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Friday, August 21, 2020

Jharkhand Ke Pramukh Udyan Aur Abhyaran(झारखंड के प्रमुख उद्यान और अभयारण्य)

Jharkhand Ke Pramukh Udyan Aur Abhyaran


💥  झारखंड में एकमात्रा बेतला राष्ट्रीय उद्यान (नेशनल पार्क) है। 
💥 11 वन्य प्राणी  अभयारण्य या शरण स्थल है।  
और  कई जैविक उद्यान है। 

बेतला राष्ट्रीय उद्यान




💨बेतला झारखंड का विख्यात वन्य प्राणियों की आश्रय स्थल है
💨यह राष्ट्रीय उद्यान लातेहार जिले में स्थित है
💨इसकी स्थापना -1986 में की गयी थीं। 
💨इसका क्षेत्रफल - 231. 67 वर्ग किलोमीटर है  
💨भारत सरकार द्वारा बाघ परियोजना मुहिम चलाया जा रहा है 
💨विश्व में पहली बार बाघों की गणना 1932 ईस्वी में बेतला राष्ट्रीय उद्यान में कराई गयी थी। 
💨रांची - डाल्टनगंज सड़क मार्ग पर रांची से लगभग 156 किलोमीटर की दूरी पर यह अभयारण्य स्थित है 
💨इस अभयारण्य के मुख्य जीव-जंतु में से रॉयल बंगाल टाइगर, हाथी, चीता, हिरण आदि प्रधान रूप से पाये जाते है
💨पर्यटकों के ठहरने के लिए वन विभाग के विश्राम गृह सहित निजी होटल एवं रेस्ट हाउस का भी यहाँ इंतज़ाम है  
 

पालकोट अभयारण्य




💨 रांची से पलकोट अभयारण्य की दूरी लगभग 120 किलोमीटर है, यह गुमला जिले के पालकोट प्रखंड के अंतर्गत चैनपुर वन प्रमंडल में अवस्थित  है 
💨इसकी स्थापना -1909  में की गयी थीं।
💨पलकोट अभयारण्य के चारों ओर से कई नदियां बहती हैं इन नदियों में शंख ,बाँकी, सिंजरा,पाईलमारा ,तोरपा है 
💨इस अभयारण्य में चीता, भालू, लकड़बग्घा, भेड़िया, सियार, बंदर, खरगोश आदि वन्य-पशु पाये जाते हैं  
💨पलकोट झारखंड के ऐतिहासिक स्थलों में से एक है, जहां छोटानागपुर के राजा के महल के अवशेष भी मोहकता का केंद्र है 

तोपचांची अभयारण्य





💨 वन्य पशुओं के आश्रय श्रेणी के रूप में विकास किया गया है ,यह अभयारण्य धनबाद जिला के तोपचांची नामक स्थान में स्थित है
💨 सड़क मार्ग धनबाद से इसकी दूरी 37 किलोमीटर है
💨इसकी स्थापना -1978   में की गयी थीं।
💨 झारखंड के विभिन्न अभयारण्यों की तुलना में यह एक छोटा अभयारण्य है जो 8 पॉइंट 75 वर्ग किलोमीटर में प्रसारित है
💨तोपचांची अभयारण्य के बीच में एक खूबसूरत झील है जिसका नाम हरी पहाड़ी है 
💨 इस अभयारण्य में चीता, जंगली सूअर, लंगूर, हिरण जैसे वन्य पशुओं को उनके प्राकृतिक रूप में देख सकते  हैं  


हजारीबाग अभयारण्य




💨हजारीबाग अभयारण्य  वन्य-पशु अभयारण्य रांची-पटना मार्ग पर हजारीबाग के नजदीक स्थित है। 
💨हजारीबाग से इसकी दूरी लगभग 22 किलोमीटर है, लगभग 186 पॉइंट 25 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र  तक में इसका विस्तार है 
💨इसकी स्थापना -1976  में की गयी थीं।
💨यहाँ पर विभिन्न तरह की प्राकृतिक वनस्पति एवं जीव जंतु पाए जाते हैं 
💨 इसमें सांभर, चीता, नीलगाय, भालू, बाघ, गैंडा, जंगली सूअर,लंगूर, हिरण आदि वन्य पशु पाये जाते हैं💨वन्य पशुओं एवं अभयारण्य का देख-रेख करने के लिए चार ऊंचे वॉच टावर बनाए गए हैं जिनकी ऊंचाई 200 फीट है 


कोडरमा अभयारण्य



 

💨कोडरमा अभयारण्य रांची-पटना मार्ग पर हजारीबाग से आगे कोडरमा से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर यह अभयारण्य स्थित  है 
💨इसकी स्थापना -1976  में की गयी थीं।
💨177 पॉइंट 5 वर्ग किलोमीटर में घने  साल वन में फैले इस अभयारण्य में सांभर, चीता , नीलगाय, जंगली सूअर, लंगूर, हिरण, खरगोश, मोर इत्यादि वन प्राणी प्रधान रूप से पाये जाते हैं 


दलमा अभयारण्य




💨दलमा अभयारण्य पूर्वी सिंहभूम जिले में टाटानगर के पास यह अभयारण्य लगभग 195 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में प्रसारित है
💨इसकी स्थापना -1976  में की गयी थीं।
💨भारत सरकार द्वारा देश का पहला हाथी आरक्षय सिंहभूम  जिले में दिनांक -26 -09 -2001 को अधिसूचित किया गया
💨 दलमा अभयारण्य पर हिरण, बंदर, नीलगाय, हाथी इत्यादि वन्य प्राणी देखने को मिलते है,यहाँ के आकर्षण का केंद्र हाथी है


बिरसा जैविक उद्यान




💨बिरसा जैविक उद्यान रांची-रामगढ़ मार्ग पर रांची से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर ओरमांझी प्रखंड के अंतर्गत चकला नामक गाँव  के निकट स्थित है
💨इसकी स्थापना -1994  में की गयी थीं।
💨इसमें विभिन्न प्रजातियों  के जीव-जंतु, पशु-पक्षी एक बहुत विशाल क्षेत्र में फैले हुए, साल पेड़ों के वन के बीच प्राकृतिक अवस्था में रखे गए हैं 
💨विशाल एकड़ क्षेत्र में फैले उद्यान भ्रमण करने के लिए वर्त्तमान में पर्यटन विभाग द्वारा इको - फ्रेंडली गाड़ी भी प्रबंध  कराई गई है, जिस पर सवार होकर जीव-जंतु को देखने का मजा ही कुछ और लगता है
💨बच्चों के मनोरंजन के लिए यहाँ  नौका-विहार भी है
💨बिरसा  जैविक उद्यान के निकट ही मुटा  मगर प्रजनन केंद्र हैं, जिस जगह पर वैज्ञानिकों की देख-रेख में मगर प्रजनन कराया जाता है
💨 मगर प्रजनन केंद्र रुक्का राँची में है 


 बिरसा मृग विहार




💨रांची खूंटी के मार्ग पर जोड़ा पुल नामक स्थान के नजदीक काला माटी में  बिरसा मृग विहार अवस्थित है, रांची से इसकी दूरी मुख्य सड़क मार्ग से 20 किलोमीटर है जो सड़क  के पास  ही मिलता है 
💨इसकी स्थापना -1982 में की गयी थीं।
💨मृग विहार के पास ही से एक पहाड़ी नदी निकलती है, जो उस जगह को वनभोज  के लिए उपयुक्त बनाती है 
💨इस नदी पर एक के बाद एक दो पुल बना हुआ है यही कारण है की यह स्थान जोड़ा पुल के नाम से विख्यात है 
💨मृग विहार को विभिन्न प्रकार के हिरणों की आश्रय स्थली के रूप में विकास किया गया है

उधवा पक्षी अभयारण्य 





💨संथाल परगना प्रमंडल के साहिबगंज जिले से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह अभयारण्य विभिन्न प्रकार के विभिन्न प्रजातियों के पक्षियों के कारण विख्यात है
💨इसकी स्थापना -1991  में की गयी थीं।
💨यह लगभग 650 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तरित  है 
💨यहां एक विस्तृत विशाल झील भी है, जो प्रवासी पक्षियों के निवास के लिए उपयुक्त है शरद ऋतु में इन प्रवासी पक्षियों को देखने के लिए पुरे देश से पर्यटक एवं पक्षी प्रेमी यहां आते हैं 
💨यहां पर कबूतर, चन्दुल, वनमुर्गी, खंजन, बुलबुल, नीलकंठ पक्षी अधिक पाए जाते हैं
💨राजमहल जीवाश्म अभयारण्य साहिबगंज जिले में है




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Jharkhand Ke Pramukh Jalprapat (झारखंड के प्रमुख जलप्रपात)

Jharkhand Ke Pramukh Jalprapat

(झारखंड के प्रमुख जलप्रपात)

झारखंड की भौगोलिक संग रचनाओं में यहां के जलप्रपात विशेष महत्व रखते हैं यह झारखंड के दर्शनीय स्थल भी है झारखंड के पठारी क्षेत्र में अनेक जलप्रपात हैं



यहां इन का संक्षिप्त में विवरण निम्नलिखित है

1) उसरी जलप्रपात

💨 उसरी जलप्रपात  गिरिडीह जिले की उसरी नदी में धनबाद से 52 किलोमीटर दूर मुख्य सड़क से 2 किलोमीटर अंदर खंडोली पहाड़ी की ढलान पर स्थित है

💨 उसरी जलप्रपात उसरी नदी की धारा से बनने के कारण  इस जलप्रपात को उसरी जलप्रपात कहते  है

💨यहां आस-पास में घने जंगल होने के कारण यहां का दृश्य मनोहर और रोमांचकारी प्रतीत होता है 

💨उसरी जलप्रपात की एक विशेषता यह है कि नदी का पानी कुछ ऊपर उठकर नीचे की ओर गिरता है, यहां साल भर पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है

2) क्रांति जलप्रपात

💨 क्रांति जलप्रपात चंदवा कुंडू मार्ग पर स्नेहा गांव से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, इसके नजदीक ही हरा-भरा जंगल होने के कारण यहां का दृश्य मनोहर और हरियाली है 

💨 मुख्य सड़क से नजदीक  होने के कारण यहां लोगों के लिए अच्छा पिकनिक स्पॉट बन गया है

3) जोन्हा जलप्रपात या गौतम धारा जलप्रपात

💨जोन्हा जलप्रपात या गौतम धारा जलप्रपात रांची से 32 किलोमीटर दक्षिण पूर्व में राढू  नदी पर स्थित है

💨 इस  जलप्रपात की  ऊंचाई लगभग 150 फिट है ,जोन्हा  गांव के नजदीक होने के कारण इसका नाम जोन्हा जलप्रपात पड़ा,ये जगह अत्यंत गहराई होने के कारण यहां नीचे उतरने के लिए सीढ़ियों का निर्माण किया गया है

4दशम जलप्रपात

💨 दशम जलप्रपात  रांची जमशेदपुर मार्ग पर रांची से 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है

💨 इसकी ऊंचाई लगभग 144 फीट है, यह जलधारा जिस स्थान से गिरती है ,उसकी गहराई बहुत अधिक है, कहा जाता है इतनी ऊंचाई से गिरने के कारण इसकी जलधारा 10 धाराओं में बाँट जाती है, इसी कारण इसका नाम दशम जलप्रपात पड़ा

💨दशम जलप्रपात रांची के बुंडू प्रखंड के नजदीक तैमारा घाटी में कांची नदी पर स्थित है 

5) पंचघाघ  जलप्रपात

💨पंचघाघ  जलप्रपात  चाईबासा मार्ग पर खूंटी  से लगभग 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है

💨यहां ऊंचाई से गिरकर 5 धाराओं में बाँट जाती है, इसी कारण इसका नाम पांचघाघ जलप्रपात पड़ा दिसंबर से फरवरी माह तक यहां का दृश्य अत्यंत ही मनोहर और रोमांचकारी रहता है

6) बूढ़ा घाघ जलप्रपात

💨बूढ़ा घाघ  जलप्रपात लातेहार जिले में महुआटांड़ से 14 किलोमीटर की दूरी पर उत्तरी कोयल नदी पर स्थित है

💨 इसकी ऊंचाई 143 मीटर है, यह झारखंड का सबसे ऊंचा जलप्रपात है, इससे लोधा जलप्रपात के नाम से भी जाना जाता है, यहां सितंबर अक्टूबर में इसके आसपास का दृश्य देखने योग्य अत्यंत ही मनोहर रहता है

7) सुखलदरी   जलप्रपात

💨सुखलदरी  जलप्रपात नगर उंटारी से लगभग 35 किलोमीटर दक्षिण में कन्हर नदी में स्थित है 

💨इसकी ऊंचाई लगभग 100 फीट की ऊंचाई से गिरते हुए देखने में आंखों को सुकून देने वाला दृश्य उत्पन्न करती है

8) हुंदरू जलप्रपात

💨हुंदरू जलप्रपात  रांची से 36 किलोमीटर पूर्व अनगड़ा प्रखंड के अंतर्गत स्वर्णरेखा नदी पर स्थित है 

💨इस जलप्रपात की ऊंचाई लगभग 98 मीटर (322 फीट) है , यह रांची  के निकट का और सबसे प्रसिद्ध जलप्रपात है

 💨यह  झारखंड का दूसरा सबसे ऊंचा जलप्रपात और भारत का 21वे  सबसे ऊंचा जलप्रपात है

9) हिरनी जलप्रपात

💨हिरनी जलप्रपात रांची चाईबासा मार्ग पर चक्रधरपुर से 40 किलोमीटर उत्तर में स्थित है

💨 इसकी जलधारा अधिक ऊंचाई से नहीं गिरती है फिर भी यहाँ का स्थान हरा-भरा दर्शकों  बहुत आकर्षित करता है, इसी कारण से अच्छा पिकनिक स्पॉट बना हुआ है

10) सीता जलप्रपात

💨सीता जलप्रपात रांची पुरुलिया मार्ग पर रांची से 45 किलोमीटर दूरी पर स्थित है

💨 इस जलप्रपात 350 फिट है, यहां पर 350 सीढ़ी  उतरकर झरने तक पहुंच सकते है 

💨झरना के पास सीता माता का मंदिर है, जिसका निर्माण बिरला परिवार ने कराया था, ऐसी मान्यता है, कि वनवास के दौरान भगवान राम, लक्ष्मण और सीता के साथ कुछ दिन के लिए यहां पर ठहरे हुए थे

 11) घाघरी जलप्रपात

💨घाघरी  जलप्रपात नेतरहाट पठार पर नेतरहाट से 7 किलोमीटर उत्तर में घाघरी  नदी पर स्थित है इसका  ऊंचाई  43 मीटर है,

12) सदनी  जलप्रपात

💨सदनी जलप्रपात गुमला जिले में शंख नदी पर स्थित है इसकी ऊंचाई लगभग 200 फीट है, इस जलप्रपात का आकार एक साँप  के रूप जैसा  है, जो देखने में बड़ा ही मनमोहक लगता है 





 



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Thursday, August 20, 2020

Jharkhand Ki Mitti (झारखंड की मिट्टी )

झारखंड की मिट्टी 

(Jharkhand Ki Mitti)

 

झारखंड राज्य की सतही मिट्टी भी इसके भौतिक स्वरूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यहां की मिट्टी में खनिज पदार्थ प्रचुर मात्रा में पाया जाता है

💥 स्थलीय पृष्ठ की ऊपरी परत को मिट्टी कहते हैं 

झारखंड में कुल 6 प्रकार की मिट्टियां पाई जाती हैं 

(1) लाल मिट्टी 
(2) काली मिट्टी 
(3) लेटेराइट मिट्टी
(4) रेतीली मिट्टी या बलुई मिट्टी
(5) जलोढ़ मिट्टी
(6) अभ्रकमूलक  मिट्टी


उपयुक्त सभी प्रकार की मिट्टियों का वर्णन निम्न प्रकार  है:-

💥लाल मिट्टी

💨 लाल मिट्टी झारखंड के सभी क्षेत्र में पाया जाता है, राज्य की सबसे प्रमुख मिट्टी है, छोटानागपुर के 90% भाग में यह मिट्टी पाई जाती है
💨यह  शुष्क और आर्द्र  जलवायु के कारण लौह ऑक्साइड से भरपूर चट्टानों के टूटने और पीसने से बनती है। इस मिट्टी में कहीं-कहीं खनिजों के अंश होने के कारण इसका रंग पीला होता है 
💨यह मिट्टी  बहुत कम उपजाऊ होने के कारण इस में कृषि नहीं के बराबर होता है, इस मिट्टी में अनाज के रूप में बाजरा ही पैदा हो पाता है
💨लाल मिट्टी केवल अपवाद के लिए दामोदर घाटी की गोंडवाना चट्टानों और राजमहल की ऊंची भूमि में  नहीं पाई जाती है
💨 इसमें लौह तत्वों  की मात्रा अधिक होने के कारण अति रंध्र युक्त होता है 
💨अभ्रक मूलक लाल मिट्टी हजारीबाग और कोडरमा में पाया जाता है
💨लाल काली मिश्रित मिट्टी सिंहभूम और धनबाद में पाया जाता है

💥काली मिट्टी

💨काले एवं भूरे रंग की यह मिट्टी राजमहल के पहाड़ी क्षेत्र में पाई जाती है 
💨बेसाल्टिक मिट्टी सिलिकॉन पदार्थों से युक्त होती है, इसमें पोटाश , कोयोलीन, मैग्नीशियम और लौह   ऑक्साइड इत्यादि प्रमुख रूप से पाया जाता है  
💨इस मिट्टी में नमी वह आर्द्रता  बनाए रखने की क्षमता होने के कारण कृषि के लिए बहुत उपयोगी माना जाता है, इसमें कपास, चना और धान की खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है
 

💥लेटेराइट मिट्टी

💨इस मिट्टी में लौह ऑक्साइड के साथ चुना, फस्फोरस और पोटाश भी पाया जाता है, लेकिन इसमें लौह ऑक्साइड की मात्रा सबसे अधिक होती है। 
💨रांची के पश्चिमी क्षेत्र, पलामू के दक्षिणी क्षेत्र, संथाल परगना के पूर्वी राजमहल के क्षेत्र, सिंहभूम के  दलभूम के दक्षिणी पूर्वी क्षेत्र में ऐसी मिट्टी पाई जाती है। 
💨यह मिट्टी कृषि के दृष्टि से उपयुक्त नहीं होती है, इस मिट्टी की उर्वरता बहुत कम होती है अरहर और अरंड  की खेती होती है 
 

💥रेतीली मिट्टी या बलुई मिट्टी

💨यह मिट्टी का रंग लाल और पीले रंग का मिश्रण होता है, जो हल्का लालिमा लिए रहता है।  
💨यह मिट्टी दामोदर घाटी क्षेत्रों में पाया जाता है। 
💨से मिट्टी में मोटे अनाजों की खेती के लिए उपयुक्त होती है
  

💥जलोढ़ मिट्टी

💨झारखंड में पाए जाने वाले मिट्टियों में सबसे नवीन मिट्टी है।  

💨राज्य में जलोढ़ मिट्टी के दो प्रकार हैं 

(1) भंगार ( पुरातन जलोढ़) मिट्टी, 
(2) खादर (नवीन जलोढ़) मिट्टी पाए जाते हैं। 

💨यह मिट्टी बहुत उपजाऊ होती है, ऐसे मिट्टी में धान,गेहूं की खेती के लिए बहुत उपयुक्त होता है। 

💨जलोढ़ मिट्टी झारखंड के तीन क्षेत्र में पाया जाता है 

(1)साहिबगंज का उत्तर  पश्चिमी भाग -भंगार ( पुरातन जलोढ़) मिट्टी, 
(2) साहिबगंज का उत्तरी पूर्वी किनारा भाग -खादर  (नवीन जलोढ़) मिट्टी,
(3) पाकुड़ का पूर्वी क्षेत्र 

💨साहिबगंज का उत्तर पूर्वी क्षेत्र झारखंड का सबसे उपजाऊ क्षेत्र है
 

💥अभ्रकमूलक  मिट्टी

💨यह रेतीली मिट्टी अभ्रक के अंशों  से प्रभावित होकर चमकदार होता है
💨 शुष्कता के कारण इसका रंग हल्का गुलाबी हो जाता है और नमी के कारण पीला दिखाई देता है
💨 झारखंड राज्य के अभ्रक के खाने वाले क्षेत्रों, 
💨जैसे कोडरमा, झुमरी तलैया, मांडू ,बड़कागांव में यह अधिक पाई जाती हैं।
💨 कहीं-कहीं इस मिट्टी में कोदो, कुर्थी आदि फसलें उगाई जाती हैं। 

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Monday, August 17, 2020

#Jharkhand Ka Naya Logo# (झारखंड का नया लोगो)

#Jharkhand Ka Naya Logo

झारखंड राज्य का नया प्रतीक चिन्ह अस्मिता का प्रतीक है

नया विचार।। नया संकल्प ।। नयी पहचान ।।

              14 अगस्त 2020 को झारखंड राज्य की राजधानी रांची के मोराबादी मैदान के आर्यभट्ट सभागार में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया इस आयोजित कार्यक्रम के मुख्य अतिथि झारखंड राज्य के राज्यपाल श्रीमती द्रोपति मुर्मू थी। इस कार्यक्रम में झारखण्ड के मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेन भी शामिल हुए इस कार्यक्रम के दौरान ही झारखंड राज्य के नए (लोगो) प्रतीक चिन्ह का झारखंड वासियों को समर्पित किया गया  इस नए (लोगो )प्रतीक चिन्ह के बारे में श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने बताया कि यह प्रतीक चिन्ह झारखंड राज्य की पहचान और स्वाभिमान को दर्शाता है 

            मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेन ने इस नए (लोगो )प्रतीक चिन्ह के बारे में कहा  कि यह प्रतीक चिन्ह झारखंड राज्य की लोगों की भावनाओं को दर्शाता है इसके अलावा और भी मुख्यमंत्री के कथन हैं जो निम्नलिखित हैं 

"यह प्रतीक चिन्ह हमारी संस्कृति को रेखांकित करता है यह हमारी अस्मिता का द्योतक और हमारी चेतना का प्रतीक है राज्य के प्राकृतिक परिवेश एवं यहां के लोगों के जीवन दर्शन को अपने में समेटे हुए हमारी पहचान को समग्रता से प्रकट करता है"

                                                            - हेमंत सोरेन, मुख्यमंत्री झारखंड 

झारखंड का नया प्रतीक चिन्ह अस्मिता का प्रतीक है, और झारखंड राज्य का नया प्रतीक चिन्ह गोलाकार है। जो प्रगति के प्रतीक का सूचक है,जैसे पहिया या चक्र लगातार घूमते हुए आगे बढ़ता है उसी तरह झारखण्ड भी प्रगति के पथ पर आगे बढ़ता रहेगा  

नया विचार। नया संकल्प। नई सोच। 

💥कुल घेरों की संख्या - 7

💥बीच वाले गोल घेरे में - अशोक स्तंभ ,सत्यमेव जयते

💥दूसरे घेरे में -सफेद गोल घेरे -60

💥तीसरे गोल घेरे में - मानव आकृति - 48  (24  जोड़ी )

💥चौथे गोल घेरे में - पलाश के फूल (राजकीय पुष्प )-24

💥पांचवे गोल घेरे में - सफ़ेद हाथी की आकृति (राजकीय पशु )-24

💥छठे गोल घेरे में - झारखण्ड सरकार GOVERNMENT OF JHARKHAND

💥 सातवाँ घेरा रिक्त 


नए प्रतीक चिन्ह की विशेषताएं:-


💥 हरा रंग 


हरा रंग - नए राज्य चिन्ह का हरा रंग झारखंड राज्य की हरी-भरी धरती और संपूर्ण राज्य में फैली हरियाली और वन संपदा का परिचय देता है। प्राकृतिक सौंदर्य और संसाधनों से अलंकृत झारखंड विकास के पथ पर लंबे-लंबे पग भरने हेतु आवश्यक खनिज सम्पदा से परिपूर्ण है। 


💥 हाथी


हाथी -हाथी राज्य के ऐश्वर्या और प्रचुर  प्राकृतिक संसाधनों को दर्शाता है हाथी झारखंड के महान इतिहास शक्ति और सामूहिक बुद्धिमता का प्रतीक है वर्तमान और सुनहरे भविष्य के मध्य खड़ी सभी बाधाओं का सामना करते हुए आगे बढ़ने के संकल्प का प्रतीक है


💥पलाश फूल 


पलाश का फूल  -पलाश का फूल "फ़प्लेम ऑफ द फॉरेस्ट" के नाम से मशहूर पलाश या टुशु का फूल  झारखंड के प्राकृतिक सौंदर्य एवं सुरम्यता को प्रतिबिंबित करता है पुष्पित होता पलाश का फूल बसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक है वसंत ऋतु जो समृद्धि का संदेश लेकर आता है


💥 सौरा चित्रकारी(स्थानीय उत्सव)

सौरा चित्रकारी(स्थानीय उत्सव) - स्थानीय त्योहारों को चित्रित करने वाले जनजातीय कला को नए राज्य चिन्ह में स्थान दिया गया है जो राज्य की समृद्धि और विविधता पूर्ण परंपराओं के साथ उसकी निराली संस्कृति और धरोहर का परिचय कराते हैं 


💥 अशोक स्तंभ ,सत्यमेव जयते

अशोक स्तंभ ,सत्यमेव जयतेझारखंड का नए राज्य चिन्ह के केंद्रीय भाग में अशोक स्तंभ है, यह राष्टीय प्रतीक चिन्ह होने के साथ झारखंड राज्य की सम्प्रभुता शक्ति का द्योतक है उसमें उकेरा गया अशोक स्तंभ भारत के उत्तम सहकारी संघवाद, इसमें झारखंड की सहभागिता एवं अद्वितीय भूमिका को रेखांकित करता है


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Tuesday, July 21, 2020

Jharkhand ki Pramukh Nadi Ghati Pariyojna (झारखण्ड की प्रमुख नदी घाटी परियोजनाएँ)

झारखण्ड की बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाएं



एक से अधिक उद्देश्यों को लेकर बनाई नदी घाटी परियोजना को बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजना कहते हैं 
जैसे:-सिंचाई ,बाढ़ नियंत्रण ,पेयजल आपूर्ति ,जल विद्युत, नहर परिवहन ,पयर्टन इत्यादि की पूर्ति बहुउद्देशीय परियोनाओं के तहत की जाती हैं 
         भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने नदी घाटी परियोजना को आधुनिक भारत का मंदिर कहा है  

झारखण्ड में बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजना निम्न हैं :-

1 . दामोदर घाटी परियोजना


💨दामोदर घाटी निगम की स्थापना 7 जुलाई 1948 को सयुंक्त राज्य अमेरिका की टेनेसी नदी घाटी   परियोजना द्वारा हुआ था,यह भारत की प्रथम बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजना है। 
💨दामोदर नदी दो राज्यों में झारखण्ड और पश्चिम बंगाल में प्रवाहित होती है 
💨मानसून कल में दामोदर नदी में बाढ़ आने के कारण पश्चिम बंगाल राज्य पूरी तरह बाढ़ से प्रभावित हो जाता है,यही कारण है की इसे बंगाल का शोक कहा जाता है 

उद्देश्य :-

💨दामोदर घाटी निगम  के निवासियो का सामाजिक-आर्थिक कल्याण  
💨औद्योगिक  और घरेलु उपयोग के लिए जलापूर्ति  
💨पर्यावरण संरक्षण तथा वनीकरण,
💨सिंचाई ,बाढ़ नियंत्रण ,पेयजल आपूर्ति ,जल विद्युत, नहर परिवहन इत्यादि का लाभ मिले  

दमोदर घाटी निगम का नियंत्रण 

💨दामोदर घाटी निगम का मुख्यालय में कोलकत्ता है 
💨यह एक संयुक्त परियोजना है झारखण्ड और पश्चिम बंगाल का  
💨पश्चिम बंगाल में बाढ़ की समस्या को रोकने के लिए ही 8 बड़े बांध,
 1-अवरोध बांध,6 जल विद्युत गृह और 3 तापीय विद्युत गृह बनाये गए हैं  

8 बड़े बांध निम्न प्रकार है :-

1 . तिलैया  बांध -  बराकर नदी में 
2 . मैथन बांध -  बराकर नदी में 
3 . बाल पहाड़ी -बराकर नदी में 
4 . पंचेत बांध -दामोदर नदी में 
5 . अय्यर बांध -दामोदर नदी में 
6 . बेरमो बांध -दामोदर नदी में 
7 . बोकारो बांध -बोकारो बांध में 
8 . कोनार बांध -बोकारो बांध में 

अवरोध बांध-1 
💨 दुर्गापुर अवरोधक  बांध

जल विद्युत गृह-6 

1 . तिलैया बिद्युत गृह, 2. मैथन बिद्युत गृह, 3 -बालपहाडी बिद्युत गृह, 4-पंचेत बिद्युत गृह,
5 -बेरमो बिद्युत गृह, 6-कोनार बिद्युत गृह

तापीय विद्युत गृह-3 

💨1 -बोकारो ,2-चन्द्रपुरा , 3 -दुर्गापुर की 
💨1 -बोकारो ,2-चन्द्रपुरा , 3 -दुर्गापुर ,इन तीनों संगठन का महत्वपूर्ण बात यह है की कोयला ,जल ,तरल ईंधन  तीनों स्रोतों से विद्युत  उत्पादन करने वाली प्रथम संगठन है  

2 . स्वर्ण रेखा परियोजना




💨स्वर्ण रेखा परियोजना की स्थापना 1982-1983 में हुआ था  
💨झारखण्ड ,ओड़िसा और पश्चिम बंगाल तीनों की संयुक्त परियोजना  है 
💨वर्ल्ड बैंक इनको आर्थिक सहायता प्रदान करता है 
💨इसमें बांध और बैराज बना हुआ है 
💨स्वर्ण रेखा नदी पर दो चांडिल और गालूडीह डैम हैं 
💨 खरकई नदी पर दो इचा बांध और गाजिया बांध हैं

3 . मयूराक्षी परियोजना 



💨झारखण्ड और पश्चिम बंगाल दोनों की संयुक्त परियोजना  है 
💨मयूराक्षी परियोजना दुमका जिला के मसानजोर नामक स्थान में स्थित है,
💨मयूराक्षी परियोजना कनाडा देश की आर्थिक से सहायता बनाया गया है 
💨मयूराक्षी परियोजना के ऊपरी भाग में कनाडा बांध है 
💨मयूराक्षी परियोजना के निचले भाग में एक अवरोध बांध तिलपड़ा में बना  है 
💨मयूराक्षी परियोजना में 'कनाडा बांध को ही मसानजोर बांध कहा जाता है 

4 .उत्तरी कोयल परियोजना


💨उत्तरी कोयल परियोजना की स्थापना 1972 में हुआ था 
💨वन विभाग द्वारा 1993 में रोका गया था
💨उत्तरी कोयल परियोजना को मंडल डैम क नाम से भी जाना जाता है
💨मंडल डैम से पलामू ,गढ़वा ,बिहार के औरंगाबाद और गया को लाभ मिलता है 
💨अब इसकी  5 जनवरी 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पलामू जिला में शुरुवात की गयी है 

5 . कोयलकारो परियोजना 


💨कोयलकारी परियोजना में कोयल और करो नदी पर बांध बनाये गए हैं 
💨यह योजना 1973 -1974  में शुरुवात की गयी थी 
💨अब यह बंद है 2003 से  







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