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Friday, June 11, 2021

Jharkhand Me Van Aur Jantu Sanrakshan Kary (झारखंड में वन और जन्तु संरक्षण कार्य)

Jharkhand Me Jantu Sanrakshan Kary

झारखंड में संचालित वन एवं वन्य जीवों के संरक्षण कार्यक्रम 

कार्यक्रम का नाम                        प्रमुख विशेषताएँ 

1- पलामू व्याघ्र परियोजना :- यह केंद्र प्रायोजित योजना है इसमें पहले शत-प्रतिशत व्यय  केंद्र सरकार द्वारा किया जाता था परंतु वर्तमान समय में इसमें केंद्र और राज्य की हिस्सेदारी 60:40 के अनुपात में है

झारखंड में वन और जन्तु संरक्षण कार्य

2- ग्रीन इंडिया मिशन  :-  यह केंद्र प्रायोजित योजना है इसमें केंद्र राज्य की हिस्सेदारी 60:40 के अनुपात में है यह भारत सरकार के नेशनल एक्शन प्लान ऑन क्लाइमेट चेंज के मिशन में से एक है। 

 3- वन-प्राणी पर्यावास की समेकित विकास योजना :- यह केंद्र प्रायोजित योजना है इसमें केंद्र एवं राज्य की हिस्सेदारी 60:40 के अनुपात में है इस योजना में राज्य में स्थित एक राष्ट्रीय उद्यान तथा 11 वन्य जीव अभ्यारण्यों  के विकास एवं उनके रखरखाव का कार्य किया जा रहा है 

4- इंटेसिफिकेशन ऑफ फॉरेस्ट मैनेजमेंट योजना :-यह केंद्र प्रायोजित योजना है इसमें केंद्र और राज्य की हिस्सेदारी 60:40 के अनुपात में है इस योजना में वनों में अग्नि सुरक्षा, सीमांकन, सर्वे  और वन सीमा स्तंभ का निर्माण किया जा रहा है

5- राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम :- यह केंद्र प्रायोजित योजना है इसमें केंद्र एवं राज्य की हिस्सेदारी 60:40 के अनुपात में है 

6- हाथी परियोजना :-- यह केंद्र प्रायोजित योजना है इसमें केंद्र और राज्य की हिस्सेदारी 60:40 के अनुपात में हैइस योजना के अंतर्गत सिंहभूम गज आरक्ष तथा राज्य के अन्य क्षेत्रों में हाथियों के पर्यावास का विकास और हाथी कॉरिडोर विकसित करने का कार्य किया जा रहा है 

7- नेशनल प्लान फॉर कंजवर्शन ऑफ एक्वाटिक इको सिस्टम :- यह केंद्र प्रायोजित योजना है इसमें केंद्र और राज्य की हिस्सेदारी 60:40 के अनुपात में है इस योजना के अंतर्गत साहिबगंज स्थित उधवा जल पक्षी अभयारण्य तथा राज्य के अन्य वेटलैंड के संरक्षण एवं विकास संबंधी कार्य किए जा रहे हैं 

8- वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग :- इसके नियंत्रण में राज्य में अवस्थित एक राष्ट्रीय उद्यान, 1 गज परियोजना तथा 11 वन्यजीव अभयारण्य हैं इन वन्यजीव क्षेत्रों के अंतर्गत अक्सर वन्यजीवों के अवैध शिकार तथा उनके अंगों का अवैध व्यापार होता रहता है, अतः विभाग इन पर प्रभावी रूप से नियंत्रण स्थापित करने हेतु वन्य प्राणी अपराध नियंत्रण प्रकोष्ठ गठित करने का प्रस्ताव है 

9- मुख्यमंत्री जन विकास योजना :- किसानों को निजी भूमि पर वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से इस योजना को वर्ष 2015 में शुरू किया गया इसका विधिवत कार्यान्वयन वित्तीय वर्ष 2016-2017 में शुरू हुआइसके तहत वनरोपन हेतु लोगों को 75% लागत राशि सरकार द्वारा प्रदान की जाती है 

10- झारखंड टूरिज्म नीति-2015 :- इस योजना के तहत प्रथम चरण में राज्य के 8 क्षेत्रों को इको-टूरिज्म के रूप में विकसित किया जा रहा है

इक-टूरिज़म सेंटर       जिला

पारसनाथ               गिरिडीह

कैन्हरी हिल            हजारीबाग

फॉसिल पार्क           साहिबगंज 

त्रिकूट पर्वत             देवघर 

पलामू व्याघ्र परियोजना  लातेहार

तिलैया डैम              कोडरमा 

नेतरहाट                  लातेहार 

दलमा अभयारण्य   जमशेदपुर

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Thursday, June 10, 2021

Jharkhand Jalvayu Ke Prakar (झारखंड जलवायु के प्रकार)

Jharkhand Jalvayu Ke Prakar

1- उत्तरी व उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्र (महाद्वीपीय प्रकार)

➧ इस जलवायु क्षेत्र का विस्तार पलामू, गढ़वा, चतरा एवं हजारीबाग तथा गिरिडीह जिले के मध्यवर्ती भाग एवं संथाल परगना क्षेत्र के पश्चिमी भाग (देवघर, उतरी दुमका, गोड्डा) में है

झारखंड जलवायु के प्रकार एवं क्षेत्र

➧ 
इस जलवायु क्षेत्र की विशिष्टता है- इसका अतिरेक स्वभाव का होना अर्थात जाड़े के मौसम में अत्यधिक जाड़ा एवं गर्मी के मौसम में अत्यधिक गर्मी पड़ना
 

2- मध्यवर्ती क्षेत्र (उपमहाद्वीपीय प्रकार)

➧ इस जलवायु क्षेत्र का विस्तार पूर्वी लातेहार, दक्षिणी हजारीबाग, बोकारो, धनबाद, जामताड़ा एवं दक्षिणी पश्चिमी दुमका में है
➧ यह क्षेत्र लगभग महाद्वीपीय प्रकार का ही है किंतु तापमान में अपेक्षाकृत कमी एवं वर्षा में अपेक्षाकृत अधिकता के कारण इसे उपमहाद्वीपीय प्रकार का दर्जा दिया गया है
➧ यहां औसत वार्षिक वर्षा 127 सेंटीमीटर से 165 सेंटीमीटर के बीच होती है 

3- पूर्वी संथाल परगना क्षेत्र (डेल्टा प्रकार) 

➧ इस जलवायु क्षेत्र का विस्तार साहिबगंज और पाकुड़ जिला में है, जो राजमहल पहाड़ी के पूर्वी ढाल का क्षेत्र है। इस जलवायु क्षेत्र की समानता बंगाल की जलवायु से की जा सकती है
➧ इस क्षेत्र में कुल औसत वार्षिक वर्षा 152 पॉइंट 5 सेंटीमीटर होती है। साथ ही नार्वेस्टर प्रभाव के कारण ग्रीष्म ऋतु में 13 पॉइंट 5 प्रतिशत वर्षा भी दर्ज की जाती है 

4- पूर्वी सिंहभूम  क्षेत्र (सागर प्रकार)

➧ इस जलवायु क्षेत्र का विस्तार पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला-खरसावां जिला एवं पश्चिमी सिंहभूम जिला के पूर्वी क्षेत्रों में है 
➧ यह जलवायु क्षेत्र नार्वेस्टर के प्रभाव के कारण कई मौसमी घटनाएं घटित होती हैं
➧ मानसून पूर्व इस क्षेत्र  में नार्वेस्टर प्रभाव के कारण तड़ित झांझ एवं ओलावृष्टि की स्थिति बनती है औसतन प्रति वर्ष 71 तड़ित झांझ एवं 10 ओलावृष्टि इस क्षेत्र में गिरते हैं
➧ इस क्षेत्र में कुल औसत वार्षिक वर्षा 140 सेंटीमीटर से 152 सेंटीमीटर  के बीच होती है

5- पूर्वी सिंहभूम का पश्चिमी क्षेत्र  (आद्र वर्षा प्रकार)

➧ इसका विस्तार सिमडेगा एवं पश्चिमी सिंहभूम के मध्य एवं पश्चिमी भाग में है यहां मानसून के दोनों शाखाओं के द्वारा वर्षा होती है
➧ इस क्षेत्र में कुल औसत वर्षा 152 पॉइंट 5 सेंटीमीटर से अधिक होती है

6- रांची हजारीबाग पठार क्षेत्र (तीव्र एवं सुखद प्रकार) 

➧ इस जलवायु क्षेत्र का विस्तार रांची-हजारीबाग पठारी क्षेत्र में है
 इस जलवायु क्षेत्र की जलवायु तीव्र एवं सुखद प्रकार की है
➧ इस प्रकार की जलवायु के निर्माण में इस भू-भाग की ऊंचाई की महत्वपूर्ण भूमिका है ऊंचाई के कारण ही चारों और की उपेक्षा यहां तापमान कम रहता है 
 रांची में औसतन वार्षिक वर्षा 151 पॉइंट 5 सेंटीमीटर एवं हजारीबाग में औसतन वार्षिक वर्षा 148 पॉइंट 5 सेंटीमीटर होती है


7- पाट क्षेत्र  शीत वर्षा प्रकार

 इस जलवायु क्षेत्र का विस्तार लोहरदगा एवं गुमला के अधिकतर क्षेत्र में है 
➧ इस क्षेत्र की जलवायु रांची पठार की तरह ही है, लेकिन यह रांची पठार की तुलना में अधिक ठंडी है 
 शीत ऋतु में तापमान हिमांक (फ्रीजिंग प्वाइंट)  से नीचे चला जाता है
➧ यह जलवायु क्षेत्र झारखंड का सबसे अधिक वर्षा वाला क्षेत्र है
➧ यह वर्षा मानसून के अतिरिक्त शीत ऋतु में भी होती है 
➧ इस जलवायु क्षेत्र के 1000 मीटर से अधिक ऊंचे भू-भाग में 203 सेंटीमीटर तक वर्षा होती है

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Saturday, May 29, 2021

Jharkhand Me Paryavaran Sanrakshan (झारखंड में पर्यावरण संरक्षण)

Jharkhand Me Paryavaran Sanrakshan 

झारखंड में पर्यावरण को संरक्षित करने हेतु लिए गए महत्वपूर्ण कार्य

 PMIS : प्लांटेशन मैनेजमेंट इनफॉरमेशन सिस्टम

 NMIS :नर्सरी मैनेजमेंट इनफॉरमेशन सिस्टम

➧ वन और इसके आसपास रहने वाले लोगों को वृक्षारोपण से जोड़ने के लिए वन पट्टा का नियम सरल बनाया जा रहा है 
➧ वन विभाग में वन-पट्टा प्राप्त करने वालों का नाम रजिस्टर-2 में दर्ज करने का आदेश दिया है इसमें पट्टा पाने वाले की पूरी विवरण दर्ज रहेगा।
➧ ऐसे भूमि का दाखिल खारिज नहीं होगा, क्योंकि वनभूमि का लगान तय करने का अधिकार सरकार के पास है
➧ जंगलों के विस्तार एवं वृक्षारोपण को अधिक पारदर्शी बनाने के लिए वन विभाग के अधिकारियों को इलाके में भ्रमण कर रिपोर्ट देने के लिए तकनीकी का प्रयोग किया जा रहा है 
➧ इसी का काम के लिए (PMIS)प्लांटेशन मैनेजमेंट इनफॉरमेशन सिस्टम और (NMIS) नर्सरी मैनेजमेंट इनफॉरमेशन सिस्टम एप्लीकेशन उपलब्ध कराए गए हैं

झारखंड में पर्यावरण संरक्षण

मुख्यमंत्री जन-वन योजना-2015

➧ इस योजना के तहत निजी भूमि पर वृक्षारोपण प्रोत्साहन की एक महत्वकांक्षी योजना है
➧ इस योजना के अंतर्गत प्रति एकड़ काष्ठ प्रजाति के 445 पौधों तथा फलदार प्रजाति के 160 पौधों का रोपण किया जा सकेगा
➧ मेड़ पर काष्ठ प्रजाति के 445 पौधे लगाने पर इसे 1 एकड़ के समतुल्य समझा जाएगा
➧ लाभुक के लिए वृक्षारोपण की न्यूनतम सीमा 1 एकड़ और अधिकतम सीमा 50 एकड़ होगी
➧ प्रोत्साहन स्वरूप वृक्षारोपण एवं उसके रख-रखाव पर हुए व्यय के 75% अंक की प्रतिपूर्ति विभाग द्वारा की जाएगी


झारखंड इको-टूरिज्म नीति-2015 

स्थान                 जिला
पारसनाथ         :    गिरिडीह
कैनहरी हिल     :    हजारीबाग 
फॉसिल पार्क     :   साहिबगंज
त्रिकूट पर्वत      :    देवघर
पलामू व्याघ्र परियोजना : लातेहार
तिलैया डैम       :   कोडरमा
नेतरहाट          :     लातेहार
दलमा गज अभयारण्य  : जमशेदपुर

मूलभूत संरचनाएं

(i) राज्य में इको-टूरिज्म को बढ़ावा देने हेतु स्थानीय गांवों  में लोगों को 'नेचर गाइड' के रूप में प्रशिक्षित किया जाएगा ताकि पर्यटन को बढ़ावा देने के साथ-साथ स्थानीय लोगों की आय में भी वृद्धि की जा सके
(ii) सड़क, बिजली, पानी की व्यवस्था और पर्यटकों के ठहरने हेतु आवासीय सुविधाएं और मनोरंजन हेतु साधन विकसित करना
(iii) वन पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों द्वारा स्थानीय लोगों को प्रशिक्षित करना

डोभा निर्माण

➧ राज्य सरकार ने सूखे की समस्या से निपटने हेतु 2016  में मनरेगा के तहत डोभा निर्माण कार्य प्रारंभ किया है, जिसमें वर्षा जल को संचित किया जा सके
➧ पुरे राज्य में 6 लाख डोभा निर्माण करने का लक्ष्य रखा गया है। 
➧ 2016-17 में डोभा निर्माण हेतु 200 करोड़ रूपये प्रस्तावित था 
➧ पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए जल प्रोतों को प्राकृतिक स्वरुप में बनाए रखना-मुख्य उद्देश्य है 

प्रधानमंत्री कृषि कृषि सिंचाई 

 योजना के तहत केंद्र एवं राज्य सरकार की हिस्सेदारी 60:40 का है
➧ इसके तहत झारखंड में सिंचाई व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए जलछाजन का कार्य किया जा रहा है राज्य के ऊबड़ खाबड़  स्थलाकृति होने के कारण वर्षा जल का 70% भूमिगत हो जाता है
➧ राज्य में सिंचित भूमि का प्रतिशत 12 पॉइंट 1 प्रतिशत है, अतः 88% भूमि पर वर्षा जल का संरक्षण आवश्यक है
➧ देश में झारखंड पहला राज्य है, जहां जलछाजन विषय पर (Diploma in water Shed Management) "डिप्लोमा इन वॉटर शेड मैनेजमेंट" पाठ्यक्रम झारखंड राज्य जलछाजन मिशन के सहयोग से इग्नू द्वारा संचालित किया जा रहा है

समेकित जल छाजन प्रबंध कार्यक्रम

 नवंबर 2016 ईस्वी तक इस योजना के अंतर्गत 5744 वर्षा जलछाजन योजना प्रारंभ किया जा चुका है
➧ यह पांच 5 वर्षों का कार्यक्रम है
➧ विश्व बैंक एवं राज्य सरकार के 60:40 के अनुपात में नीरांचल-निरंजन राष्ट्रीय जलछाजन योजना द्वारा राज्य में चल रहे प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना की तकनीकी दृष्टिकोण से मजबूत बनाना है
➧ 2 जिलों रांची और धनबाद में शहरी जलछाजन कार्य के लिए पायलट परियोजना चलाई जा रही है

जापान इंटरनेशनल डेवलपमेंट एजेंसी (JICA)

➧ इसका उद्देश्य है बागवानी को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से माईक्रोड्रीप नामक योजना 30 प्रखंडों में प्रारंभ किया जा रहा है
➧ इस योजना के तहत जापान सरकार 282 पॉइंट 20 करोड़ की स्वीकृति मिल चुकी है

झारखंड में वनीकरण हेतु कार्य 

 झारखंड राज्य के शहरी क्षेत्र में पर्यावरण के संरक्षण तथा पर्यावरण प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन के प्रति नागरिकों में जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से छोटे मनोरंजन उद्यान आदि का निर्माण वन विभाग द्वारा किया जा रहा है
➧ ग्रामीणों को लाह की खेती से स्वरोजगार एवं सिंहभूम, लातेहार, सिमडेगा, गुमला, पलामू, सरायकेला, गढ़वा, गिरिडीह, दुमका, देवघर, आदि में 1750 संयुक्त वन प्रबंधन समिति, स्वयं सहायता समूह के माध्यम से 1,75,000 लाह पोषक वृक्षों पर लाह की खेती की गई है

CAMPA (Compensatory Afforestation Fund of Management and Planning)

➧ प्रतिपूरक वनीकरण कोष प्रबंधन और योजना प्राधिकरण का गठन 2002 ईस्वी में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर किया गया है 
➧ 2 जुलाई, 2009 ईस्वी में राज्य कैम्पा का गठन किया गया है
➧ कैम्पा कोष से सम्बंधित कैम्पा कानून 2016 ईस्वी में संसद द्वारा पारित किया गया है 

वनबंधु योजना 

➧ जनजातीय कार्य मंत्रालय, भारत सरकार से वर्ष 2015-16 में दो करोड़ की राशि की स्वीकृति प्रदान की गई है 
➧ पाकुड़ जिले के लिट्टीपड़ा प्रखंड को पायलट प्रखंड के रूप में चयन किया गया है, जिसमें आवश्यक मानव संपदा एवं कार्यालय संरचना, जल संचयन संरचना के अंतर्गत नया तालाब एवं चेक डैम तथा स्वास्थ्य क्षेत्र के आजीविका संवर्धन स्वास्थ केंद्र एवं एंबुलेंस क्रय की योजनाएं शामिल की गई
➧ वन अधिकार अधिनियम के अंतर्गत वनों में रहने वाले अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वन्य निवासी, जो वर्ष 2006 से पूर्व से वनों में निवास कर रहे हैं एवं जीवन यापन हेतु वनोत्पाद पर निर्भर है, को वन भूमि का पट्टा वितरण किया जाता है

कचरों  के प्रबंधन हेतु राज्य सरकार के कार्य

➧ पर्यावरण को हानि पहुंचाने वाले करणों में एक प्रमुख कारण महानगरों एवं नगरों से निकलने वाला कचड़ा (सॉलि़ड वेस्ट) है अतः कचड़ा कचरा प्रबंधन पर्यावरण संतुलन के लिए आवश्यक हो गया है
➧ झारखंड में रांची, धनबाद, चाकुलिया और पाकुड़ में पी.पी.पी मोड पर सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट योजना की मंजूरी सरकार द्वारा हो गई है
➧ स्वच्छ भारत मिशन जो 2015 में केंद्र सरकार द्वारा प्रारंभ किया गया है 
➧ इसके तहत शहरी क्षेत्रों में कचरे का आधुनिक एवं वैज्ञानिक तरीके से व्यवस्थापन करते हुए 2 अक्टूबर, 2019 तक पूर्ण स्वच्छता का लक्ष्य हासिल करना है 
➧ इसी उद्देश्य से रांची नगर निगम की सफाई व्यवस्था का काम अगले 25 साल तक के लिए निजी कंपनी 'एक्सेल इंफ्रा' को सौंपा गया है 
➧ 'एक्सेल इंफ्रा' की ज्वाइंट वेंचर जापानी कंपनी 'हिताची' रांची से निकलने वाले कचरे पर आधारित बिजली उत्पादन प्लांट लगाएगी 

JSPCB (Jharkhad State Pollution Control Board)

➧ राज्य में प्रदूषण नियंत्रण तथा इससे सम्बंधित मामलों पर नियंत्रण रखने हेतु झारखण्ड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की स्थापना 2001 में की गई है 
➧ यह एक नियामक निकाय है जो उद्योगों को पर्यावरण संरक्षण हेतु उच्च तकनीकों के प्रयोग के लिए प्रोत्साहित करता है 

पर्यावरण से जुड़े दिवस

➧ प्रमुख दिवस                     दिनांक 
विश्व वानिकी दिवस     -     21 मार्च
विश्व जल दिवस          -     22 मार्च 
विश्व स्वास्थ्य दिवस       07 अप्रैल 
पृथ्वी दिवस                     22 अप्रैल
विश्व ओजोन दिवस         16 सितंबर
विश्व वन्यजीव दिवस       03 मार्च 
विश्व जैव विविधता दिवस 22 मई 
तंबाकू मुक्ति दिवस           31 मई 
विश्व पर्यावरण दिवस        05 जून
विश्व जनसंख्या दिवस       11 जून 
विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस - 26 नवंबर
राष्ट्रीय प्रदूषण रोकथाम दिवस - 02 दिसंबर

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Friday, May 28, 2021

Jharkhand Me Paryavaran Sambandhit Tathya (झारखंड में पर्यावरण संबंधित तथ्य)

Jharkhand Me Paryavaran Sambandhit Tathya  

(झारखंड में पर्यावरण संबंधी तथ्य एवं परिवर्तन अपशमन एवं अनुकूल संबंधी विषय)

पर्यावरण शब्द का शाब्दिक अर्थ :- आस-पास, मानव जंतुओं तथा पौधों की वृद्धि एवं विकास को प्रभावित करने वाले बाह्य दशाएं, कार्यप्रणाली तथा जीवन-यापन की परिस्तिथियां आदि होती है। 

➧ पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 के अनुसार, पर्यावरण किसी जीव के चारों तरफ घिरे भौतिक एवं जैविक दशाएं एवं उनके साथ अंत: क्रिया को सम्मिलित करता है। 

झारखंड में पर्यावरण संबंधित तथ्य

➧ पर्यावरण के घटक 

(i) अजैविक पर्यावरण
(ii) जैविक पर्यावरण

(i) अजैविक पर्यावरण

(i) स्थलमंडलीय पर्यावरण
(ii) वायुमंडलीय पर्यावरण
(iii) जलमंडलीय पर्यावरण 

(ii) जैविक पर्यावरण

(i) वनस्पति पर्यावरण
(ii) जंतु पर्यावरण 

➧ सब जगह पाया जानेवाला अभिप्राय से है हमारे जीवन को प्रभावित करने वाले सभी जैविक और अजैविक तत्वों, तथ्यों, प्रक्रियाओं और घटनाओं के समुच्चय से निर्मित इकाई है। 
 
➧ पर्यावरण हमारे चारों ओर फैला हुआ है और हमारे जीवन की प्रत्येक घटना इसी के अंदर संपादित होती है तथा हम मनुष्य अपने समस्त क्रियाओं से इस पर्यावरण में प्रभाव डालते हैं। 
 इस प्रकार एक जीवधारी और उसके पर्यावरण के बीच एक दूसरे पर पारस्परिक आश्रित संबंध स्थापित करते हैं
➧ पर्यावरण के जैविक संघटकों के सूक्ष्म जीवाणु से लेकर कीड़े-मकोड़े, सभी जीव-जंतु और पेड़-पौधों आ जाते हैं, और इसके साथ ही उनसे जुड़ी सारी जैव क्रियाएँ और प्रक्रियाएँ प्रक्रिया भी
➧ अजैविक संघटकों  में जीवनरहित तत्व और उनसे जुड़ी प्रक्रियाएँ आती है :- जैसे चट्टानें, पर्वत,  नदी, हवा और जलवायु के तत्व इत्यादि 

 पर्यावरण से जुड़े विषय

➧ वर्तमान में पर्यावरण से जुड़े विषयों में जैव विविधता एवं उनका संरक्षण, पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव अर्थात पर्यावरण प्रदूषण आदि को शामिल किया जाता है 
➧ पर्यावरण प्रदूषण का व्यापक प्रभाव जैव विविधता पर पड़ा है जैव विविधता का अभिप्राय किसी स्थान-विशेष में रहने वाले विभिन्न प्रजातियों की कुल संख्या और प्रत्येक प्रजाति में पाई जाने वाले अनुवांशिक भिन्नता से है➧ पृथ्वी पर विभिन्न प्रजातियों के असंख्य जीव निवास करते हैं ये भिन्न प्रकार के जीव एक-दूसरे से अनेक रूपों में भिन्न होते हुए एक-दूसरे पर निर्भर है 
➧ एक-दूसरे पर भोजन के लिए निर्भरता एवं जैव विविधता के कारण पर्यावरण में संतुलन स्थापित होता हैजितनी अधिक जैव विविधता होगी, उतना ही पर्यावरण में अधिक संतुलन होगा
➧ जैव विविधता शब्द का इस्तेमाल सबसे पहले डब्लू जी.रोजेन ने 1950 ईस्वी में किया था
➧ प्रत्येक वर्ष 22 मई को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस मनाया जाता है इसे विश्व जैव विविधता संरक्षण दिवस भी कहते हैं 

 झारखंड पर्यावरण से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य 

➧ झारखंड की जलवायु तथा उसकी औद्योगिक स्थित झारखण्ड को जैव विविधता में काफी धनी राज्य बनाता है 
➧ झारखंड के जंगलों में कई तरह के पेड़, औषधीय पौधे, घास, फूल इत्यादि मौजूद है
 प्रमुख जैव विविधता से पूर्ण स्थान पिठोरिया घाटी, नेतरहाट की पहाड़ी, सारंडा का जंगल, पारसनाथ की पहाड़ी, दलमा की पहाड़ी है 
➧ प्रमुख नदियों में कोयल, दामोदर और स्वर्ण रेखा के क्षेत्र के जंगल जैव विविधता में धनी है, लेकिन बढ़ता पर्यावरणीय  प्रदूषण जैव विविधता के क्षरण का कारण बनता जा रहा है 

➧ झारखंड में पर्यावरण से जुड़े विषय 

वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, झारखंड सरकार के अनुसार 2015 ईस्वी में 23605 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर वनावरण था, जो कि झारखंड के कुल क्षेत्रफल का 26 पॉइंट 61 प्रतिशत था 
➧ झारखंड राज्य के पर्यावरण को स्वच्छ बनाने हेतु व्यापक पैमाने पर वन रोपण अभियान चलाया जा रहा है➧ वृक्षारोपण के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों में मुख्य हैं :- मुख्यमंत्री जन-वन योजना 
➧ अफ्रीकी मूल का कल्पतरु वृक्ष, जो चिकित्सीय महत्व के लिए प्रसिद्ध है, पूरे भारत में इसकी संख्या 9 है जिसमें 4 रांची में है इस वृक्ष की खासियत अतिशुष्क वातावरण के समय जल भंडारण की अत्यधिक क्षमता होती है 
तथा इसमें कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, प्रोटीन और कैल्शियम 
.
काफ़ी मात्रा में पाया जाता है
➧ शिवलिंगम फूल काफी आकर्षक होता है लाल और सफेद रंग के ये फूल मनमोहन खुशबू बिखरते हैं यह हिमाचल प्रदेश की तराई क्षेत्र में पाया जाता है इसके फूल से आस-पास काफी दूर तक क्षेत्र सुगंधित हो जाता है देवघर में रूट काँवरिया पथ में इसे लगाया जा रहा है
➧ इसके अलावा प्रदेश में रुद्राक्ष, हाथी कुंभी, सोला छाल और मेघ के पेड़ों पर रिसर्च किया जा रहा है 
➧ मेघ का पेड़ काफी संख्या में पाया जाता था, लेकिन इसकी संख्या घटती जा रही है इसके छाल का उपयोग अगरबत्ती बनाने में किया जाता है 
➧ सखुआ का पेड़, जो झारखंड का प्रमुख वृक्ष है इससे पेड़ के आस-पास पौधों को प्राकृतिक रूप से जीव विविधता में सहयोग मिलता है पर्यावरण के लिहाज से काफी बेहतर है एशिया के सबसे घने जंगल सारंडा में काफी संख्या में पाया जाता है
➧ गिद्ध मृत पशुओं को खाकर पर्यावरण को शुद्ध करते हैं। इसलिए इन्हें प्राकृतिक सफाई कर्मी कहा जाता है
➧ 9 प्रजातियां जातियां पाई जाती है, जिसमें से (IUCN) आईयूसीएन की सूची के अनुसार 3 प्रजातियां विलुप्त के कगार पर है 
झारखण्ड में गिध्दों की 3 प्रजातियाँ पायी जाती हैं 

➧ 1980 के दशक में इनकी संख्या हजारों में थी, परंतु पिछले 28 सालों में इनकी संख्या में 97% की कमी आई हैइनके विलुप्त का मुख्य कारण 'डाइक्लोफेनेक' दर्द निवारक दवा है 
➧ इनका प्रयोग पशुओं के इलाज में होता है ये  पशु जब मृतप्राय होते हैं तो इनके शरीर के अवशेषों को खा कर मर जाते हैं गिद्धों की संख्या के कमी के दूसरे कारणों में प्रमुख है- पेड़ों की कटाई, जिस कारण घोंसले बर्बाद होते हैं और अगली पीढ़ी जन्म नहीं ले पाते हैं
 
➧ वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची- 1 में गिद्ध को संरक्षण प्राप्त है इस एक्ट के अनुसार किसी भी तरह से गिद्ध का नुकसान पहुंचाना कानूनन जुर्म है

➧ ऐसा करने पर कम-से-कम 3 से 7 साल की सजा या 25000 हज़ार रूपये जुर्माना या दोनों हो सकता है

➧ डाइक्लोफेनेक दवा का इस्तेमाल भारत सरकार द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया है


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Sunday, May 16, 2021

Jharkhand Me Aapda Prabandhan Ikai (झारखंड में आपदा प्रबंधन इकाई)

Jharkhand Me Aapda Prabandhan Ikai

झारखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण(JSDMA)

➧ राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम (NDMA) 2005 की धारा 14 (1) के आधार पर 28 मई, 2010 ईस्वी को झारखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (JSDMA) का गठन किया गया है 

➧ जिसके दो मुख्य उद्देश्य है:-

(I) अलग-अलग स्तर पर आपदा नियंत्रण के लिए योजना एवं रणनीति का निर्माण करना

(II) आपदा के बाद पुनर्निर्माण कार्य एवं सामान्य जीवन बहाल करने बहाली हेतु प्रोजेक्ट तैयार करना

झारखंड में आपदा प्रबंधन इकाई

 JSDMA की एक प्रमुख भूमिका विभिन्न विभागों तथा धन जुटाने वाली विभिन्न संस्थाओं को सहयोग  करना है। जैसे:- 

(i) भारत सरकार 
(ii) विश्व बैंक 
(iii) D.F.I.D

➧ राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का अध्यक्ष मुख्यमंत्री होता है तथा इसमें अधिकतम 9 सदस्य होते हैं

➧ राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की गठन की शक्ति राज्यपाल के पास होती है

➧ झारखंड राज्य में राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की सहायता हेतु राज्य कार्यकारी समिति भी गठित की गई है

➧ जिसके अध्यक्ष मुख्य सचिव झारखंड सरकार होते हैं

➧ इस समिति का कार्य राष्ट्रीय नीति, राष्ट्रीय योजना के साथ राज्य नीति और राज्य योजना का समन्वय करना होता है


➧ 
राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के कार्य 

(i) आपदा पर त्वरित कार्यवाही  हेतु योजना तैयार करना

(ii) ऐसी ढांचा का विकास करना, ताकि आपदा के प्रभाव को कम किया जा सके

(iii) राज्य, जिला, प्रखंड, पंचायत स्तर पर एक सूचना नेटवर्क तैयार करना, ताकि स्थानीय लोगों तक जरूरी सूचनाएं उपलब्ध कराई जा सके

(ivआपदा न्यूनीकरण हेतु भौगोलिक सूचना प्रणाली विकसित करना

(v) राज्य मिशनरी एवं स्वैच्छिक संगठन एवं संस्थाओं के बीच बेहतर ताल-मेल बैठाना

 (viउपयुक्त दिशा निर्देश के जरिए स्थानीय लोगों में आपदा के प्रति जागरूकता फैलाना एवं प्रशिक्षण देना

➧ राज्य आपदा विभाग का गठन 

➧ अक्टूबर 2004 ईस्वी में झारखंड राज्य में आपदा विभाग का गठन किया गया था। इस विभाग का प्राथमिक कार्य आपदा ग्रसित व्यक्तियों को तुरंत राहत प्रदान करना है

➧ राहत कार्य के लिए धन की व्यवस्था 'राज्य आपदा रिस्पांस कोष' इसको से की जाती है

➧ 'राज्य आपदा रिस्पांस कोष' में धन संग्रह में 75% हिस्सेदारी केंद्र सरकार की और 25% हिस्सेदारी राज्य सरकार की होती है

➧ जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण

➧ यह आपदा प्रबंधन की तीसरी इकाई होती है इसके तहत झारखंड के 24 जिलों में जिला दंडाधिकारी/समाहर्त्ता या उपायुक्त की अध्यक्षता में जिला आपदा प्रबंधन समिति गठित की गई है

➧ इस समिति के अन्य सदस्यों में जिले के मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी, पशु चिकित्सा पदाधिकारी,जल एवं सिंचाई विभाग के अभियंता एवं एनजीओ (NGO) के प्रतिनिधि सदस्य शामिल किए जाते हैं 

➧ इसका मुख्य कार्य जिले की जरूरतों के अनुसार जिला आपदा योजना विकसित करना तथा इसका क्रियान्वयन करना होता है

➧ यह प्राधिकरण स्थानीय लोगों को प्रशिक्षित करने तथा आवश्यक दिशा-निर्देश देने का कार्य भी करती है

➧ झारखंड आपदा प्रबंधन समिति

➧ इसका गठन प्रखंड स्तर पर किया जाता है इसका अध्यक्ष प्रखंड विकास पदाधिकारी होते हैं 

➧ इसके सदस्यों में समाज कल्याण पदाधिकारी, ग्रामीण जलापूर्ति अधिकारी, अग्निशामक सेवा के अधिकारी, एनजीओ के प्रतिनिधि एवं वरिष्ठ नागरिक को शामिल किया जाता है 

➧ इस समिति का मुख्य कार्य स्थानीय जरूरतों के अनुसार आपदा प्रबंधन योजना का निर्माण करना एवं उसे लागू करना होता है


ग्रामीण आपदा प्रबंधन समिति

➧ इसका गठन ग्राम स्तर पर किया जा रहा है तथा इसका अध्यक्ष मुखिया होते हैं

 इस समिति का कार्य ग्राम स्तर पर आपदा से बचाव हेतु उपायों को विकसित करना है तथा उसे सफलतापूर्वक लागू करना है

➧ राज्य आपदा प्रबंधन योजना

➧ आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा 2009 ईस्वी में राज्य आपदा प्रबंधन तैयार की गई है इसके तहत आपदा में बचाव एवं प्रशिक्षण हेतु कई कदम उठाए गए हैं

➧ झारखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सहयोग से राज्य एवं जिला स्तरीय इमरजेंसी सेंटर की स्थापना करेगी तथा उसे वी-सेट उपग्रह से जोड़ा जाएगा

➧ इमरजेंसी ऑपरेशन सेंटर (E.O.C)का गठन N.D.M.A अधिनियम 2005 के तहत राज्य के सभी 24 जिलों में किया गया है


➧ झारखंड राज्य में 2007 ईस्वी से आपदा प्रबंधन केंद्र का परिचालन श्री कृष्ण लोक प्रशासन संस्थान (SKIPA) रांची से किया जा रहा है

➧ तेरहवीं वित्त आयोग की सिफारिश के बाद 2012ईस्वी के बाद से 'वित्तीय सहायता आपदा प्रबंधन विभाग' का संचालन झारखंड सरकार द्वारा किया जा रहा है

TNA: (Training Need Analysis) कार्यक्रम पायलट कार्यक्रम के तहत रांची और धनबाद में जिला में चलाया गया है

 2015 ईस्वी में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान के सहयोग से विद्यालय सुरक्षा कार्यक्रम चलाया गया था

➧ राज्य ग्रामीण विकास संस्थान (S.I.R.D), जो रांची में स्थित है पंचायती राज विभाग का शीर्ष प्रशिक्षण संस्थान है, इसमें सरकारी पदाधिकारियों, चुने हुए पंचायत प्रतिनिधियों और स्वयंसेवी संगठन के कार्यकर्ताओं को सामुदायिक नेतृत्व का प्रशिक्षण दिया जाता है

JSAC: 'झारखण्ड स्पेस एप्लीकेशन सेंटर' झारखण्ड सरकार की विशेषीकृत एजेंसी है। जो झारखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के दूर संवेदन कार्टोग्राफी, से संबंधित महत्वपूर्ण सूचनाएं उपलब्ध कराती है 

SRIJAN: (आपदा प्रबंधन ज्ञान सह-सूचना प्रदर्शन केंद्र) राज्य में आपदाओं की जानकारी और उनसे उत्पन्न होने वाली समस्याओं तथा उनके प्रभाव को कम करने के लिए सृजन विभाग विकसित किया जा रहा है

➧ इसके लिए राज्य के प्रमुख शैक्षिक एवं तकनीकी संस्थान कार्य कर रहे हैं जो निम्नलिखित हैं :-

(I) बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, रांची  सूखा के लिए 
(II) आई.एस.एम, धनबाद,  खनन आपदा के लिए 
(III) बी.आई.टी. मेसरा, रांची भूकंप के लिए
(IV) जे.सैक, रांची बाढ़ ,जंगलों की आग, सुखा 

➧ आपदा प्रबंधन में झारखंड राज्य संबंधित समस्याएं

➧ उच्च जोखिम वाले क्षेत्र में जनसंख्या दबाव एवं मानवीय गतिविधियों में वृद्धि
➧ विकास योजनाओं में आपदा प्रबंधन को समुचित महत्व ना देना
 आपदा प्रबंधन से संबंधित कानूनों का ठीक से लागू ना होना
 आपदा प्रबंधन संबंधित प्रशिक्षण का अभाव
 आपदा प्रबंधन के प्रति आम लोगों में जागरूकता की कमी
➧ आवश्यक उपकरण एवं संसाधनों का अभाव
 राहत कार्य में विभिन्न संस्थाओं एवं एजेंसियों के बीच सामंजस्य का अभाव
➧ आपदा से संबंधित चेतावनी तंत्र का विकास कम होना
 

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Aapda Prabandhan Ki Sanrachnatmak Ikai (आपदा प्रबंधन की संरचनात्मक इकाई)

Aapda Prabandhan Ki Sanrachnatmak Ikai


आपदा प्रबंधन की संरचनात्मक इकाई

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA)

➧ आपदा प्रबंधन अधिनियम की धारा 3(1) के तहत 27 नवंबर,  2006 ई0 को गठित राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, जो कि आपदा प्रबंधन का एक शीर्ष निकाय है

➧ इसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री हैं तथा यह आपदा प्रबंधन के लिए नीतियांँ , योजनाएँ  और दिशा निर्देश देने, आपदा आने के समय प्रभावी कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिए उत्तरदायी है

➧ राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण सभी प्रकार की प्राकृतिक अथवा मानव जनित आपदाओं से निपटने के लिए विशेषकर रासायनिक, जैविक और नाभिकीय विकिरण जैसी आपात स्थितियों के संबंध में दिशा-निर्देश तैयार करने प्रशिक्षण और तैयारी गतिविधियों को सुगम बनाने के लिए उत्तरदायी है 

➧ संस्थागत ढांचा के अंतर्गत ही राष्ट्रीय कार्यकारी समिति का गठन किया गया है राष्ट्रीय कार्यकारी समिति के अध्यक्ष केंद्रीय गृह सचिव होते हैं

➧ राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA)

 राज्य में 'राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण' (SDMA) का गठन किया गया है। राज्य स्तर पर इसकी अध्यक्षता मुख्यमंत्री द्वारा की जाती है 

➧ इसका कार्य राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा दिए गए निर्देशों के अनुसार राज्य योजनाओं को संचालित करना है तथा राज्य योजनाओं के कार्यान्वयन, उनका समन्वय तथा तैयारी के उपायों का प्रावधान निर्धारित करना है

➧ झारखंड राज्य में राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को सहायता करने के लिए एक राज्य कार्यकारी समिति है

➧ राज्य कार्यकारी  समिति के अध्यक्ष राज्य सरकार के मुख्य सचिव होते हैं इस समिति का मुख्य कार्य राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को सूचना प्रदान करना है

➧ जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (DDMA)

➧ राज्य में जिला स्तर पर 'जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण' (DDMA) का गठन किया गया हैजिसके अध्यक्ष जिला मजिस्ट्रेट या उपायुक्त होते हैं

➧ इसका 25 (1) के तहत किया गया है जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण राष्ट्रीय एवं राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के दिशा-निर्देशों के अनुरूप कार्य करता है

➧ राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन नीति, 2005 के आलोक में प्रशिक्षण कार्य हेतु 'राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान' (N.I.D.M) की स्थापना की गई है

➧ यह संस्थान अन्य अनुसंधान संस्थाओं के साथ मिलकर प्रशिक्षण अनुसंधान एवं क्षमता विकास का कार्य करता है 

➧ राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन नीति के निर्देशानुसार राहत एवं बचाव कार्य के लिए 'राष्ट्रीय आपदा कार्रवाई बल' (N.D.R.F) का गठन 2006 में लिया गया 

➧ NDRF का गठन राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम की धारा 44 और 45 के तहत किया गया है इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है

➧ 2006 में आठ बटालियन का गठन BSF, CRPF, ITBP, CISF की 2-2 बटालियन को मिलकर किया गया है प्रत्येक बटालियन में 1149 जवान कार्यरत हैं

➧ इसका गठन किसी खतरनाक आपदा की स्थिति अथवा रासायनिक जैविक, नाभिकीय विकिरण संबंधी मानव निर्मित एवं प्राकृतिक दोनों प्रकार की आपदाओं में विशिष्ट कार्रवाई करने के उद्देश्य से किया गया है

➧ आपदा प्रबंधन की प्राथमिक जिम्मेदार राज्यों की होती है केंद्र, राज्य तथा जिला स्तरों पर कार्यरत सभी संस्थागत तंत्र प्रभावी तरीके से आपदाओं के प्रबंधन में सहायता करती हैं

➧ आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 में राज्य सरकारों को अन्य बातों के साथ-साथ आपदा प्रबंधन योजनाओं को तैयार करने, विकास योजनाओं में आपदाओं के निवारण अथवा रोकने के उपायों पर विचार करने, निधियों का आवंटन, शीघ्र चेतावनी प्रणालियों (E.W.S) को स्थापित करने एवं आपदा प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं में किया गया है

➧ प्रारंभ में प्रत्येक राज्यों को राज्य आपदा कार्रवाई बल (S.D.R.F) की एक बटालियन तैयार करना है

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Jharkhand Me Aapda Prabandhan (झारखंड में आपदा प्रबंधन)

Jharkhand Me Aapda Prabandhan

➧ भारत सरकार ने आपदा प्रबंधन के लिए आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 को 25 दिसंबर, 2005 से लागू किया है

➧ इस अधिनियम में आपदा प्रबंधन का नेतृत्व करने और उसके प्रति एक समग्र दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA), मुख्यमंत्रियों की अध्यक्षता में राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA) और जिला मजिस्ट्रेट की अध्यक्षता में जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (DDMA) का गठन किया गया है

झारखंड में आपदा प्रबंधन

➧ किसी भी प्रकार की आपदा से निपटने के लिए 3 चरण होते हैं 

➧ आपदा पूर्व की व्यवस्था :- इसके अंतर्गत आपदा के निवारण एवं बचाव के उपाय किए जाते हैं 

➧ आपदा के दौरान त्वरित व्यवस्था :- इस दौरान आपदा का स्तर एवं प्रकृति बताने हेतु चेतावनी तंत्र का प्रयोग होता है 

➧ साथ ही प्रभावित लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाना एवं मूलभूत आवश्यकता जैसे :- भोजन, पानी, वस्त्र, चिकित्सा की आपूर्ति की जाती है

➧ आपदा के पश्चात की गई व्यवस्था :- इसके अंतर्गत पुनर्वास एवं पुनर्निर्माण की प्रक्रिया पूर्ण की जाती है

➧ अर्थात आपदा प्रबंधन संबंधी उपाय एक सतत एवं एकाकृत तरीके से चलाने वाली प्रक्रिया है, 

जो निम्न स्तर पर संचालित की जाती है

(I) किसी आपदा के खतरे एवं संभावना की रोकथाम करना 

(II) किसी आपदा की जोखिम अथवा इसकी तीव्रता अथवा परिणामों का कम करने की कोशिश करना

(III) अनुसंधान और ज्ञान प्रबंधन सहित सामर्थ्य का निर्माण करना

(IV) किसी आपदा से निपटने की तैयारी करना 

(V) किसी खतरनाक आपदा की स्थिति अथवा आपदा आने पर तुरन्त कार्रवाई करना 

(VI) किसी आपदा की तीव्रता अथवा इसके प्रभावों का मूल्यांकन करना

(VII) फंसे हुए लोगों को निकालना, बचाव और राहत प्रदान करना

(VIII) पुनर्वास और पुनर्निर्माण कार्य करना

(IX) आपदा से बचाव हेतु उपयुक्त दिशा-निर्देशों का आम जनता के बीच जागरूकता का प्रचार-प्रसार करना 

➧ राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के अंतर्गत संस्थागत ढांचा के विकास पर बल दिया गया है

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Jharkhand Me Vibhinn Aapdaye (झारखंड में विभिन्न आपदाएं)

Jharkhand Me Vibhinn Aapdaye

➧ झारखंड के 24 जिले किसी न किसी प्रकार की आपदा से ग्रसित है 

➧ झारखंड में प्राकृतिक एवं मानवीय दोनों प्रकार की आपदाएं आती है:-

(i) सूखा
(ii) बाढ़
(iii) खनन दुर्घटना
(iv) औद्योगिक दुर्घटना
(v) हाथियों का आक्रमण 
(vi) तड़ित (लाइटिंग)
(vii) जलवायु परिवर्तन 
(viii) जंगलों में आग लगना 
(ix) रसायनिक दुर्घटना 
(x) भूकंप
(xi) जैव विविधता का ह्रास 


झारखंड में विभिन्न आपदाएं

सूखा:-

सूखे की समस्या झारखंड में मुख्य है भारतीय मौसम विभाग, नई दिल्ली के अनुसार, यदि किसी क्षेत्र में सामान्य से 25% कम वर्षा होती है तो सामान्य सूखा, 25 से 50% तक कम वर्षा होने पर मध्यम सुखा और 50% से कम वर्षा होने पर गंभीर सुखा कहा जाता है

➧ 2010 में राज्य के सभी 24 जिले सूखा प्रभावित थे इस वर्ष 47% वर्षा कम हुई थी जिस कारण दस लाख  (10,00,000) हेक्टेयर भूमि में धान की खेती नहीं हुई थी

➧ सर्वाधिक सुखा से प्रभावित पलामू जिला है पलामू में पिछले 22 वर्षों से वर्षा की मात्रा में गिरावट की प्रवृत्ति देखी गई है

➧ राज्य के उत्तरी-पश्चिमी हिस्से में सुखा कई  बार आपदा का रूप धारण कर लेती है, जिसके परिणाम स्वरूप पलामू, गढ़वा, लातेहार, चतरा तथा लोहरदगा जिलों की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है

➧ वर्ष 2010 में झारखण्ड राज्य गंभीर सूखे से प्रभावित रहा है। इस दौरान राज्य के 24 में से 12 जिले गंभीर सूखे की प्रकोप में रहे हैं। इन सभी जिलों में वर्षा का अनुपात औसत वर्षा के 50%में से भी कम रहा   

 उपाय:- 

(i) संरक्षणात्मक उपाय में बांध का निर्माण 
(ii) वाटर शेड का प्रबंधन 
(iii) उचित फसलों का चयन 
(iv) वृक्षों की कटाई को कम करना 
(v) सिंचाई तकनीक को उन्नत बनाना
(vi) वर्षा जल का संग्रहण करना
(vii) तालाब का निर्माण 
(viii) मवेशियों का प्रबंधन 
(ix) मृदा संरक्षण तकनीक अपनाना
(x) शिक्षा एवं प्रशिक्षण 
(xi) जल ग्रहण प्रणाली को बेहतर बनाना 

➧ इसके लिए संबंधित क्षेत्र के लोगों को जागरूक तथा प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है

बाढ़

➧ झारखंड राज्य में बाढ़ से 11 जिले प्रभावित होते हैं, जिसमें गोड्डा, साहिबगंज, दुमका और पाकुड़ सर्वाधिक प्रभावित जिले हैं अन्य जिलों में देवघर, धनबाद, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम, सरायकेला-खरसावां, गुमला और हजारीबाग है

➧ ये सभी जिले 2000 से 2014 ईस्वी के बीच कई बार बाढ़ से प्रभावित हुए हैं

➧ 2016 ईस्वी में गोड्डा, साहिबगंज, पाकुड़ के अतिरिक्त भारी मानसूनी वर्षा के कारण उत्तरी कोयल नदी घाटी क्षेत्र में गढ़वा, पलामू और लातेहार जिले बाढ़ से प्रभावित हुए हैं 

➧ पलामू और गढ़वा जिला में बाढ़ का सबसे अधिक प्रभाव धान की फसल पर पड़ता है 

➧ 2008 ईस्वी में साहिबगंज आकस्मिक बाढ़ से सबसे अधिक प्रभावित जिला था 

➧ सर्वाधिक प्रभावित जिले राज्य के उत्तरी-पूर्वी हिस्से में स्थित है, जो गंगा अपवाह प्रणाली से जुड़े हैं 

➧ गंगा नदी द्वारा इस क्षेत्र में तटीय अपरदन के कारण राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 80 पर भी खतरा बना रहता है 

➧ रांची और जमशेदपुर जैसे नगरीय क्षेत्रों  में नाले के बंद होने एवं अनियोजित नगरीकरण के कारण भी आकस्मिक बाढ़ की समस्या उत्पन्न होता है 

➧ राज्य में बाढ़ का प्रमुख कारण मानसूनी वर्षा द्वारा नदी के जल स्तर में वृद्धि होना है 

 बाढ़ के कारण राज्य में धान की फसलों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जिसके फलस्वरूप राज्य की खाद्यान व्यवस्था नकारात्मक रूप से प्रभावित होती है 

➧ कुछ जिलों में बाढ़ आपदा का रूप ग्रहण कर लेती है जिसके कारण मकान, सड़क, पुल-पुलिया आदि क्षतिग्रस्त हो जाते हैं 

जंगलों में आग 

➧ गर्मी के दिनों में झारखंड में जंगलों की आग एक सामान्य बात है, परंतु वन संपदा के लिए यह सर्वाधिक खतरनाक है

➧ जंगलों में आग लगने की समस्या का एक प्रमुख कारण महुआ तथा साल के बीच संग्रहण है जिससे मुख्य रूप से मार्च और अप्रैल के महीने में यह घटना घटती है

➧ पर्यटन के कारण भी आग लगने की समस्या उत्पन्न होती है

➧ यह मुख्यत: उत्तरी-पश्चिमी तथा दक्षिणी भाग की समस्या है, जिससे 9 जिले प्रभावित है

➧ इस जिलों में गढ़वा, पलामू, चतरा, लातेहार, हजारीबाग, पूर्वी और पश्चिमी सिंहभूम, सिमडेगा और गुमला शामिल है 

➧ झारखंड राज्य में वनों की बहुलता है तथा इसमें शुष्क पतझड़ वन सर्वाधिक पाए जाते हैं इन वनों में ग्रीष्म ऋतु में कई कारणों से लगने वाली आग कई बार भयावह हो जाती है तथा यह आपदा का रूप ग्रहण कर लेती हैं 

➧ जंगलों में लगने वाली आग को रोकने हेतु कानूनी, प्रशासनिक तथा जागरूकता के स्तर पर कार्य किया जाना आवश्यक है

➧ जंगलों में आग प्रबंधन के लिए पर्यटन संबंधी कानून में सख्ती, गैर-कानूनी गतिविधियों पर रोक लगाने की जरूरत है

➧ अधिक आयु एवं परिपक्व वृक्ष की पहचान कर उसे काटकर नया वृक्ष लगाना चाहिए, क्योंकि परिपक्व वृक्ष की ज्वलनशीलता अधिक होती है

जंगलों के अंदर सड़क मार्ग द्वारा के द्वारा वन को विभाजित करने से एक ओर की आग दूसरी और नहीं पहुंचती है जंगलों के अंदर फायर टावर वॉच स्टेशन स्थापित करने की जरूरत है

खनन दुर्घटना

➧ झारखंड में भारत का लगभग 38% खनिज संचित है। खनिजों खनन के समय में मानव कृत एवं प्राकृतिक दोनों प्रकार के आपदाएं उत्पन्न होती हैं

➧ भारत के सबसे प्रसिद्ध कोयला खान झरिया कोल्डफील्ड में 1880 के दशक से आग लगी हुई है, जिससे आस-पास का पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। रामगढ़ खदान भी आग की समस्या से जूझ रहा है 

➧ इसके अलावा खनन क्षेत्रों  में मिट्टी के धँसाव हो जाने, जल जमा हो जाने के कारण भी जान-माल की क्षति संभावना बनी रहती है 

➧ खनन दुर्घटना से निपटने हेतु इन क्षेत्रों में कार्य करने वाले मजदूरों को प्रशिक्षित किये जाने के साथ-साथ खनन के धँसाव के समय त्वरित राहत प्रणाली को विकसित किए जाने की आवश्यकता है

➧ साथ ही मजदूरों को खनन के दौरान उत्पन्न प्रदूषकों के प्रति जागरूक करते हुए मास्क के प्रयोग हेतु प्रोत्साहित किए जाने की आवश्यकता है 

तड़ित (लाइटिंग)

➧ ताड़ित झारखंड की एक प्रमुख आपदा है, जिससे प्रतिवर्ष अनेक व्यक्तियों एवं पशुओं की मौत होती है

➧ वर्षा के दिनों में चमकती हुई बिजली का जमीन पर गिरना तड़ित या लाइटिंग कहलाता है 

➧ राज्य के 9 जिले इस आपदा से ज्यादा ग्रसित हैं, जिसमें पलामू, चतरा, लातेहार, कोडरमा, रांची, गिरिडीह मुख्य है

 श्री कृष्णा लोक प्रशासन संस्थान (स्काईपा) द्वारा लाइटिंग से संबंधित आपदा से निपटने के लिए विशेष ट्रेनिंग मॉड्यूल तैयार किया गया है

➧ लाइटिंग से बचने के लिए मौसम खराब होने एवं भारी वर्षा के समय पेड़ के नीचे तथा बिजली के तार एवं खम्भे से दूर हट जाना चाहिए

➧ इस समस्या से होनेवाली जानमाल की हानि को कम करने हेतु राज्य के लोगों को बचाव से संबंधित प्रशिक्षण दिए जाने की आवश्यकता है

हाथियों का आक्रमण 

➧ हाथी झारखण्ड का राज्यकीय पशु है तथा इसकी संख्या काफी अधिक है है 

➧ राज्य में हाथी दुमका, दलमा, सारंडा, पलामू आदि के जंगलों में पाए जाते हैं। हाथियों का आक्रमण दिनों- दिन बढ़ता जा रहा है, जिसने एक गंभीर आपदा का रूप ग्रहण कर लिया है

➧ हाथियों के आक्रमण का प्रमुख कारण ग्रामीणों द्वारा सुगंधित महुआ फूल का संग्रहण है, जिससे हाथी आकर्षित होकर आवासीय क्षेत्र की ओर चले आते हैं साथ ही बांस के नवउदित कोपले भी हाथियों का मुख्य आहार है अतः बांस रोपण सघनता वाले क्षेत्रों में भी इनका उत्पात आम है

➧ साथ ही जनसंख्या वृद्धि एवं मानवीय गतिविधियों के कारण वनों के अत्यधिक कटाई होने से उनका  प्राकृतिक आवास सिकुड़ता जा रहा है नए घर, गांव एवं शहरों का फैलाव हुआ है

➧ रेलवे लाइन, बिजली लाइन सड़क, माइन्स बनाने के कारण इनके पर्यावास खंडित हुए हैं, जिसके कारण भोजन एवं सुरक्षित आवास की कमी होने से भोजन की खोज में हाथी समूहों में जंगल से बाहर निकलते हैं और मानव बस्तियों पर आक्रमण करते हैं

 यह समस्या मुख्य रूप से रांची, लातेहार, खूंटी, सिमडेगा, चतरा, हजारीबाग, सिंहभूम आदि जिलों की है हाथियों को भगाने के लिए आग जलाने, मिर्च का गंद फैलाने या ढोल-नगाड़े पीटने का कार्य ग्रामीणों द्वारा किया जाता है 

➧ हाथियों के आक्रमण से बचाव हेतु सबसे पहले लोगों को जागरूक किए जाने की आवश्यकता है ताकि  लोग हाथियों के प्राकृतिक आवासों में हस्तक्षेप करना बंद करें

भूकंप

➧ भूकंप की दृष्टि से झारखंड राज्य को कम जोखिम वाले क्षेत्र में रखा जा सकता है

➧ भूकंप संवेदनशीलता की दृष्टि से राज्य को जोन II, III और IV में रखा जा सकता है

➧ जोन II के अंतर्गत राज्य के 7 जिले (रांची, लोहरदगा, खूंटी, रामगढ़, गुमला, पूर्वी और पश्चिमी सिंहभूम) आते हैं 

➧ तथा जोन III के अंतर्गत राज्य के 15 जिले (पलामू, गढ़वा, लातेहार, चतरा, हजारीबाग, धनबाद, बोकारो, गिरिडीह, कोडरमा, देवघर, दुमका, जामताड़ा, गोड्डा, पाकुड़, और साहिबगंज) आते हैं 

➧ तथा जोन IV में गोड्डा तथा साहिबगंज का उत्तरी भाग अवस्थित है, जो सर्वाधिक भूकंप प्रभावित क्षेत्र हैं

 जोन III के अंतर्गत 15 जिला तथा  जोन II के अंतर्गत 7 जिला स्थित है जोन II सबसे कम भूकंप प्रभावित क्षेत्र है

आपदा   प्रभावित जिलों की सं0  जिलों का नाम

1. सूखा -  सभी 24 जिले   सभी जिले प्रभावित 

2. बाढ़-   11  साहिबगंज, गोड्डा, दुमका, पाकुड़, देवघर, धनबाद, पूर्वी और पश्चिमी सिंहभूम, गुमला, हजारीबाग, सरायकेला-खरसावां 

3. लाइटिंग -  9  पलामू, चतरा, लातेहार, कोडरमा, गिरिडीह, रांची, हजारीबाग, लोहरदगा दुमका

4. जंगल में आग की घटनाएं - 9 गढ़वा, पलामू, लातेहार, चतरा, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम, सिमडेगा, गुमला 

5. खनन-  9  लातेहार, रामगढ़, धनबाद, लोहरदगा, गिरिडीह, पश्चिमी सिंहभूम और पूर्वी सिंहभूम, कोडरमा

6. भूकंप जोन IV - 2  गोड्डा,  साहिबगंज (उत्तरी विभाग)

7. जोन III -   15   गोड्डा, साहिबगंज, गढ़वा, पलामू, चतरा, हजारीबाग, कोडरमा, गिरिडीह, बोकारो, धनबाद, देवघर, दुमका, पाकुड़, जामताड़ा

8. जोन II - 07  लोहरदगा, रांची, रामगढ़, खूंटी, गुमला, पूर्वी एवं पश्चिमी सिंहभूम

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Tuesday, April 20, 2021

Jharkhand Ke Pramukh Vanya Prani Sanrakshan Sansthan (झारखंड के प्रमुख वन्य प्राणी संरक्षण संस्थान)


➽ वन्य प्राणियों के संरक्षण प्रदान करने तथा उनका विकास करने हेतु झारखण्ड में विभिन्न वन्य प्राणी क्षेत्रों की स्थापना की गयी है। 

➽ झारखण्ड में एक राष्ट्रीय उद्यान और 11 वन्य जीव अभ्यारण्य तथा कई जैविक उद्यान स्थित है। 

1) बेतला राष्ट्रीय उद्यान

➽ झारखंड का एकमात्र राष्ट्रीय उद्यान है

➽ इसकी स्थापना 1986 में की गई है

➽ यह लातेहार जिले में स्थित है, यह उद्यान 231 पॉइंट 67 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है

➽ विश्व में सबसे पहले बाघ गणना का कार्य 1932 में यहीं से आरंभ हुआ था

➽ भारत सरकार ने 1973-74 से इस राष्ट्रीय उद्यान में बाघ परियोजना का संचालन कर रही है

यह झारखंड में स्थित एकमात्र टाइगर रिजर्व है 

➽ पिछली राष्ट्रीय बाघ गणना आंकड़ों के अनुसार इस क्षेत्र में 3 बाघ  स्थित है

➽ यहाँ मुख्य रूप से बाघ,शेर ,देन्दुआ ,जंगली सूअर , चीतल, सांभर,गौर ,चिंकारा, नीलगाय, भालू ,बंदर, मोर ,वनमुर्गी, घनेश इत्यादि वन्य प्राणी पाये जाते हैं

➽बेतला का पूरा नाम :- बायसन, एलिफैंट,टाइगर, लियोपार्ड, एक्सिस- एक्सिस (BETLA- Bison, Eliphant, Tiger, Leopard, Axis-Axis)

2) पलामू वन्य-जीव अभयारण्य 

➽ यह झारखंड में एकमात्र राष्ट्रीय स्तर का अभयारण्य है। 

➽ झारखंड के शेष सभी अभयारण्य राज्यस्तरीय है। 

➽ पलामू अभ्यारण्य राज्य का सबसे बड़ा अभ्यारण है

➽ इसका विस्तार 794 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में है। इसकी स्थापना 1976 में की गई थी तथा यहां हाथी, सांभर जैसे वन्य जीव पाए जाते हैं

3) दालमा अभयारण्य

➽ यह पूर्वी सिंहभूम जिले में स्थित है

➽ भारत सरकार 1992 से इस जिले में हाथी परियोजना की शुरुआत की है

 26 सितम्बर , 2001 सिंहभूम क्षेत्र में देश के प्रथम गज रिज़र्व (एलिफैंट रिज़र्व) की स्थापना की गयी थी 

➽ इसका विस्तार 13,440 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम, तथा सरायकेला-खरसावां जिले में है। 

➽ इसी में स्थित सारंडा का वन हाथियों के लिए प्रसिद्ध है। इस क्षेत्र में लौह-अयस्क के खनन के कारण इस अभ्यारण्य को क्षति हो रही है

4) महुआडांड़ अभयारण्य 

यह लातेहार जिले में स्थित है

 इस अभयारण्य में विलुप्तप्राय भेड़िया प्रजाति के संरक्षण का कार्य संचालित किया जा रहा है

➽ इसकी स्थापना 1976 में की गई थी 

5) उधवा झील  पक्षी विहार 

 यह साहिबगंज जिले में स्थित है 

यह प्रवासी पक्षियों के लिए प्रसिद्ध है

➽ यहां साइबेरिया सहित विश्व के कई प्रकार के पक्षी आते हैं

 इसकी स्थापना 1991 में की गई यहां के प्रमुख पक्षियों में जल कौवा,बातन, किंगफिशर प्रमुख  हैं

झारखंड में स्थापित 11 वन्य जीव अभ्यारण्य 

अभ्यारण्य                           जिला            क्षेत्रफल        स्थापना      वन्य जीव

1) ऊर्धवा झील पक्षी विहार - साहेबगंज   5. 65           1991     जल कौवा,बटान, किंगफिशर 

2) कोडरमा अभयारण्य-    कोडरमा        177.95        1985     तेंदुआ, सांभर, नीलगाय

3) पालकोट अभयारण्य-     गुमला           183.18        1990      तेंदुआ, जंगली भालू 

4) दलमा अभयारण्य -   पश्चिमी सिंहभूम  193.22       1976       हाथी, तेंदुआ, हिरण

5) महुआडांड़ अभयारण्य- लातेहार          63.25         1976      भेड़िया, हिरण

6) हजारीबाग अभयारण्य- हजारीबाग       186.25      1976      तेंदुआ, सांभर, 

7) पलामू अभ्यारण्य -         पलामू              794.33      1976      हाथी,  सांभर 

8) गौतम बुध अभ्यारण -   कोडरमा            259          1976      चीतल, सांभर, नीलगाय 

9) तोपचांची अभ्यारण -     धनबाद              8.75        1978       तेंदुआ, जंगली भालू, हिरण  

10) लावालौंग  अभयारण्य   चतरा               207         1978       बाघ, तेंदुआ, नीलगाय, हिरण 

11) पारसनाथ अभयारण्य -गिरिडीह           43.33      1981       तेंदुआ, नीलगाय, हिरण, सांभर 

प्रमुख पक्षी विहार 

झारखण्ड में निम्न प्रमुख पक्षी विहार है :- 

पक्षी विहार                      जिला

1) तिलैया पक्षी विहार     कोडरमा 

2) तेनुघाट पक्षी विहार    बोकारो 

3) चंद्रपुरा पक्षी विहार     बोकारो 

4) इचागढ़ पक्षी विहार     सरायकेला -खरसावाँ  

5) उधवा पक्षी विहार       साहिबगंज 

जैविक उद्यान

1) बिरसा जैविक उद्यान :- इसकी स्थापना 1994 में की गई यह रांची जिले के ओरमांझी में स्थित है

2) नेहरू जैविक उद्यान :- इसकी स्थापना 1980 में हुई यह  बोकारो जिले में स्थित है यह पर्यटन हेतु प्रसिद्ध है

3) मगर प्रजनन केंद्र :- इसकी की स्थापना 1987 में की गई यह आई.यू.सी.एन.(IUCN) कार्यक्रम के तहत रांची जिले के मुटा-रूक्का ग्राम में स्थित है 

4) बिरसा मृग विहार :- इसकी स्थापना 1987 में की गई यह  झारखंड के खूंटी जिले में कालीमाटी नामक स्थान पर स्थित है यहां सांभर व चीतल का संरक्षण किया जाता है

5) मछलीघर :- इसकी स्थापना 2018 में की गई। यह बिरसा जैविक उद्यान के सामने हैं

झाड़ पार्क 

 इसका संचालन झारखंड पार्क प्रबंधन एवं विकास प्राधिकरण (JPMDA) जे.पी.एम.डी.ए. के द्वारा किया जाता है

➽ इसके तहत झारखंड में 10 पार्कों को शामिल किया गया है, जिसमें 6 पार्क  रांची में स्थित है, जबकि एक-एक पार्क हजारीबाग, सिल्ली, जमशेदपुर एवं दुमका में स्थित है

➽ झारखंड के रांची जिले में अवस्थित पार्क निम्न हैं 

1) बिरसा मुंडा जैविक उद्यान रांची 

2) नक्षत्र वन, रांची 

3) ऑक्सीजन पार्क, रांची

4) निर्मल महतो पार्क, हजारीबाग

5) घोड़ा बंधा थीम पार्क, जमशेदपुर

6) दीनदयाल पार्क, रांची 

7) सिद्धू कान्हू पार्क, रांची

8) श्री कृष्ण पार्क, रांची 

9)अंबेडकर पार्क, सिल्ली 

10) सिद्धू कान्हू पार्क, दुमका 

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