधन, व्यय  शुल्क इत्यादि में व्यय  को कम करने के लिए ई-मुलाकात की प्रणाली विकसित की गई है

इसमें वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से सुनवाई की जाती है

ई-प्रोक्योरमेंट :- 

ई-प्रोक्योरमेंट:- राज्य में विभिन्न प्रकार की निविदाओं की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने  के लिए पांच लाख और इससे ऊपर की  निविदाओं के लिए वर्तमान में 39 विभागों द्वारा प्रोक्योरमेंट की व्यवस्था अपनाई गई है

झारखण्ड स्टेट डाटा सेंटर:-

इसका निर्माण त्रिस्तरीय संरचनात्मक और क्लाउड आधारित है 

राज्य में स्टेट डाटा सेंटर 1 अगस्त 2016  से कार्यरत है मेसर्स ऑरेंज को सौंपा गया है  

इसके संचालन की देख-रेख एन.आई.सी. द्वारा गठित दल द्वारा की जाती है, जबकि ऑडिट का कार्य डेलोंइट द्वारा किया जाता है 

सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क ऑफ इंडिया(STPI):-

सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क ऑफ इंडिया:- झारखंड राज्य में सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में  सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री को उत्कृष्ट स्तर की आधारभूत संरचना प्रदान करने के लिए इस पार्क की स्थापना की जा रही है

इसके उद्देश्यों को पूरा करने हेतु जमशेदपुर एवं सिंदरी में सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क ऑफ़ इंडिया का निर्माण कार्य शुरू हो गया है

इस कार्य के लिए 'जफ्रा' को परामर्शी (Consultant) के रूप में नियुक्त किया गया है

एम्.एस.डी.जी.

एम्.एस.डी.जी.:- राज्य सरकार द्वारा भारत सरकार की सहायता से इस परियोजना की शुरुआत की गई है। 

इसमें आम नागरिकों की सुविधा के लिए दस्तावेजों को अपलोड किया गया है तथा आठ प्रकार के ई-फॉर्म्स  को शामिल किया गया है

कॉमन सर्विस सेंटर

कॉमन सर्विस सेंटर :- राज्य में 4460 ग्रामीण क्षेत्र एवं 233 शहरी क्षेत्र में कॉमन सर्विस सेंटर की स्थापना की गई है 

राज्य की 4562 ग्राम पंचायतों में एक-एक प्रज्ञा केंद्र स्थापित एवं संचालित किए जा रहे हैं 

पेमेंट गेटवे

पेमेंट गेटवे :- झारखंड सरकार द्वारा नागरिकों को सुगम, संवेदनशील, पारदर्शी और कठिनाई रहित सेवा उपलब्ध कराने के लिए ऑनलाइन भुगतान की व्यवस्था वर्ष 2013 से की गई है

इसका मुख्य उद्देश्य है कि नागरिक अपना कर, शुल्क अथवा सेवाओं के लिए उपेक्षित भुगतान भी घर बैठे या निकटतम प्रज्ञा केंद्रों इत्यादि के माध्यम से कर पाएं

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